गुड मॉर्निंग क्लासिक्स : सौरभ शाह
(newspremi.com, रविवार, १२ अप्रैल २०२०)
महाभारत कितना महान ग्रंथ है इसका अनुभव लेने के लिए हमें यह देखना चाहिए कि उसके एक एक हिस्से पर अनेक किताबें लिखी जा सकती हैं. उदाहरण के लिए भगवद्गीता. उदा. के लिए विदुर नीति. इसके अलावा अन्य कम से कम दो दर्जन हिस्सों के बारे में स्वतंत्र ग्रंथों की रचना की जा सकती है.
विदुर दासी पुत्र थे फिर भी दिव्य पुरुष थे. पांडव तेरह वर्ष के वनवास के बाद लौटे और पांडवों ने धृतराष्ट्र से अपने हिस्से का राज्य मांगा. दुर्योधन ने नहीं देने दिया. पांडवों ने युद्ध करके अपना अधिकार पाने की घोषणा की. धृतराष्ट्र चिंतातुर रहने लगे. धृतराष्ट्र अपने छोटे भाई विदुर की सलाह के बिना काम नहीं करते थे. विदुर निडरता से धर्ममय और सत्य सलाह ही देते. धृतराष्ट्र की इस अशांत अवस्था के दौरान विदुरजी ने जो उपदेश और बोध दिया है उसे विदुरनीति कहा गया है.
बडे भाई धृतराष्ट्र की व्याकुलता को जानकर विदुरजी कहते हैं: हे, राजन! आप दुर्योधन, शकुनी, कर्ण और दु:शासन को राजसत्ता सौप कर किस तरह से ऐश्वर्य पाना चाहते हैं? पंडित तो उसे कहा जाता है जिसे आत्मज्ञान, उत्तम, उद्योग, सहनशीलता, धर्मपरायणता और पुरुषार्थ भ्रष्ट नहीं करते. जो प्रशंसनीय कार्य करता है और निंदायोग्य कार्यों से दूर रहता है. जो आस्तिक है और जो श्रद्धावान है वह पंडित के लक्षणोंवाला है. पंडित की व्याख्या को आगे बढाते हुए विदुरजी कहते हैं: जिसके किए गए विचारों को अन्य कोई नहीं जानता, लेकिन जिसके सिद्ध हुए कार्यों को ही दूसरे लोग जानते हैं वह पंडित कहलाता है. वे तो झट से समझ जाते हैं लेकिन तब भी सामनेवाले की बात को धैर्य से सुनते हैं और वह दूसरों के काम में हाथ नहीं डालता, उसी प्रकार केवल बडबड नहीं करता.
मूर्ख किसे कहते हैं? विदुरनीति के अनुसार जो अपना शिष्य न हो उसे उपदेश दे, कंजूस की सेवा करे, बिना बुलाए प्रवेश करे, अपने द्वारा अपेक्षित कामों को सेवक करवाए, जहां तहां शंका करे, खुद को जो प्रेम नहीं देता है उसे चाहे, तुरंत करने के कार्यों में विलंब करें, मित्र से द्वेष करे और हाथ पांव जोडकर अलभ्य वस्तु की इच्छा करता रहे वह मूर्ख या मूढ बुद्धिवाला है.
सुखी होने के लिए क्या करना चाहिए, इसके सात कदमों में विदुरनीति में बताया गया है: एक (बुद्धि) से दो (कार्य तथा अकार्य) का निश्चय कीजिए, तीन (मित्र, उदासीन, शत्रु) को चार (साम, दाम, दंडल भेद) से वश में करो, पांच (ज्ञानेंद्रियों) पर विजय प्राप्त करो. छह (संधि, विग्रह, यान, आसन, द्वैधीभाव तथा आश्रय) को समझ लो तथा सात (स्त्रीसंग, द्यूत, मृगया, मद्यपान, कठोर वाणी, क्रूर दंड तथा द्रव्य का अपव्यय) का त्याग करो. इस तरह से आप सुखी हों.
अकेले आदमी को क्या क्या नहीं करना चाहिए. विदुरजी की नीति इस बारे में एकदम स्पष्ट है: अकेले में स्वादिष्ट खाना नहीं खाना चाहिए, अकेले व्यक्ति को किसी कार्य के बारे में सोचना नहीं चाहिए, अकेले को यात्रा नहीं करनी चाहिए और बहुत सारे लोग सो रहे हों वहां अकेले व्यक्ति को जागकर नहीं बैठना चाहिए.
गाय, नौकरी, खेती, स्त्री, विद्या और शूद्र की संगति- इन छह की तरफ तनिक भी उपेक्षा की जाय तो वह विनाश को प्राप्त होता है. छह लोग पहले किसी द्वारा अपने ऊपर उपकार करनेवालों को भूल जाते हैं: पढ चुके शिष्य आचार्य को, विवाहित पुत्र माता को, कामरहित हो चुका पुरूष स्त्री को, कृतार्थ हुआ मनुष्य कार्य प्रयोजक को, दुस्तर जल को पार कर चुका व्यक्ति नौका को और रोग से ठीक हो चुका व्यक्ति वैद्य को.
सज्जन मनुष्य किसे कहते हैं? जो अच्छी तरह से पचाए गए अन्य, जवानी को पार कर चुकी पत्नी, संग्राम में विजय का वरण करके आए शूरवीर की तथा तत्व के सार को प्राप्त कर चुके तपस्वी की प्रशंसा करता है वह सज्जन पुरुष है.
