क्या हिंदुओ को संगठित होने की जरूरत है? नहीं. हिंदू संगठित ही हैं

न्यूज़ व्यूज़: सौरभ शाह

(newspremi.com, मंगलवार, १८ फरवरी २०२०)

एक बात समझ लेनी चाहिए कि देश में ये जो बीच बीच में विरोधी आंदोलन होते रहते हैं- कभी प्याज की कीमत को लेकर तो कभी नोटबंदी को लेकर, कभी राफेल को लेकर तो कभी सीएए को लेकर- उसके पीछे एक ही अजेंडा है और वह है किसी भी कीमत पर मोदी को यहां से हटाओ. मोदी इन लोगों की आंखों की किरकिरी बने हुए हैं. क्यों भला? ये आदमी न खाता है न खाने देता है इसीलिए? ये तो सच ही है. ऐसे ही अन्य कई कारण होंगे और हैं लेकिन उसमें सबसे बडा, और पहला कारण है कि मोदी इस देश की भव्य परंपरा को, देश के उज्वल संस्कार को पुन:स्थापित कर रहे हैं, जोरशोर से. और इस दिशा में उनका हर कदम को हर समय भारी सफलता मिल रही है क्योंकि इस देश के बहुसंख्यक जनता का एक एक निष्ठावान नागरिक उनके साथ है. तन मन धन से साथ है. जावेद अख्तर, अनुराग कश्यप, नसीरुद्दीन शाह या ईवन राजदीप सरदेसाई जैसे लोग तो लिब्रांडू हैं, निष्ठावान नागरिक नहीं हैं और फ्रैंकली कहें तो ये सभी मोदी के सामने इतने फीके और बौने हैं कि उनका विरोध प्रैक्टिकली बिलकुल अप्रासंगिक हो जाता है. मोदी के खतरनाक विरोधी तो अन्य लोग हैं.

मोदी के राजनीतिक विरोधी चड्डी-बनियानधारी गैंग के सदस्यों की तरह हैं. गुजरात में किसी जमाने में चड्डी-बनियानधारी गैंग का काफी उत्पाद था. याद है. वे जंगल के इलाके से निकल कर आधी रात को शहर में घुसते और सेंधमारी करके चोरी करते. चोरी करते समय पकडे जाने पर आसानी से छटक कर भागने के लिए वे लंगोट जैसी चड्डी और बिना बांह की गंजी पहनते तथा सारे शरीर में तेल लगा लेते थे. ताकि कोई पकडे भी तो उसके हाथ से फिसल जाएं.

मोदी के इस चड्डी-बनियानधारी जैसे विरोधी क्या करते हैं? आपके हाथ लग जाएं तो तुरंत छटक कर भागने के लिए उनकी विकृत दलीलें तैयार रहती हैं. पिछले सप्ताह ट्विटर पर एक छोटी बात मैने रखी थी: `सीएए संसद ने पारित किया तो उसके विरुद्ध ये कांग्रेसी (और अन्य मोदी विरोधी) सुप्रीम कोर्ट गए थे कि इसे रद्द किया जाय. और आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया तो अब कहते हैं कि संसद इस फैसले को बदल दे!’

किसी भी कीमत पर मोदी का विरोध करो. मोदी के फैसलों का विरोध करो. मोदी के काम का विरोध करो- यही तो चड्डी-बनियानधारी गैंग का मकसद है.

मोदी को मजबूत करने के लिए लोग बार बार कहते रहते हैं कि हिंदुओं को संगठित होना चाहिए? यहां पर मेरी राय थोडी अलग है. हिंदू संगठित ही हैं. अन्य धर्मावलंबियों की तरह हिंदू आपस में एक दूसरे का गला नहीं काटते. शिया-सुन्नी के बीच छत्तीस का आंकडा है. लगातार एक दूसरे की हत्या का षड्यंत्र करके उसे अंजाम तक पहुंचाते रहते हैं. ए‍क दूसरे की मस्जिदें बम से उडाते हैं. हमारे यहां बजरंगबली के भक्त महादेवजी के मंदिर के सामने कंकड तक नहीं फेंकते. प्रोटेस्टेंट इसाई कैथलिक इसाइयों के चर्च में पांव भी नहीं रखते. वे उन्हें रखने भी नहीं देंगे- और वाइसे वर्सा. जब कि हमारे यहां सिद्धि विनायक में दर्शन करके महालक्ष्मी जाइए  और उसके बाद बाबुलनाथ जाएं – सभी जगह आपका स्वागत होता है.

