उपवास आज का राष्ट्रधर्म है: सौरभ शाह

(न्यूजव्यूज, बुधवार, २५ मार्च २०२०)

आज चैत्र सुदी प्रतिपदा है. गुढी पाडवा का त्यौहार है. चैत्री नवरात्रि का पहला दिन है.

हममें से कई सारे लोग शारदीय नवरात्रि की तरह ही इस नवरात्रि में भी नौ दिन का उपवास करते हैं. ऐसे सभी को अभिनंदन और शुभेच्छा (प्रधान मंत्री मोदीजी दोनों नवरात्रि पर उपवास करते हैं).

जो नवरात्रि का उपवास नहीं करते उनके लिए ये बात है. उपवास करने की धार्मिक मान्यता हममें होना अच्छी बात है. लेकिन अगर न हो तब भी इस बार भारत में हर किसी को अपनी अपनी शारीरिक क्षमता और संयोगों को ध्यान में रखते हुए चैत्री नवरात्रि के नौ दिन उपवास करना चाहिए. निराजल उपवास न हो तो कोई बात नहीं. केवल पानी या दूध या जूस पर नौ दिन नहीं टिक सकते हैं अगर ऐसा लगता है तो केवल फल खाकर उपवास किया जा सकता है. यह भी संभव न हो तो एक बार भोजन करने का निश्चय किया जा सकता है. ये भी नहीं हो पाता तो दिन में किसी एक समय का नाश्ता या भोजन छोडा जा सकता है. और अंत में कुछ न हो सके तो नौ दिनों के दौरान पसंदीदा पांच व्यंजनों का त्याग किया जा सकता है.

ये आज का धर्म है. राष्ट्रधर्म है. प्रधान मंत्री ने सरहद पर जाकर युद्ध लड़ने के लिए नहीं कहा. घर में आराम से रहकर राष्ट्रप्रेम दिखाने को कहा है. संभव हो तो नौ के बजाय पूरे इक्कीस दिन तक हमें जैसा अनुकूल लगे उस प्रकार से उपवास करना चाहिए. घर के हर किसी को इसके लिए समझा कर सामूहिक निर्णय लेना चाहिए. घर में खाने पीने का जो कुछ सामान होगा वह लंबे समय तक चलेगा. बाहर निकलने का झंझट नहीं रहेगा और इस चिंता से मुक्ति मिल जाएगी. कामवाली की छुट्टी होगी तो खुद बर्तन धोने कुछ छुटकारा मिल जाएगा. घर में बैठकर नया क्या खाया जाय, क्या खाएं जैसी इच्छाओं से भी मुक्ति मिल जाएगी. सबसे बड़ा कारण ये है कि २१ दिनों तक `हमें घर बैठकर खा पीकर मजा करना है’ ऐसी मानसिकता से छुटकारा मिलेगा.

ये २१ दिन देश के वैकेशन के नहीं हैं. युद्धकाल जैसे, या उससे भी बडे, आपात्कालीन दिन हैं ये.

उपवास का पहला दिन भले ही शुरू हो गया हो. आज ही निर्णय करके कल से अमल लाने की शुरूआत करेंगे तो भी चलेगा. उपवास छोडने का दिन रामनवमी के बजाय १४ अप्रैल रखें तो ज्यादा अच्छा होगा. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहनजी भागवत ने आज सबेरे नागपुर से जो छोटा और सटीक राष्ट्रव्यापी उद्बोधन किया उसमें कहा गया यह वाक्य केवल २१ दिन के लिए नहीं बल्कि, जीवन भर के लिए हृदय में उतार लेना चाहिए: `संकल्प की शक्ति बहुत बड़ी होती है.’

योग्य संकल्प लेने का यही अवसर है, यही दिन है और यही घडी है.

मोदीजी ने कोरोना के बारे में पहले संबोधन में `संयम और संकल्प’ की बात की थी.

राष्ट्रप्रेम जागृत करने के लिए, प्रधान मंत्री के साथ सीधे मौन संवाद साधने के लिए, भोजन का संयम ही आज के समय का संकल्प है.

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