क्लास और मास: लोकप्रियता और गुणवत्ता

गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह

(मुंबई समाचार, गुरुवार – १५ नवंबर २०१८)

क्या लोकप्रियता कोई चीप, छिछली चीज है? और क्या जो बात बहुजन समाज यानी कि मासेस तक, आम जनता तक नहीं पहुंचती है लेकिन कुछ इनेगिने लोगों तक पहुंचती है वह बात अपने आप ऊँचे दर्जे की हो जाती है? क्लास बन जाती है?

इन दोनों मुद्दों के एक से अधिक पहलू हैं. जो लोग कला में यानी साहित्य-संगीत-चित्रकला-नृत्य-फिल्म-नाटक- व्यंग लेखन इत्यादि में लोकप्रिय नहीं हो सकते वे लोकप्रियता को नीचे गिरा देते हैं. जो लोग इन क्षेत्रों में लोगों की सराहना पा रहे हैं वे चीप काम कर रहे हैं ऐसा मानते हैं और दूसरों को मनवाने की कोशिश करते हैं.

पहली बात को यह समझनी चाहिए कि क्वालिटीवाला काम भी लोकप्रिय हो सकता है, लेकिन जो कुछ भी लोकप्रिय होता है वह सारा ही काम क्वालिटीवाला हो ये जरूरी नहीं है. यानी घटिया दर्जे का काम भी लोकप्रिय होता है. फिर से कहता हूं, जो कुछ भी लोकप्रिय होता है वह सारा ही घटिया दर्जे का नहीं होता. निष्कर्ष यह निकालना चाहिए कि लोकप्रियता पानेवाले रचनाकार दो तरह के होते हैं- एक, क्वालिटी काम करनेवाले और दो, घटिया काम करनेवाले.

अब उसके सामने के सिरे पर जाकर देखते हैं. जो लोग लोकप्रिय नहीं होते, केवल इने गिने लोगों में ही पूछे जाते हैं, वे सब क्या अपने क्लासी हैं ऐसा कहा जा सकता है? उनकी गुणवत्ता इतनी ऊँची है कि आम जनता की पहुंच से भी ये बाहर की बात होती हैं, ऐसा सर्टिफिकेट ऐसे लोगों को अपने आप मिल जाता है? नहीं. इस कैटैगरी में भी घटिया काम करनेवाले होते हैं. शायद लोकप्रियतावाली श्रेणी की तुलना में यहां पर पर्सेंटेज के हिसाब से देखें तो अधिक लोग कचरापट्टी काम करते हैं और जब उनके `सी’ ग्रेड काम की लोग आलोचना करते हैं तब वे गिरे फिर भी टांग ऊपर की तर्ज पर कॉलर ऊँचा करके घूमते हुए कहते रहते हैं कि बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद?

जिन लोगों को क्वालिटी काम करना नहीं आता उनके इस कमजोर काम के कारण वे बहुत अधिक लोगों तक नहीं पहुंच सकते ऐसे साहित्यकार, नाटककार, फिल्मकार इत्यादि लोग लोकप्रियता का अस्वीकार करते रहते हैं, लोकप्रियता तो चीप मीन्स से- छिछले काम करके ही पाई जा सकती है, ऐसा भ्रम फैलाते रहते हैं.

पर हमने देखा है कि अच्छा -ऊंचे दर्जे का काम करके अपार लोकप्रियता पाई जा सकती है. अब इसका गलत लाभ कौन लेता है? ऐस लोग जो छिछले-चीप काम करते लोकप्रियता पाते हैं. वे अपनी लोकप्रियता की तुलना क्वालिटेटिव काम करनेवालों से करने लगते हैं और मानने लगते हैं कि हम दोनों एक समान हैं. हृषिकेश मुखर्जी और डेविड धवन दोनों आदरणीय रचनाकार है, दोनों ही लोकप्रिय हैं लेकिन दोनों का दर्जा या गुणवत्ता एक जैसी नहीं है, यह समझने योग्य है. तेरे बिना ज़िंदगी से शिकवा और चार बज गए फिर भी पार्टी अभी बाकी है- दोनों गीत लोकप्रिय हैं और दोनों के रचनाकारों को सलाम है लेकिन दोनों की गुणवत्ता समान नहीं है. शरत्‌चंद्र के उपन्यास और गुलशन नंदा के उपन्यास दोनों ही लोकप्रिय हैं और दोनों ही ऊँची श्रेणी के लेखक हैं लेकिन दोनों की कक्षा समान नहीं है. आप ऐसे कई उदाहरण सृजन या कला के क्षेत्र में दे सकते हैं.

उसी प्रकार जो लोग लोकप्रिय नहीं हैं, मासेस के लोग नहीं हैं ऐसे सभी रचनाकारों की रचना एकसमान स्तर की नहीं होती. इनमें से कई रचनाकार सचमुच ऊँचे दर्जे की रचना कर गए हैं लेकिन कई कारणों से लोकप्रिय नहीं हुए. इमनें से अन्य कई रचनाकार बिलकुल साधारण दर्जे की रचना कर गए और लोगों तक वाजिब रूप से नहीं पहुंच सके. चूंकि ऐसे दोनों ही प्रकार के रचनाकार लोकप्रिय नहीं हुए इसीलिए दोनों की रचनाएँ समान स्तर की हैं ऐसा कहकर दोनों की सराहना (या आलोचना) नहीं की जा सकती. प्रशंसा उन्हीं की होती है जिनकी गुणवत्ता ऊँचे स्तर की है.

हमारी आस-पास की दुनिया में क्लास और मास के बीच की गुणवत्ता को केवल लोकप्रियता के मापदंड पर तौला जाना गलत है. जो लोकप्रिय है वह सारा चीप है ऐसी उक्ति किसने प्रचलित की है? वही लोग जो खुद को क्लास मानते हैं और निचले दर्जे की रचना करते हैं.

कला के तमाम माध्यमों में होनेवाली रचना को परखने का मापदंड केवल लोकप्रियता नहीं हो सकती, लोकप्रियता में गुणवत्ता भी शामिल होनी चाहिए. और साथ ही साथ, जो लोकप्रिय नहीं है वह सारी रचना ऊँचे दर्जे की है, आम जनता की समझ से बाहर की है, क्लास की है ऐसा भी नहीं मानना चाहिए. नाटक की भाषा में कहें तो पृथ्वी में मंचित होनेवाली हर चीज ऊँचे दर्जे की होती है और भाईदास में पेश की जानेवाली सारी रचना निम्न कोटि की होती है, ऐसा मानकर नहीं चलना चाहिए.

इस बारे में सोचने का मन इसीलिए हुआ कि`….आणि डॉ. काशीनाथ घाणेकर’ फिल्म में एक लाइन आती है: तालियां तो मां सरस्वती का दिया शाप हैं ऐसा माना जाता है.

इस बात से आपका विश्वासपात्र सहमत है और सहमत नहीं है. यह स्पष्ट विचार मेरे अपने मन में उभरा जो मैने आपके साथ साझा किया है.

आज का विचार

बहुत कम लोग हैं जो लिखते हैं,

और अधिकांश लोग लिख-लिख करते हैं.

– हर्ष ब्रह्मभट्ट

एक मिनट!

६० वर्ष का करोडपति बका २५ वर्ष की पत्नी को लेकर बार में आया.

पका: अरे, बका इतनी कम उम्र की वाइफ तुझे कैसे मिली?

बका: मैने उसे अपनी गलत उम्र बताई.

पका: तूने ४५ कही होगी?

बका: नहीं, ९०!

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