हिंदुओं में जाति- उपजातियों के भेद हैं, इसकी बातें हमने खूब सुनी हैं और आज की तारीख में भी मीडिया इसे उछालती रहती है, ये तमाम बातें. इसमें अतिशयोक्ति भी रहती है. मुस्लिमों में तो अलग अलग कई सारी उपजातियां हैं तथा विभिन्न प्रकार के भेदभाव हैं, क्या आपको पता है? ऐसा ही इसाइयत में भी है. लेकिन हमारे मन में भर दिया गया है कि वे लोग तो भाईचारे से रहते हैं, संगठित रहते हैं. वहां सभी सौहार्द के साथ रहते हैं. माय फुट. ये लेफ्टिस्ट इतिहासकारों और लिब्रांडू मीडिया का प्रचार है. इसीलिए हमने मान लिया है कि हिंदुओं को संगठित होना चाहिए.

हिंदू संगठित ही हैं. हिंदू संगठित हैं इसीलिए इस सुंदर प्रदेश में एक अतिसुंदर राष्ट्र का निर्माण हुआ है- हजारों साल पहले- जो अब फिर से लंबी लंबी कुलांचे भरकर समृद्ध हो रहा है. बीच का काल थोडा दर्दनाक था. व्यक्ति की आयु की तरह ही राष्ट्र जीवन में भी धूप छांव तो आती जाती रहती है. हिंदू जनता संगठित न होती तो अभी यूरोप के बडे बडे देशों की तुलना में भी विशाल राज्य भारत के नक्शे में नजर नहीं आते. हिंदू संगठित हैं इसीलिए इन राज्यों की करंसी और ध्वज अलग अलग नहीं हैं. `हिंदुओं को संगठित होना चाहिए’ ऐसा जब जब भी कहा जाता है तब मान लेना चाहिए कि वामपंथी विचारधारा द्वारा फैलाए गए जहरीले प्रचार (कि हिंदू संगठित नहीं हैं) को हम स्वीकार कर लेते हैं. ऐसा जब कहा जाता है तब एक तरह से हम उस वामपंथ के हाथ में खेल रहे होते हैं. जाते जाते एक बात याद आ रही है.

२००४ के चुनाव में वाजपेयीजी जब हार गए थे, उसके बाद का काल संघर्षमय था. सोनिया सरकार सत्ता में थी. गुजरात के मुख्यमंत्री को `मौत का सौदागर’ प्रस्थापित करके उन्हें फासी के फंदे तक ले जाने की तैयारियां जोरशोर से चल रही थीं. इस तरफ हिंदू जनता सहम गई थी. इटली और वेटिकन के इशारे पर चलनेवाले भारत के राज में भविष्य में हिंदू का क्या होगा, ऐसे आतंक में हम जी रहे थे. दिवाली के दिन ही कांची के शंकराचार्य को हत्या के आरोंप में गिरफतार करके उन्हें जेल में डालने की जुर्रत सोनिया सरकारी की मिलीभगत से जयललिता की सरकार ने की थी. जगद्गुरु शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती को कई सप्ताह जेल में रहना पडा था. सुप्रीम कोर्ट जाने के बाद जमानत मिली और दशकों बाद फैसला आया कि वे निर्दोष हैं. उन पर लगे आरोप मनगढंत थे, एक भी सुबूत उनके खिलाफ नहीं मिला जिसकी जानकारी षड्यंत्रकारियों को पहले से ही थी.लेकिन हिंदुओं का बदनाम करना, हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को आहत कनरे का षड्यंत्र था. जगद्गुरू अब तो इस दुनिया में नहीं है लेकिन ऐसे धक्कादायक दिनों से हम गुजर चुके हैं.

ऐसे माहौल में जब एक हिंदू थिंक टैंक की तीन दिवसीय वार्षिक शिबिर में किसी ने बताया कि हिंदू संगठित नहीं हैं इसीलिए इस देश को काफी कुछ सहना पडता है. हिंदू धर्म में वेटिकन जैसी कोई सुप्रीम अथॉरिटी खडी करने का समय आ गया है ताकि सभी हिंदू एक छत्र के नीचे आकर अनुशासित ढंग से संगठित हो सकें इत्यादि इत्यादि.

