(गुड मॉर्निंग: चैत्र शुक्ल त्रयोदशी, विक्रम संवत, २०७९, बुधवार, १३ अप्रैल २०२२)
योगग्राम में समाज के तमाम आर्थिक स्तरों से इलाज के लिए आनेवाले लोगों को मैं देख रहा हूँ. कई लोग अत्यंत गरीब हैं, कुछ निम्न मध्यम वर्ग से आते हैं; कई मध्यम वर्ग के हैं, कई उच्च मध्यम वर्ग से हैं तो कई धनवान हैं.
विभिन्न सामाजिक स्तर के लोग हैं. पढ़े लिखे भी हैं और चार किताबें पढ़नेवाले भी हैं. कई पीएचडी जैसी उच्च शिक्षा प्राप्त लोग हैं तो कई निरक्षर भी हैं.
आयु में भी विविधता है. कई टीनेजर लड़के-लड़कियां यहा उपचार ले रहे हैं. अनेक बुजुर्ग भी है. प्रौढ़ भी कई हैं. कई लोग अकेले ही आए हैं. कई दंपति आए हैं. कई परिवार लेकर आए हैं. कई अपने केयरटेकर के बिना जी नहीं सकते इसीलिए उन्हें साथ लेकर आए हैं.
फुल बॉडी मड बाथ के समय मैने ऐसे बुजुर्ग को व्हीलचेयर पर देखा जिन्हें देखकर मुन्नाभाई एमबीबीएस फिल्म के आनंदभाई याद आते हैं-मानो शरीर में कुछ जान जैसी बची ही न हो. मैं मड बाथ लेने के लिए बाड़े में गया तब उनके खुद के एक निजी केयरटेकर के अलावा यहां के दो चिकित्सक सहायक उनकी मदद कर रहे थे, तब कहीं जाकर उन्हें उपचार के लिए तैयार किया जा सका.
कई लोग सप्ताह भर में ही लौट जाते हैं. कुछ लोग दस-पंद्रह दिन के लिए आते हैं. तीन-चार सप्ताह के लिए आनेवाले भी कई लोग हैं. जिन्हें अधिक उपचार की आवश्यकता है, उन्हें दो-ढाई-तीन महीने तक एक्सटेंशन देकर रखा जाता है.
कई स्थूलकाय व्यक्ति भी देखे-हर उम्र के स्त्री-पुरुषों के अलावा कम उम्र के जवान भी स्थूलता के कारण विभिन्न रोगों के शिकार बन गए हैं जिससे छुटकार पाने के लिए वे यहां आए हैं. इसके विपरीत कई चुस्त-दुरुस्त लोग भी देखे, जिन्हें देखकर लगता है कि वे यहां क्यों आए होंगे? लेकिन वे फिट रहने के लिए, अधिक चुस्त-दुरुस्त बनने के लिए आए हैं. कई लोग तो असाध्य और गंभीर रोगों का इलाज करवाने यहां आए हैं.
कई लोग सप्ताह भर में ही लौट जाते हैं. कुछ लोग दस-पंद्रह दिन के लिए आते हैं. तीन-चार सप्ताह के लिए आनेवाले भी कई लोग हैं. जिन्हें अधिक उपचार की आवश्यकता है, उन्हें दो-ढाई-तीन महीने तक एक्सटेंशन देकर रखा जाता है.
यहां आनेवाले कई लोग जब २००८ में योगग्राम की स्थापना हुई तभी से या उससे भी पहले से स्वामी रामदेव के साथ जुडे हैं और बार-बार यहां आते रहते हैं. नागपुर के करीब गोंदिया के पास रहनेवाले कृषक दादा फंडू इन्हीं में से एक हैं. खूब सारी बातें हुईं उनके साथ.
`न्यूज़प्रेमी’ के एक पाठक का मैसेज आया:`आपके लेखों से ध्यान में आया कि आप योगग्राम में हैं और मैं भी यहां आया हूँ तो पांच मिनट के लिए मिल सकें तो आनंद आएगा.’
