लॉकडाउन में इस देश पर थूक रहे लोगों को पहचान लें- लेख १ : सौरभ शाह

(न्यूज़ व्यूज़ : गुरुवार, २३ अप्रैल २०२०)

देश भर में लॉकडाउन चल रहा है और कल से इस्लामधर्मियों के लिए रमजान का महीना शुरू हो रहा है. कोरोना का इलाज करनेवाले डॉक्टर्स और नर्सों पर थूकना. कोरोना ग्रस्त इलाकों में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करवाने जा रहे पुलिस वालों पर पत्थरबाजी करना. लॉकडाउन के दौरान बाप का राज समझकर खुलेआम सडकों पर आकर नमाज पढ़ना. मास्क, हैंडशेक और एक दूसरे से दूर रहने की सलाह की भद्दे मजाक उडानेवाले शानपट्टी से भरे वीडियों टिकटॉक पर डालना. दुनिया भर के हजारों तब्लीगियों का केजरीवाल के संरक्षण में दिल्ली के निजामुद्दीन मरकज में जुटना और फिर जब पुलिस रेड डालती है तब अस्पताल में जाकर कोरोना का इलाज करवाने के बजाय देशभर के कोने कोने में पहुंच कर रोग की तीव्रता को गुणकों में बढाना. सडक पर बिक रही साग-सब्जियों पर थूंक कर और अपने पेशाब को छिडक कर उन्हें संक्रमित करना. (ऐसे अनेक वीडियोज ट्विटर और यूट्यूब पर हैं, सर्च करें).

सामान्य दिनों में, सरकार का लॉकडाउन का आदेश नहीं होने पर भी ये कतई स्वीकार्य नहीं है, कानूनी तौर पर भी ये आचरण अपराध माना जाता है.

कल से रमजान का महीना शुरू हो रहा है. ये तो हमारे लिए पवित्र महीना है इसीलिए हम पांच वक्त की नमाज पढने के लिए जुटेंगे, जुटेंग और जुटेंगे ही, ऐसी जिद करके कई लोग मस्जिद में, सडकों पर, छत पर, कंपाउंड में इकट्ठे होकर सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने के सरकार के तमाम प्रयासों पर पानी फेर देंगे, ऐसी दहशत है. राजा खोलने के बाद समूह में आहार लेना हमारी परंपरा है, ऐसा कहकर इफ्तारी के लिए दावत करेंगे, ऐसा भी डर है.

भारत में रहनेवाले अधिकांश मुसलमान समझदार हैं. इस देश को अपना मानते हैं. इस देश की सरकार के कारण अन्य देश के मुसलमानों की तुलना में उनका जीवन स्तर काफी अच्छा है,ऐेसा वे मानते हैं. हिंदुों के साथ भाईचारे के साथ, शांति से रहने में विश्वास रखते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि सौहार्द रखे बिना अपनी उन्नति नहीं होनेवाली. पर भारत में रहने वाले कई मुसलमान खुद को मुगल बादशाह की रखैलों का वंशज मानकर इस देश पर अभी भी उनका राज है ऐसा कहते हुए सरेआम दादागिरी करते फिरते हैं. मुस्लिम राजनेताओं में से जो ओवैसी जैसे आक्रामक हैं ऐसे तमाम नेता और ममता बैनर्जी, शरद पवार से लेकर केजरीवाल, राहुल जैसे सडकछाप मानसिकता वाले हिंदू राजनेता इस प्रकार के मुसलमानों को दुलार करते रहते हैं और बंदरों को लगातार शराब के नशे में रखकर सीढी पर चढाते रहते हैं. परिणामस्वरूप इस देश में मोदी आकर बारह जोडते हैं तो तेरहवां टूट जाता है. अत्यंत खतरनाक परिस्थिति खडी हो रही है- इन उकसानेवाले नेताओं द्वारा और उकसावे में आनेवाली जनता द्वारा.

उदारता एक बहुत बडा दिखावा है. अंदर से जो बिलकुल कट्टर होते हैं वे बाहर से उदारता का दिखावा करते रहते हैं. अंदर से जिन्हें दोनों हाथों में लड्डू रखने हैं, जिन्हें दही-दूध दोनों में पांव रखकर मलाई चाटनी है, जिन्हें हंसना भी है और चूर्ण भी फांकना है, वे सभी कितने उदार हैं ऐसी बाहरी छवि बनाते रहते हैं. समाज के हर वर्ग में, हर क्षेत्र में, हर व्यवसाय में ऐसे `उदारमतवादी’ लोग आपको बडी संख्या में देखने को मिलेंगे. अंग्रेजी में वे खुद को `लिबरल’ के रूप में प्रस्तुत करते हैं. हम जैसे काने को काना कहनेवाले लोग उन्हें `लिब्रांडू’ कहते हैं. लिब्रांडू यानी लिबरल गुंडे.

