लताजी और गुलजार साहब: महान लोगों को ईगो प्रॉब्लम्स होती है?

गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह

(मुंबई समाचार: शनिवार, १६ मार्च २०१९)

गुलजार अपने लिखे फिल्मी गीतों की बात करने के लिए पूरी पुस्तक भर जाए इतना लंबा इंटरव्यू दें तो आपकी क्या अपेक्षा होगी? उसमें कम से कम आधी जगह तो आर.डी. बर्मन के साथ उनके किए गए काम के बारे में होगी ही. नसरीन मुन्नी कबीर के साथ की गई बातचीत की किताब ‘जिया जले: द स्टोरीज ऑफ सॉन्ग्स’ में आधी जगह तो जाने दीजिए, एक स्वतंत्र अध्याय तक आर.डी. बर्मन के लिए नहीं है. ‘मेरा कुछ सामान’ के कई प्रचलित प्रसंग तथा पंचम के बारे में कुछ छिटपुट उल्लेखों के अलावा पुस्तक में आपको गुलजार-पंचम की जोडी द्वारा की गर्स कर्स सारी कमाल की अंदरूनी बातें ही जानने को न मिलें तो पहली बार में तो कुछ नाराजगी जरूर होती है. लेकिन बाद में ध्यान में आता है कि इस पुस्तक का टाइटल भ्रामक तो नहीं कहा जा सकता लेकिन अधूरा जरूर है. ‘द स्टोरीज ऑफ कंटेम्पररी सॉन्ग्स’ शीर्षक होता तो ध्यान में आ जाता कि इसमें एवरग्रीन या सदाबहार नहीं, बल्कि समकालीन दौर के ‘नए’ संगीतकारों के साथ किए गए उनके काम की बात है. ‘नए’ यानी ए.आर. रहमान, विशाल भारद्वाज, शंकर- एहसान- लॉय इत्यादि.

नसरीन मुन्नी कबीर ने २०१२ में ‘इन द कंपनी ऑफ अ पोयट’ नामक गुलजार के साथ अत्यंत दीर्घ इंटरव्यू को पुस्तक में रूपांतरित किया है जिसमें गुलजार के जीवन के बारे में, उनके फिल्मी करियर के बारे में तथा उनके द्वारा लिखी, निर्देशित की गई फिल्मों के बारे में तथा फिल्मों के लिए लिखे गए गीतों के बारे में बहुत सारी बातें की हैं. आर.डी. बर्मन के बारे में कई सारी बातें उसमें विस्तार से की गई हैं.

अभी की पुस्तक में दूसरा एक महत्वपूर्ण दृष्टिकोण गुलजार के गीतों के अंग्रेजी अनुवाद का है. अनुवाद की प्रक्रिया में जिन्हें रुचि है, उन अध्ययनशील लोगों के लिए इसमें बडा खजाना है. गुलजार जिस तरह से अपनी फिल्मी रचनाओं के अनुवाद को स्वीकृति देते हैं उसमें छोटे-बडे किंतु महत्वपूर्ण बदलावों का सुझाव देते हैं, ये पढकर आपको काफी कुछ सीखने को मिलता है.

गुलजार साहब का जन्म १९३४ का है. इस साल १८ अगस्त को वे ८५ वर्ष के हो जाएंगे. इस उम्र में भी खूब काम करते हैं, पूरे अनुशासन से काम करते हैं. नसरीन मुन्नी कबीर प्रस्तावना में कहती हैं कि सप्ताह के छह दिन साहब सुबह साढे दस बजे पढने-लिखने के लिए अपनी डेस्क पर आ जाते हैं. दोपहर डेढ बजे तक काम चलता है. घंटे भर के लंच ब्रेक के बाद फिर से काम शुरू होता है जो शाम को छह बजे तक चलता है. एक साथ कई पुस्तकों का काम हाथ में है. कई फिल्मों के लिए गीत लिखने के असाइनमेंट लिए हैं. भेंट करनेवाले आते रहते हैं. फोन की घंटी बजती रहती है.

इसके बावजूद गुलजार साहब के पास नसरीन मुन्नी कबीर की इस बुक के लिए वक्त है. नसरीनजी लंदन में रहती हैं. रूबरू मिले बिना पंद्रह से अधिक सेशन्स डिजिटली रेकॉर्ड होते हैं. हर सेशन दो से ढाई घंटे का होता है. मेनुस्क्रिप्ट तैयार होने के बाद फुर्सत में होने वाली प्रत्यक्ष मुलाकात के दौरान आवश्यक बदलाव-सूचनाओं का आदान प्रदान होता है. कभी कभी लगता है कि इतना बिजी इंसान कैसे इतना समय निकाल सकता है. सच्चाई ये है कि बिजी लोगों के पास हर काम के लिए पर्याप्त समय होता है. आलसी लोगों के पास कभी समय नहीं होता, उनके पास काम टालने का एक स्टैंडर्ड जवाब होता है:

कल करेंगे. अगले सप्ताह का रखते हैं, इस महीने जाने दीजिए…बिजी लोग दो काम के बीच के समय में, बिलकुल टाइट शेड्यूल में भी समय निकाल लेते हैं. ८५ वर्ष की उम्र में भी व्यस्त रहना हो तो ये गुरु मंत्र दे रहा हूँ आपको.

