कचरा माल कबाड में देने के बजाय उसे प्रीमियम भाव पर बेचकर लोगों को ठगने की कला

संडे मॉर्निंग- सौरभ शाह

(मुंबई समाचार, रविवार – ११ नवंबर २०१८)

`गाइड’ के गीतों की बात सप्ताह भर के लिए टाल देते हैं, क्योंकि `ठग्स ऑफ हिंदुस्तान’ जैसी मूवी आपको सोचने पर मजबूर कर देती है कि इस दुनिया में क्या पैसा किसी भी कीमत पर निचोड लेना होता है? लोगों को उल्लू बनाने के उल्टे धंधे जब प्रतिष्ठित कंपनियां करती हैं तो छोटे लोगों पर उसका क्या असर पडेगा?

समाचार है कि अभी तक किसी भी हिंदी फिल्म ने रिलीज के पहले दिन उतनी कमाई नहीं की है जितनी पिछले दशक की सबसे कचरा फिल्म `ठग्स ऑफ हिंदुस्तान’ ने की है. इस भंगार फिल्म ने पहले ही दिन हिंदुस्तान के लोगों से ५० करोड से अधिक रूपए की ठगी करके अपनी जेब भर ली है. जो फिल्म आप पहले बीस मिनट में ही देखकर घर चले जाना चाहें, वह फिल्म लोगों को ठकर सिर्फ मार्केटिंग के बल पर पहले दिन में ही पचास करोड का धंधा कर ले तो इससे यह साबित होता है कि हिंदुस्तान में अब भी ठग लोग बसते हैं जो भोले भाले दर्शकों के गले में रूमाल बांध कर उसमें गांठ लगाते हुए नींद में ही उनकी जेब से टिकट का ड्योढा मूल्य वसूल लेते हैं. ठगों के सरदार जैसे इस फिल्म के डायरेक्टर विजय कृष्णन आचार्य पहले दिन की कमाई देखकर संतुष्ट हो गए हैं कि हिंदुस्तान के लोग कैसे ठग लिए गए और फिर पब्लिकली स्टेटमेंट देते हैं कि `यह फिल्म दोस्तों और परिवार के साथ देखने जैसी है, मसाला एंटेरटेनर है. लोगों ने यह फिल्म देखकर हम पर जो प्रेम बरसाया है उसे देखकर हमें अत्यंत प्रसन्नता हो रही है.’

प्रसन्नता माय फुट. लोगों ने यह फिल्म देखकर बडी बडी सुनाई है आपको. एवरीवन हैज़ फेल्ट बिंग चीटेड बाय यू, लेकिन यहां पर फिल्म के दर्जे के बारे में टिप्पणी नहीं करनी है, लोगों को घटिया माल बेचकर कमाई करने की मानसिकता के बारे में है.

आप फिल्म बनाते हों, रेस्टोरेंट में खाना बेचते हों, मॉल में जूते बेचते हों या फिर किताबें प्रकाशित करते, फ्लैट बेचते हों, कपडे मैन्युफैक्चर करते हों या फिर कोई भी सामान बाजार में उतार रहे हों- आपको पता होता है कि आपने कैसा माल बनाया है. मैन्युफैक्चरर खुद या वह माल बेचनेवाला डिस्ट्रिब्यूटर, होलसेलर, एजेंट या फिर सेल्समैन- इनमें से हर व्यक्ति अच्छी तरह से जानता है कि वे जो बेच रहे हैं उस माल की गुणवत्ता कैसी है. ऊंची क्वालिटी के माल के ज्यादा पैसे लेकर तेजी से कमाई करने का तरीका अपनाना हो तो भले अपनाएं. मैं नहीं मानता कि ऐसी नीति लंबे समय तक चलेगी, लेकिन इस मामले में हम कई बार गलत साबित हुए हैं. एप्पल के आई फोन या कंप्यूटर्स की क्वालिटी शानदार होती है इसमें कोई संदेह नहीं है लेकिन उनकी कीमत उस क्वालिटी प्रोडक्ट के लिए जितनी होनी चाहिए उससे काफी ज्यादा होती है. ऐसा ही कपडों, शुज़, फ्रैगरेंसेस, कार जैसी कई वस्तुओं में होता है लेकिन कीमत आसमानी होती है जो मिडल क्लास के लिए `कॉस्टली’ और अपर क्लास के लिए `एक्सपेंसिव’ होती है. ऐसी नीतियों को हम भले न मानते हों (मेरा मानना है कि अपना क्वालिटी माल रिजनेबल भाव पर ही बेचना चाहिए, छप्पर फाडकर उसकी कीमत नहीं लेनी चाहिए), लेकिन दूसरे लोग इस विचारधारा से यदि सफल होते हैं तो ये उनका मामला है, हमें इस बारे में उन्हें ज्ञान देने के लिए नहीं जाना चाहिए.

