मिट्टी की चिकित्सा से चमत्कारिक रूप से शरीर को लाभ होने लगता है – हरिद्वार के योगग्राम में १२वां दिन : सौरभ शाह

(गुड मॉर्निंग: चैत्र शुक्ल एकादशी, विक्रम संवत, २०७९, मंगलवार, १२ अप्रैल २०२२)

योगग्राम में आकर प्राकृतिक चिकित्सा का महत्व समझ में आ रहा है. यहां मिट्टी-पट्टी का खूब महत्व है. मिट्टी को सूती कपड़े में डालकर पेट और ऑंखों पर उन पट्टियों को रखा जाता है. यहां आने के बाद कुछ दिनों के लिए थेरेपी सेंटर में जाकर मिट्टी पट्टी करवानी होती थी. अब सुबह का योग सत्र पूर्ण होने के बाद गार्डन में ही काढा पीकर सभी को मिट्टी-पट्टी लगाकर योग की मैट पर आधा घंटा लेटे रहना है. स्वामी रामदेव आज का सत्र समाप्त कर विदाई लेते हैं कि मंच पर भारत के प्रमुख प्राकृतिक उपचार शास्त्रियों में शामिल डॉ. नागेंद्र कुमार नीरज का सत्र आरंभ होता है. डॉ. नीरज तीन दशकों से स्वामी रामदेव के साथ हैं.

वैसे मैं गार्डन में मिलनेवाली मिट्टी-पट्टी रूम में लाकर पेट-आंखों पर लगाकर आधे घंटे बाद ब्रेकफास्ट के लिए जाता हूँ. आधे घंटे का टाइमर लगाकर फोन पर यू-ट्यूब पर कुरुक्षेत्र (हरियाणा) में रहनेवाले ९४ वर्षीय डॉ. हिम्मत सिंह सिन्हा का वीडियो लगाकर सुनता हूँ. बहुत बड़े विद्वान हैं, भारत की अनमोल धरोहर हैं डॉ. सिन्हा. पीएचडी हैं. धर्म, अध्यात्म और भारतीय परंपरा के संबंध में अगाध ज्ञान है. अत्यंत सरल व्यक्तित्व हैं.

नेचरोपथी में पंच महाभूतों के महत्व को स्वीकार किया गया है. पंच महाभूत से बनी यह देह अंत में पंच महाभूत में मिल जाता है. शरीर में प्रवेश करने वाले रोग इन पंच महाभूतों की सहायता से ठीक किए जाएं, ऐसी सोच प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र में है.

प्राकृतिक चिकित्सा कारगर होने के बावजूद लोकप्रिय क्यों नहीं हो रही? इसका कारण है कि यहां मरीज़ अपने दायित्व से पल्ला नहीं झाड़ सकता. एलोपथी में मरीज़ अपनी सारी जिम्मेदारी डॉक्टर पर डाल दिया करता है

यहॉं आने के बाद मुझे लगा कि नेचरोपथी के बारे में मेरी जानकारी कितनी सीमित थी. आज मेरा विचार मिट्टी से होनेवाली चिकित्सा के बारे में मुझे मिली जानकारी का सार आपके साथ बांटने का है.

प्राकृतिक चिकित्सा कारगर होने के बावजूद लोकप्रिय क्यों नहीं हो रही? इसका कारण है कि यहां मरीज़ अपने दायित्व से पल्ला नहीं झाड़ सकता. एलोपथी में मरीज़ अपनी सारी जिम्मेदारी डॉक्टर पर डाल दिया करता है, डॉक्टर अपनी जिम्मेदारी दवाओं और ऑपरेशन पर डाल देते हैं. डॉक्टर द्वारा लिखी दवाएं खा लीं, ऑपरेशन करवा लिया यानी काम पूरा हुआ. मरीज को खुद कुछ नहीं करना होता.

प्राकृतिक चिकित्सा में (साथ ही योग-प्राणायाम तथा आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में भी) रोगी को खुद अपने समय का भोग देना पडता है, अपनी शक्ति का उपयोग करना होता है, आहारविहार की अपनी पुरानी आदतें बदलनी होती हैं, नई आदतें अपनानी पडती हैं. संयम और नियंत्रण से रहना पड़ता है.