मुंबई के घाटकोपर विधानसभा के सदस्य राम कदम करीब दो साल पहले यहां एक सप्ताह के लिए आए थे. इस बार तीन सप्ताह रहने वाले हैं. राजनेता के रूप में दौड़ भाग वाली जिंदगी के कारण शरीर को होनेवाले नुकसान को रिपेयर करने का इरादा लेकर यहां आते रहते हैं. मेरा पचास दिन का कार्यक्रम है, यह जानकर उन्हें आनंद हुआ, आश्चर्य हुआ. मुझसे कहा,`ऐसी योगनिष्ठा के लिए आपका तो सम्मान करना चाहिए!’
`न्यूज़प्रेमी’ के एक पाठक का मैसेज आया:`आपके लेखों से ध्यान में आया कि आप योगग्राम में हैं और मैं भी यहां आया हूँ तो पांच मिनट के लिए मिल सकें तो आनंद आएगा.’ डॉ. सुनील मरजादी उनका नाम है. केमिस्ट्री में पीएचडी हैं. चार साल पहले मेरी पुस्तकों के प्रमोशन के लिए गुजरात भर में जब मैं विभिन्न इलाकों में बुक टूर कर रहा था तब वलसाड में उनसे मिलना हुआ. उनके समधी शरदभाई के यहां मेरा निवास था और उनके सुपत्र तथा अन्य मित्रों ने वलसाड-सूरत में मेरे कार्यक्रमों के आयोजन का जिम्मा संभाला था. सुनीलभाई के यहां सुबह का नाश्ता करने गया था, तब की यादें ताजा हुईं. वे पत्नी के साथ एक सप्ताह के लिए योगग्राम में आए थे. मैं उन्हें शाम को मिलने गया. आधा घंटा आत्मीयता से बातें कीं. मुझसे उम्र में करीबन आठ वर्ष सीनियर हैं लेकिन बिलकुल फिट हैं. पूछा तो जानने को मिला कि उनका इन सभी उपचार पद्धतियों में दशकों से विश्वास है और प्रतिदिन के जीवन में वे उसका अमल भी करते हैं. अभी कोई छोटी बीमारी भविष्य में बडा स्वरूप धारण न कर ले, इसीलिए उसे समूल नष्ट करने के हेतु से यहां आए हैं. भविष्य में मौका मिलेगा तो फिर वलसाड में उनसे या मुंबई में मेरे यहां भेंट करने की आशा के साथ विदा ली. घर से इतनी दूर आकर इस तरह से आत्मीय परिचित से अचानक मुलाकात हो जाय तो दिन अधिक प्रसन्नतादायक बन जाता है.
मैने देखा है कि यहां आनेवालों के उद्देश्य में काफी विविधता है:
१. कई लोग ऐसे हैं जिनके लिए डॉक्टरों ने अपने हाथ खड़े कर दिए हैं:`अब इससे अधिक एलोपथी में आपके लिए कोई उपचार नहीं है. आपका रोग असाध्य है, कभी ठीक नहीं हो सकता. आपको सारा जीवन इसी तरह से जीना पड़ेगा.’
ऐसे लोग इस आशा से यहां आए हैं कि एलोपथी में जिसका इलाज नहीं है, ऐसी बीमारियां भी योग-प्राणायाम, आयुर्वेद, प्राकृतिक चिकित्सा, पंचकर्म-षट्कर्म से ठीक की जा सकती हैं तो चलो ट्राय करके देखते हैं. ऐसे लोग यदि उन्हें दी गई सूचनाओं का सख्ती से पालन करते हैं और आहार-विहार में पथ्य का पालन करते हैं तो ठीक होकर लौटते हैं.
२. कई लोगों को डॉक्टर ने लीवर ट्रांसप्लांट, किडनी ट्रांसप्लांट की सलाह दी है. आंत का हिस्सा काट देने की सलाह दी है. बायपास करवाने की या स्टेंट लगवाने की सलाह दी होती है या फिर अन्य कोई ऑपरेशन करने की (घुटने का प्रत्यारोपण करने या नितंब प्रत्यारोपण की) सला दी है. अंधेरी में रहने वाले चालीस साल के युवा हरिओम से परिचय हुआ. चलने में काफी तकलीफ है. हिप रिप्लेसमेंट करवाने के बदले श्रद्धापूर्वक यहां की तमाम चिकित्सा पद्धति नियमित रूप से ले रहे हैं. डायनिंग हॉल में जब मिलता हूं तब देखता हूं कि उनकी चाल में सुधार आता जा रहा है. अक्षत नाम का एक युवा अत्यंत स्थूल है. अपने दादाजी के साथ कलकत्ता से आया था तब उसका वजन १५४ किलो था. एक सौ चौवन! चलते समय, योगासन करते समय तकलीफ होती है. उसका वजन भी घटता जा रहा है, यह आप झट से भांप सकते हैं और उसके चेहरे पर बढ़ता तेज देख सकते हैं. १६ किलो घटा है. ऑपरेशन करके चर्बी निकालने की आजकल लोकप्रिय बनी किंतु हानिकर साबित हो रही उपचार पद्धति अपनाने के बदले अक्षत ने यहां आकर काफी समझदारी का काम किया है. यहां और रहनेवाले है.
