अयोध्या में रामजन्मभूमि का विवाद सुलझाने के लिए मोदी सरकार को अध्यादेश लाना चाहिए या नहीं

गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह

(मुंबई समाचार, सोमवार – ५ नवंबर २०१८)

१९८९ में तत्कालीन प्रधान मंत्री राजीव गांधी ने अयोध्या में बाबरी ढांचे की जगह पर राममंदिर बनाने के लिए शिलान्यास करने के लिए अनुकूल परिस्थिति प्रदान की. मान लीजिए कि १९८९ में राजीव गांधी ने या १९९२ में उनके अनुगामी कांग्रेसी प्रधान मंत्री नरसिंह राव ने बाबरी ढांचे की जगह पर, उसका विध्वंस करके, हमें जैसा चाहिए वैसा भव्य और विश्व का सबसे सुंदर राममंदिर बनाने दिया होता तो क्या उस समय देश में एंटी-हिंदू तत्व काबू में आ गए होते? सेकुलर, लेफ्टिस्ट, उनकी एनजीओ तथा देशद्रोही विचारधारा में विचरते अकेमेडिशियन्स, इतिहासकार इत्यादि की अक्ल ठिकाने पर आ गई होती. ह्यूमन राइट्स के मामले में कश्मीर में तथा अन्य कई जगहों पर उपद्रव कर रही एमनेस्टी इंटरनेशनल जैसी अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएँ चुप हो जातीं? राम मंदिर बन जाने के बाद के वर्षों में, २००२ में जो गोधरा हिंदू हत्याकांड हुआ था उसके बाद तिस्ता सेतलवाड जैसी एनजीओ की बहनजीयों तथा सेकुलर टीवी/ प्रिंट मीडिया के बदमाश जर्नलिस्ट आतंक मचाने के बदले सीधे सादे बनकर, अभी (यू-टर्न मारनेवाले) अर्नब गोस्वामी की तरह हिंदू जनता के खिलाफ अन्याय न हो और राष्ट्रप्रेमी रिपोर्टिंग तथा विश्लेषण करने लगते क्या? मेधा पाटकर विदेशी फंड लेकर नर्मदा योजना के खिलाफ बिलकुल झूठमूठ के, बनावटी और देश का अरबों का नुकसान करनेवाले आंदोलन जिस तरह से चलाए क्या १९९२ में राममंदिर बनने के बाद नहीं चलाए होते?

अयोध्या में रामजन्मभूमि पर बने मंदिर को तोडकर बाबर के नाम पर सोलहवीं सदी में विधर्मियों ने जो स्थान खडा किया था वह भारत की जनता को बिलकुल मंजूर नहीं हो सकता. १९४९ मे उस जगह पर रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा होते ही वह जगह प्रार्थना स्थल के रूप में विधर्मियों के लिए हराम बन गई और १९४९ के बाद कभी भी वहां नमाज नहीं पढी गई. ६ दिसंबर १९९२ को ध्वस्त हुई इमारत बाबरी मस्जिद नहीं थी, बल्कि वह एक जर्जरित ढॉंचा था. मस्जिद तो १९४९ में ही नॉन-फंक्शनल हो गई थी. रामजन्मभूमि पर राममंदिर बनाने का हिंदुओं का अधिकार अबाधित है. यूनो में आगामी एक हजार साल में भी कश्मीर विवाद का हल नहीं निकलनेवाला. उसी प्रकार से सुप्रीम कोर्ट में लंबित रामजन्मभूमि से जुडे दशकों पुराने केस का भी स्पष्ट हल कभी नहीं आनेवाला. लिख कर रखिएगा यह बात. `स्पष्ट’ फैसला कभी नहीं आएगा. कोर्ट क्लियर कट कभी नहीं कहेगा कि इस जगह पर मूलत: मंदिर बना था इसीलिए मंदिर ही बनना चाहिए. कोर्ट स्पष्ट रूप से यह भी नहीं कहेगा कि जो बाबारी ढांचा तोड दिया गया उसमें पहले मस्जिद फंक्शनल थी इसीलिए मस्जिद ही बनानी चाहिए. कोर्ट कभी भी दोनों में से कोई भी एक फैसला साफ साफ नहीं देगा. यह भी लिख कर रखिएगा.

पर्सनली मेरा मानना है कि ये काम कोर्ट का है ही नहीं और खुद कोर्ट ने कई मामलों में साबित किया है कि इस विषय में हस्तक्षेप करना उसका विषय भी नहीं है. पांच-पंद्रह भले लोग (पढिए सेकुलर लोग) अपने पद के कारण हिंदू आस्था, परंपरा और धर्म की व्याख्या किस तरह से कर सकते हैं.

