लॉकडाउन से पहले की जिंदगी में हम सचमुच बिज़ी थे?

तडक भडक : सौरभ शाह

(newspremi.com, मंगलवार, १२ अप्रैल २०२०; `संदेश’ – `संस्कार’ पूर्ति)

तकरीबन तीन सप्ताह बीतने जा रहे हैं. अभी कुछ समय और चलेगा. जिंदगी में पहली बार समझ में आ रहा है कि हम अभी तक कितना अपव्यय करते आए हैं. समय का. धन का. अपनी शक्तियों का. आभार मानिए लॉकडाउन का.

अभी पता चल रहा है कि हमारे समय ही समय है. टाइम की कोई कमी नहीं है जिंदगी में. भगवान ने भरपूर समय दिया है. लॉकडाउन चरणबद्ध रूप से खुलेगा, उसी प्रकार से क्रमश: हमारा जीवन भी अभी जितना शांत है, उतना आरामदायक नहीं रहगेा. शायद पहले से कहीं ज्यादा काम करना पडेगा. फिर भी पहले जितने बिजी नहीं रहेंगे. अधिक मेहनत करने के बाद भी हमें लगेगा कि हमारे पास अब भी समय है. सचमुच ऐसा होगा?

हां. अभी घर पर रहकर विचार आ रहा है कि नॉर्मल दिनों में हम कितनी फिजूल खर्ची किया करते थे समय का. काम के अलावा अन्य कई सारी बातों में समय बर्बाद कर देते थे. फिर बहाने करते थे- आजकल टाइम ही कहां है, देखिए ना. लाइफ कितनी बिजी हो गई है.

लाइफ बिजी नहीं हुई थी, हमें मैनेज करने नहीं आ रहा था. पीएम से लेकर स्वामी रामदेव, बच्चनजी इत्यादि कइयों को आप दूर रहकर देखिए तब आपको ध्यान में आएगा कि दिन का एक एक मिनट के वे ठोस उपयोग करते हैं. कोल्ड ड्रिंक की बोतल में बचे ठंडे पानी की आखिरी बूंद भी स्ट्रॉ से खींच लेनेवाले भोले बालकों की तरह ये महानुभाव दिन के अंतिम मिनट का भी अपने काम में उपयोग करते हैं. वे बडे लोग हैं इसीलिए उनका एक एक मिनट कीमती है, ऐसी बात नहीं है. उन्होंने हमेशा अपने एक ए‍क मिनट की कीमत गिनी है इसीलिए बडे बने हैं. हमारी तरह बैठकर समय बर्बाद किया होता तो वे भी हमारी तरह ही होते. और उनकी तरह हम ने भी जीवन के हर एक मिनट का ठोस उपयोग करना सीख लिया तो हम भी उनकी तरह बन जाएंगे.

लॉकडाउन के इस समय में कहीं जाना नहीं है तब ये सब ध्यान में आ रहा है कि सामान्य दिनों में हम काम में जितने व्यवस्त होते हैं, उससे अधिक बिजी बिना काम की बातों में रहते हैं. यह शरीर प्रकृति की दी गई एक मशीन है, ऐसा मानें तो व्यावसायी के रूप में हमारी व्यावसाय करने की कुशलता ये कहती है कि मशीन को सप्ताह के सातों दिन तीन-तीन शिफ्ट में चलाकर जितना हो सके उतना कमा लेना चाहिए. माना कि ये मशीन थोडी अलग है. उसे रोज आठ घंटे की एक शिफ्ट के लिए शांत रखना पडता है. मान लिया. उसके लिए रोज दो घंटे नहाने-खाने के पीछे खर्च करने पडते हैं. यह भी कुबूल. दस घंटे हो गए. बाकी के १४ घंटों का क्या हम पूरे पूरा उपयोग करते हैं?

