“तुम हार गए, उद्धव”: सौरभ शाह

(newspremi.com, शुक्रवार, १३ नवंबर २०२०)

(महाराष्ट्र के गुंडाराज में अर्णब गोस्वामी की गिरफ्तारी – भाग ३)

आर. के. लक्ष्मण का एक बहुत पुराना, शायद अर्णब गोस्वामी स्कूल में रहे होंगे, उस जमाने का एक पॉकेट कार्टून मानो आज के अर्णब गोस्वामी के लिए ही बनाया गया हो, इतना सटीक है. एक हरामी सा दिखनेवाला और बदमाशी भरी बॉडी लैंग्वेज वाला पुलिस अधिकारी एक व्यक्ति की शर्ट का कॉलर पकड़ कर कह रहा है:

`तुम पर आरोप ये नहीं है कि तुम अफवाह फैला रहे हो. तुम्हारा गुनाह है कि तुम सच बात फैला रहे हो.’

अपनी बयालीस वर्ष की पत्रकारिता में इतनी चिंता और इतनी बेचैनी मैने भारत ही नहीं, विश्व के किसी भी पत्रकार के लिए नहीं देखी. बाल ठाकरे लोकप्रिय पत्रकार थे लेकिन उनकी प्रचंड फॉलोइंग १९६६ के बाद, शिवसेना की स्थापना के साथ राजनीति में प्रवेश करने के बाद बढ़ी. ऐसा ही विंस्टन चर्चिंल, बेनितो मुसोलिनी से लेकर लोकमान्य तिलक और गुजरात के माधव सिंह सोलंकी तक अनेक पत्रकारों के लिए कही जा सकती है जिन्होंने राजनीति से जुड़कर जनता का बेमिसाल प्यार पाकर विराट नेता साबित हुए. अर्णब गोस्वामी विशुद्ध पत्रकार हैं, राजनेता नहीं हैं. राजनीति में पांव रखे बिना अपनी पत्रकारिता के द्वारा ऐसे ऐसे काम कर रहे हैं जो भले भले राजनीतिक नेता करना चाहते हैं. अर्णब जेल में ८ दिन थे, उस दौरान देश के कोने कोने में उनके प्रशंसकों ने स्वयं जुटकर प्रदर्शन किए. ११ नवंबर को यानी परसों, सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत पर छोडने का आदेश दिया, उसके बाद मुंबई के करीब तलोजा जेल से अर्णब के छूटने पर किसी लोकप्रिय नेता को देखने के लिए जैसे भीड जुटती है, वैसी जनसागर जेल के बाहर उमडा था. अर्णब की गिरफ्तारी के लिए उद्धव सरकार ने मुंबई पुलिस ने ४० अधिकारियों-सिपाहियों को अर्णब के घर भेजा था. अर्णब की रिहाई के बाद जेल के बाहर जुटे जनसागर को नियंत्रित करने के लिए ४०० पुलिसकर्मी काम पर लगे थे. ये ताकत है कलम की. ये ताकत है सत्य की. ये ताकत है सरकार की तानाशाही को चुनौती देनेवाली पत्रकारिता को मिल रहे भारी जनसमर्थन की.

`तुम हार गए हो, उद्धव’ अर्णब गोस्वामी ने तलोजा के सेंट्रल जेल से छूटकर सीधे लोअर परेल के अपने टीवी स्टूडियो में आकर गर्जना की. लेकिन इसका अर्थ कोई ये न निकाले कि उद्धव की हार अर्णब की जीत थी. अर्णब को पता है कि जीत भारत की जनता की हुई है, और जीत सत्य की हुई है. आठ दिन तक जुडीशियल कस्टडी की तकलीफ सहने के बाद ये साफ नजर आ रहा था कि अर्णब के शारीरिक वजन में कमी आई है. बार बार जीन्स को ऊपर खींचना पड रहा था (जेल में आप पैंट पर पट्टा नहीं पहन सकते. कई नए कैदी ढीली हो रही पैंट को थामे रखने के लिए नाडे या रस्सी-डोरी जो मिले उससे काम चलाते हैं. अर्णब को अधिक समय तक रहना पडता तो उन्हें भी साथी कैदियों ने ये सिखा दिया होता). अर्णब का गला भी बैठ गया था. रिपब्लिक टीवी के स्टूडियो में अर्णब ने गर्जना करते हुए कहा:`उद्धव ठाकरे सुन लें कि असली खेल तो अब शुरू हुआ है.’

जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड ने कहा कि अर्णब की जमानत अर्जी पर सुनवाई से इनकार करके हाईकोर्ट ने गलती की है.

अर्णब अब दुगुने जोश से सत्ताधीशों के काले कारनामों को उजागर करेंगे. अर्णब की गिरफ्तारी के कारण सत्यवक्ता, स्पष्टवक्ता और निर्भीक -राष्ट्रनिष्ठ पत्रकार सोचने लगे कि बिलकुल निचले स्तर पर गिर चुकी उद्धव सरकार अर्णब की तरह कहीं हमें भी चुप कराने के लिए तानाशाही तो नहीं करेगी. अर्णब ने सत्ता के आगे चतुराई बेकार है-वाली वाहियात कहावत को धता बताकर जेल में से भी सींग मारना चालू रखा था. जेल में उनका हर दिन अर्णब के प्रशंसकों के लिए कठिन था- विचार कीजिए कि अर्णब के लिए वे दिन कितने दुष्कर रहे होंगे, अर्णब के परिवार समान `रिपब्लिक’ टीवी के पत्रकारों तथा अन्य स्टाफ के लिए कितने कठिन रहे होंगे. सुप्रीम कोर्ट से अर्णब गोस्वामी को न्याय मिलने के बाद अन्य पत्रकारों ने भी राहत महसूस की होगी कि इस दुनिया में केवल राक्षस और दानव हीं नहीं हैं. राष्ट्र को अधिक सशक्त बनाने के लिए चल रहे यज्ञ में हड्डियां डालने के लिए आनेवालों की मंशा पूरी न हो पाए इसके लिए हर युग में व्यवस्था होती रहती है.

अर्णब ने झुकने के बजाय न्याय के लिए पूरी ताकत से लडने का निश्चय किया. सुप्रीम कोर्ट ने अर्णब को न्याय दिया. जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड ने कहा कि अर्णब की जमानत अर्जी पर सुनवाई से इनकार करके हाईकोर्ट ने गलती की है. जस्टिस चंद्रचूड ने अर्णब को परेशान करनेवालों को भरी अदालत में चाबुक लगाए हैं. उन्होंने कहा कि आपको उनका (अर्णब) का चैनल देखना पसंद नहीं है तो न देखें. जस्टिस के शब्दों में:`मेरी चले तो मैं वह चैनल नहीं देखूंगा. लेकिन संवैधानिक अधिकार रखनेवाली अदालतों को उनके अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए. अन्यथा हम विनाश के मार्ग पर चले जाएंगे…(महाराष्ट्र) सरकार को (रिपब्लिक टीवी के तानों और व्यंग्य) को नजरअंदाज़ करना चाहिए… राज्य सरकारें यदि व्यक्तिगत रूप से बदला लेना शुरू कर देंगी तो समझ लीजिए कि नागरिकों की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट है.’

दोनों पक्षों के वकीलों की दलीलों के बीच न्यायमूर्ति ने ये शब्द कहे. विस्तृत मुद्दों से युक्त लिखित फैसला अभी आएगा. परसों सुप्रीम कोर्ट ने लिखित आदेश में जो कहा था उसमें ये दो बातें कहीं: एक, अर्णब की जमानत अर्जी मंजूर की जाती है और दो: रायगढ़ जिले के पुलिस सुपरिंटेंडेंट और जेल अधिकारियों को निर्देश दिया जाता है कि इस आदेश का अविलंब पालन करें.

इसीलिए शाम होने के बाद किसी कैदी को जेल से नहीं छोडे जाने की पहले से आ रही परंपरा को दरकिनार करते हुए तुरंत औपचारिकताओं को पूरा करके रात आठ बजे के बाद अर्णब को तलोजा जेल से मुक्त किया गया. सामान्य रूप से जमानत के लिए कोर्ट का आदेश (जेल की परिभाषा में `पत्र’) जेल अधिकारियों के हाथ में शाम छह बजे से पहले आ जाना जरूरी होता है. यदि किसी कारणवश देर होती है तो जमानत मिलने के बावजूद जेल में एक रात अधिक बितानी पडती है और सुबह दस बजे रिहाई होती है. अर्णब के केस में ऐसा न हो, इसकी तत्परता सुप्रीम कोर्ट ने दिखाई. सामनेवाले वकील (कपिल सिब्बल इत्यादि) समझ गए थे कि कोर्ट का मिजाज क्या है, इसीलिए वे येनकेन प्रकारेण चर्चा को लंबा कर फैसला देर से आए, इस प्रकार से पैरवी करते रहे. न्यायमूर्ति ने उन्हें टोका: आपकी दलीलों में दोहराव है. आप बंद कीजिए, हम आगे बढेंगे.

