दिल्ली के दंगे किसके पाप के कारण हुए


न्यूज़ व्यूज़: सौरभ शाह

(newspremi.com, सोमवार, २ मार्च २०२०)

दिल्ली के दंगे भले ही समाप्त हो चुके हैं लेकिन जनता के दिल में धधकती आग अभी शांत नहीं हुई है. इन दंगों के पीछे किसका उकसावा है, इन दंगों के पीछे मूलभूत कारण क्या हैं और ये दंगे न हों, इसे रोकने के लिए सरकार ने क्यों पर्याप्त कदम नहीं उठाए, इस संबंध में चर्चाएं अखबारों-टीवी-सोशल मीडिया पर छा गई हैं जिसके कारण आपका दिमाग सुन्न हो जाता होगा- इन सब में सच क्या है, झूठ क्या? किस पर विश्वास करें? किसकी बात सच मानें? हमारे बहुसंख्यक होने के बावजूद क्यों वामपंथी और इस्लामिक अल्पसंख्यकों की राय उनके द्वारा फेके जा रहे फेक न्यूज का शोरगुल क्यों अधिक सुनाई देता है?

एक सादा नियम अपना लीजिए. बार बार ये बात लिखी है. फिर एक बार. आपको जिन पर विश्वास हो, उनके नाम से कोई भी अंटशंट बयान सुने तो उस पर विश्वास नहीं करना चाहिए. यू.पी. के मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ की हिंदुत्व के प्रति निष्ठा पर, उनके राष्ट्र प्रेम पर विश्वास है. कोई अखबार या टीवी चैनल ऐसा कहता है कि योगी ने फलाने मुद्दे पर गलत कहा और उस `समाचार’ की विजुअल की क्लिप भी दिखाई जाती है तो एक सेकंड के लिए धक्का जरूर लगता है लेकिन दूसरे ही पल सोचना चाहिए कि योगी के प्रति आदर घटाने की ये लिब्रांडुओं की चाल है. फैक्ट चेक करने के कोई साधन न हों तो भी श्रद्धा डिगनी नहीं चाहिए.

इसके विपरीत कोई अखबार या टीवी चैनल अरविंद केजरीवाल को हनुमान चालीसा गाते हुए दिखाए या मुस्लिम विरोधी बयान देते हुए दिखाए तो भी केजरीवाल एक उठाईगिरा राजनीतिक है, उसकी ये छाप मिटनेवाली नहीं है. केजरीवाल ऐसा आदमी है जो सार्वजनिक रूप से अपने बच्चों की कसम खाकर भी आपका विश्वास हासिल करने की कोशिश करता है और समय आने पर उस कसम को तोडने से भी नहीं हिचकता.

कोई अखबार या टीवी चैनल हिंदुत्व के बारे में कुछ गलत बात करता है, `प्रमाण’ भी दे, आप उसके खिलाफ कोई तर्क नहीं दे सके, ऐसी `सच्चाई’ प्रस्तुत करे तो भी धर्म के प्रति आस्था डगमगाने नहीं देनी चाहिए. सामनेवाले भले ही अपनी चिकनी चुपडी बातों से बहलाएं या फिर आपके लिए शर्मिंदगी भरी बातें कहे,`तो भी आपको अपना दिमाग सजग रखकर, तर्कशुद्ध रूप से विचार करना चाहिए…’ तब भी आपको इस चालबाजी में नहीं फंसना चाहिए.

आपकी श्रद्धा या मान्यता को चुनौती देनेवाले किसी भी समाचार या न्यूज एनैलिसिस का संदेह की नजर से देखें, मैं ऐसा नहीं कहता, उसे सिरे से खारिज करें, ऐसा कहता हूं, बल देकर कह रहा हूं. अनुभव से कह रहा हूं. क्योंकि मेरे कंधे पर रखे बकरे को उठा ले जाने के लिए उसे कुत्ता बतानेवाले कई धूर्त लोग मुझे मिले हैं. बिलकुल ६ दिसंबर १९९२ से मिलते रहे हैं. २७ फरवरी २००२ के बाद तो इसमें काफी बढोतरी हुई है और मई २०१४ के बाद तो उसमें बाकायदा बाढ आ गई है. कोई जडवादी, बंद दिमागवाला, अनरिजनेबल माने तो भले माने- हम तो ऐसे ही हैं, तुम जैसा कहो वैसे हैं.