३. कई लोग एलोपथी के उपचार से ऊबकर यहां आते हैं. एलोपथी के उपचार से उनका रोग कुछ समय के लिए ठीक हो जाता है लेकिन वक्त बीतने पर फिर उभरता है. एलोपथी में उनके रोग का स्थायी इलाज नहीं है लेकिन रोग को येनकेन प्रकारेण दबाकर चुप करा दिया जाता है और समय बीतते ही फिर से सिर उठा लेता है, यह ध्यान में आने पर वे एलोपथी की जहरीली दवाएं छोडी जा सकें इस उद्देश्य से योगग्राम में आते हैं. यहां आकर क्रमश: उनकी एलोपथी की दवाएं छूट जाती हैं ऐसे अनगिनत किस्से हैं.
४. कई लोग वर्षों से विदेश में सेटल हो गए हैं लेकिन उन्हें वहां की चिकित्सा पर विश्वास नहीं होता इसीलिए यहां आए हैं. एक सुखी एनआरआई परिवार अपने पच्चीस वर्ष के ऊँचे सुंदर बेटे के साथ यहां आया है. अमेरिका के फिलाडेल्फिया में रहता है. यह बेटा वैकेशन में माउंट बाइकिंग के लिए स्पेन गया था. वहां उसके साथ दुर्घटना हो गई. स्पेन से टूटी-फूटी भाषा में अमेरिका में संदेश आया. बेटा मरणासन पर है. तत्काल उसे घर वापस लाने की व्यवस्था की. अमेरिका के डॉक्टरों ने उसकी रिपोर्ट्स निकलवाईं, सारी जॉंच की और कहा कि अब इसका कुछ नहीं हो सकता, सारी जिंदगी इसी हालत में रहेगा. मां-बाप ने हिम्मत नहीं हारी. योगग्राम आ गए. ट्रीटमेंट सेंटर में उसे कई बार देखा. दो लोग जब हाथ देते हैं तब कहीं जाकर व्हीलचेयर से खड़ा हो सकता है और चलते समय भी उसे सहारे की ज़रूरत पड़ती है. अमेरिका में जो हालत थी, उसमें काफी सुधार हुआ है, ऐसा उसके पैरेंट्स ने कहा. अमेरिका में कैसी हालत रही होगी?-मुझे विचार आया. अभी तो उसका इलाज चल रहा है. आशा करता हूं और भगवान से प्रार्थना करता हूं कि यह भारतीय-अमेरिकी युवा हंसता खेलता लौटे और माउंटबाइकिंग का अपना शौक पूरा कर सके, ऐसा जीवन फिर से जीने लगे. उसके माता-पिता भी धन्य हैं-हिम्मत हारे बिना परिस्थिति से संघर्ष कर रहे हैं.
५. योगग्राम में कई ऐसे लोग हैं जिन्होंने अपनी छोटी मोटी रूटीन बीमारियां अपने घर में ही योग-प्राणायाम करके, अन्य प्राकृतिक उपचार करके भगा दी होतीं लेकिन यहां विशेषज्ञों की देखरेख में उपवास करके, आहार विहार में परिवर्तन की आदत शामिल हो जाती है, उसके लिए और आयुर्वेद-नेचरोपथी के विविध डॉक्टरों का सीधा मार्गदर्शन मिलता है, इसके लिए बॉडी की डिटॉक्सिंग करने यहां आए हैं जिससे भविष्य में आगे चलकर जीवन में आनेवाले किसी भी रोग के विरुद्ध प्रतिकारकता प्राप्त की जा सके.