गुलजार कहते हैं कि मणि रत्नम की फिल्म ‘दिल से’ के लिए ए.आर. रहमान ने पहली बार लता मंगेशकर की आवाज का उपयोग किया. ‘जिया जले जान जले, नैनों तले, धुआं चले, धुआं चले….’ रहमना की खासियत ये है कि किसी भी गायक को गीत गानेे के लिए चेन्नई के उनके स्टूडियो में जाना होता है और वह भी देर रात में. वो साल १९९७ का था. लताजी रहमान के लिए रेकॉर्डिंग करने के लिए मुंबई से उडकर चेन्नई गईं. पहले वे कभी रहमान से रूबरू नहीं मिली थीं. रहमान के स्टूडियो से परिचित नहीं थीं. उनके साथ गुलजार साहब थे.

अब बात सुनना, दोस्तो. जो लोग सचमुच में क्रिएटिव होते हैं, वे लोग काम के बीच में कभी अपने अहम को आडे नहीं आने देते, उसी का ये किस्सा है. लताजी का और गुलजार साहब का भी. लताजी ने तो साबित कर दिया कि वे खुद से काफी जूनियर संगीतकार के लिए खुद गाने जाएंगी और वह भी चेन्नई तक, ऐसे स्टूडियो में जिसके सिस्टम से वे बिलकुल परिचित नहीं हैं. और वह भी कब? जब उन्होंने सब कुछ अचीव कर लिया है. भारत रत्न सहित सब कुछ.

अब गुलजार साहब की महानता की बात आ रही है. रहमान के स्टूडियो में आप एंटर होते है तो तुरंत बडा मिक्सिंग डेक पडता है जहां पर रहमान खुद बैठते हैं. अंदर की तरफ माइक्रोफोन के साथ छोटा सिंगर्स बूथ है. मणिरत्नम भी इस रेकॉर्डिंग में मौजूद थे. वादकों की जरूरत नहीं थी. उन ट्रैक्स को बाद में सिंगर ट्रैक के साथ जोडा जाना था. रहमान से ट्यून समझने के बाद लताजी सिंगर्स केबिन में जाती हैं लेकिन वहां कदम रखते ही उन्हें पता चलता है कि केबिन से मिक्सिंग डेस्क दिखाई नहीं देता. जिसका अर्थ है कि उन्हें रहमान दिखाई नहीं दे रहे हैं. लताजी के लिए यह एक बहुत बडी समस्या थी, क्योंकि उन्हें गीत रेकॉर्ड करते समय संगीतकार यानी कंपोजर के साथ आई कॉन्टैक्ट करने की आदत थी. (‘ठीक जा रहा है ना?). एक रिहर्सल के बाद लताजी ने गुलजार साहब अलग बुलाकर कहा कि,‘गुलजारजी, मुझे तो कुछ दिखाई नहीं दे रहा है. ऐसा लगता है ब्लाइंड हूँ’.

लताजी को शायद आस पास कोई नहीं दिख रहा होगा इसीलिए भी वे खुद को कालकोठरी में बंद महसूस कर रही होंगी. अब करें तो क्या करें? दीवार को तो हटाया नहीं जा सकता, दरवाजे को तोडा नहीं जा सकता. गुलजार साहब ने उसका हल निकाला. सिंगर्स केबिन के कांच के दरवाजे के सामने एक छोटो सा स्टूल लेकर बैठ गए जहां से एक तरफ उन्हें रहमान नजर आते हैं तो सामने लताजी. रहमान ने एंबरेस होकर गुलजार साहब से कहा भी कि आप ऐसे क्यों बैठ रहे हैं. किसी असिस्टेंट को बिठा देते हैं. गुलजार ने कहा: नहीं, आई एम कम्फर्टेबल! और इस तरह से गुलजार साहब उस दिन (रात को) लताजी और ए.आर. रहमान के बीच के बाउंसिंग बोर्ड बने.

आपको लगता होगा कि महान लोग बहुत ही इगोइस्टिक होते हैं. लेकिन वे जब क्रिएटिव काम में लगे रहते हैं तब वे अपने इगो को एक तरफ रखकर जो सृजन हो रहा है उसकी श्रेष्ठता को सर्वाच्च दर्जे तक पहुंचाने के लिए बहुत कुछ कर गुजरते हैं. ऐसे लोगों की छोटी छोटी बातों से बहुत कुछ सीखने को मिलता है हमें.

आज का विचार

वो किताब लेकर बैठती है सिर्फ गलतियॉं तलाशने के लिए,

उत्साह से मैने उसे वह दी थी पढने के लिए.

खूब जतन किया है उसने मुझे थकाने के लिए,

कोशिश मैने की थी जिसे आगे लाने के लिए.

– किरणसिंह चौहान

एक मिनट!

मायावती और अखिलेश यादव चुनाव प्रचार के लिए एक साथ एक गांव में गए. लोगों से पूछा कि आपकी जो भी समस्या हो बताइए. गांव के लोगों ने कहा कि हमारे यहां पर दो समस्याएं हैं. उनका समाधान कर दें तो हमारा वोट आपके गठबंधन को मिलेगा.

अखिलेश ने पूछा: समस्या बताइए.

ग्रामवासी कहते हैं: साहब. एक तो हमारे गांव में डॉक्टर नहीं हैं.

अखिलेश ने तुरंत ही असिस्टेंट से फोन लेकर नंबर प्रेस करके बात की और कहा: लो, एक समस्या तो हल हो गर्स. दूसररी मायावतीजी को बताइए.

गांववाला: दीदीजी, दूसरी समस्या ये है कि हमारे गांव में किसी भी कंपनी का मोबाइल नेटवर्क नहीं आता.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here