कठिन संयोगों और भयावह कल्पनाओं का कॉम्बिनेशन कैसा होता है

तडकभडक- सौरभ शाह

(संस्कार पूर्ति, `संदेश’, रविवार, २२ मार्च २०२०)

खराब वास्तविक परिस्थिति की तुलना में उस परिस्थिति के बारे में अतिशयोक्ति भरी कल्पनाएं अधिक नुकसान पहुंचाती हैं, ये हम अभी देख रहे हैं. कोरोना वायरस से दुनिया भर में जितने लोगों की मृत्यु हो रही है (या होने की संभावना है) उसकी तुलना में कई हजार या लाख गुना मौतें डायबिटीज, बीपी, हार्ट ट्रबल जैसी अन्य पचास बीमारियों से हुई हैं, होती रहेंगी. इसके बावजूद पिछले कुछ सप्ताह से सभी के दिमाग पर कोरोना का भय छा गया है. ये भय वास्तविक परिस्थिति के बजाय अतिशयोक्ति भरी कल्पनाओं से पैदा हुआ है. कोरोना को अपना काम करने दीजिए, हम अपना काम करते रहें.

आप बीमार होते हैं या व्यवसाय में नुकसान सहते हैं या परीक्षा में फेल होते हैं या नौकरी छोडते हैं या प्रेम टूटता है या प्रियजन की मृत्यु के आघात का अनुभव करते हैं या फिर किसी द्वारा किए गए विश्वासघात का शिकार होत हैं तब आपके लिए सबसे कठिन परिस्थिति पैदा होती है. उस समय आप दिशाहीन हो जाते हैं, उद्विग्न हो जाते हैं. टूट जाते हैं.

लेकिन प्रकृति ने हम सभी को एक अदृश्य शक्ति दी है- ऐसी परिस्थितियों को सहने की. जिन लोगों को इस प्राकृतिक हीलिंग पावर में श्रद्धा है वे समय बीतने के साथ फिर से सामान्य जीवन जीने लगते हैं. लेकिन कई लोग ऐसी कठिन परिस्थितियों से गुजरते समय ऐसी कल्पनाएं करके दिमाग को बंद कर देते हैं कि सालों तक उन्हें इस परिस्थिति द्वारा निर्मित दुख को सहना पडता है. कठिन परिस्थिति से बाहर निकलने के बजाय वे उसमें अधिक से अधिक गहरे उतरते जाते हैं. क्योंकि उन्हें ऐसा डर लगता है कि भविष्य में इससे भी खराब परिस्थिति पैदा होगी. ये डर कल्पना के कारण जन्म लेता है. अगर सचमुच ये कल्पना सच होने वाली होगी तो तब की बात तब देखी जाएगी. अभी तो जो कठिन परिस्थिति पहले से निर्मित हुई है आपको उसका सामना करना है. आज की समस्याओं का समाधान करने के लिए ही आपको अपने तमाम संसंधनों – शक्तियों का उपयोग करना है. लेकिन आप अब भविष्य में क्या होगा, इसकी कल्पना करके डर जाते हैं जिसके कारण आज की समस्या पर आप ध्यान नहीं दे सकते.

कठिन परिस्थिति में की जानेवाली कल्पनाएं भयावह होती हैं. और कठिन परिस्थिति में होनेवाली सुहानी कल्पनाएं भी आपको वास्तविकता से दूर ले जाती हैं. समय जब कठिन चल रहा हो तब कल्पना करने से दूर रहना चाहिए. खराब समय के कारण आर्थिक उलझन खडी हो जाती है तो भविष्य में क्या होगा इसकी कल्पना करके भयभीत होने के बजाय आज की चिंता करनी चाहिए. आज के खर्च की चिंता करनी चाहिए और उसका हल निकालने के लिए सारी शक्तियों का उपयोग करना चाहिए.