अलोपथी उपचार करवाने वाले कई लोगों को मैने देखा है जो शादी में दो रसगुल्ला अधिक खाकर कहते हैं कि कोई बात नहीं, इंसुलिन का डोज़ अधिक ले लेंगे या दो टैब्लेट ज्यादा खा लेंगे.

रोग मनुष्य का स्वभाव नहीं है ऐसा स्वामी रामदेव बार बार कहते हैं.

हमारी उपचार पद्धतियों में परहेजी महत्वपूर्ण है. पहले मंडूकासन से पैंक्रियाज़ को ठीक करो, कपालभांति और अनुलोम विलोम प्राणायाम से शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाकर नई ताजगी लोओ और उसके बाद मीठा खाने का शौक पूरा करो-संयम के साथ. विटामिन डी की कमी हो तो सुबह धूप में सूर्यप्रकाश प्राप्त करने के लिए एक घंटा बिताएं-विटामिन डी की टैब्लेट निगलने से तभी तक लाभ होगा जब तक वे गोलियां लेते रहेंगे. इसके अलावा बीपी-डायबिटीज़ या अन्य किसी भी रोग की दवाएं भयानक दुष्प्रभाव तो डालजी ही हैं. उन दुष्प्रभावों को दूर करने के लिए दूसरी गोलियां लेनी पडती हैं. यह चक्कर चलता ही रहता है और क्रमश: शरीर कमजोर हो जाता है.

नेचरोपथी, योग-प्राणायाम, आयुर्वेद, एक्युप्रेशर यह सब उन्हीं के लिए काम का है जिनमें दीर्घदृष्टि है, धैर्य है और जो समझते हैं कि अपने शरीर का ख्याल रखने की जिम्मेदारी अपनी खुद की है-न कि डॉक्टर की, फार्मा कंपनियों की या वेंटिलेटरों-आईसीयू और ऑपरेशन थिएटर से युक्त अस्पतालों की.

रोग मनुष्य का स्वभाव नहीं है ऐसा स्वामी रामदेव बार बार कहते हैं. भारत के सर्वोच्च नेचरोपथी विशेषज्ञ स्व. डॉ. महेरवान भमगरा भी कहा करते थे कि मनुष्य का रोग केवल शारीरिक या भौतिक विकृति नहीं है बल्कि उसके मानसिक, नैतिक और अध्यात्मिक अपराध का भी परिणाम है. खुद रजनीशजी डॉ. भमगरा के काम से प्रभावित थे.

मिट्टी की चिकित्सा को अंग्रेजी वाले मड थेरेपी कहते हैं. लेकिन मड यानी `कीचड’ शब्द हमारे यहां गंदगी के साथ बहुधा जुडा है अत: मिट्टी या माटी चिकित्सा कहना मुझे अधिक उचित लगता है.

मिट्टी की चिकित्सा घर बैठे करने का काम थोडा कठिन है लेकिन असंभव बिलकुल नहीं है. एक तो उपचार के लिए योग्य माटी कहां से ले आएं, और स्वच्छ करके उसमें आवश्यक द्रव्य डालाकर, उसके बाद सारे शरीर पर उसके लेप लगाना हो तो अन्य व्यक्ति की सहायता लेनी पडती है-ये सारा काम कठिन है, लेकिन हम तय कर लें तो उसे सहज, सरल, आसान बना सकते हैं. एक कुंड में मिट्टी भरकर उसमें सारा शरीर डुबोकर मिट्टी स्नान करना आदर्श है लेकिन घर में तो यह नेक्स्ट टू इम्पॉसिबल है.