भारत में हर सिस्टम रॉबस्ट है- सरकारी व्यवस्था तंत्र और प्रशासन का स्वरूप भी सॉलिड है. न्यायतंत्र और संसद तथा मीडिया और ब्यूरोक्रेसी- ये सभी मजबूत नींव पर खड़े हैं. कभी ऐसा न सोचिएगा न ही बोलिएगा कि ये सरकार बिलकुल नाकारा है या कि न्याय तंत्र बिक चुका है, या पॉलिटीशियन्स भ्रष्ट हैं या फिर मीडिया…..इन सभी में जो खराब काम होते हैं वे व्यक्तियों द्वारा होते हैं. आपको ब्यूरोक्रेसी में भ्रष्टाचार का अनुभव हो सकता है लेकिन तमाम सरकारी कर्मचारी कैसे भ्रष्ट हो सकते हैं? यदि सभी भ्रष्ट हो जाएं तो आपके घर के नल में पानी कौन भेजता है, आपकी गाडी जो सडक पर चलती है ये सडकें कौन बनाता है, आपके किचन और बाथरूम से उत्पन्न होनेवाला कचरा दूर करने की व्यवस्था कौन करता है? आपके लिए ट्रेन्स कौन चलाता है? घर में गैस से लेकर धन धान्य-साग सब्जी-दूध की आपूर्ति नियमित रूप से और उचित दाम पर निरंतर पहुंचता रहता है उसके लिए पूरा ढांचा कौन खडा करता है?

न्याय तंत्र भी ऐसा ही है. मैजिस्ट्रेट की अदालत से लेकर सेशन्स, हाई कोर्ट या इवन सुप्रीम कोर्ट में भी न्याय उचित तरीके से नहीं मिल रहा है, ऐसा लगता हो तो भी व्यक्तिगत रूप से मैजिस्ट्रेट या जज जिम्मेदार हो सकते हैं लेकिन पूरा न्याय तंत्र नहीं. भारत में हर साल हजारों नहीं बल्कि लाखों लोगों को न्यायतंत्र द्वारा ही न्याय मिलता है. कोई शिक्षक नाकाम हो सकता है लेकिन पूरा शिक्षा तंत्र नहीं. इसी शिक्षा व्यवस्था में पढ़-लिख कर हम सभी बाहर आकर नौकरी व्यवसाय करने लगे, कमाकर सेटल हुए. मीडिया में भी राजदीप-रवीश जैसे अनेक लोग हैं. अंग्रेजी में या टीवी पर ही नहीं, हर भारतीय भाषा में और प्रिंट मीडिया में भी हैं. इसके विरुद्ध जो लोग अपने देश की जनता को सही हिसाब देते रहते हैं, ऐसे अनेक अर्णब गोस्वामी हैं जिनके कारण चौथा स्तंभ जीवंत है. राजनेताओं में मोदी-अमित शाह से लकर कार्यकर्ताओं के स्तर पर लाखों ऐसे लोग हैं जिनके कारण देश का भविष्य उज्ज्वल है. सभी के सभी कोई लालू- चिदंबरम-पवार-उद्धव जैसे नहीं होते.

खैर, भटकने के बाद फिर मुद्दे पर लौटते हैं.

सवाल उद्धव ठाकरे, शरद पवार और सोनिया-राहुल के गिरोह से करना है. ये क्या चला रखा है आपने‍?

