मुस्लिमो की जनसंख्या रोकने और मुस्लिम घूसपैठिये को रोकने के लिए मुस्लिम देश सतर्क है और भारत? – लेखांक-७ : सौरभ शाह

(गुड मॉर्निंग क्लासिक्स : शुक्रवार १ मई २०२०)

कॉन्रार्ड एलस्ट ने निरीक्षण किया है कि रफिक करिया ने ‘ध वाइडनिंग डिवाइड’ में लिखा है कि जनसंख्या में हिन्दूओं से आगे निकल जाने में मुस्लिमों को ३६५ वर्ष से अधिक नहीं लगेंगे। कॉन्राड एलस्ट कहते है कि इसी पुस्तक में रफिक झकरिया ने जो दूसरे आंकडे दियें हैं उस को ध्यान में लेकर जटिल गिनती करें तो मुस्लिमों की जनसंख्या की जनसंख्या २०१४ में १६.८१ प्रतिशत, २०४४ में २२ प्रतिशत से अधिक, २०७४ में लगभग ३० प्रतिशत, २१०४ में ४० प्रतिशत और २१२५ में ५० प्रतिशत से उपर चली जाएगी और बहार के देशों से आकर बसनेवालें मुस्लिमों को इस गिनती में लिया ही नहीं।

कॉन्राड एलस्ट इस आंकडेबाजी में कहते है कि जनसंख्या गिनती की प्रतिशत का पूर्वानुमान करना सरल नहीं है क्योंकि यह बढौतरी-घटोत्तरी बहोत बहोत कारकों पर निर्भर है। यद्यपि, एक बात निश्चित है, स्पष्ट है कि अभी जो परिस्थिति है ऐसी भविष्य में रही तो मुस्लिमों की जनसंख्या कई गुना बढती ही जाएगी इस में कोई शंका नहीं है।

बांग्लादेश से आने वाले लोगों की समस्या केवल भारत को ही नहीं सताती। १९९७ में प्रगट हुए एक रिपॉर्ट को उद्धृत कर के कॉन्राड एलस्ट कहते है कि १९९६ के अंत में मलयेशिया में एक लाख से अधिक अवैध बांग्लादेशी लोग थें। फरवरी १९९७ में ऐसे घूसपेठियो को निकाल बहार करने की बहोत बडी मुहिम मलयेशियाई सरकार ने चलाई थीं। बांग्लादेश के अवैध लोगों के कडवे अनुभव साउदी अरेबिया, संयुक्त अरब अमीरात और कतार को भी हुए है और उन लोगों ने ५०,००० जितने अवैध बांग्लादेशीओं को निकाल बहार किया है। १९९४ के आसपास मलयेशियाई सरकार ने बांग्लादेश के साथ समजौता कर के निर्णय किया था कि हम अधिक से अधिक ५०,००० बांग्लादेशी श्रमिकों को हमारे देश में आश्रय देंगे किन्तु जब पता चला कि अवैध रूप से उस से भी अधिक बांग्लादेशी घूस गये है और वर्क परमिट बिना काम कर रहे है तब मलयेशिया ने बांग्लादेश की संमति लिये बिना ही वह समजौता फाड के फेंक दिया था। बांग्लादेश में जनसंख्या की और गरीबी की बहोत बडी समस्या है। वहां की सरकार आगे चलकर उस के नागरिकों को दूसरे देश में कैसे भी कर के घूसने के लिए सक्रिय प्रोत्साहन देती है। अधिकतर देश बांग्लादेश की इस बदमाश नीति का ईंट का उत्तर पत्थर से दे कर समस्या को समाप्त कर देते है।

भारत अभी तक इस में से अपवाद है। भारत में कॉंग्रेस सरकार केन्द्र में थी तब और पश्चिम बंगाल, बिहार, केरल जैसी राज्य सरकारें इन बांग्लादेशी घूसपैठिये को राशन कार्ड, मतदार पहचान पत्र आदि देकर भारत के नागरिक बनाती आई है। कॉंग्रेस एवम् कुछ क्षेत्रीय दलों को इन अवैध मुस्लिम लोगों में मत बॅन्क नजर आती है। तृणमूल कॉंग्रेसवाली मनहूस ममतादीदी अभी भी इन घूसपैठियो का तुष्टिकरण करती है और उन के विरुद्ध कोई भी कदम उठाने का सुझाव केन्द्र की ओर से आता है तो जैसे यह लोग उन के मायके के लोग हो इस प्रकार जुनूनपूर्वक उन को संरक्षण देती हैं।