इन संयोगों में और दो ही विकल्प बचते हैं: या तो सरकार अध्यादेश लाकर मंदिर का निर्माण शुरू करने में आनेवाली सारी बाधाओं को दूर करे. या फिर सभी दलों की सहमति लेकर संवाद-सौहार्द से रामजन्मभूमि पर भव्य राममंदिर का निर्माण करे, और जिस जगह के आसपास कई किलोमीटर में स्थित मस्जिदें वीरान पडी हैं, कोई भी वहां नमाज पढने नहीं जाता, ऐसी जगह पर मस्जिद बनाने के बजाय लखनऊ जैसी जगह पर भव्य मस्जिद बना कर दे.

सरकार को अध्यादेश लाना चाहिए ऐसी मांग जोर पकड रही है. मेरा मानना है कि ऐसा कोई अध्यादेश यदि लाया जाएगा तो अभी जो शांत हो चुका है वह असंतोष फिर से उभरेगा. विसंवाद बढेगा. मेरा यह भी मानना है कि मोदी कभी ऐसा अध्यादेश लाना पसंद नहीं करेंगे. शिवसेना या बल्कि आर.एस.एस. भी सिर पटक कर मांग करेंगे तो भी मोदी ऐसी बेहूदा मांग के दबाव में नहीं आएंगे.

इस मसले का स्थायी समाधान दोनों या उससे जुडे सभी पक्षों की सर्वसंमति या बहुमत से आए, यही हमारे हित में है और आपसी सहमति तकरीबन हो चुकी है. ऑलमोस्ट. मुस्लिम जिस जगह पर अपना दावा कर रहे हैं, वह शिया मुसलमानों की है और जिनके स्वामित्व की है उस संस्था ने सुप्रीम कोर्ट में लिख कर दिया है कि वह अपना दावा छोड रही है. शियाओं को लखनऊ में मस्जिद बनानी चाहिए, अयोध्या की रामजन्मभूमि की जगह पर नहीं, ऐसा प्रस्ताव रखा है. सुन्नी मुस्लिमों का एक धडा मान न मान मैं तेरा मेहमान की तरह थर्ड पार्टी के रूप में विवाद से जुडा है. इनमें से कई कट्टरवादी बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना की तरह कॉंग्रेसी बैंड की धुन पर नाच रहे हैं. इनमें से कइयों को नजरअंदाज करके समझौता हो सकता है और वह जल्दी से होने ही वाला है.

लेकिन अभी हम जल्दबाजी करके गलती कर रहे हैं. राममंदिर हमारी श्रद्धा, आस्था का प्रतीक है और उससे अधिक वह हिंदुओं की परंपरा और संस्कृति के संरक्षण का प्रतीक है. इस परंपरा और संस्कृति का संरक्षण २००२ से २०१४ के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने शासन के तहत गुजरात में जितना किया है, क्या किसी और ने किया है? २००२ के बाद अपवाद स्वरूप हुई छिटपुट वारदातों को छोडकर गुजरात बिलकुल शांत रहा है, इतना ही नहीं, उत्तरोत्तर समृद्ध बनता गया है जिसका लाभ हिंदू- मुस्लिम सभी को समान रूप से मिला है. वैसा ही २०१४ के बाद का भारत है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राज में मुंबई में कभी मार्च १९९६ जैसे सीरियल ब्लास्ट नहीं हुए, ट्रेन में या फाइवस्टार होटल में आतंकवादी गतिविधियां नहीं हुईं. तीस्ता सेतलवाडें और राजदीप सरदेसाई तथा बरखा दत्तें या तो अंधेरे में गुम हो गईं या फिर वे बिलकुल साइडलाइन हो गई हैं. मीडिया के सेकुलर तत्वों की शक्ति २००२ के गुजरात दंगों के बाद जितनी थी, उसका दसवां भाग भी अब नहीं रही. और ध्यान रहे, यह सब मोदी ने अयोध्या में राममंदिर बनाए बिना हासिल किया है.

भारत का वास्तविक इतिहास लिखा जा रहा है. रामचंद्र गुहा जैसे अनेक सेकुलर इतिहासकार बहुत जल्द काल के गर्त में चले जाएंगे, रोमिला थापर की तरह. बहुत ही जल्द हमारी नई पीढी स्कूल-कॉलेजेस में भारतीय होने का गौरव प्रकट करनेवाली पाठ्यपुस्तकें पढेगी. योग और आयुर्वेद द्वारा विदेशी कंपनियां तथा मल्टीनेशनल्स को कंपाया जा सकता है ऐसी कल्पना भी आपने कभी की थी? वैलेंटाइन्स डे की तरह अंतर्राष्ट्रीय योग दिन भी सारे संसार में मनाया गाएगा ऐसा कभी हमने सपने में भी सोचा था? हिंदुत्व को गालियां देने में अब सेकुलरों को भी डर लगता है. कांग्रेस के राज में जिस तरह से सेकुलर भारत की परंपरा का जमकर अपमान करते थे अब वे ऐसा नहीं कर सकते. अरे, खुद कांग्रेसी नेता और उनके छुटभैए नेता भी मंदिरों, तीर्थस्थानों का दर्शन करके फोटो खिंचवाने लगे हैं. जनेऊ और धोती पहनने लगे हैं. पहले तो वे सिर पर गोल टोपी लगाने पर ही फोटो खिंचवाते थे. वातावरण बदला है और वह भी राममंदिर का निर्माण किए बिना.