अर्णब गोस्वामी की महाराष्ट्र सरकार के गुंडाराज द्वारा जिस प्रकार से लिंचिंग हो रही है, उससे भी अधिक घृणास्पद है न्यायतंत्र के साथ संलग्न अनेक आदरणीय माने जानेवाले व्यक्तियों की रीति-नीति. बॉम्बे हाईकोर्ट की दो जजों की बेंच पहले दिन ही कह सकती थी कि अर्णब गोस्वामी की जमानत अर्जी पर हम सुनवाई नहीं करनेवाले हैं, आप सेशन्स कोर्ट में निवेदन रखें और तब देखें क्या होता है और वहां यदि जमानत नहीं मिलती है तो एक कदम ऊपर चढकर हाईकोर्ट में आइए. इसके बजाय कई दिन सुनवाई करने के बाद अंतिम घडी में जमानत देने से इनकार करने से पहले हाई कोर्ट ने कहा कि आप सेशन्स कोर्ट में क्यों नहीं गए- इस तरह से सभी लोग सीढियां लांघकर हमारे पास आएंगे तो न्याय तंत्र कैसे चलेगा.

समझदारी के आगार समान जज साहब की बात सौ प्रतिशत सत्य है. लेकिन ये चतुराई उस दिन प्रकट हो जानी चाहिए थी जिस दिन उनके समक्ष जमानत अर्जी रखी गई थी ताकि आरोपी को व्यर्थ जेल में रहकर यातनाएं नहीं सहनी पड़तीं.

आदरणीय जज साहब कानून के मामले में मुझसे आपसे कई गुना विद्वान और ज्ञानी होंगे, ये स्वाभाविक है. इसीलिए उन्हें भी पता होना चाहिए कि भारत के उच्च न्यायालयों ने ही नहीं, सुप्रीम कोर्ट नेभी अपवाद स्वरूप आरोपी को न्याय दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने तीस्ता सेटलवाड जैसी गंभीर आर्थिक अपराध करनेवाली आरोपी को खेलते खेलते जमानत दी है. आतंकवादियों के लिए सुप्रीम कार्ट ने मध्यरात्रि को दो बजे अपने दरवाजे खोलकर रतजगा किया है. क्या अर्णब गोस्वामी जैसे राष्ट्रभक्त के `अपराध’ याकूब मेमन जैसे आतंकवादियों से अधिक गंभीर हैं? क्या अर्णब गोस्वामी पर तीस्ता सेटलवाड की तरह एन.जी.ओ. के नाम पर करोडो की धन उगाही करके अपने ऐशोआराम पर खर्च करने के आरोप हैं?

सेशन्स से भी नीचे की अदालत ने जब कहा कि अर्णब गोस्वामी का केस रिओपन करने के लिए कोर्ट की अनुमति नहीं ली गई है तब मैजिस्ट्रेट को अर्णब को मुक्त करके मुंबई के पुलिस कमिशनर परमबीर सिंह की खबर लेनी चाहिए थी कि कानून की उपयुक्त प्रक्रिया का अनुसरण किए बिना आप ऐसे काम कैसे करते हैं- किसके इशारे पर ऐसी गैरकानूनी गतिविधियां कर रहे हैं, क्या ऐसा करना आपकी वर्दी को शोभा देता है? लेकिन मैजिस्ट्रेट की कोर्ट ने अर्णब को जमानत देना छोडकर बंदी बनाने का कदम उठाया.

एक स्वतंत्र मिजाज के, स्पष्टवक्ता, प्रमाणिक, बाहोश और विद्वान पत्रकार को जिस तरह से उत्पीडित किया गया उसे देखकर आपको क्रोध आना स्वाभाविक है. अर्णब गोस्वामी के साथ जिस तरह का बर्ताव हुआ वैसा बर्ताव भाजपा की किसी राज्य सरकार ने राजदीप, बरखा, रवीश, शेखर जैसे वामपंथियों या फिर किस अन्य दलाल पत्रकार के साथ किया होता तो आज देश में चारों तरफ होहल्ला मच गया होता- मोदी प्रेस का गला घोंट रहे हैं. लेकिन इस ल्युटियन्स मीडिया के ईको सिस्टम में सेंध लगानेवाले अर्णव गोस्वामी की गिरफ्तारी से, अर्णब की जेलवास की यातना से, अर्णब के खिलाफ न्यायतंत्र द्वारा किए जा रहे दुर्व्यवहार से `तटस्थ’ और `निेष्पक्ष’ तथा `लिबरल’ माने जानेवाले वामपंथी पत्रकार खुश हैं. लाइव टीवी पर मिठाई की थाल के साथ नागिन डांस करना ही बाकी रखा है- राजदीप सरदेसाई जैसे, मेरी बिरादरी के भाइयों ने. वे मेरे भाई नहीं कमजात भाई हैं.