आपका ब्लड प्रेशर १२०/८० हो तो ही नॉर्मल कहा जा सकता है, ऐसा एलोपथीवालों ने कैसे तय किया, पता है?
आज मेरी ट्रीटमेंट में शिरोधारा, अक्षि तर्पण और नस्य है. अक्षि तर्पण मेरे लिए नया उपचार है. आंख में मेडिकेटेड घी से रिपेयरिंग होगी. यह विधि क्या है, कैसी है इस बारे में कल बात करेंगे. आज विदा लेने से पहले दो बातें करना चाहता हूं-बीपी और शुगर के बारे में.
आपका ब्लड प्रेशर १२०/८० हो तो ही नॉर्मल कहा जा सकता है, ऐसा एलोपथीवालों ने कैसे तय किया, पता है?
एलोपथी वालों ने नहीं बल्कि बीमा कंपनियों की ये कारस्तानी है.
डॉ. मनु कोठारी ने १९५० के दशक में प्रकाशित एक पुस्तक का संदर्भ देकर बार बार बलपूर्वक यह बात सार्वजनिक रूप से कही है और लिखी भी है. उनकी तमाम पुस्तकें ध्यान से पढ लें तो १०० प्रतिशत इसका रेफरेन्स मिल जाएगा. (पुस्तकें प्राप्त करने के स्थान आप गूगलसर्च करके खोज सकते हैं). बीमा कंपनियों को सर्वे से पता चला कि शायद ही किसी व्यक्ति का ब्लड प्रेशर १२०/८० होता है.
इंश्योरेंस वालों ने इस आंकडे को पकड लिया और घोषित कर दिया कि यह आंकडा `नॉर्मल’ ब्लडप्रेशर का है. इतना बीपी होगा तो ही आप स्वस्थ माने जाएंगे और तभी आपके प्रीमियम का स्लैब मिनिमम वाला रहेगा. इससे ऊपर नीचे के आंकडे में आपका बीपी रहा तो आप `एब्नॉर्मल’ माने जाएंगे और आपको अधिक प्रीमियम भरना पडेगा!
हमसे प्रीमियम के अधिक पैसे लेने के लिए यह कारस्तानी की गई है जिसमें फार्मा कंपनियां और एलोपथी के डॉक्टर इत्यादि सभी शामिल हो गए क्योंकि कहावत है ना-जौन रोगिया के भावै, उहे बैदवा बतावे.
स्वामी रामदेव ने खुल्लम खुल्ला फार्मा-माफिया, मेडिकल माफिया जैसे विशेषणों का उपयोग करते हैं तब कइयों को उस पर आपत्ति होती है, जब कि मुझ जैसे लोग स्वामी जी का पूरा समर्थन करते हैं.
हर मनुष्य की प्रकृति अलग अलग होती है. ब्लडप्रेशर में किसी के लिए १३० से अधिक का आंकडा नॉर्मल होता है तो किसी के लिए ११० का. किसी के लिए ७० से नीचे की संख्या नॉर्म होती है तो किसी के लिए ९०की. (ऊपर का यानी सिस्टोलिक, नीचे का यानी डायस्टोलिक). अफ्रीकन वंश के लोगों का यूरोपीय महाद्वीप के लोगों का और भारतीय या एशियाई लोगों का ब्लड प्रेशर एक समान नहीं होगा. इसके अलावा वंश-आनुवांशिकता के अनुसार, डीएनए के अनुसार, ब्लड प्रेशर तय होता है. डॉ. मनु कोठारी कहते थे कि अपने शरीर को आप ही सबसे अधिक जानते हैं, डॉक्टर नहीं. इसीलिए आपका बीपी १२०/८० हो तो ही नॉर्मल है और न हो तो तुरंत डॉक्टर के पास जाकर प्रिस्क्रिप्शन लिखवाकर सारी जिंदगी गोलियां खा-खा कर जद्दोजहद करने की जरूरत नहीं है. ब्लड प्रेशर नियमित मापते रहना और मापने से पहले ही आपको पता चलता जाएगा कि आपका प्रेशर लो है या नॉर्म है. आहार से नमक इत्यादि और जीवन से स्ट्रेस वगैरह कम करके योग-प्राणायाम करते रहने से ब्लड प्रेशर से जुडी छोटी-छोटी समस्याएं तो तुरंत ही दूर हो जाती हैं. अधिक समस्या हो तो सावधान हो जाना चाहिए क्योंकि उसके कारण लंबी अवधि में ब्रेन हेमरेज, पैरालिसिस इत्यादि गंभीर बीमारियों के शिकंजे में फंसना पड सकता है.