अरुण शौरी ने ‘सेक्युलर ऐजन्डा’ पुस्तक में उद्धृत आंकडों का संदर्भ देकर कॉन्राड एलस्ट लिखते है कि १९८७ में अकेले पश्चिम बंगाल में चंवालीस लाख से अधिक और आसाम में बीस से तीस लाख जितने बांग्लादेशी घूसपैठियें बस रहे थे। इस कारण उन सीमावर्ती स्थानों में सतत सांप्रदायिक तनाव रहेता है। दिल्ली और मुंबई जैसे कॉस्मोपोलिटन शहरों में भी चार-पांच लाख जितने बांग्लादेशी घूस गये है। गुजरात में, विशेष रूप से अहमदाबाद में, भी कुछ हद तक यह समस्या है। बांग्लादेशी मुस्लिमों का भारत में आना समय रहेते नहीं रोका गया तो आगामी समय में कश्मीर में जिस प्रकार हिन्दूओ को खदेड दिये गये ऐसी स्थिति भारत के कुछ राज्य में उत्पन्न हो सकती है।

मुस्लिम जन्म अनुपात के बारे में बात करते हुए कॉन्राड एलस्ट कहते है कि १९८० में परिवार नियोजन की विभिन्न पद्धतिओं को अपनाने में मुस्लिम प्रजा बहोत पिछडी थी। एक सर्वे अनुसार, केवल २३ प्रतिशत मुस्लिम ही संतति नियमन के साधन का उपयोग करते जब कि हिन्दूओं में यह प्रमाण ३६ प्रतिशत जितना ऊंचा था। इस कारण इस अवधि में हिन्दू जनसंख्या में २४.१५ प्रतिशत की बढोतरी हुई, जब कि मुस्लिम जनसंख्या में ३०.५९ प्रतिशत की बढोतरी हुई।

भारत का कुल फर्टिलिटी रैट प्रति स्त्री ३.४ बालकों की है, जब कि मुस्लिमों में यह टी.एफ.आर. ४.४ बालक का है जो हिन्दू स्त्रियों से १.१ बालक अधिक है।

कुछ मार्क्सवादी-सेक्युलर इस के लिए मुस्लिमों में शिक्षा का अभाव और गरीबी को उत्तरदायित्व ठहराते है। मार्क्सवादी तो नक्सलवादियों की हिंसा को उनकी गरीबी की दुहाई देकर उचित ठहराते आये है और सेक्युलरवादी आतंकवादीओ को भी उनकी गरीबी एवम् निरक्षरता के कारण को आगे कर के निर्दोष ठहराते है।

वास्तविकता यह है कि केरल जैसे लगभग १०० प्रतिशत साक्षरता वाले राज्य में भी मुस्लिमों की जनसंख्या में वार्षिक बढोतरी २.३ प्रतिशत के अनुपात से हो रही है, जो राष्ट्रीय अनुपात (२.११) से अधिक है और केरल में बस रहे हिन्दूओं से तो लगभग दो गुना है। केरल की लगभग २५ प्रतिशत जनसंख्या मुस्लिम है।

हैदराबाद में एक सर्वेक्षण के अनुसार मध्यम वर्गीय मुस्लिम परिवार में औसतन आठ बालक देखने मिलतें हैं, जब कि वही आर्थिक स्तर के हिन्दू परिवार में चार बालक होते हैं।

आंकडे यह साबित करते हैं कि आर्थिक सम्पन्न परिवार और अति श्रीमंत – दोनो प्रकार के परिवारो में और पढे-लिखे कुटुम्बों में भी हिन्दूओं से अधिक मुस्लिमों में औसतन अधिक बालक होतें हैं। इस प्रकार, आर्थिक, सामाजिक, शैक्षणिक नहीं, वरन धार्मिक कारणों से मुस्लिम परिवार नियोजन की तरफ ध्यान नहीं देते, ऐसा निष्कर्ष निकलता है।

ईरान जैसे देश ने भी प्रति परिवार अधिक से अधिक तीन ही बालक होने चाहिए ऐसी नीति बनाकर वहां की जनसंख्या का बढोतरी अनुपात आधा कर दिया है।

डॉ. झाकिर नाइक के यू ट्यूब पर रखे हुए प्रवचन सूनोगे तो ध्यान में आएगा कि किस प्रकार स्वयं को प्रगतिशील कहनेवाले बनावटी, फ्रॉड और क्रिमिनल माइन्ड रखनेवाले लोग संतति नियमन की नीतिओ का उपहास कर रहे है। कुछ सुखद अपवादों को छोड दें तो प्रैक्टिकली सभी मुल्ले, मौलवी, इस्लाम के तथाकथित विव्दान, मुस्लिम धर्मगुरु अपनी प्रजा को अधिक से अधिक बालक उत्पन्न करने की प्रेरणा देते आये हैं।

मुस्लिमों की बढती जाती जनसंख्या के विरुद्ध हिन्दूओं को भी अनियंत्रित जनसंख्या बढोतरी करनी यही इस समस्या का हल है?

कल विचार करेंगे : मुस्लिमों की जनसंख्या में बढोतरी के विरुद्ध क्या-क्या करना पडेगा?

(यह आलेख मार्च २०१७ में लिखी गई श्रेणी में से अपडेट करके लिया है।)

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