छह दिसंबर से पांच अगस्त तक की यात्रा

गुड मॉर्निंग: सौरभ शाह

(newspremi.com, सोमवार, ३ अगस्त २०२०)

“एक मंदिर बनाने को मिला है तो इसमें इतना होहल्ला क्यों? देश को मंदिरों की नहीं, अस्पतालों, लायब्रेरियों और स्कूलों की ज्यादा जरूरत है. आपका धार्मिक अंधविश्वास देश को उन्नीसवीं सदी में धकेल देगा. शिक्षा और आरोग्य सुविधाओं के बल पर देश इक्कीसवी शताब्दि में आगे बढेगा. इसीलिए भारत की धर्मांध जनता को सभी के साथ घुल मिलकर रहना सीखना चाहिए.”

अवतरण चिन्हों के बीच लिखे वाक्य किसी एक व्यक्ति के नहीं हैं बल्कि `सेकुलर’ के नाम से पहचानी जानेवाली एक पूरी प्रजाति के हैं. इस वर्ग ने भारत के हिंदुओं को किस तरह से लताड़ा है इसका हाल के सारा इतिहास आंखों के सामने अभी तैर रहा है. हिंदू होना, हिंदू होने के लिए गौरव का अनुभव करना. हिंदुत्व की परंपरा का अनुसरण करना और हिंदू आस्था की बातें करना- ये सब अभी कल तक पिछडा हुआ, गंवार, निरक्षर और अंधविश्वासी जनता के लक्षण माने जाते थे, आपका हर तरफ मजाक उडाया जाता था, वर्क प्लेस में आपके साथ भेदभाव किया जाता था, सरकारी फायदों की छास मथ मथ कर ऊपर आनेवाला मक्खन सब कुछ ये लोग लेकर जाते थे और आपके हिस्से खड्डी छास ही आती थी, ऐसा वातावरण पंद्रह अगस्त १९४७ की मध्य रात्रि से लेकर छह दिसंबर १९९२ तक था.

करीब पौने पांच शताब्दि तक राम जन्मभूमि की छाती पर खडी की गई इस अपवित्र मस्जिद को हिंदुस्तान की जनता ने सहन किया

छह दिसंबर के रविवार को दोपहर पौने तीन बजे के आस-पास, अयोध्या की राम जन्मभूमि पर रहे ऐतिहासिक मंदिर को तोड कर बाबर के हुक्म से सरदार मीर बांकी ने उस पर जो तीन गुंबद वाली मस्जिद बनाई थी उसका एक गुंबद कुदाल, छड़ों और घन से जमीनदोस्त करके इतिहास रचा. करोडों हिंदुओं की आंख में खुशी के आंसू उमड़ आए (इन करोडों में एक आपका यह विश्वासपात्र भी था). सेकुलर्स के पेट में मरोड़ उठने लगी. (इस सेकुलर टोली में पाठकों द्वारा “मौलाना नगीनदास संघवी’ के रूप में पहचाने जानेवाले और जिन्होंने हाल ही में १०१ वर्ष की भव्य आयु में जीवनलीला समाप्त की ऐसे पद्मश्री संघवी साहब भी थे).

१५२८-२९ से १९९२. ज़रा गिनिए तो कितने साल हुए. करीब पौने पांच शताब्दि तक राम जन्मभूमि की छाती पर खडी की गई इस अपवित्र मस्जिद को हिंदुस्तान की जनता ने सहन किया और उस रविवार को दोपहर पौने तीन बजे से शुरू करके शाम होने से पहले, सारी सहनशीलता को दरकिनार कर जागृत हिंदुओं ने अपना खून बहाकर बाबरी ढांचे के तीनों गुंबद तोड़ दिए. एक नए युग का आरंभ हुआ.

इस नए युग को सात दिसंबर को अंग्रेजी अखबारों, सेकुलर पत्रकारों और हिंदू द्वेषियों ने किस तरह से `सराहा’? ये सारा हाल के इतिहास अखबारी पन्नों में सुरक्षित है. `इंडिया टुडे’ जैसी अग्रणी और आदरणीय मानी जानेवाली पत्रिका ने इस घटना को `काला टीका’ बताकर लिखा कि अब इस जमीन पर शौचालय बनाया जाना चाहिए. भारत की जनता को जिन जिन अखबारों और पत्रकारों के प्रति आदर था ऐसे टाइम्स ऑफ इंडिया, हिंदुस्तान टाइम्स, इंडियन एक्सप्रेस, स्टेट्समैन, हिंदू, टेलीग्राफ इत्यादि ने और खुशवंत सिंह से लेकर विनोद मेहता तक प्रथम पंक्ति के पत्रकारों ने भी बाबरी के नाम से विधिवत अलोचना शुरू की और इन सभी की कलमें हर दिन बाबरी के नाम से रूदालियां गाने लगीं.