इस बैठक में आडवाणीजी, शौरीजी, उमा भारतीजी तथा अन्य महानुभाव उपस्थित थे. आडवाणीजी, शौरीजी, उमा भारतीजी तथा अन्य महानुभाव उपस्थित थे. यह सुझाव कई लोगों को अच्छा भी लगा होगा. मेरे गले ये बात नहीं उतर रही थी. मैने इस सुझाव के खिलाफ अलग राय रखी (डिस्सेंट किसे कहते हैं इसके बारे में हमें पहले से पता है, आपको सिखाने की जरूरत नहीं है, योर ऑनर). मैने अपने विचार रखते हुए कहा कि ये सुझाव नया है. अभी तक किसी ने इस दिशा में सोचा नहीं है इसीलिए क्रांतिकारी भी है. लेकिन हिंदू धर्म के लिए वैटिकन जैसी किसी प्रणाली की जरूरत नहीं है. डाकोर के मंदिर के पुजारी, कई गांवों के महादेव, हनुमान, माताजी के मंदिरों का संचालन- ये सब कोई वैटिकन जैसी हिंदू संस्था तय करेगी- उन्हें ऐसी संस्था द्वारा नियंत्रित करने की कोशिश की जाती है तो हिंदू धर्म संकुचित बन जाएगा. हिंदू धर्म की व्यापकता और विशालता इसी में है कि उसका कोई सर्वोच्च अधिकारी नहीं है. इसके बावजूद जब भी कुंभ मेला होता है तब देश के विभिन्न कोनों में बसनेवाले हिंदू वहां पहुंच जाते हैं- किसी के भी आदेश का इंतजार नहीं करते. कई मस्जिदों या चर्च में आपका मान सम्मान आपके दान पर निर्भर करता है. हिंदू  मंदिरों में आप दानपेटी में एक पैसा भी नहीं डालें या मंदिर के व्यवस्थापन खर्च के लिए साल में सौ रूपए की रसीद भी न कटाएं तो भी आपको अन्य लोगों जितना ही आदर मिलता है. ये धर्म सृजित हुआ है, टिका रहा है और तमाम विघ्न बाधाओं के बावजूद फला फूला, समृद्ध हुआ है, सारी दुनिया में अनूठी छाप छोड पाया है इसका कारण यही है कि ये सब स्वाभाविक रूप से हुआ है. ये सबकुछ वैटिकन जैसी किसी कृत्रिम रूप से निर्मित संस्था के मार्गदर्शन में नहीं हूआ. यदि हिंदुओं में ऐसी- वैटिकन जैसी- सुप्रीम सत्ता होती तो हिंदू धर्म संकुचित हो जाता. हमारे धर्म का मर्म हर खत्म हो जाता इत्यादि कई सारी बातें कीं.

अंत में उस प्रस्ताव को ताक पर रख दिया गया. सभी ने राहत की सांस ली. हर कोई पहले से ही इस विचार का था. सभी जानते थे कि वैटिकन जैसी सिस्टम हिंदू धर्म के लिए विनाशकारी साबित हो सकती है और इसीलिए भूतकाल में भी ऐसा कदम नहीं उठाया गया है.

हिंदू संगठित ही हैं. हिंदू संगठित हैं इसीलिए हमारे रक्षा बलों में हिंदुओं का बोलबाला है. हिंदुत्व का बोलबाला है. हिंदू संगठित है इसीलिए हम इस देश में सुरक्षा का अनुभव कर सकते हैं.