अभी वक्त गुस्सा होने का नहीं है. दंतहीन आक्रोश कोई परिणाम नहीं दे सकता. अभी पल पल बिगड रही, देश में हमारी मनोदशा को योग्य दिशा देने का समय है. रोष में कई लोग जो मन में आया बक देते हैं. पाप उद्धव ठाकरे ने किया है और दोषी प्रधानमंत्री को ठहराते हैं- पूछते हैं कि मोदी ने क्या किया. कई लोग मांग कर रहे हैं कि उद्धव ठाकरे की सरकार द्वारा जिस तरह से पुलिस तंत्र, न्याय तंत्र, व्यवस्था तंत्र का दिनदहाडे दुरूपयोग किया जा रहा है, वैसा ही भाजपा को भी करना चाहिए. इसके जवाब में किसी ने व्हॉट्सऐप किया कि ये तो ऐसी बात हो गई कि रावण ने सीताजी का अपहरण किया तो रामजी से कहें कि आप भी मंदोदरी को उठा लाओ.

अभी आपको मोदी-अमित शाह या भाजपा से सवाल नहीं करना है. सवाल उद्धव ठाकरे, शरद पवार और सोनिया-राहुल के गिरोह से करना है. ये क्या चला रखा है आपने‍? अर्णब को बेल मिलने के बाद भी, जिसने ये पाप किया है, उसके विरुद्ध -महाराष्ट्र सरकार के विरुद्ध प्रदर्शन करना होता है. फ्रस्ट्रेशन बाहर निकालना ही हो तो ट्विटर या सोशल मीडिया पर जाकर मोदी क्या कर रहे हैं, अमित शाह क्या कर रहे हैं ये पूछने के बजाय अनुशासित तरीके से लाखों की संख्या में जुटकर कैंडल मार्च निकालना चाहिए और `मातोश्री’ पहुंचकर गिरफ्तारी करवानी होती है. जेल भरो आंदोलन शुरू करो- ट्विटर पर टाइमपास करने के बजाय. आज जिसकी कस्टडी १६ नवंबर तक बढाई गई है, उस नागपुर के गुजराती युवक समित ठक्कर की तरह मुझे – आपको भी उद्धव ठाकरे के इशारे पर नाच रही, कायर परमबीर सिंह जैसे सियार की पुलिस आकर पकड ले जाएगी- केस पर केस ठोंकेगी, एक में जमानत लेंगे तो तुरंत दूसरे में, दुसरे में जमानत मिलेगी तो तुरंत तीसरे में पकड ले जाएगी. समित ठक्कर को नागपुर के केस में जमानत मिलने के बाद तुरंत ही मुंबई की वी.पी. रोड पुलिस स्टेशन की पुलिस आकर पकड ले गई. इस केस में ९ नवंबर को जमानत मिलने के बाद तुरंत ही बांद्रा (बी.के.सी.) की पुलिस पकड ले गई. संभव है कि अर्णब गोस्वामी के साथ भी भविष्य में ऐसा अत्याचार होगा और डर ये है कि किसी के भी साथ ऐसा हो सकता है- उद्धव ठाकरे, शरद पवार और सोनिया गांधी के जंगल राज में.

सत्ता हासिल करने के छह महीने में ही भारत की जनता को दिखा दिया कि इस देश की सनातन संस्कृति को कुचलने के लिए कांग्रेसी नीचता की किस हद तक जा सकते हैं.

केंद्र में सोनिया की सरकार जब थी तब कोई भी बाकी नहीं रहा है. २००४ की दिवाली को याद कीजिए. भारत की सनातन संस्कृति के लिए वह सबसे काली दिवाली थी. १२ नवंबर को दिवाली थी और उसकी पूर्व संध्या पर सोनिया गंधी के इशारे पर जयललिता सरकार ने कांची के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती को हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. सोनिया-मनमोहन की सरकार ने सत्ता हासिल करने के छह महीने में ही भारत की जनता को दिखा दिया कि इस देश की सनातन संस्कृति को कुचलने के लिए कांग्रेसी नीचता की किस हद तक जा सकते हैं. ठीक दो महीने बाद, १० जनवरी २००५ को सुप्रीम कोर्ट ने शंकराचार्य को जब जमानत दी तब तक भारतीय सनातन परंपरा के एक मजबूत नींव के समान शंकराचार्य को जेल की यातना भुगतनी पडी थी.