एक-दो ताजा उदाहरण लेते हैं. दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस मुरलीधर ने २५ फरवरी को आधी रात के समय अदालत खोलकर किसी भाजपा विरोधी वकील की फालतू पिटीशन की सुनवाई करते हुए ऐसा कहा कि (मोदी) सरकार ने कपिल मिश्रा, अनुराग ठाकुर और परवेश वर्मा के खिलाफ क्यों एफआईआर नहीं की. जज साहब की ऐसी कडवी बातें सुनकर (मोदी) सरकार ने रातों रात उनका तबादला करके उन्हें दिल्ली से चंडीगढ हाईकोर्ट भेज दिया. यह खबर आपने पढी, सुनी है. कॉन्ग्रेस सरकार के राज में अटॉर्नी जनरल रह चुके सोली सोराबजी ने भी `रातोंरात तबादला’ करने को लेकर सरकार की आलोचना की है.

पहली बात. गृहमंत्री या कानून मंत्री तो क्या खुद प्रधान मंत्री भी जज का तबादला करने का अधिकार नहीं रखते. हाईकोर्ट के जज का तबादला सुप्रीम कोर्ट के जजों की समिति (कोलेजियम) तय करती है. जस्टिस मुरलीधरन के रुटीन तबादले का ऑर्डर १२ फरवरी २०२० के दिन निकल चुका था. (उनके साथ भारत के अन्य हाईकोर्ट्स के जजों के तबादलों का आदेश भी जारी किया गया था. जो कि एक रुटीन बात है.) जस्टिस मुरलीधर ने बिलकुल मामूली बात लेकर आधी रात को- साढे बारह बजे- पिटीशन की सुनवाई करके सरकार की खिंचाई की. सच्चाई तो ये है कि जस्टिस मुरलीधर ने सरकार को पोर्टिंग शॉट मारने का मौका हाथ ले लिया.

हमें गलत राह पर ले जाने के लिए, ऐसा प्रमाण दिखाया गया कि सरकार ने २६ फरवरी को तबादले की अधिसूचना जारी की. ध्यान से देखेंगे तब पता चलेगा कि वह अधिसूचना सरकारी गजट में छापने के लिए सरकारी प्रेस के मैनेजर को संबोधित करते हुए जारी किया गया है. जस्टिस के तबादले वाले आदेश पर सुप्रीम कोर्ट के हस्ताक्षर-मुहर के साथ बारह फरवरी की तारीख है.

दूसरा उदाहरण लेते हैं. अनुराग ठाकुर ने ऐसा कहकर उकसाया- कि `देश के गद्दारों को, गोली मारो सालों को.’ अनुराग ठाकुर एक जिम्मेदार तथा सीजन्ड राजनेता है. चार बार लोकसभा में चुनकर आए हैं. अभी वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन के सहायक के तौर पर राज्यमंत्री का दायित्व संभाल रहे हैं. दिल्ली विधानसभा चुनाव केसमय एक प्रचार सभा में उन्होंने कहा था: `देश के गद्दारों को….’ संपूर्ण सभा ने जवाब दिया `गोली मारो सालों को.’ पार्ट ए: अनुराग ठाकुर ने पूरा वाक्य नहीं कहा. पार्ट बी: पूरे का पूरा वाक्य यदि अनुराग ठाकुर बोलें या फिर हम भी बोलें- तो इसमें गलत क्या है? देश के गद्दारों को गोली न मारें तो गुदगुदी करें? और गद्दार शब्द सुनकर क्यों कोई गोल जालीदार टोपी अपने सिर पर पहन लेता है? ऐसा कोई नहीं कहता कि सभी मुसलमान देश के गद्दार हैं. बात उनकी हो रही है जो देश के गद्दार हैं- वह मुस्लिम भी हो सकता है और हिंदू भी. जिस तरह से निर्भया केस के रेपिस्टों को फांसी की सजा होने की बात कोई मुसलमान राजनेता कहता है तब स्वाभाविक बात है कि उसमें मुकेश सिंह, विनय शर्मा, अक्षय ठाकुर और पवन गुप्ता को फांसी देने की मांग है- सारे हिंदुओं को फांसी देने की बात नहीं है. लेकिन हम ये बात समझते हैं. गद्दार वाले नारे को प्रचारित करनेवाले भी समझ रहे हैं. फिर भी सारी बात का बतंगड बनाया जा रहा है.