भयावह कल्पनाएं हमें सच्चाई से दूर ले जाती हैं. हम हिम्मत हार जाते हैं. जो परिस्थिति पैदा ही नहीं हुई उसे कल्पना में देखते रहते हैं. उसके समाधान की चिंता करते हैं. जो परिस्थिति पैदा ही न हुई हो उसका सामना आप आज कैसे कर सकते हैं? वह तो निर्मित होगी तभी पता चलेगा कि अब उसका सामना कैसे करना है. लेकिन कल्पना के कारण हम इतने भयभीत हो जाते हैं कि उस कल्पना को सच मानने लगते हैं.

अप्रसन्नताजनक या कठोर परिस्थितियों के दौरान कल्पना करना छोड देने में ही हमारी भलाई है. किसी के जाने से जो शून्य निर्मित होता है उसका विकल्प खोजने के बदले आज, इस पल इस शू्न्यावकाश को भरने के लिए क्या करें, यह सोचना है. शेयर बाजार में आज नुकसान हुआ है तो कल्पना करके दुखी होने के बजाय आज इस परिस्थिति का सामना कैसे करना है, यह सोचना चाहिए. सेहत खराब हो जाती है तब ये बीमारी आपको मौत तक पहुंचा सकती है ऐसी भयावह कल्पनाएं करने के बजाय उससे उबरने के लिए इस समय जो कुछ भी करना है उस पर ध्यान देना चाहिए. और शेष काम प्रकृति पर छोड देना चाहिए.

कठिन स्थितियों में मन को खुश करनेवाली गतिविधियां करने में या वैसी कल्पनाएं करने में हम गिल्ट का अनुभव करते हैं. व्यवसाय में हानि होती है तो हिल स्टेशन पर जाकर वैकेशन कैसे मनाएंगे, लोग क्या कहेंगे? पति की अकाल मौत होती है तो कल्पना में किसी खुशहाली भरे आयोजन की इच्छा हो तो भी सोचते हुए हीनता महसूस होती है.

इसी कारण हमारे मन में अच्छे वातावरण के बजाय खराब वातावरण, अधिक से अधिक खराब वातावरण निर्मित होता रहता है. हम खुद ही पैदा करते हैं. दुखी होने पर अधिक दुखी होने का दिखावा करेंगे तो अधिक सहानुभूति मिलेगी ऐसा हमें लगता है. सहानुभूति और दृढ सपोर्ट में जमीन-आसान का अंतर होता है. सहानुभूति देने वाले बातूनी होते हैं लेकिन समय आने पर वे मुंह फेर लेते हैं. ठोस आधार देने की इच्छा रखनेवाले हमेशा आपके आसपास रहते हैं लेकिन कुछ बोलते नहीं और जैसे ही उन्हें पता चलता है कि आपको किसी विषय पर सहयोग की जरूरत है तो तुरंत वे आपके मांगे बिना आपको आवश्यक मदद पहुंचा देते हैं.

हम सब समझते हैं कि जिंदगी में धूप-छांव तो आती रहती है. अच्छे समय में बहुत अधिक सोचने की जरूरत नहीं होती. वो समय ही ऐसा होता है जब अनायास ही सारे पासे आपके पक्ष में गिरते हैं. वह समय ही ऐसा होता है जब आपकी गलती भी हो तो कोई आपको कुछ कहता नहीं. लेकिन कठिन परिस्थितियों में आपको सलाह देनेवाले पता नहीं कहां से उभर आते हैं. बेतहाशा. इन सभी की सीख सुन सुन कर हमारी भयावह कल्पनाएं अधिक काली होती जाती हैं. खराब समय में कल्पनाओं पर तो लगाम लगानी ही चाहिए, सलाह – सीखें देनेवालों से भी दूर रहना चाहिए. कोरोना के समय में विदेश नहीं जा पा रहे हैं तो ठीक है. किसी पास के पर्यटन स्थल पर या समुद्र किनारे पहुंच जाना चाहिए.

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