देश के लिए जान का जोखिम लेने वाले बहादुर केवल सरहद पर ही नहीं होते. देश के कोने कोने में हजारों-लाखों-करोडो अर्नब गोस्वामी जैसे बहादुर लोग हैं तभी यह देश अपनी अस्मिता का जतन कर सका है. देश के गृहमंत्री के रूप में जिनका आज जगह जगह पर आदर सत्कार होता है वैसे चाणक्य बुद्धि और संगठन कौशल रखनेवाले अमित शाह को भी सोनिया के मुगलराज में ऐसी यातनाओं से गुजरना पडा था. दस साल पहले, २५ जुलाई २०१० को गुजरात के गृहमंत्री का कर्तव्य निभानेवाले अमित शाह को सोहराबुद्दीन एनकाउंटर केस में जोडकर सीबीआई ने गिरफ्तार किया ता. तीन महीने तक जो जेलमंत्री के रूप में जिम्मेदारी संभाल रहे थे, उन्हें खुद साबरमती जेल में यातनाएं भुगतनी पडीं. इतना ही नहीं, २९ अक्टूबर २०१० को जमानत पर छूटने के बाद करीब दो साल तक उन्हें गुजरात से तडीपार किया गया था.

जब आपके भाग्य में बड़े काम करना लिखा हो तब सोने की तरह आपको भट्ठी में तपना पडता है. अर्णब गोस्वामी का स्तर काफी बडा है. अभी की अग्नि परीक्षा में तपकर उन्हें कई गुना बडे काम करने हैं. भारत की हर भाषा में और विश्व स्तर पर लंदन से रिपब्लिक टीवी का नेटवर्क फैलाना है.

इसीलिए ये समय गुस्से की भले हो, लेकिन हिम्मत हारने की नहीं है. फ्रस्ट्रेट होने या हताश होने का ये समय नहीं है.

उद्धव सरकार की पुलिस की प्रताडनाओं से डर लगता है तो मोदी-शाह को आडे हाथों लेने की नादानी करने का समय नहीं है ये.

फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन की बात करनी हो तो डरना नहीं चाहिए. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता चाहिए तो कायर बनकर कैसे चलेगा? यदि सचमुच में साहस दिखाना हो तो ट्विटर को एक तरफ रखकर आसपास के समविचारी लोगों को एकजुट करके उद्धव सरकार की तानाशाही के खिलाफ जेल भरो आंदोलन शुरू करना चाहिए. समित ठक्कर अभी भी जेल में हैं और मेरी-आपकी बारी आ सकती है. भाजपा क्या कर रही है, मोदी-शाह क्या कर रहे हैं ऐसा पूछने के बजाय उद्धव-पवार-सोनिया और इस गिरोह के इशारे पर नाच रहे मुंबई पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए. महाराष्ट्र में भाजपा के-मोदी के कितने समर्थक हैं? कितने लोगों ने उन्हें वोट दिया है. करोडो लोगों ने. इसके विपरीत महाराष्ट्र की तमाम जेलों में कैदियों को रखने की जगह कितनी होगी? कुछ लाख तक. यदि जंगलराज के विरुद्ध जेलभरो आंदोलन शुरू हुआ तो ये जुल्मी सरकार क्या करेगी? अनेक लोगों को शिवाजी पार्क या वानखेडे स्टेडियम में टेंपररी जेल बनाकर बंदी बनाएगी, कब तक? लोकतंत्र की ताकत ‍ऐसी विरोध की योजनाओं को अमल में लाने से बढ़ती है, न कि ऐसा कहने से कि आगामी चुनाव में-२०२४ में हम भाजपा को वोट नहीं देंगे. हम भाजपा को ३०३ सीट नहीं देंगे. ऐसा कहनेवाले अधिकतर लोग तो प्रच्छन्न रूप से भाजपा विरोधी ही होंगे, वे तो ऐसे भी भाजपा के वोटर नहीं होंगे और मोदी विरोधी या राष्ट्र विरोधी प्रवृत्तियों में लगे रहनेवाले लोग हैं. बाकी के कइयों को ऐसा डर लगता है कि उद्धव सरकार मेरा कुछ बुरा करेगी तो? पानी में रहकर मगरमच्छ से बैर करना‍? मुंबई-महाराष्ट्र में उद्योग-व्यवसाय लेकर बैठे हैं और कहीं परमबीर सिंह बंदूक लेकर पहुंच गए तो? ऐसे डर से जीनेवाले अपना तीर उद्धव-पवार-सोनिया सरकार के बजाय मोदी – शाह की सरकार की तरफ चलाने लगे हैं. एक तीसरी श्रेणी भी है जो आर्मचेयर क्रिटिक्स द्वारा किए जा रहे विधवा विलाप के प्रभाव में आकर `केंद्र सरकार क्या कर रही है?’ `दिल्ली क्यों चुप है’ जैसी बालिश बातों में खोकर अपना मानसिक संतुलन खो बैठते हैं.