जिन्हें अपनी उदार छवि बनाने की कोई जरूरत नहीं है, जो सचमुच सभी को समान मानते हैं अैर जो अपने धर्म को जान से भी अधिक चाहते हैं, उन्हें कभी गला फाडकर `ईश्वर अल्लाह तेरो नाम’ गाने की जरूरत नहीं होती. वे ओम सहनाववतु सहनौभुनक्तु का श्लोक उच्चरित करके वसुधैव कुटुंबकम की अपनी अवधारणा को प्रकट करते हैं. लेकिन ऐसा करनेवालों को लिबरांडू लोग कट्टरवादी के रूप में चित्रित करते हैं, सांप्रदायिक के रूप में पहचानते हैं. कमाल का है इस देश का सेकुलरिज्म. जो सचमुच में हार्डलाइनर हैं वे लिबरल, जो हिंदू विरोधी हैं वे धर्मनिरपेक्ष और जो हजारों साल की संस्कृति में सभी को सामाजिक रूप से स्वीकार करते हैं वे कट्टरवादी, जिन्होंने कभी दूसरों की संपत्ति-दूसरों की माता बहनों की इज्जत नहीं लूटी उन्हें असहिष्णु, जिन्होंने कभी विधर्मियों के मस्जिद-चर्च नहीं तोडे वे मानवता के द्रोही- मानवाधिकार का उल्लंघन करनेवाले हैं, कमाल है इस देश का वातावरण.

किसने बनाया ऐसा वातावरण? जो मुसलमान इस देश में शांति से रहना चाहते हैं, उनकी उपेक्षा करके अनुशासनहीनता से जीने की इच्छा रखनेवाले उनके भाई भतीजों को उकसाते हैं, ऐसा वातावरण किसने बनाया? नेहरू ने? हां, नेहरू ने. कांग्रेस ने? हां कांग्रेस ने. नेहरू के पालतू जैसे साम्यवादियों ने? हां, हां साम्यवादियों ने. इन सभी ने मिलकर पिछले सात दशकों से देश में ऐसी हवा खडी की है कि जो मुसलमान देश में उत्पात मचाने की मानसिकता रखते हैं उन्हें रोकें नहीं, उन्हें प्रोत्साहित करें. छोटा भाई मानकर उनके अपराधों को माफ कर दें, इतना ही नहीं उन्हें सिर पर बिठाएं, अल्पसंख्यक मानकर उन्हें विशेष लाभ दें. इस देश के संसाधनों पर पहला हक मुसलमानों का है ऐसा किसने कहा था याद है? सरदार मनमोहन सिंह ने जिन्हें सोनिया गांधी के समर्थक के रूप में देश के सर्वाच्च पद पर आसीन किया गया था. सच्चर कमिटी की रिपोर्ट के समय मौनीबाबा ने जब ये भडकाऊ बयान दिया था तब उनकी प्रशंसा करनेवाली सेकुलर मीडिया ने आठ-आठ कॉलम के लेख लिखकर उनकी आरती उतारी थी. उसी दौरान कांग्रेस ने और एक फायदा लेने की कोशिश की थी जिसमें सांप्रदायिक दंगों के समय मुसलमान बच निकलें और हिंदू फंस जाएं, ऐसे कई प्रावधान डाले थे.

भगवान का शुक्र मानिए (हां, लाख बार ईश्वर का आभार मानना चाहिए- अल्लाह या जीसस का नहीं) कि २०१४ में भारत की जनता ने क्रांति कर दी. कांग्रेस की नपुंसक और मुस्लिम राजनेताओं के इशारे पर नाचनेवाली सरकार को भगा कर भारतियों ने एक मर्दानगी भरी सरकार को भारत में शासन करने के लिए चुना.

कांग्रेसियों के साथ या फिर नेहरू, इंदिरा, राजीव, सोनिया या पिल्लों के खिलाफ हमारी पर्सनल दुश्मनी भला क्यों हो? लेकिन इस देश को जिस तरह से खोखला किया है उसवे देशकर ये सभी निजी दुश्मन जैसे लगते हैं. २०१४ में इस देश को मिले अवतार पुरुष ने जब सबकुछ सुधारने का प्रयास शुरू किया तब उसकी राह में लगातार बाधाएं खडी करनेवाले लोग राष्ट्रद्रोही लगते हैं. उन तमाम राष्ट्रद्रोहियों को सार्वजनिक रूप से फांसी के तख्ते पर लटकाने के दिवास्वप्न देखे जा रहे हैं.

