गुड मॉर्निंग: सौरभ शाह
(newspremi.com, ५ अगस्त २०२०)
`बुजुर्गों’ से सुना है और पढ़ा है कि इस देश को आज़ादी सस्ते में नहीं मिली है. खूब संघर्ष किया गया है, खूब रूकावटों का सामना किया है.
अंग्रेजों से आजादी कैसी हासिल की गई उसका कांग्रेसी इतिहास इस देश की पांच-सात पीढियों को पढ़ाया गया है और सभी ने मान लिया है कि गांधीजी ने अहिंसा और सत्याग्रह के मार्ग से आजादी दिलाई-बिना खड्ग बिना ढाल. वीर सावरकर और सुभाषचंद्र बोस से लेकर भगत सिंह सहित हजारों क्रांतिकारियों को हाशिए पर धकेल कर लिखे गए इस साम्यवादी-गांधीवादी कांग्रेसवादी इतिहास ने देश की जनता का भला करने के बजाय बिलकुल अतिशयोक्ति भरी और कभी कभी तो बिलकुल झूठी बातें हम सभी के मन में घुसाई हैं. ऐसा राम मंदिर के इतिहास के बारे में नहीं होना चाहिए. क्योंकि अब तो इसाई माता और इसाई से विवाहित बनावटी गांधी प्रियंका भी भगवा शॉल ओढकर बिंदी लगाकर रुद्राक्ष धारण करके राम नाम बोलते हुए ट्विटर पर ट्रेंड होने लगी है.
भारत के लिए आजादी के बाद का सबसे बडा दिन आज है- पांच अगस्त २०२०. थोडे अलग तरह से बात करते हैं. १५ अगस्त १९४७ को जिस तरह से आजादी मिली, उसी तरह से इस देश को ६ दिसंबर १९९२ को बाबरी ढांचा जिसका प्रतीक था उस सेकुलरवाद से आजादी मिली. और २६ जनवरी १९५० के दिन की जिस तरह से भारत गणतंत्र राष्ट्र बना (आजादी मिलने के बाद देश में सैनिक शासन, तानाशाही इत्यादि जैसी कोई शासन पद्धति भी आ सकती थी लेकिन ऐसा नहीं होकर देश में संसदीय लोकतंत्र आया जिसके लिए दो-तीन साल तक संविधान गढा जाता रहा और देश में प्रजा तंत्र आया). ६ दिसंबर १९९२ को दूसरी आजादी का दिन मान लिया जाय तो ५ अगस्त २०२० को दूसरा प्रजासत्ताक माना जा सकता है. आज से यह देश हिंदुओं का देश है. देश में रहनेवाली १३८ करोड की जनता चाहे किसी भी धर्म का पालन करती हो, किसी भी भगवान में आस्था रखती हो, लेकिन इस भूमि को जो लोग अपनी मातृभूमि मानते हैं, वे सभी हिंदू हैं, यह बात देश के नागरिकों के सामने ही नहीं, बल्कि सारी दुनिया के सामने स्थापित हो रहा है. जैसे अमेरिका का नागरिक अमेरिकन कहलाता है उसी तरह से हिंदुस्तान का नागरिक भी हिंदू कहलाता है. इंडिया नाम तो विदेशियों ने हमें अपमानित करने के लिए दिया है. भारत नाम स्वीकार्य है और भारत वर्ष में रहनेवाला हर नागरिक भारतीय परंपरा (यानी वैदिक, सनातन हिंदू परंपरा को) का आदर करता है इसीलिए उसे भारतीय कहा जाता है. ऐसे तो भारतीय और हिंदू के बीच कोई फर्क नहीं है- मेरी दृष्टि से.
अयोध्या का राम मंदिर देश की बदली हुई राजनीतिक आबोहवा का भव्य प्रतीक है.
पंद्रह अगस्त और छब्बीस जनवरी जितना ही महत्व छह दिसंबर और पांच अगस्त का है. शायद अधिक ही है. क्योंकि पंद्रह और छब्बीस के कारण देश को केवल गुलामी से मुक्ति मिली थी और हम पर हमारा ही राज्य हो, इस प्रकार की व्यवस्था बनी थी. जबकि छह और पांच के कारण जनता को धुंधली हो चुकी प्रतिमा वापस मिली है. अपने देश की समृद्धि इस देश को पराया माननेवालों पर लुटाने के लिए नहीं है, ऐसी दृढ प्रतीति इन दो पवित्र तारीखों ने कराई है. देश का सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, शैक्षिक और धार्मिक -आध्यात्मिक अस्तित्व और भविष्य इन्हीं दो तारीखों ने सुनिश्चित किया है, पुरजोर किया है.