`हिंदुओं, संगठित हो जाओ’ जैसे नारे अपना महत्व साबित करने के लिए निठल्ले घूमनेवाले बोलते रहते हैं. उनके पास अन्य कौमों को `दिखा’ देने के अलावा कोई अजेंडा नहीं होता. किसी भी हिंदू को खुद संगठित होने का एहसास करना है तो दो बातें करनी चाहिए. खुद जिन संस्कारों में पले बढ़े हैं, खुद जिस इष्ट देव को मानते हैं उनमें श्रद्धा रखें. दूसरे आपकी खिल्ली उडाएंगे, आपके अंदर हीनभावना पैदा करने की कोशिश करेंगे या आपको तरह तरह के लालच देकर आकर्षित करेंगे तो भी अडिग रहें. ये हुए पहली बात.
दूसरी बात. हर चुनाव में मतदान के लिए निश्चित जाना चाहिए. आप जाएं, अपने घर के लोगों को ले जाएं, यह पर्याप्त है. सारे गांव की फिकर करने की ज़रूरत नहीं है. हर कोई अपना कर्तव्य स्वयं समझे ये जरूरी है. मतदान करके आप जिसे दोबारा चुनेंगे, वह अल्टिमेटली दिल्ली में बैठे मोदी को अधिक मजबूत करेगा. बाकी का काम उन पर छोड दीजिए. उन्हें पता है कि हिंदुओं को संगठित रखने के लिए क्या करना है. आपको सलाह देने की जरूरत नहीं है. उनके पक्ष में रहने का एकमात्र मार्ग मतदान करना है और दूसरा मार्ग उनके खिलाफ चड्डी-बनियानधारियों द्वारा किए जानेवाले होहल्ले को दिमाग खराब किए बिना, हताश हुए बिना, उनके खेल तमाशे से मनोरंजन करना है. इस देश के लिए क्या करना चाहिए, किस तरह से करना चाहिए और उसका आदि से लेकर अंत तक का ढांचा मोदी के पास है. मोदी अपने नियंत्रण में हैं, विश्वास रखिए. हर दिन अपने कान में, आपकी आंखों में उंडेली जा रही गलत जानकारी से विचलित होने की जरूरत नहीं है. ये इन्फॉर्मेशन एज (सूचना का युग) है ऐसा कहा जाता है. भारत की मीडिया ने इस सूचना के युग को मिसइन्फॉर्मेशन एज में बदल दिया है इसीलिए हर दिन आपका खून खौलता रहता है. मेन स्ट्रीम मीडिया को नजरअंदाज कीजिए, अपने बीपी को कंट्रोल में रखिए.

आज का विचार

आजकल ट्विटर पर जो ट्रेंड कर रहा है, वह वायरल हुई जानकारी आपको याद हो तो चंद्रकांत बक्षी साहब ने आज से करीब ३० साल पहले अपनी एक कॉलम में लिखी थी. याद रहे, उस समय गूगल, विकीपीडिया, कोरा वगैरह नहीं थे. बक्षी साहब ने लिखा था कि हमारी सेना की हर रेजिमेंट की बैटलक्राय हिंदू इर्म संस्कृति से आई है. उन्हे याद करते हुए वायरल हुआ ये ट्वीट आपके सामने प्रस्तुत है:

– बिहार रेजिमेंट: जय बजरंगबली
– डोगरा रेजिमेंट: ज्वाला माता की जय
– गढ़वाल राइफल्स: बद्री विशाल की जय
–  गोरखा रेजिमेंट: आयो गोरखाली
– इलेवेन गोरखा राइफल्स: जय महाकाली
– द ग्रेनेडियर्स: सर्वदा शक्तिशाली
– जम्मू और कश्मीर लाइट इन्फैंट्री: भारत माता की जय
– जम्मू और कश्मीर राइफल्स: दुर्गा माता की जय
– जाट रेजिमेंट: जाट बलवान, जय भगवान
– कुमाऊँ रेजिमेंट: कालिका माता की जय
– लद्दाख स्काउट्स: भारत माता की जय
– मद्रास रेजिमेंट: वीरा मद्रासी
– मराठा रेजिमेंट: हर हर महादेव, छत्रपति शिवाजी की जय
– पंजाब रेजिमेंट, सिख लाइट इन्फैंट्री और सिख रेजिमेंट: जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल
– राजपूत रेजिमेंट: बोलो बजरंगबली की जय
– राजपुताना राइफल्स: राजा रामचंद्र की जय

छोटी सी बात

जब महिलाएं आपस में ही कानाफूसी करती हैं तब समझना चाहिए कि डाटा ट्रांसफर हो रहा है….
…..और जब ऐसी आवाज़ आए कि `छोडो भी, हमें क्या लेनादेना’ तब समझ लेना चाहिए कि डाटा सेव हो गया है….अब वायरल होने की तैयारी में है.

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