किसी से कहनी नहीं चाहिए, झगड़े, अपमान- सम्मान की बात

गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह

(मुंबई समाचार, मंगलवार – ६ नवंबर २०१८)

बीच में जेंटलमेन्स गैजेट की यूट्यूब पर कई वीडियोज देखे, एटिकेट इत्यादि के बारे में. उसमें ब्राइट साइड नामक कोई यूट्यूब चैनल है वह हाथ लग गई. उसमें एटिकेट या रीति नीति के बारे में विस्तार से २५ टिप्स दिए गए हैं. जिज्ञासा हो तो देख लीजिएगा. उसमें से एक टिप के बारे में बात करने की लालच को मैं रोक नहीं पा रहा हूँ. वैसे तो वह सब कॉमन सेंस की बातें हैं और उसके बारे में चाणक्य ने खूब सारी सलाह दी है. टिप ये है कि कुछ बातें कभी किसी के साथ शेयर नहीं करनी चाहिए. आप जिन्हें बहुत करीब का (या करीब की) मित्र मानते हैं उनके साथ भी नहीं, परिवारजनों के साथ भी नहीं, जिन पर आपको सौ प्रतिशत विश्वास हो उनके साथ भी नहीं. क्यों? याद है गुजराती के कवि राजेंद्र शाह की कविता `बोलिए ना कहीं, अपना हृदय खोलिए ना कहीं’. मैने दसवीं में पढी थी. उसमें एक पंक्ति है. `अपनी व्यथा, दूसरों के मन रस की कथा’. हमारे दर्द की बातें दूसरों के लिए केवल मसालेदार बातें ही होती हैं. सुनने वाले का इरादा गलत नहीं होता लेकिन आपसे ऐसी चटपटी बातें सुनकर वे अपने नीयर एंड डीयर वन के साथ शेयर किए बिना नहीं रह सकते. और जिनके साथ वे आपकी इन बातों को शेयर करेंगे वे अपने नीयर एंड डीयर वन्स के साथ वह बात साझा करेंगे और देखते-देखते आपकी निजी बात आपके लिए एम्बरेसिंग बन जाएगी इस हद तक पब्लिक हो जाएगी, ९ बातें बताई गई हैं. कौन कौन सी?

एक तो आपका परिवार में किसी के साथ झगडा हुआ हो, तो वह बात. कभी पिता के साथ, कभी बेटे के साथ, कभी भाई तो कभी चाचा- मामा के साथ झगडा हो गया हो तो उस दु:ख को मन में ही रखना चाहिए. आपको ऐसा लग रहा हो कि अन्याय हुआ है तो भी झगडे की यह बात दूसरों के साथ साझा करके सहानुभूति बटोरने का काम नहीं करना चाहिए. आपके पति-पत्नी, लवर्स या दो फ्रेंड्स के झगडों की बात कभी किसी को भी नहीं बतानी चाहिए, क्योंकि ऐसे निजी झगडों के बारे में तो तीसरा व्यक्ति कील घुसाकर खाई को अधिक चौडा करके लाभ लेने का लालच नहीं रोक सकेगा. उदाहरण के लिए आप अपने पति के बारे में शिकायत करते हुए अपनी पडोसन से कहेंगी कि मुझे अपने पति पर शक है तो वह पडोसन निश्चित ही आपकी जानकारी के बाहर आपके पति के अधिक करीब आने की कोशिश करेगी. ऐसा ही पत्नी पर शंका के बारे में लागू होताहै, या दो मित्रों या दो प्रेमियों के बीच की शंका के बारे में होता है. इसके अलावा, आपको क्यों किसी के सामने यह ढिंढोरा पीटना है कि आपकी किसी से बनती है या नहीं बनती? संभव है कि आज जिनके साथ नहीं बनती है उनके साथ ही कल आपकी नजदीकी बढ जाएगी, संबंध प्रगाढ हो जाएंगे, किसी महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट में साथ मिलकर जिम्मेदारी उठाने की बात हो सकती है. ऐसे मामले में आपके बिगड चुके संबंधों की बात बढा-चढा कर फैला दी गई होगी तो आप ही के सामने कठिनाई आएगी. इसीलिए फैमिली या निजी व्यक्तियों के साथ हीं नहीं, किसी के भी साथ झगडे की बात कभी किसी को नहीं बतानी चाहिए. भूतकाल में मेरी अपने सीनियर और मैं जिनकी कलम का प्रेमी हूँ ऐसे गुजराती के लेखक चंद्रकांत बक्षी के साथ दो चार बातों को लेकर बोलाचाली हो गई थी तब मैं निजी बातचीत में क्या हुआ और क्या नहीं हुआ, इस बारे में विस्तार से रसपूर्वक बोलता था जिसका गलत लाभ कई हरामियों ने उठाया और बाद में जब मेरे और बक्षी साहब के बीच सचमुच अच्छे संबंध स्थापित हो गए तब उस बदमाशों द्वारा विषाक्त किया गया वातावरण मुझे खूब कचोटता था. खैर. सीखने को मिला. अब तो मैं इतना सावधान हो गया हूं कि जिनके सेकुलर या वामपंथी विचारों के साथ मेरी बिलकुल नहीं बनती, ऐसे परिचित लोगों के बारे में भी मैं पर्सनल बातचीत में कभी खुलकर नहीं बोलता. मुझे पता है कि हमें मिसकोट करके, हमारे शब्दों को संदर्भ से बाहर ले जाकर, बढाचढा कर हमारे ही कंधों पर बंदूक रखकर निशाना लगानेवाले हमारे आसपास ही होंगे. इतनी अक्ल आने के बाद लाइफ आसान हो गई है.

