बेटा, तुम खब्बू हो?

गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह

(मुंबई समाचार, शनिवार – ३ नवंबर २०१८)

खाने से जुडे एटीकेट के बारे में पहले बहुत लिखा है. पीने और मंचिंग के तौरतरीकों के बारे में भी लिख चुका हूँ, अब उस बारे में ज्यादा नहीं लिखना है पर भोजन के बारे में जरूर लिखना है.

किसी के घर आपको दावत का न्यौता हो तो आपको जिस समय पर बुलाया है उससे पहले नहीं पहुँचना चाहिए. शायद मेजबान की तैयारियां अंतिम चरण में चल रही हों या फिर सारी तैयारियां पूरी करके थोडा स्नान करके फ्रेश होने के लिए बाथरूम में हो तो उनके लिए आपका आगमन एंबरेसिंग हो सकता है. पांच-दस-पंद्रह मिनट से अधिक देर से भी नहीं पहुँचना चाहिए. ट्रैफिक इतना था कि आने में देर हो गई, सॉरी, अब गूगल मैप के जमाने में ऐसी बहानेबाजी नहीं चलेगी. ट्रैफिक तो रहने ही वाला है. आपको मैप में चेक करके ट्रैफिक की पोजिशन जान लेनी चाहिए और समय पर पहुँच जाना चाहिए. वैसे तो मैं खुद अपने यहां पर आनेवाले मित्रों को भोजन से पहले आने के लिए इंसिस्ट करता रहता हूं ताकि सूर्यास्त के साथ साथ बातों का दौर शुरू हो जाए. और अब मैंने `टैफिक के कारण’ देर से आनेवाले मेहमानों के बारे में चिंता करना छोड दिया है. सबकी खराब आदतों को सुधारने का ठेका भगवान ने मुझे नहीं दिया है, ऐसा मान लेने के बाद बी.पी. नॉर्मल रहता है. मेहमान के आवभगत की सारी तैयारियॉं पूरी हो जाने पर उनकी राह देखते हुए बार बार घडी की ओर ताकने के बजाय मनपसंद पुस्तक पढना या पसंदीदा शो नेटफ्लिक्स या अमेजॉन प्राइम पर देखना शुरू कर देना चाहिए. टेंशन नहीं लेना चाहिए.

रेस्तरां में खाने जाएं तो शुरू से लेकर अंत तक प्रसन्न रहें. रास्ते में अन्य किसी मोटरिस्ट के साथ, टैक्सी या ऑटो वाले के साथ या फिर जीवनसाथी के साथ कहासुनी हो गई हो तो वह सब भूलकर रेस्तरां में प्रवेश करते हैं तो दरवान आपका विवेकपूर्वक स्वागत करता है तब आपको स्माइल देकर (और विदाई लेते समय उसके हाथ में छिपे तौर पर एक करंसी नोट थमाकर) अपना मूड बना लेना चाहिए. अच्छा रेस्तरां हो तो बॉटल्ड पानी नहीं मंगाएं तो भी चलेगा. वेटर पूछे तो हंस कर पोलाइटली मना कर देना चाहिए. ऑर्डर देते समय बहुत सारा डिटेल नहीं लिखना चाहिए, ज्यादा सूचनाएं नहीं देनी चाहिए. रेस्तरां की रसोई में आपके अकेले के लिए नहीं, कई टेबलों पर बैठे अन्य अनेक लोगों के लिए व्यंजन बन रहे होते हैं और मान लीजिए कि आप द्वारा दी गई एकाध दो छोटी सूचनाओं का पालन भी नहीं किया गया तो फिर चला लेना चाहिए या फिर स्टुअर्ड के साथ आवाज ऊँची किए बिना बात करनी चाहिए. क्रिस्प के बजाय नॉर्मल बटर नान आया हो तो चला लेना चाहिए. बूंदी रायता के बजाय पाइनेपल रायता आ जाए तो निवेदन के लहजे में फिर से भेजकर आपको जो चाहिए वह मंगा लेना चाहिए. इन केस स्टुअर्ड कहता है कि सर, आपने पाइनेपल रायता का ही ऑर्डर दिया ता तो अदालत में जैसे वकील लडते हैं उस तरह से सुबूत मांगने के बजाय या सामने आरोप लगाने के बजाय मान लेना चाहिए: ओके, मेरी गलती हो गई लगता है और आपको जो चाहिए वह मंगा लेना चाहिए, जो नहीं चाहिए उसके पैसे बिल में जोड दीजिएग, ऐसा सामने हंसकर कह दें. निन्यानबें दशमलव नियान्यानबे प्रतिशत वह नहीं जोडेगा.

