`त्यागी’ राजमाता की कठपुतली समान रीढविहीन प्रधान मंत्री

गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह

(मुंबई समाचार, मंगलवार – १२ फरवरी २०१९)

`प्रधान मंत्री यदि फाइनांस मिनिस्ट्री संभालेंगे तो मुझे क्या सौंपेंगे?’ चिदंबरम ने संजय बारू से पूछा. बारू को सुनकर आश्चर्य हुआ. मीडिया में ऑलरेडी चर्चा हो रही थी कि पी. चिदंबरम को वाणिज्य मंत्रालय या दूरसंचार मंत्रालय सौंपा जाएगा. संजय बारू ने चिदंबरम के सवाल के जवाब में यह जानकारी भी दी. तब चिदंबरम गुस्से में बोले,`मिस्टर एडिटर, मैं पहले फायनांस मिनिस्टर रह चुका हूँ! क्या आप ऐसा मानते हैं कि मैं सीनियर कैबिनेट पोस्ट से कुछ भी कम स्वीकार करूंगा?’

वित्त मंत्री का कार्यालय रासीना हिल पर प्रधान मंत्री के कार्यालय के साथ ही होता है. यहीं पर विदेश मंत्री, रक्षा मंत्री और गृह मंत्री के कार्यालय भी हैं दिल्ली के नॉर्थ और साउथ ब्लॉक के ये सभी सर्वोच्च सम्माननीय पदाधिकारी हैं. वे सभी कैबिनेट कमिटी ऑन सिक्योरिटी (सी.सी.एस.) के भी सदस्य हैं. नेशनल सिक्योरिटी और न्यूक्लियर पावर का महत्व जिस प्रकार से आज के जमाने में बढ रहा है उसे देखते हुए सी.सी.एस. का रुतबा भी बढ गया है.

संजय बारू ने चिदंबरम से पूछा कि आपको यदि रायसीना हिल पर जगह नहीं मिलती है तो आप क्या करेंगे?

चिदंबरम ने कहा कि,`मैं (संसद में) अंतिम बेंच पर बैठना पसंद करूंगा’ यानी जिद्द करूंगा और नाराज हो जाऊंगा.

`अच्छी बात है’, संजय बारू ने उनसे हंसते हुए कहा,`इसका अर्थ ये हुआ कि आप मेरे पेपर में फिर से कॉलम लिखना शुरू करेंगे.’

पी. चिदंबरम मई २००४ में सत्ता पर आने से पहले `द फायनांशियल एक्सप्रेस’ में साप्ताहिक कॉलम लिखते थे.

लेकिन संजय बारू का मजाक केवल मजाक ही रहा. चिदंबरम को फिर से अपना कॉलम शुरू करने की नौबत नहीं आई. शाम होने तक पोर्टफोलियो के आबंटन के बारे में घोषणा होने लगी. चिदंबरम को फायनांस मिनिस्टर बनाया गया था.

पृथ्वीराज चौहाण को पी.एम.ओ. (प्राइम मिनिस्टर ऑफिस) के लिए मिनिस्टर ऑफ स्टेट का पद दिया गया था. संजय बारू ने पृथ्वीराज चौहाण को फोन करके पूछा कि ऐसा कैसे हुआ. पृथ्वीराज चौहाण ने कहा कि पी.एम. को सलाह दी गई कि फायनांस जैसा भारी पोर्टफोलियो आपको अपने पास नहीं रखना चाहिए, क्योंकि सरकार और साथी दलों को संभालने से आपको फुर्सत नहीं मिलेगी.

संजय बारू ने यह बात `द एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ में लिखी है और फिल्म में भी आपने देखा है. जो बात नहीं लिखी, वह आपको बिटवीन द लाइन्स पढनी चाहिए. चिदंबरम ने सोनिया गांधी या सोनिया के पिट्ठू अहमद पटेल के पास जाकर जिद की होगी कि मुझे यदि वित्त मंत्री नहीं बनाया जाएगा तो मैं पार्टी फिर से छोडकर जा रहा हूँ और अपने समर्थकों को भी ले जा रहा हूँ. सरकार की नैया डगमगा कर चिदंबरम ने अपना इ्च्छित लक्ष्य हासिल किया और सोनिया ने मनमोहन सिंह का हाथ पीछे से जोर से मरोडकर कहा कि आप भले ही नरसिंह राव के समय वित्त मंत्री के रूप में बेहतर काम कर चुके हैं और भूतकाल में रिजर्व बैंक के गवर्नर का पद भी संभाला हो तथा अर्थशास्त्री के नाते देश-दुनिया में भले आपका नाम है, लेकिन कृपा करके आप जहन्नुम में जाओ पर व्यवसाय से वकील रहे पी. चिदंबरम को उनके घोटाले करने के लिए देश की तिजोरी का धन अपनी तिजोरी में डालने की सुविधा के लिए उन्हें वित्त मंत्री बनाइए और आप जहां जा रहे हैं, वहीं पर यह देश भी चला जाए तो भी मेरा क्या बिगडेगा.