शांति से सोचिए. आप २०२४ में मोदी-भाजपा को `पाठ पढाने’ के इरादे से उन्हें वोट नहीं देंगे तो कौन आप पर राज करेगा? वही लोग जिन्होंने शंकराचार्य को जेल में डाला, जिन्होंने अमित शाह को जेल में डाला, जिन्होंने अर्णब गोस्वामी को जेल में डाला. और जो लोग मुझे और आपको जेल में डालना चाहते हैं. यह देश और आप खुद, आपका परिवार किसके राज में सुरक्षित है? आप ही तय कीजिए.

आखिरी बात- न्याय तंत्र पर भरोसे की. ८ नवंबर, रविवार की शाम को रिपब्लिक टीवी के अंग्रेजी डिबेट में मेरे साथ अर्णब के मित्र और कई टीवी डिबेट्स में भाग लेनेवाले दिल्ली के विद्वान प्रोफेसर आनंद रंगनाथन ने अर्णब गोस्वामी की गिरफ्तारी के बाद हुई कानूनी प्रक्रिया के बारे में जो बात की, वह सुननी हो तो इस लेख के साथ दी गई लिंक पर जाकर यूट्यूब पर आप सुन लीजिएगा. अर्णब के साथ जो हुआ, वह गलत हुआ है, अनुचित है और अन्यायकारी, गैरकानूनी है. लेकिन कानूनी कार्रवाई हो रही है तो उसके पूरे होने तक धैर्यपूर्वक इंतजार करना होता है. रंगनाथन की बात आप डिबेट में खासकर सुनिएगा- अपनी उत्तेजना को एक ओर रखकर. जो परिपक्व और अनुभवी होते हैं ऐसे विद्वानों के किसी बिंदु से आप भले कभी सहमत न हों तो भी वे उस मुद्दे पर क्या कहना चाहते हैं, ये समझने की कोशिश करने जितना धीरज आपमें होना चाहिए.

आनंद रंगनाथ ने जो बात कही थी वही मुद्दा मैने डिबेट शुरू होने से पहले एक मित्र के साथ चर्चा में कही थी. आनंद रंगनाथन जैसे विद्वान ने जब वही मुद्दा प्रस्तुत किया तब मुझे खुशी हुई कि अर्णब अभी जेल में हैं लेकिन तब के आतंकित करनेवाले वातावरण में शांतचित्त से सोचनेवाले लोग भी हैं देश में.

अर्णब गोस्वामी ने पालघर से लेकर साधुओं की हत्या से लेकर हाथरस और मुंबर्स के ड्रग माफिया के बारे में उद्धव ठाकरे को सामने से सवाल किए, केवल इसीलिए उन्हें जेल जाना पडा, ऐसा मत समझिए. उद्धव-पवार-सोनिया और उनके साथियों की आलमारी में कई कंकाल हैं और उन आलमारियों की चाबी अर्णब और उन जैसे अन्य कई पत्रकारों के पास है. अपने भूतकाल के और वर्तमान के पाप खुल न जाएं तथा भविष्य में किए जाने वाले भ्रष्टाचारों के आडे आने का साहस कोई पत्रकार न करे, इसीलिए ये उदाहरण प्रस्तुत करने का यह षड्यंत्र है. जिन राजनेताओं को जनता की पडी ही नहीं है, केवल अपनी तिजोरियां ही भरना जिनकी मंशा है, वे लोग शासन चलाने के बहाने अपनी सत्ता का दुरुपयोग करने ही वाले हैं.

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