आपके साथ या आपके गेस्ट के साथ छोटे बच्चे हों तो उन्हें कंट्रोल में रखें, बगीचे जैसे खेलने आए हों, उस तरह से खुला नहीं छोडना चाहिए. शोरगुल नहीं करने देना चाहिए, कांच की डिश पर स्टील के चम्मच से संगीत नहीं बजाने देना चाहिए, टेबल पर पडी वस्तुओं से खेलने नहीं देना चाहिए.

लेकिन यदि ऐसा ही बगल के टेबल पर चल रहा हो तो तनिक भी बेचैन हुए बिना अपने भोजन का निरंतर आनंद लेते रहना चाहिए.

बिल में सर्विस चार्ज जोडें हों तो भी यदि आप नियमित रूप से उस पर्टिकुलर जॉइंट में आते जाते रहते हैं तो बिल का दस प्रतिशत या उससे अधिक की टिप जरूर रखनी चाहिए. अगली बार और भी अच्छी सर्विस मिलती है. छोटी बडी डिमांड्स भी पूरी होती हैं. कुछ सामान्य जगगहों पर प्लेट उठानेवाले तथा पानी के प्याले लाने-ले जानेवाला स्टाफ अलग होता है. उन दोनों को अलग अलग छोटी छोटी टिप देकर उन्हें खुश रखना चाहिए. आपकी मनपसंद जगह है, खाने का बिल एसी रेस्तरां से काफी कम आता हो तो वहां पर दस पर्सेंट टिक की गिनती किए बिना बीस-पच्चीस -तीस प्रतिशत टिप भी बिना किसी फिकर के उत्साह से देनी चाहिए.

हम जैसे लोगों के कल्चर में टेबल मैनर्स के लिए कौन सा कांटा, कौन सी छुरी, या कौन सा प्याला कब उपयोग में लाना चाहिए, इसकी टिप किसी काम की नहीं है, क्योंकि एक ही छुरी, एक कांटा और एक ही चम्मच रखा होता है. इसीलिए बिलकुल सादी बात. छूरी कांटे से खाना हो तो छूरी हमेशा दाएं हाथ में पकडनी चाहिए. कांटा बाएं हाथ में. कांटे को व्यंजन में डालकर स्थिर रखना चाहिए, छूरी को हिलाकर टुकडा करना चाहिए. कांटे से उस टुकडे को मुंह में डालना चाहिए. छूरी या कांटो में से किसी को भी चाटना नहीं चाहिए, व्यंजन भले ही कितना भी स्वादिष्ट क्यों न हो. पिज्जा खाने के लिए छूरी कांटे की जरूरत नहीं होती, पंजाबी के लिए भी नहीं, गुजराती में तो हरगिज नहीं. कभी सिर्फ अकेले कांटे से ही खाना हो तो दाएं हाथ से पकडना चाहिए.

टीनेज से पहले की बात है जब मैं स्कूल में था, तब एक दिन हमारे धनवान परिवारजन के वालकेश्वर के बंगले पर डिनर का आमंत्रण आया. चाचा-चाची नए नए यूएस से आए थे. छूरी कांटे से खाना था और मैं बाएं हाथ में छूरी और दाएं हाथ से कांटा पकडकर स्ट्रगल कर रहा था. मेरी डिश में चल रहे जीवन मरण के खेल को देख मेरी सुंदर फॉरेन रिटर्न चाची मेरे पास आई और मुझे चिढाने या मेरा अपमान हो ऐसा बर्ताव करने के बजाय प्रेम से बोली: `बेटा, तुम खब्बू हो?’ जब कि मैं लेफ्टी नहीं था. मैने कहा,`नहीं’. तब चाची ने कहा कि तुम नाइफ दाएं हाथ में पकडोगे तो ज्यादा सुविधा होगी.’

छोटे बच्चे को टोकने के बजाय उसे सिखाने की भी कैसी खानदानी, आभिजात्य पद्धति है. इस बात को दशकों बीत चुके हैं. लेकिन आज भी किसी की सार्वजनिक रूप से हो रही गलती के लिए टोकने के बजाय इतने सलीके से, संस्कारी तरीके से भी उसे सुधारा जा सकता है, ऐसे एटिकेट की जन्मदात्री मां समान चाची मुझे याद हैं.

आज का विचार

याद मिटती रही कि क्या, पता चलता नहीं

ज्यात बुझती रही कि क्या, पता चलता नहीं

कई युगों से हूं सफर में तब भी पहुंचे नहीं

राह थमती रही कि क्या, पता चलता नहीं

एक मिनट!

बका: मुझे तलाक लेना है वकील साहब

वकील: कार्ट में कारण देना होगा.

बका: मेरी पत्नी रोज रात को एक बार से दूसरे बार में, दूसरे से तीसरे बार में घूमती ही रहती है.

वकील: वो शराबी है? बेवफा है?

बका: नहीं, मुझे खोजने निकल पडती है.

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