ये सब बिटवीन द लाइन्स पढना होता है. प्रधान मंत्री से कहा जाए कि भाई साहब आपसे वित्त मंत्रालय जैसा भारी पद नहीं निभाया जा सकेगा, इसका और क्या मतलब हो सकता है?

सोनिया गांधी की मेहरबानी से प्रधान मंत्री बने मनमोहन सिंह को अपने पांच-पांच के कुल दस साल के कार्यकाल में ऐसे कई कडवे घूंट पीने की नौबत आई. बार-बार अपमान सहना पडा लेकिन मनमोहन सिंह ने सोनिया के मुंह पर इस्तीफा फेंकर प्रधान मंत्री के सांवैधानिक अधिकार का बचाव तक नहीं किया, जो कि साबित करता है कि स्वाभिमान की कीमत पर मनमोहन सिंह सत्ता से चिपके रहना चाहते थे. भारत का ये दुर्भाग्य है कि इस देश की जनता को पूरे एक दशक तक रीढविहीन प्रधान मंत्री को झेलना पडा. इतना ही नहीं, उन्हें कठपुतली की तरह नचानेवाली सोनिया तथा सोनिया की टोली की चालबाजियों के कारण देश को भयानक नुकसान सहना पडा. सोनिया के मुस्लिम सलाहकारों की सलाह के चलते भारत ने २००४ से २०१४ के दौरान पाकिस्तान द्वारा नियमित रूप से भेजे जा रहे आतंकवादियों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की. मुंबर्स की ट्रेनों में हुए सीरियल बम धमाकों तथा २६/११ के होटल ताज-ऑबेरॉय तथा सीएसटी सहित अनेक स्थानों पर हुए आतंकवादी हमलों में कुल ४०० से अधिक निर्दोष नागरिक मारे गए, इसके बावजूद भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक्स तो नहीं किए, बल्कि पाकिस्तान के सामने टिकरी वाली पटाखे की बंदूक तक नहीं चलाई. क्या कारण था‍? अपनी सरकार में, अपनी सिक्योरिटी एजेंसियों में तथा समाज में जगह जगह ऐसे लोग थे जो सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से आतंकियों की मदद कर रहे थे, आर्थिक या लॉजिस्टिक सहायता करते थे और उन सभी को सोनिया की टीम संभाल लेती थी, आशीर्वाद देती थी, प्रोत्साहित करती थी जिसके प्रमाण गृह मंत्रालय में ऊंचे पद को संभालकर निवृत्त हो चुके एक देशभक्त अफसर ने पहले ही मीडिया को दिए हैं, पुस्तक भी लिखी है लेकिन दुर्भाग्य से उसकी बातों पर मीडिया ने पर्दा डाल दिया. हम भविष्य में उसे उठाएंगे.

`द एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ में लिखा गया है और फिल्म में दिखाया गया है कि डॉ. मनमोहन सिंह ने अपने कार्यकाल के दौरान कम से कम दो बार सोनिया गांधी को अपना इस्तीफा सौंपा था. डॉक्टर साहब का यह नाटक था. इस्तीफा देना हो तो सीधे राष्ट्रपति को भेजना चाहिए. सोनिया क्या देश के राष्ट्रपति से भी अधिक बडे पद पर थीं? सोनिया गांधी एक राजनीतिक दल की प्रमुख मात्र थीं. अधिक से अधिक वे गठबंधन के दलों द्वारा निर्मित संगठन की अध्यक्ष थीं. इसके अलावा देश में कभी जिसका अस्तित्व नहीं था, ऐसी समानांतर सरकार- या कह लीजिए या सरकार की सरकार, यानी नेशनल एड्वाइजरी काउंसिल (एन.ए.सी.) की अध्यक्ष थीं. इस एन.एस.सी. की पुडिया को २५ मई २०१४ में लपेट कर रख दिया गया. भारत के संविधान की ऐसी तैसी करके सोनिया गांधी ने एन.ए.सी. बनाई ताकि मनमोहन सिंह की लगाम उनके हाथों में रहे.