करीब डेढ महीना पहले कांदिवली में पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ का संबोधन हुआ. कई सारी बातें उन्होंने की थीं जिन्हें गांठ बांधकर रखना चाहिए. अभी जो बात करनी है, उसके लिए सबसे प्रासंगिक जो मुद्दा था उसका उल्लेख यहां करना है.

पुष्पेंद्र जी के कहने का ये अर्थ था कि देश का शासन नरेंद्र मोदी के हाथ में है इसीलिए यह देश आक्रांताओं से बिलकुल सुरक्षित है, ऐसा मानकर, निश्चितंत होकर पांव पर पांव रखकर बैठने की भूल न करना. इस सरकार के सामने हर दिन नई नई चुनौतियां आ रही हैं जिनका समाधान करने के लिए चौबीस घंटे, दिन रात, वे मेहनत कर रहे हैं. विश्व की कई ताकतें इस सरकार को पलटने के लिए तरह तरह की साजिशें रच रही हैं. ऐसे वातावरण में हमे रिलैक्स होकर बैठे रहने की, चिंता मुक्त हो जाने की भूल नहीं करनी. २०२२४ में मोदी ही आएंगे, और कौन आएगा ऐसा मानकर हमें अपने कर्तव्यों को, अपनी जिम्मेदारियों को, अपने फर्ज को छोडकर मौज मजा करने में व्यस्त नहीं होना है.

पुष्पेंद्रजी की इस अति गंभीर और गहरी सोच वाली बात का विश्लेषण करेंगे. मोदी के पास प्रचंड ताकत है. उनकी ये ताकत हम सभी से आती है. हमने यदि बूंद बूंद कर सागर भरते हुए मोदी को नहीं चुना होता तो अभी हमें अपनी ताकत का, मोदी की ताकत का, इस देश की ताकत का परिचय न होता. मोदी को पलटने के मंसूबे रखनेवाले, भारत की हिंदू जनता को अपने पैरों तले कुचलने की राक्षसी इच्छा रखनेवालों और इस देश की इज्जत – आबरू को बेचकर अपनी तिजोरियों भरने के लिए आतुर लोगों के पास दो बडे हथियार हैं:

(१) इस देश के मुसलमानों को उकसाओ. उनके मन में भर दो कि ये हिंदू आपको ऊपर नहीं आने देंगे. इसीलिए उन्हें जो भी सब्जियां बेचो, उन पर थूको, पेशाब करो. देश के पंद्रह-बीस करोड मुसलमानों में से एक प्रतिशत से भी कम मुसलमानों को इस तरह से उकसाने की जरूरत है, ऐसा मोदी विरोधी तत्व भलीभांति समझते हैं. इन एक प्रतिशत विघटनकारियों के कारण बाकी के ९९ प्रतिशत मुसलमानों को मुख्य धारा में मिलने से रोका जा सकता है, ऐसा मोदी विरोधियों का प्लान है. भारत की जनता मिलजुल कर नहीं रहती है तो ही भारतद्वेषी लोगों के मंसूबे पूरे होंगे. कुछ हजार-लाख मुसलमानों को उकसाकर, जो वैसे भी उकसावे में हैं ये इसके लिए आतुर हैं, कि उन मुसलमानों को ताकतवर बनाकर उनकी बाकी कम्युनिटी पर उन्हें हावी कर दिया जाय. ये पहला कदम है. भारत के सभी मुसलमान इन हजार-लाख मुसलमानों जैसी ही मानसिकता रखते हैं, उनकी तरह ही खतरनाक हैं ऐसा वातावरण पैदा होते ही मोदीद्वेषियों का आधा काम सिद्ध हो जाएगा. हिंदुओं के मन में बैठ जाएगा कि भारत के सभी पंद्रह – बीस करोड मुसलमान, एक एक मुसलमान राष्ट्रद्रोही है. ऐसा वातावरण खडा करके देश के कोने कोने में दंगे फैलाओ और मीडिया के हाथ में पेट्रोल की केन देकर आग भडकाओ. २०२४ से पहले देश में अंतर्कलह इस हद तक फैलाओ कि हर कोई इसके लिए आर.एस.‍एस. को ब्लेम करे, भाजपा को ब्लेम करे, योगी-अमित शाह को ब्लेम करे, राष्ट्रप्रेमी मतदाताओं को और अपने धर्म का आचरण करनेवाले हिंदुओं को ब्लेम करे. देश के तमाम हिंदुओं का मुंह काला कर दो. फिर देखो कि २०२४ में भाजपा कैसे जीतकर आती है. मोदी को विपक्ष में बिठाओ. प्रधान मंत्री तो कोई भी बन जाएगा, शरद पवार, ममता बैनर्जी या फिर केजरीवाल या वो गांधी का पिल्ला.