यही बात शुगर के संबंध में है. वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (डब्ल्यूएचओ), अमेरिकन डायबिटीज़ असोसिएशन (एडीए) इत्यादि लोग हमारे ब्लड शुगर के अनुसार तय करते हैं कि हमें डायबिटीज़ (टाइप –टू) है या नहीं. आजकल फास्टिंग शुगर की संख्या १०० से कम हो (लेकिन ७० से कम नहीं) हो तो ही आप नॉर्मल माने जाते हैं और १०० से १२५ के बीच हो तो प्री-डायबिटिक कहलाने का चलन है.
आपका शुगर लेवल ब्लड में कितना होना चाहिए, इसके पैरामीटर्स में ये लोग बढोतरी-कमी करते रहते हैं. कल एक रसगुल्ला खाने के बाद आपके एक्युचेक में जितनी फास्टिंग शुगर आती है, उतनी ही संख्या कल भी आएगी लेकिन-डब्ल्यूएचओ या एडीए इत्यादि यदि बीच के समय में अपने नए आंकडे घोषित कर दें तो आप नॉन-डायबिटिक से डायबिटिक या फिर डायबिटिक से नॉन डायबिटिक बन जाएंगे, इस तरह का खेल खेला जाता है.
मेटफॉर्मिन नामक (और उसके विभिन्न वैरिएशन्स वाली) डायबिटीज़ की अत्यंत जानीमानी दवा कैंसर पैदा करती है, ऐसा साबित होने के बाद अमेरिका में यह दवा बनाने वाली फार्मा कंपनियों पर करोडों डॉलर का क्लास सूट चल रहा है. पहले डिप्रेशन के लिए प्रख्यात दवा `प्रोजेक’ के भयानक दुष्प्रभावों के कारण कई मल्टीनेशनल फार्मा कंपनियों ने अपने पुराने फॉर्मूले में बदलाव करके फिर से वही की वही दवा नए नाम से, नए स्वरूप में बाजार में रखी हैं. कई उत्पादकों ने तो ट्रायल के समय ध्यान में आए दुष्प्रभावों को उजागर ही नहीं किया है जो कि कानूनन अपराध है लेकिन पश्चिम के देशों में ऐसी माफियागिरी ऑफिशियली वहां की सरकारों के सक्रिय सहयोग से चलती है जिसका शिकार हम और सारी दुनिया बनती है.
सारा जीवन डायबिटीज़ की टिकिया खाकर बिताने या इंसुलिन के इंजेक्शन लेने से बेहतर है कि आहार से गुड-चीनी कम हो जाय और प्रतिदिन पंद्रह-तीस मिनट मंडूकासन करते करते कपाल भांति का अभ्यास करते रहें.
डायबिटीज़ का भी ब्लड प्रेशर जैसा ही हाल है. एक्युचेक से मापते रहें और ब्लड रिपोर्ट्स भी छह-बारह महीने लैब में जाकर निकलवाते रहें लेकिन डब्ल्यूएचओ इत्यादि के मानक सभी को लागू हों ये जरूरी नहीं है. आपकेरक्त में उन लोगों के कहे अनुसार शर्करा न हो, कुछ कम अधिक हो तो बेतहाशा दौडकर डायबेटोलॉजिस्ट के पास जाने की जरूरत नहीं है. शुगर की मात्रा आपके शरीर के अनुसार कम अधिक होती रहती है. अधिक मात्रा में बढोतरी या कमी होगी तो तुरंत पता चल जाएगा और ऐसा होने से पहले ही आप आहार में होनेवाले अतिरेक को टालकर कसरत, योग, प्राणायाम इत्यादि द्वारा शरीर को कम्फर्टेबल स्थिति में रखें. सारा जीवन डायबिटीज़ की टिकिया खाकर बिताने या इंसुलिन के इंजेक्शन लेने से बेहतर है कि आहार से गुड-चीनी कम हो जाय और प्रतिदिन पंद्रह-तीस मिनट मंडूकासन करते करते कपाल भांति का अभ्यास करते रहें.
आज बस इतना ही.