हिंदू कुछ समय के लिए भौंचक्के रह गए. क्या हमने कुछ गलत किया है? इस देश की एकता और अखंडता को खतरे में डालने जैसा कोई काम किया है हमने? सचमुच राम जन्मभूमि पर अब तो `इंडिया टुडे’ वालों का कहा मानकर शौचालय बनाया जाएगा जहां ये सेकुलर्स जुटकर एक और दो नंबर करेंगे? क्या हम अंधविश्वासी हैं? देश को पिछडा बनाना चाहते हैं? क्या हम अलगाववादी है? हमें आपस में या अन्य वर्गों के साथ हिलमिल कर रहना नहीं आता? हम असहिष्णु हैं? हम जुनूनी हैं? हम अनपढ़, गंवार, पिछडे हुए हैं? हम कौन हैं?

हिंदुओं ने सेकुलर्स की राजनीतिक-सामाजिक-अखबारी-आर्थिक-शैक्षिक ईको सिस्टम में सेंध लगाकर जांचा कि सत्य क्या है?

उस समय देश का वातावरण ही ऐसा था (नहीं, ऐसा वातावरण कांग्रेसियों द्वारा बनाया गया था) कि देश की बहुसंख्यक जनता के मन में अपने लिए ऐसे दर्जनों सवाल पैदा होने लगे.

छह दिसंबर १९९२ के रविवार से लेकर पांच अगस्त २०२० का बुधवार. करीब पौने तीन दशक तक कांटों के पथ पर यात्रा जारी रही. इस दौरान उन दर्जनों सवालों के जवाब तलाशने की प्रक्रिया चली. बाबरी का सदियों पुराना और भगवान राम का सहस्त्राब्दियों पुराना इतिहास सुलझाया गया. धीरे धीरे और क्रमश: हिंदुओं ने सेकुलर्स की राजनीतिक-सामाजिक-अखबारी-आर्थिक-शैक्षिक ईको सिस्टम में सेंध लगाकर जांचा कि सत्य क्या है? राम जन्मभूमि की खुदाई में मिले अवशोषों ने और वामपंथियों द्वारा लिखे गए इतिहास में ढंक चुके प्रमाणों ने हिंदुओं को समझाया, उनके सामने साबित किया कि अयोध्या का राम मंदिर केवल एक मंदिर नहीं है, भारत की हजारों साल पुरानी संस्कृति का, भारत की सनातन परंपरा का प्रतीक है. इस देश को स्कूलों, पुस्तकालयों, अस्पतालों (और शौचालयों) की जितनी जरूरत है उससे अधिक जरूरत अयोध्या में राम मंदिर बनाए जाने की है. क्यों? जरा शांत चित्त से इसका विवेचन करते हैं.

देश की समृद्धि को इस देश के दुश्मन लूटते रहे. समाजवाद के नाम पर, गांधीवाद के नाम पर और सेकुलरवाद के नाम पर वामपंथी, कांग्रेसी और अन्य हिंदू द्वेषी मुस्लिम परस्ती करते रहे. अपनी जेबें भरकर छलकने के बाद मुस्लिम जनता को बिस्किट के दो टुकडे डालकर उन्हें छटपटाने के लिए छोड दिया और फिर हिंदू जनता के लिए- इस देश की ८५ प्रतिशत जनता के लिए उनके पास कुछ बचता ही नहीं था.