देश में मुसलमानों की समस्या कांग्रेस ने ७० साल से खडी की है और विपक्ष के पास ये एक बडा हथियार है.

(२) दूसरा हथियार है इस देश में अमीरी गरीबी का राग छेडना. साम्यवादी ये सुर छेडने में एक्सपर्ट हैं. मुसलमान ही नहीं, दलितों को, समाज के हर वर्ग को, देश के हर प्रदेश के लोगों को उकसाने के लिए ये सुर छेडने से अपेक्षित परिणाम आता है, ये इन साम्यवादियों ने देखा है. कांग्रेसी और साम्यवादी एक दूसरे के भाई हैं, सगे नहीं तो सौतेले ही. एक ही पिता की अवैध संतानें आपस में मिल गई हैं क्योंकि उनके सामने हिमालय जैसा विराट महापुरुष खडा है. लॉकडाउन के बाद दुनिया भर में आनेवाली आर्थिक मंदी भारत को भी कुछ न कुछ सीमा तक सहनी ही है. अर्थव्यवस्था फिर से पटरी पर लाने के मोदी के तमामा कदम विफल हों इसके लिए वे लोग अपनी छुरियां धार करके बैठे हैं. अर्थव्यवस्था के लिए उपयोगी हर कदम देश के लिए विनाशकारी होगा, ऐसा अपप्रचार करेंगे और इस तरह की ब्रीफ भी बिकाऊ मीडिया के पास पहंच चुकी है. ७० साल में देश को लूटकर इन लोगों ने खजाना जमा किया है, इसका एक भाग उन्होंने मीडिया को दिया है और अब तो मीडिया को भी विश्वास हो गया है कि मोदी की जड खोदने में कितनी कमाई होनेवाली है.

इस समय हम सभी का फोकस अर्जुन की तरह होना चाहिए. हमें कौन गलत राह पर ले जाने की कोशिश कर रहा है. ये कोशिश क्यों की जा रही है. किस तरह से हो रही है. इन्फॉर्मेशन के इस युग को मीडिया किस तरह से मिस-इन्फॉर्मेशन का युग बनाकर असली चित्र के स्थान पर मायावी सृष्टि हमारे सामने रख रहा है. किसके इशारे पर मीडिया नाच रहा है. ये सारी जानकारी होगी तो ही पक्षी की आंख दिखेगी, अन्यथा पत्तियों- डालियों- पौधों और वन में मन भटकता रहेगा.

अर्जुन को दिख रही आंख यानी देश का हित. देश का हित यानी हम सभी का हित. हम सभी का हित यानी मोदी का नेतृत्व. इस नेतृत्व की सुरक्षा के लिए ही हमारा लक्ष्य, वही पक्षी की आंख है.

रजमान का आरंभ मोदी विरोधियों के लिए मुस्लिम पॉलिटिक्स खेलने का आदर्श समय है. लॉकडाउन के नियमों को, सोशल डिस्टेंसिंग की सावधानियों का सरेआम उल्लंघन करके देश में उत्पाद मचाने का इससे अच्छा मुहूर्त कब मिलेगा उन्हें? प्रार्थना करते हैं कि ऐसी कोशिश न हो. हमारी दहशत गलत साबित हो, ऐसी सद्बुद्धि अल्लाह मोदी विरोधी राजनेताओं को दे, ऐसी दुआ क्योंकि २०१७ में उस समय के गृह राज्य मंत्री हंसराज अहिर ने लोकसभा में एक लिखित जानकारी दी थी जिसके अनुसार १९७१ में भारत में हिंदुओं की जनसंख्या ८२.७ प्रतिशत थी. चालीस साल में वह घटकर, २०११ में ७९/८ प्रतिशत रह गई है. मुसलमानों को अनुशासनहीनता से जीने का बढावा देनेवाली भारत की सरकारों के कुशासन का ये प्रमाण है. इस समस्या की जड तक पहुंचकर सारी बात समझनी पडेगी. मोदीजी आगे बढो, हम आपके साथ हैं के नारे लगाने से कुछ नहीं होनेवाला. हर भारतीय को इस समस्या को समझकर, मन में उतारकर, उसका समाधान खोजकर, उस समाधान को अमल मे लाकर मोदी के साथ कदम मिलाकर चलना है. मोदी के पीछे पीछे नहीं, उनके साथ चलना है ताकि वे अकेले न पड जाएं.

शेष बाद में…

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