दुर्भाग्य से इसका जवाब साफ है. नहीं. काम करने का मतलब आजीविका कमाने के लिए हम जो काम करते हैं, ये यहीं तक सीमित नहीं है. ये काम तो है ही. काम की इन अवधियों के दौरान एक भी मिनट बर्बाद न हो यह तो देखना ही चाहिए. ऑफिस में कलीग्स के साथ गपशप, चाय पानी -व्यसों को पुरा करने में खर्च होने वाला समय, फोन एक बडा न्युसन्स है- वॉट्सऐप इत्यादि और ऑफिस की कुर्सी पर बैठ कर दिवा स्वप्न देखते रहना. काम के समय में भी हम काम नहीं करते. ये वह समय है जिसके लिए हमें वेतन मिलता है. ये वह समय है जो हमारे व्यवसाय रोजगार का समय है जिससे हमारी आजीविका चलती है.

सबसे पहले तो आजीविका कमाने के लिए जो समय निर्धारित किया गया है उसमें होनेवाली बर्बादी को रोकना होगा. अभी लॉकडाउन के समय में आराम ही आराम है तो विचार करके इस तरह से बर्बाद होनेवाले समय को और इस तरह से बीतते हुए मिनटों के बारे में मन ही मन जब सोचते हैं तब उस छह-आड घंटे के दौरान जो कुछ भी लीकेज होता है उसकी रोकथाम करने के उपाय सूझेंगे. काम के समय पर फोन का कम से कम उपयोग करना चाहिए. व्हॉट्सऐप -ट्विटर इत्यादि तो पूरी तरह से बंद. काम के समय पर किसी के भी साथ काम के अलावा और कोई बात नहीं करनी चाहिए. कलीग की सास की तबीयत का हालचाल लेना है तो लिफ्ट में पूछ लेंगे. काम के समय दिमाग में काम के अलावा अन्य कोई विचार भी नहीं करना चाहिए.

ये शरीर तो प्रकृति का दिया हुआ यंत्र है तो हमारा ये कर्तव्य है कि इस यंत्र का हम अधिकतम उपयोग करें और इच्छित परिणाम प्राप्त करें.

छह-आठ-दस घंटे के काम के अलावा जो समय है वह बर्बाद हो जाता है. जरूरी नहीं है कि उन अवधियों में भी काम ही किया जाय. जिन्हें करना है उनके लिए मनाई भी नहीं है. कई लोग होते हैं ऐसे जिनका सारा जीवन काम को समर्पित होता है. हम लोग ऐसे महानुभावों में न हों तो इसमें हमारी कोई गलती नहीं है. लेकिन वे बाकी चार-छह-आठ घंटे बर्बाद तो नहीं होने चाहिए. व्यायाम करने के लिए जिम में जाते होंगे या कोई खेल खेलने जाते होंगे तो वहां पर गपशप करना टालें. फिल्म देखने मल्टीप्लेक्स में जाएं तो यूं ही मॉल में चक्कर लगाना बंद कर दें. घर में बैठकर फालतू में टीवी चैनल्स की सर्फिंग करने के लिए रिमोट के मटन को मरोडने की आदत छोडें. अखबार अभी भले ही बंद हों लेकिन जब आने लगेंगे तब पांच मिनट में महत्वपूर्ण समाचारों को जान लें और परिशिष्टों में दो चार मनपसंद कॉलम पढ लेने के बाद उसे दूर रख दें. खाली बैठे हैं तो लाओ अखबार का एक एक कोना पढ लें और सारा का सारा परिशिष्ट चाट डालें ऐसी मानसिकता हमें बिजी होने का एहसास दिलाती है लेकिन असल में वह आपको ठोस गतिविधियों से दूर ले जाती है.

जिंदगी में करने जैसे कई ठोस काम हैं. लॉकडाउन के दौरान घर में बैठे बैठे उन तमाम गतिविधियों की सूची बनाएं जो आपको करनी थीं लेकिन अभी तक उन्हें करने के लिए आपको समय ही नहीं मिला. समय नहीं मिला? या फिर आपको ऐसा लगता है कि समय नहीं मिला? अब साचिएगा. सोचिए तो जवाब मिल जाएगा. लॉकडाउन खुलने के बाद जीवन के एक एक घंटे का उपयोग सही तरीके से करने लगेंगे तब एक दिन कोरोनादेवी का आभार जरूर मान लीजिएगा.

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