मिट्टी चिकित्सा का आसान उपाय, आपको आश्चर्य होगा लेकिन, खुद रजनीशजी ने `गीता दर्शन’ के आठवें अध्याय का विवरण करते हुए दिया है. आशो के ही शब्दों में:

`कुछ न करें, रोज सुबह जब उठें तो कुछ भी न करें, खाली जमीन पर लेट जाएं चारों हाथ –पैरों को फैलाकर, छाती को लगा लें जमीन से. अगर नग्न लेट सकें तो और भी प्रीतिकर है. जैसे कि पृथ्वी मां है और उसकी छाती पर लेट गए चारों हाथ-पैर छोडकर. सिर रख दें जमीन में और थोडी देर अनुभव करें कि अपने आप को पृथ्वी में समा दिया, छोड दिया. मिट्टी है दोनों तरफ, इसीलिए बहुत जल्दी संबंध बन जाता है, देर नहीं लगती. यह शरीर भी उसी पृथ्वी का टुकडा है. बहुत जल्दी इस शरीर के कणों में और पृथ्वी के कणों में तालमेल शुरू हो जाता है, संगीत प्रतिध्वनित होने लगता है और थोड़ी ही देर में आप अनुभव करेंगे कि आप पृथ्वी हो गए और इतने आह्लाद का अनुभव होगा, जैसा कभी नहीं हुआ था.’

मिट्टी का गुण शीतलता है. शरीर में खान पान की खराब आदतों के कारण प्रवेश कर चुकी गर्मी को मिट्टी बाहर निकाल सकती है. चमडी के अनेक रोग मिट्टी की चिकित्सा से दूर होते हैं.

गांधीजी मिट्टी की चिकित्सा में बहुत विश्वास रखते थे: `सिर दुख रहा हो तो सिर पर मिट्टी की पट्टी बांधने से बहुत लाभ होता है. यह प्रयोग मैने सैकडों लोगों पर किया है…ते बुखार हो तो पेडू पर मिट्टी पट्टी रख देनी चाहिए…बिच्छू काट ले तो भी मिट्टी का उपचार करें…शरीर पर फोडी वगैरह हो जाय तो भी इससे राहत मिलती है.’ ये गांधीजी के शब्द थे.

सेवाग्राम में वे मिट्टी में सरसों का तेल और नमक डालते. यहां योगग्राम में गौमूत्र, कपूर, एलोविरा, इप्सम सॉल्ट, नीम का रस इत्यादि डालते हैं.

मिट्टी शरीर के जिस अंग पर रखी जाती है, उस अंग का अंदर से शुद्धिकरण होता है. त्वचा के लिए तो वह उपयोगी है ही (जैसे कि मुलतानी मिट्टी का लेप चेहरे पर लगाकर कील मुहांसों का उपचार करना बडी पुरानी बात है. आजकल ब्यूटी पार्लरों में फेसपैक करवाने जो लोग जाते होंगे उनमें कइयों को मुलतानी मिट्टी में अन्य दूसरी चीजें मिलाकर फेसपैक लगाकर चेहरे को अधिक कांतिमय बनाया जाता है).

मिट्टी का गुण शीतलता है. शरीर में खान पान की खराब आदतों के कारण प्रवेश कर चुकी गर्मी को मिट्टी बाहर निकाल सकती है. चमडी के अनेक रोग मिट्टी की चिकित्सा से दूर होते हैं. स्त्रियों के लिए पीरियड्स संबंधी शिकायतें दूर करने में भी मिट्टी चिकित्सा अत्यंत कारग परिणाम देती है. इवन, डिप्रेशन के मरीज़ों को भी मिट्टी का स्नान कराया जाता है. कुल मिलाकर देखें तो हर रोग में मिट्टी की चिकित्सा द्वारा लाभ तो हाता ही है.

योगग्राम के नेचरोपैथ डॉ. अक्षय ने मुझे पैर के तलवों पर, पैर के नीचे के भाग पर मिट्टी का लेप लगाकर रोज पंद्रह-बीस मिनट बैठने का प्रिस्क्रिप्शन दिया है. इसके अलावा कहा है कि योगग्राम के तलाव में बीच में जो टापू बनाया गया है वहां की मिट्टी में खुले पांव चलने जाएं.

मिट्टी चिकित्सा यदि खुद से घरबैठे करनी हो तो उसके लिए कुछ सुझाव हैं:

१. मिट्टी साफ, कंकड बिना की और थोड़ी चिकनी होनी चाहिए. तलाव से, खेत से या कुंभार से वह प्राप्त की जा सकती है.

२. मिट्टी को चलनी में चालने के बाद टोप या किसी बर्तन में मिट्टी भरकर उसमें थोडा ठंडा पानी (रूम टेंपरेचर पर, फ्रिज का नहीं) डालें. मिट्टी भीग जाय इतना ही पानी लें, अधिक नहीं. फिर जैसे आटा गूंदते हैं उस तरह से उसे गूंदें.