`द एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ के बारे में आगे बात करने से पहले थोडा रिविजन कर लेते हैं. २००४ में भाजपा की हार के बाद सोनिया गांधी प्रधान मंत्री बनने के लिए आतुर थीं. उन्होंने अपने सांसदों से राष्ट्रपति को पत्र भिजवाया था कि हमें प्रधान मंत्री के नाते सोनिया गांधी ही चाहिए. खुद सोनिया गांधी भी सांसद के नाते पत्र भेजकर राष्ट्रपति से कह चुकी थीं कि मैं (सोनिया गांधी) सोनिया गांधी को प्रधान मंत्री के रूप में देखना चाहती हूं. यह बात सुब्रमण्यम स्वामी ने अपने एक भाषण में कही है. उन्होंने राष्ट्रपति भवन में इन पत्रों को अपनी आंखों से देखा है. सोनिया गांधी ने प्रधान मंत्री नहीं बनकर कोई त्याग-ब्याग नहीं किया है. सारे प्रयास, षड्यंत्र, जद्दोजहद विफाल होने के बाद बहनजी ने प्रधान मंत्री पद का `त्याग’ करने की घोषणा की. इसके दो प्रमुख कारण थे. एक था जनाक्रोश. भारतीय जनता में उनके खिलाफ भारी असंतोष था. राजनीतिक दलों के अनेक नेता इस आक्रोश में साथ दे रहे थे. सुषमा स्वराज ने घोषित किया था कि यदि सोनिया प्रधान मंत्री बनेंगी तो मैं सिर मुंडवाकर साध्वी बन जाऊंगी. कांग्रेस के अलावा अन्य दल (जिसमें कई तो कांग्रेस के साथी दल थे) भी नहीं चाहते थे कि एक विदेशी महिला भारत पर राज करे.

दूसरा मुद्दा टेक्निकल था. सोनिया गांधी ने राजीव गांधी से विवाह करने के दशकों से भी अधिक समय तक अपनी इटालियन नागरिकता को नहीं छोडा था. भारतीय पासपोर्ट तो उन्होंने काफी देर से हासिल किया. भारत के रक्षा दलों का नियम है कि कोई भी जवान-अफसर विदेशी महिला के साथ विवाह करना चाहता है तो उसे सबसे पहले सरकार से अनुमति लेनी चाहिए. काफी कडी पूछताछ के बाद ऐसी अनुमति मिलती है, और शायद न भी मिले. एक अफसर के पास अनेक गोपनीय जानकारियां होती हैं जिनके लीक होने पर देश का नुकसान हो सकता है! इसके विपरीत प्रधान मंत्री के पास तो अनेक गोपनीय जानकारियां होती हैं. क्या बिना किसी स्क्रुटिनी के ऐसे व्यक्ति को ऐसे पद पर बिठाया जा सकता है?

और भी बडा मुद्दा तो डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी ने राष्ट्रपति को पत्र लिखकर खडा किया था जिसके संदर्भ में राष्ट्रपति ने उन्हें प्रत्यक्ष मिलने के लिए बुलाया था. इस मुलाकात के कारण राष्ट्रपति ने सोनिया गांधी को प्रधान मंत्री पद का दावा करने के लिए दिया गया आमंत्रण वापस ले लिया. डॉ. अब्दुल कलाम का देश पर किया गया यह सबसे बडा उपकार था. स्वामी ने अपने पत्र में क्या लिखा था इसकी बात कल करेंगे और `द.ए.पी‍.एम.’ के बारे में रोचक बातें आगे बढाएंगे. एक थ्रिलर की तरह है ये. देश को ऐसे थ्रिलर्स की जरूरत नहीं है फिर भी ऐसी घटनाएँ २००४ से २०१४ के दौरान होती रहीं, ये हम सभी का दुर्भाग्य है और २०१४ के बाद देश इससे उबर गया ये हमारा सौभाग्य है.

आज का विचार

प्रॉमिस डे के मौके पर वायरल हो रहा `मरीज’ का शेर

मिलन के कॉल बिना उसकी राह नहीं देखनी

ये तो मजाक है मोहब्बत का, इंतजार नहीं.

– मरीज

एक मिनट!

बका ने आज पहली बार बर्तन धोए. उसके टेनामेंट में रसोईघर से बाहर की मोरी में उसे बर्तन धोते देखनेवाली उसकी पडोसन ने बका की पत्नी से कहा,`काश, ये मेरा पति होता तो!’

बकी ने बका को धमकाते हुए कहा:`खबरदार, अगर आज के बाद फिर कभी बर्तन धोया तो…!’

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