गुस्सा करना चाहिए या नहीं

गुड मॉर्निंग

सौरभ शाह

हिंदी फिल्म के गीतकार भले ही कहते हैं कि गुस्सा इतना हसीन है तो प्यार कैसा होगा, लेकिन गुस्सा कभी भी मोहक नहीं होता.

कोई अप्रिय बात होती है तो तुरंत ही सबसे पहले उस अप्रिय घटना का प्रतिकार होता है. यह प्रतिकार ही गुस्सा है या क्रोध है. जिंदगी में ऐसे कई लोग आपने देखे होंगे जो बात – बात में क्रोधित हो जाते हैं. इसके विपरीत ऐसे भी कई व्यक्ति देखे होंगे जिनके पास क्रोध के पुख्ता कारण होने के बावजूद वे ठंडे दिमाग और प्रसन्न चित्त रहते हैं.

राज कपूर के फेवरिट गीतकार शैलेंद्र का असमय देहांत हो गया था. शैलेंद्र के पुत्र शैली शैलेंद्र ने अपने कवि पिता के बारे में एक बात कही थी. (इंग्लैंड के जाने-माने रोमांटिक कवि पर्सी शैली के नाम पर शैलेंद्र ने अपने बेटे का नाम रखा था). गीतकार शैलेंद्र बच्चे पर कभी क्रोध नहीं करते थे. संतान अगर कोई नहीं करने लायक काम करती थी तो वे उसे अपने पास बुलाते लेकिन धमकाने के बदले खुद ही रो पडते. पिता की आंखों से विवशता का दुख झलकता था. बच्चा अपने कहे में नहीं रहता ह तो उसका एक कारण तो यह जरूर है कि उसके लालन-पालन में कहीं न कहीं पैरेंट्स की कमी रह गई है.

अत्रि और अनुसूया के पुत्र दुर्वासा ऋषि का क्रोध पुराणों की कथाओं में विख्यात है.ऐसा माना जाता है कि दुर्वासा में शिव का अंश था. दुर्वासा के आशीर्वाद से कुंती के गर्भ से सूर्यपुत्र कर्ण का जन्म हुआ था, लेकिन दुर्वासा के क्रोध से बडे बडे देवी-देवता डरते थे. बेचारी शकुंतला ने दुर्वासा से थोडा इंतजार क्या करवाया, ऋषि ने क्रोध में आकर कह दिया कि समय आने पर दुष्यंत तुम्हें भूल जाएंगे.

महाभारत में एक कथा है. दुर्वासा एक बार श्रीकृष्ण के यहां मेहमान थे. भोजन पश्चात ऋषि के पैरों के पास पडी थोडी जूठन साफ करने की ओर भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान नहीं गया. भगवान की ऐसी लापरवाही से दुर्वासा क्रोध से आकुल हो गए और कृष्ण तथा यादवों के जीवन का भयानक अंत होने का शाप दे दिया. दुर्वासा के क्रोध से उत्पन्न शाप के कारण यादवी संहार हुआ जिसमें सौ यादवों का नाश हो गया. व्याध के बाण से कृष्ण भगवान का देहोत्सर्ग हुआ.

शांत स्वभाव के लोग बात-बात में क्रोध नहीं करते. छोटी-बडी कई अन्यायकारी बातों को वे सह लेते हैं, लेकिन जब उनका रोष धधकता है तो सबकुछ भस्मीभूत करके ही वे शांत होते हैं. ब्रिटिश कवि-नाट्यकार जॉन ड्रायड ने सच ही कहा था: बीवेयर द फ्यूरी ऑफ ए पेशेंट मैन.

क्रोध क्षणिक पागलपन है ऐेसा ओशो रजनीशजी ने कहा था. ये क्षण लंबे होकर दिनों में रूपांतरित हो जाते हैं, उस समय मनुष्य अंतर्मुखी होकर विचार करने लगता है कि गुस्से को इस हद तक लंबा करना उचित है या नहीं. रजनीशजी एक अलग स्तर पर जाकर क्रोध के बारे में बात करते हैं. बचपन से ही सिखाया जाता था कि क्रोध को वश में रखना चाहिए. रजनीशजी कहते हैं कि मेरा बस चले तो आपसे कहूंगा कि बच्चा गुस्सा हो रहा है तो होने दीजिए. गुस्सा होने पर उसके सामने आईना रख दीजिएगा. बेटे से कहिएगा कि देख तू सचमुच में लग कैसा रहा है. तुम क्रोध करो, हम बैठे बैठे तुम्हें देखेंगे, क्योंकि तुम्हारे क्रोध का निरीक्षण करके हमें दो बातें सीखने को मिलेंगी. गुस्सा होकर आवेश में आकर गलत काम कर बैठने वाले बच्चे को सजा देना गलत बात है. मनुष्य बनाने का सारा विज्ञान ही गलत है. बचपन से बच्चे को उसके क्रोध की संपूर्ण झलक मिल जाती है तो बडा होने पर वह क्रोध उसमें से बाहर निकल जाएगा. ये विचार रजनीशजी के हैं. सेक्स, लोभ, स्वास्थ्य, घमंड- सभी बातों के लिए रजनीशजी का ऐसा मानना है कि उसे प्रकट होने दो. सबकुछ बाहर निकल जाने दो. उसे मन में दबाकर मत रखो.

स्वामी सच्चिदानंद ने कहा है कि क्रोध का संबंध मुख्य रूप से इच्छा हानि, स्वार्थ हानि, और प्रेम की हानि के साथ जुडा है. लेकिन मूलत: क्रोध का मुख्य प्रेरक बल अहंकार है.

इच्छा हानि इत्यादि के साथ पर्याप्त मात्रा में अहंभाव नहीं होगा तो शायद क्रोध की मात्रा अल्प होगी, सच्चिदानंदजी कहते हैं कि क्रोध केवल शत्रु है ऐसा कहना उचित नहीं है. अन्याय, अत्याचार इत्यादि देखकर जो क्रोध आता है वह जरूरी है और ऐसे समय में जो शांत रहता है वह कायर है. ऐसे समय पर तो उसके अंदर आक्रोश का आवेग होना ही चाहिए. सच्चिदानंदजी के अनुसार पुत्र, शिष्य, नौकर इत्यादि पर सकारण हितकारी गुस्सा करना भी क्रोध का मित्र रूप ही है जो आवश्यक है. क्षमा, दया, सहनशक्ति, धैर्य इत्यादि सद्गुण क्रोध जैसे दोषों को हल्का करने के लिए बने हैं. जैसे जैसे इन गुणों का विकास होता है वैसे वैसे क्रोध जैसे आवेग कम होते जाते हैं या नियंत्रित होते जाते हैं.

गुस्से की बात अभी और भी है. जो कल करेंगे.

आज का विचार

मोदी को तीन लोग ही हरा सकते हैं: १. लालची हिंदू, २. आलसी हिंदू, ३. नकली हिंदू.

– व्हॉट्सएप पर पढा हुआ

एक मिनट!

बका: भारी वर्षा के कारण ट्रेन देर से चल रही है.

पका: तो रेलवेवाले वर्षा को ट्रेन से उतार क्यों नहीं देते?

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here