३. एक पतले सफेद कपडे को फैलाकर उस पर गीली मिट्टी रखें और कपडा मोड दें, दोहरा लें. इस तरह से मिट्टी बीच में और ऊपर नीचे कपडा रहेगा. यह मिट्टी-पट्टी शरीर के जिस भाग पर रखनी हो उस पर पंद्रह मिनट या आधा घंटे तक रखें. संभव हो तो मिट्टी की इस पट्टी पर कोई गर्म कपडे का टुकडा ढंकें ताकि हवा न लगे.

४. मिट्टी को तीन से चार घंटे भिगोने के बाद ही उसका उपयोग करें. जितनी अधिक ठंडी की गई होगी, उतना ही अधिक लाभ होगा.

५. भूखे पेट यह उपचार करना लाभकारी है. पेट खाली हो तो मिट्टी की ठंडक पाचक अवयवों की गर्मी को सरलता से सोख लेगी.

६. किसी भी समय यह लेप किया जा सकता है, पेट खाली होना चाहिए‍.

७. लेप की मोटाई आधा इंच हो सकती है, उससे पतला लेप भी किया जा सकता है.

८. पेट पर लेप करने से हर रोग में लाभ मिलता है क्योंकि पेट रोग का घर है. मल की गर्मी से आंत, लीवर, जठर इत्यादि पर प्रभाव डालकर यह पाचक अंगों को कमजोर करता है. पेट पर गीली मिट्टी का लेप करने से शरीर की नुकसानदायक गर्मी मिट्टी में सोख ली जाती है, पाचक अंगों की घट चुकी कार्यक्षमता इस चिकित्सा से सुधरती है. कब्ज जैसी समस्या कुछ दिन मिट्टी का प्रयोग करने से प्राकृतिक रूप से खत्म हो जाती है. सर्दी में भी यह चिकित्सा की जा सकती है. अधिकतर कब्ज के कारण भी सर्दी-खांसी होती है. यदि पेट साफ हो तो सर्दी-जुकाम अपने आप जाता रहेगा.

९. कभी पेट में खूब गर्मी होती है तो मिट्टी का लेप रखने से गर्मी बाहर आ जाती है जिसके कारण त्वचा पर फुंसियां दिखती हैं, खुजली आती है, त्वचा लाल हो जाती है. ऐसे समय में डरने की जरूरत नहीं है. एक दो दिन के लिए लेप को बंद करके उस जगह पर नारियल का तेल लगाएं और त्वचा साफ हो जेने के बाद फिर से मिट्टी का लेपर शुरू कर दें.

१०. एक बार उपयोग में लाई गई मिट्टी का दोबारा उपयोग किया जा सकता है? हां और नहीं. अशुद्ध बन चुकी मिट्टी का दोबारा उपयोग नहीं किया जा सकता. हर बार नई भिगोई मिट्टी लेनी चाहिए. लेकिन जहां मिट्टी की कमी है, आसानी नहीं मिल सकती है तो एक बा उपयोग में लाई गई मिट्टी को धूप में अच्छी तरह से सुखाकर उसमें निहित विष को दूर करके फिर से उपयोग में लाया जा सकता है.

प्राकृतिक चिकित्सा में मिट्टी की तरह सूर्य का भी काफी महत्व है. हम तो वेदकाल से सूर्य और अग्नि को देवता मानते हैं, भगवान के रूप में पूजते हैं. यज्ञ की महत्ता के बारे में काफी गलतफहमियां हैं. इसी सिरीज़ में यथावकाश उस टॉपिक को भी कवर करेंगे. योगग्राम में सुंदर यज्ञशालाएं हैं. यज्ञ करने/कराने वाले अनुभवी संन्यासी हैं. मैं तो अपने कमरे की खुली बालकनी में हवन करता हूँ. मुंबई में भी अपने स्टडी रूम में करता था. यहां के एक स्वामीजी ने मुझे यज्ञ उपासना संबंधी एक व्हॉट्सऐप ग्रुप में जोडा है.

आज बस इतना ही. कल फिर मिलेंगे.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here