आप समझ रहे हैं मैं क्या कहना चाह रहा हूं? अयोध्या का राममंदिर जिसका प्रतीक है उस हिंदू संस्कृति का संरक्षण ऑलरेडी हो रहा है- एंटी हिंदू एलिमेंट्स को कंट्रोल करके. यह एक बहुत बडी बात है और यह वातावरण बनने के केंद्र में एक ही व्यक्ति है जिसे हम जैसे करोडों भारतियों का साथ है. अयोध्या में राममंदिर बनाने के मुद्दे पर कॉन्ट्रोवर्सी खडी करके अभी बने प्रो-हिदुत्व, प्रो – भारतीय वातावरण को खराब न कर दें, बस इतना ही मुझे कहना है. २०१४ के बाद भारतीय परंपरा के संवर्धन के लिए, उसकी सुरक्षा के लिए जितना काम हुआ है उतना पहले कभी नहीं हुआ. सुप्रीम कोर्ट के दो-पांच शबरीमला- पटाखे जैसे फैसलों से अधिक बेचैन होने की जरूरत नहीं है. ऐसे फैसलों के प्रति रोष को समझा जा सकता है. यह बिलकुल वाजिब भी है, लेकिन ये सभी फैसले कालांतर में मिट जाएंगे. अभी देश में साढे चोर वर्ष से जो वातावरण बन रहा है उसमें पलनेवाले भविष्य के ब्यूरोक्रेट्स (आई.ए.एस. अधिकारियों से लेकर आई.पी.एस. कैडर के अफसरों तक हर कोई) तथा अदालतों के जजसाहब, मीडियाकर्मी इत्यादि समझेंगे कि भारतीय संस्कृति का रक्षण कैसे होता है. तमाम भारत विरोधी एन.जी.ओ. क्रमश: न्यूट्रलाइज हो रही हैं, सेकुलरवादियों की नसबंदी हो रही है, वामपंथी नपुंसक बन रहे हैं. ये देश विरोधी तत्व क्रमश: बेरोजगार बन रहे हैं.

राममंदिर के निर्माण के बिना ही यह सब हुआ है. सबसे बडा महत्व है देश में ऐसा प्रो-हिदू वातावरण बनने वाला है. यह कार्य राममंदिर निर्माण से भी अधिक बडा है, अधिक कठिन और अधिक अटपटा है, जो दिन रात एक करके मोदी कर रहे हैं, हम सभी के साथ और सहयोग के बिना वे यह काम नहीं कर सकते थे लेकिन नेतृत्व उन्होंने लिया है, पहल उन्होंने की है, अपना भाल हाथ में लेकर निडरता से वे इस राह पर बढ रहे हैं.

राममंदिर बनेगा, वहीं बनेगा और वर्तमान प्रधानमंत्री ही वहां सबसे पहली भगवा पताका फडकाएंगे. धीरज रखिए. धैर्य रखने में कुछ गलत नहीं होगा, क्योंकि अभी देश में जो काम हो रहा है वह अयोध्या में बननेवाले भव्य राममंदिर की तरह ही एक एक भव्य मंदिर देश के हर जिले में बनाने जैसा भगीरथ कार्य है. यह कार्य एक पवित्र यज्ञ है. अपने ही यज्ञ हवन में हड्डी डालने का अपवित्र काम हमसे नहीं होना चाहिए.

आज का विचार

शर्म के कारण नहीं कह सका था कि आपने पिछली दिवाली पर जो शुभकामनाएं दी थीं, उससे मेरा कोई भला नहीं हुआ. तो इस बार नकद भेजिए, देखते हैं कुछ फर्क पडता है या नहीं.

– वॉट्सएप पर पढा हुआ

एक मिनट!

पका: आज स्वामीजी ने कथा में कहा कि पांच तत्वों पर नियंत्रण पाना चाहिए: काम, क्रोध, लोग, मोह और अहंकार.

बका: पांच नहीं, सात तत्वों पर नियंत्रण पाना चाहिए: काम, क्रोध, लोग, मोह, अहंकार, वॉट्सएप और फेसबुक.

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