वाणियों में श्रेष्ठ वाणी कौन सी है? बोलने के बजाय मौन रखना श्रेष्ठ है, मौन के बजाय सत्य बोलना श्रेष्ठ है, उससे भी श्रेष्ठ है सत्य और प्रिय बोलना और उससे भी श्रेष्ठ है धर्मानुरूप बोलना.
दुनिया में सत्रह प्रकार के मूर्खों को पाश धारण करनेवाले यमदूत नर्क में ले जाता हैं. ये सत्रह जन कौन हैं?
१. जो अयोग्य व्यक्ति को उपदेश देता है. २. जो अल्प लाभ से संतोष मान लेता है. ३. जो अपने स्वार्थ के लिए बारंबार शत्रु के खेमे में जाता है. ४. जो स्त्रियों को संभालने में ही कल्याण देखता है. ५. जो याचना के लिए अयोग्य व्यक्ति से याचना करता है. ६. जो अपनी बडाई करता है. ७. अच्छे कुल में जन्म लेने के बावजूद अयोग्य कार्य करता है. ८. जो निर्बल होने के बावजूद बलवान के साथ नित्य बैर रखता है. ९. जो श्रद्धालु को हितोपदेश करता है. १०. जो अनावश्यक वस्तु की इच्छा रखता है. ११. जो अपनी पुत्रवधु के साथ हंसी मजाक करता है. १२. जो अपनी पत्नी के पिता इत्यादि से संकट के समय में रक्षण प्राप्त करने के बाद उनसे मान – सम्मान की कामना रखता है. १३. जो परस्त्री में या पराए खेत में बीज बोता है. १४. जो स्त्री के साथ हद से ज्यादा झगडे झंझट करता है. १५. जो खुद को कोई वस्तु मिलने के बावजूद मुझे याद नहीं, ऐसा कहता है. १६. जो वचन देने के बाद याचक को कुछ नहीं देता और १७. जो दुर्जन को सज्जन बताकर स्थान देता है.
विदुरजी कहते हैं कि समझदार मनुष्य को सायंकाल जैसे कुसमय पर अविश्वासपात्र के घर विश्वासपूर्वक नहीं जाना चाहिए. रात को चकले में छिप कर नहीं रहना चाहिए. राजा की कामनापात्र स्त्री को भोगने की इच्छा नहीं करनी चाहिए. अधिक लोगों ने मिलकर जो सलाह मशविरा किया हो वह खराब होने के बाद भी उसका विरोध नहीं करना चाहिए, बल्कि वहां से बहाना बनाकर दूर हो जाना चाहिए. कभी किसी से नहीं कहना चाहिए मुझे आप पर विश्वास नहीं है.
किससे याचना नहीं करनी चाहिए? प्राण जानेवाले हों तो भी कंजूस, गाली देनेवाले, मूर्ख, धूर्त, हलके को मान देनेवाले, निर्दयी, बैर करनेवाले और कृतघ्न लोगों से कभी कुछ नहीं मांगना चाहिए. विद्रोही, अति प्रमादी, नित्य झूठ बोलनेवाले, साधारण भक्तिवाले, स्नेह छोड देनेवाले और खुद को चतुर मानने वाले – इन छह अधम पुरुषों का संग नहीं करना चाहिए. धैर्य, शांति, इंद्रिय निग्रह, पवित्रता, दया, कोमल वाणी और मित्रद्रोह का त्याग – ये सातों लक्ष्मी से भी अधिक हैं. मित्र के बारे में विदुरनीति कहती है: कोई वस्तु देने से मित्र बनता है, कोई प्रिय भाषण से मित्र बनता है और कोई मंत्र तथा मूल के बल से मित्र बनता है, लेकिन जो सहजता से मित्र बनता है वही सच्चा मित्र है.
लक्ष्मी के बारे में विदुरजी क्या मानते हैं? जो मनुष्य अत्यंत सरल, अत्यंत ज्ञानी, अत्यंत शूर और अत्यंत व्रती है और साथ ही जो बुद्धिमानी का अभिमान रखता है उसके पास लक्ष्मी भय से फडकती ही नहीं. लक्ष्मी अति गुणवान के पास नहीं रहती तथा अत्यंत गुणहीन के पास भी नही रहती. वह गुण को नहीं चाहती और साथ ही गुणहीनता से भी नही रीझती. लक्ष्मी तो कुछ ही स्थानों पर टिककर रहती है. जो धन अत्यंत कष्ट से मिलता है, धर्म का उल्लंघन करने से मिलता है या शत्रु के पांव पडने से मिलता है उस धन पर मन नहीं लगाना चाहिए. आशा धैर्य का नाश करती है, काल समृद्धि का नाश करता है, क्रोध लक्ष्मी का नाश करता है, कृपणता यश का नाश करती है, अरक्षण पशुओं का नाश करती है और एक कोपायमान ब्राह्मण सारे देश का नाश करता है.
श्री महाभारत के उद्योगपर्व के प्रजागरपर्व में विदुरनीति वाले आठवें और अंतिम अध्याय की समाप्ति से पहले विदुरजी बताते हैं: विनय अपकीर्ति का नाश करता है, पराक्रम अनर्थ का नाश करता है, क्षमा नित्यक्रोध का नाश करती है और सदाचार कुलक्षणों का नाश करता है.
शेष कल…