अस्पताल, पुस्तकालय, स्कूल (और शौचालय) तो जाने दीजिए अच्छी सडक बनाने के चलिए पैसे नहीं होते थे. पीने-उपयोग में लाए जानेवाले पानी की सुविधा देने के लिए सरकारी तिजोरी में पैसे नहीं रहते थे. देश के लाखों गांवों में बिजली पहुंचाने के लिए या हजारों नगरों में नियमित बिजली आपूर्ति करने के लिए ढांचागत सुविधाएं खडी करने के लिए सरकार के पास पैसे नहीं थे. कर-उपकर जमा करते हुए और जीवन-विमान-तोप-चारा सहित हर सरकारी खरीदारी में करोडो का कमिशन अपनी जेब में भरने में मग्न भारत के शासक हिंदुओं के जले पर नमक लगाते हुए खुल कर घोषणा करते और `टाइम्स ऑफ इंडिया’ जैसे अखबार फ्रंट पेज पर आठ कॉलम के शीर्षक छापते: `इस देश के संसाधनों पर पहला हक मुसलमानों का है.’

सच्चर कमिटी ने बदमाशी भरी रिपोर्ट देकर सोनिया गांधी की गोद में खेलनेवाले पिल्लों की तरह जिनकी हालत थी ऐसे देश के आदरणीय प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने बावनवीं नेशनल डेवलपमेंट काउंसिल को संबोधित करते हुए ये शब्द कहे थे जो ९ दिसंबर २००६ को टाइम्स ऑफ इंडिया में छपे थे.

सोनिया सरकार की ओर से प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने अगले साल, मार्च २००५ में, दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस राजिंदर सच्चर के नेतृत्व में सात सदस्यों की एक हाई लेवल कमिटी बनाई थी. इस देश में मुसलमानों की आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक हालत कैसी है इसकी जांच करके सरकार को रिपोर्ट सौंपने की जिम्मेदारी इस समिति की थी. ४०३ पेज की रिपोर्ट ३० नवंबर २००६ को सरकार को सौंपी गई. इसके दसेक दिन में जो सदा मौन रहा करते थे ऐसे मौनी बाबा ने आम सभा में कहा: इस देश के संसाधनों पर सबसे पहला हक मुसलमानों का है.

इन्हीं शासकों ने आजादी के बाद दशकों तक देश की जो आर्थिक हालत की है वह अब भी जारी रही होती – अगर उनका सफर २०१४ में नहीं रोका गया होता. ये सफर किसने रोका? हमने रोका. हम यानी कौन? हम यानी भगवान राम में, सनातन संस्कृति में, इस देश की परंपरा में आस्था रखनेवालों ने. हम यानी जिन्हें सदियों से अन्य वर्गों को संभाल कर रखना आता है, उनके साथ हिलमिल कर रहना आता है. इन अन्य वर्गों में पारसी और यहूदी से लेकर इसाइयों और मुसलमानों तक सभी शामिल हैं. जिस समाज ने इस देश की परंपरा का आदर किया है, इस देश की मूल जनता के संस्कारों को दूषित नहीं किया है, उनके साथ हमारा कभी संघर्ष नहीं हुआ. बौद्ध, सिख और जैन धर्म तो हिंदू धर्म के ही चचेरे-मौसेरे भाई हैं. उनके साथ कभी कोई लडाई झगडा नहीं हुआ. पारसी और यहूदी सही अर्थ में दूध में शक्कर की तरह मिल गए हैं. इसाई और इस्लाम को माननेवाले कई लोग अपने धर्मगुरुओं के कारण, उनके राजनीतिक नेताओं के कारण और विदेशों से आने वाली आर्थिक मदद के साथ किए जा रहे उकसावे के चलते कभी छोटी तो कभी बहुत बडी खिट पिट करते आए हैं. लेकिन अब उनके सिर पर कांग्रेस का छत्र नहीं रहा. २०१४ में ये आश्रय छिन गया. अब वे सचमुच में `राम भरोसे’ हो गए हैं. अब उन्हें कांग्रेस की तानाशाही के शरण में जाने की जरूरत नहीं है, ये बात उनकी समझ में आ चुकी है.

अयोध्या में परसों जिसका विधिवत, आधिकारिक, कानूनी अनुमति से और सभी की सहमति से शिलान्यास होने जा रहा है वह राम मंदिर सिर्फ मंदिर नही है, देश के परम वैभव का प्रतीक है. देश की समृद्ध संस्कृति का उज्ज्वल पक्ष है. देश की सर्व व्यापी ज्ञान-भक्ति परंपरा का मूर्त रूप है. देश की सामाजिक समरसता का दुनिया भर में ऐलान करनेवाला भगवा ध्वज है.

आज का विचार

कभी जीवन में ऐसा दौर आता है जब हमें बुद्धिमानी की नहीं साहस की जरूरत होती है.

– अज्ञात

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