दिल्ली विधानसभा में हारे भाजपा उम्मीदवार कपिल मिश्रा ने अपने तथाकथित `भडकाऊ भाषण’ में क्या कहा? शाहीनबाग के उकसावे से ढाई महीने तक टस से मस नहीं हुई सरकार के साथ ट्रम्प की मुलाकात के मौके पर, हिंसक उकसावा करने के इरादे से दिल्ली के मौजपुर मेट्रो स्टेशन के नीचे नया शाहीन बाग खडा करने के इरादे से जुटे एंटी सीएए प्रदर्शनकारियों को (पढें, मुस्लिम प्रदर्शनकारियों) यदि दिल्ली पुलिस तीन में दूर करके सडक खोलने में विफल रहती है तो हम आकर सडक को खोलेंगे. कपिल मिश्रा के बिलकुल यही शब्द थे. इसके विपरीत क्या आपने सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी के भडकाऊ भाषण आपने सुने हैं? उन सभी ने लोगों को सडकों पर उतरने की अपील की है, आर या पार की लडाई लडने की अपील की है, `कायरता’ छोडकर `बहादुर’ बनने की अपील की है. गांधी- वाड्रा परिवार के गैरजिम्मेदाराना बयानों के मुकाबले बेचारे कपिल मिश्रा तो बाल मंदिर का बच्चा बोल रहा हो, इतने निर्दोष लग रहे हैं. शाहीनबाग में पिछले ढाई महीने के दौरान हर दिन जो भडकाऊ भाषण होते रहे, गैरजिम्मेदार कांग्रेसी नेता जिस तरह से हर दिन शाहीनबाग समर्थकों को उकसाते रहे और उसी प्रकार सोशल मीडिया द्वारा कुणाल कामरा जैसे जोकर, अनुराग कश्यप-फरहान तथा जावेद अख्तर -स्वरा भास्कर जैसे सेमीनिवृत्त फिल्मकार और राणा अय्यूब, रवीशकुमार तथा राजदीप-शेखर-बरखा जैसे देश में अशांति फैलाने में पीएचडी प्राप्त कर चुके पत्रकारों के उकसावे को ढंकने के लिए कपिल मिश्रा का नाम उछालकर आगे किया जा रहा है. कपिल मिश्रा ने `उकसाया’ इसीलिए `आप’ नेता तथा अरविंद केजरीवाल के दाएं हाथ ताहिर हुसैन ने अपने मकान की छत पर तेजाब की थैलियां, पेट्रोल बम, पत्थर तथा रिवॉल्वरों के जत्थे से हिंदुओं पर हमला करने के लिए २०० से ३०० मुसलमानों को बुलाया, इस घटना को जस्टिफाय किया जा रहा है.

हम ऐसे अनेक उदाहरण दे सकते हैं. सवाल ये है कि ऐसा क्यों होता है? `ऐसा’ का मतलब? सत्य छिप जाय वैसा. फेक न्यूज का शोर मचे ऐसा. `ऐसा’ यानी उकसाएं वो लोग, दंगे वो करें और दोष हमारा हो ऐसा.

कल देखेंगे कि `ऐसा’ होने का कारण क्या है?

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