दूसरी बात. झगडे की तरह ही अपमान भी है. किसी ने आपके बारे में कुछ खराब लिखा, कहा या छापा है तो आपको उसका ढिंढोरा पीटने की जरूरत नहीं है. किसी के द्वारा अपना अपमान किए जाने की बात जब मैं किसी दूसरे व्यक्ति को बताता हूं तब मुझमें फिर से एक बार अपमानित होने का भाव पैदा होता है. हमें खुद ही क्यों दूसरी बार अपना अपमान करवाना? समय आने पर उसे ईंट का जवाब पत्थर से देकर चुप करा देना चाहिए- यदि वह आपकी बराबरी का हो तो. लेकिन अगर वह कोई मामूली सा व्यक्ति हो तो गटर के कीडों के क्या मुंह लगना? मोदीजी से सीखना चाहिए. बच्चनजी से सीखना चाहिए. रामदेवजी से सीखना चाहिए. सोशल मीडिया पर उन लोगों का अपमान करनेवाले हजारों निठल्ले बैठे हैं. वे कभी ऐसे मामूली लोगों को जवाब देते हैं. अपने लेखक मित्रों को भी मैने यही सलाह दी है. कोई आपका अपमान करे तो उस बात को दोहराना नहीं चाहिए, जवाब नहीं देना चाहिए, किसी के साथ उस बारे में चर्चा नहीं करनी चाहिए. जिंदगी में करने लायक कई काम हैं.

अपमान की तरह आपकी प्रशंसा हो तो उसके बारे में भी सबसे कहते मत घूमिए. आप बडाई हांकने लगेंगे. कभी इसी कारण से किसी के मन में आपके प्रति ईर्ष्या भी पैदा हो सकती है और आपका वह बिना कुछ लिए-दिए काम बिगाडने की कोशिश करेगा. शायद दूसरों द्वारा अपनी प्रशंसा के बारे में सबको बताने की आपको आदत पड जाएगी तो आपमें अहंकार पैदा होने की भी भरपूर संभावना है. अपनी प्रशंसा को भी छिपा कर रखना चाहिए, दूसरों के सामने शोर मचाने की जरूरत नहीं होती. आपके काम की, आपके स्वभाव, व्यक्तित्व, आपके रूप की प्रशंसा कोई करता है तो भले करे. आपको पता नहीं होता है कि उस प्रशंसा के पीछे निहित हेतु, छिपा हुआ उद्देश्य क्या था. प्रशंसा करने से आप कोई अधिक बडे नहीं हो जाते. आपको पता है कि आपका कद कितना है. निजी बातचीत को ही नहीं, सार्वजनिक मान सम्मान को भी लाइटली लेना चाहिए और संभव हो तो उन सबसे दूर रहना चाहिए. लोग तो खुद से होकर अपना सम्मान करवाने के लिए समारोहों का आयोजन करते हैं. छोटे बडे सरकारी अवॉर्ड पाकर या छोटी मोटी संस्था द्वारा ईनाम अकराम हासिल करके फूले नहीं समाते हैं. अभी एक मित्र ने पूज्य मोरारीबापू के कहे शब्द सुनाए थे. बापू खुद सरकारी (या ईवन गैरसरकारी) अवॉर्ड-सम्मान स्वीकार नहीं करते. दूसरों को भी ऐसे खेलतमाशों से दूर रहने की प्रेमपूर्ण सलाह देते हैं. उनके शब्द हैं: आप कोई अवॉर्ड स्वीकार करते हैं तो आपका कद घटकर उस अवॉर्ड की जो ट्रॉफी होती है उतना हो जाता है!

नौ में से तीन मुद्दे कवर हो गए. छह बाकी हैं.

आज का विचार

दयालु ने दशा ऐसी की है मेरे जीवन की

किसी को मासूम तो किसी को मगरूर लगता हूं

कसौटी पर तो हूं सिर्फ एक कांच का टुकडा

खुदा की मेहरबानी है कि कोहिनूर लगता हूं

– नाजिर देखैया

एक मिनट!

बका: आप खाने में क्या लेते हैं?

फॉरेनर: सलाद

बका: वह तो हम खाने का इंतजार करते करते ही गटक जाते हैं.

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