आपत्ति उन लोगों से है जो कचरा माल बनाने के बाद उसे कबाड में डालने के बजाय उस पर मोहक पैकिंग करके उसे मार्केटिंग डिस्ट्रिब्यूशन तथा गुडविल के बल पर प्रीमियम भाव पर बेचने में सफल हो जाते हैं, जैसा कि `ठग्स ऑफ हिंदुस्तान’ में हुआ है. असल में ऐसा ट्रेंड बाजार में गलत उदाहरण पेश करता है. आपने कमजोर माल बनाया हो तो नुकसान सहकर उस माल को कम भाव में बेचकर अच्छा माल बनाने के लिए मेहनत करनी चाहिए, नया सिस्टम लागू करना चाहिए, नए टैलेंटेड लोगों से काम कराना चाहिए. इसके बजाय हम कैसा उदाहरण पेश करते हैं? माल बदतर है? कोई बात नहीं, थोडा पैसा और डालकर जोरदार मार्केटिंग करो. मार्केटिंग के पैसे रिकवर करने के लिए उस माल की कीमत बढाकर उसकी ऐसी पहचान खडी करो जैसे वह प्रीमियम माल है. लोग तो ठगाने वाले ही हैं. बाजार में अच्छे माल की बिक्री रोककर अपना घटिया माल प्रीमियम भाव बेच दो. ऐसी मानसिकता से कि बहु बडा नुकसान हो रहा है. `बधाई हो’ जैसी सुपर्ब फिल्म धुआंधार चल रही थी जो कई स्क्रीन्स पर से उतर गई और जिसका धंधा ठगों ने छीन लिया. `बधाई हो’ जैसा माल बनाने वाले किसी भी बाजार के टैलेंटेड लोगों का व्यवसाय ठग लोग छीन ले जाते हैं तब एक और बडा नुकसान होता है. भविष्य में माल बनाने वाले माल की क्वालिटी की बिलकुल चिंता नहीं करेंगे, आपको पता है कि क्वालिटी अगर ठगों के बनाए गए माल जैसी `सी’ ग्रेड की होगी तो भी हम मार्केटिंग, मोनोपोली और वितरण के बल पर मलाई निकाल ही लेंगे. यह बहुत ही भयंकर उदाहरण पेश करता है.

जब पैसा ही परमेश्वर बन जाता है और आप पैसे के दास बन जाते हैं तब क्या परिणाम निकलता है यह आपने `ठग्स ऑफ हिंदुस्तान’ के उदाहरण से देख लिया है. अब यह आपको तय करना है कि जिंदगी में आपको क्या करना है: लोगों के गले में एक खास रंग का रुमाल डालकर उसकी गांठ बांधने का धंधा करना है या फिर ऐसा काम करना है कि आपका माल अच्छा लगने के बाद लोग आपको `बधाई हो’ `बधाई हो’ कहकर दौडते हुए आपके पास आएं. अगले हफ्ते `गाइड’ के गीतों की शेष बात.

आज का विचार

पोस्टर चिपकानेवाला भी कैसा गजब ढा गया….कांग्रेस के सारे नेताओं के बंगले के बाहर `ठग्स ऑफ हिंदुस्तान’ का पोस्टर चिपका गया.

– वॉट्सएप पर पढा हुआ

संडे ह्यूमर

बका: मेरी पेन ड्राइव को अब कांग्रेस का टिकट मिल सकता है.

पका: पेन ड्राइव को? कैसे?

बका: वो करप्ट हो गई है.

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