अयोध्या का राम मंदिर देश की बदली हुई राजनीतिक आबोहवा का भव्य प्रतीक है. जिस देश में हिंदुओं को कट्टर और असहिष्णु (और सोनिया के राज में तो आतंकवादी) के रूप में चित्रित किया जाता रहा, उस देश उसी देश में अब हिंदू संस्कृति का सही अर्थों में सम्मान हुआ है- आज से.
अयोध्या में राममंदिर के विधिवत शिलान्यास की आज की तारीख घोषित होते ही तुरंत राम मंदिर बनाने में मेरी हिस्सेदारी कितनी बडी थी, इसका प्रचार करनेवाले उठाईगिरे निकल पडे हैं. दिग्विजय सिंह जैसे थर्ड ग्रेड कांग्रेसी ने किसी जमाने में राम मंदिर का विरोध किया था, हिंदू आतंकवादी है, इसके बनावटी सुबूत खडे करने में मदद की थी, वह दिग्विजय सिंह कहने लगे हैं कि राम मंदिर का शिलान्यास तो हो चुका है- राजीव गांधी के जमाने में!
राम के नाम से पत्थर तैराने की कोशिश करनेवाले ऐसे अनेक लोग अब सामने आएंगे. राम, राम जन्मभूमि और हिंदुत्व की बहती पवित्र गंगा में हाथ धोने के लिए चेतन भगत जैसे अनगिनत भूतपूर्व सेकुलरवादी आतुर हैं. हिंदुत्व को हडपने की होड मची है. चेतन भगत इस जमात के एकमात्र सदस्य नहीं हैं. ऐसे दो मुंहें लोग यत्रतत्र सर्वत्र हैं. ऐसे दोमुहों का एक ही काम होता है. कोई भी मामला हो तो – दो बातें पक्ष में लिखते/बोलते हैं तो दो बातें विरोध में लिखते हैं. ऐसे करने से दो लाभ होते हैं ऐसे दोमुंहे लोगों को. जिस समय दोनों तरफ की बातें बोली/लिखी जाती हैं, उस समय भोले भाले पाठक-श्रोता इन अवसरवादी लोगों को `तटस्थ’ और `निरपेक्ष’ मानकर सिर पर चढा लेते हैं. और भविष्य में जब उस विषय के बारे में आगे चर्चा चलती है तब हवा जिस तरफ बहती है, उसी तरफ की बात वे अपने आर्काइव्स में से निकालकर आपको `प्रमाण’ देते हैं- देखो मैने तो पहले ही इस बात का समर्थन किया था. या- देखो मैं तो उस जमाने से ही इस बात का विरोधी हूं.
जनता ऐसे लोगों की कुंडली निकालने नहीं जाती इसीलिए ये उठाईगिरो-धूर्त लोग सम्माननीय बनकर पूजे जाते रहते हैं. खुद के साथ छल करनेवाले लोग आपके साथ भी छलने का धंधा करते हैं.
आज कल ऐसे `हिंदूवादी’ लोगों की दुकान भी खूब चल रही है.
लेकिन आज के दिन उनके बारे में अधिक लिखकर आनंद मंगल वातावरण को बिगाडना नहीं चाहिए. पांच अगस्त के आज के ऐतिहासिक दिन को मनाते समय राम स्वरूप और सीताराम गोयल, डेविड फ्राउली और कोनराड एल्स्ट से लेकर अरुण शौरी तथा सुब्रमण्यम स्वामी तथा अपने घर के हसमुख गांधी और वीरेंद्र पारेख तक सभी दर्जनों वरिष्ठ लेखकों-पत्रकारों को वंदन करके बौद्धिक जगत में उनके द्वारा फैलाई गई जागरूकता का दमदार योगदान याद करना चाहिए.
साधु संतों और प्राचीन-अर्वाचीन ऋषि मुनि नहीं होते तो साम्यवादी और सेकुलरों के कंधे पर चढकर कांग्रेसी इस देश के टुकडे करके कब का बेच चुके होते.
सामाजिक तथा राजनीतिक क्षेत्र में स्वामी विवेकानंद और सरदार वल्लभभाई पटेल से लेकर नरेंद्र मोदी, अशोक सिंघल, वाजपेयीजी-आडवाणीजी-उमा भारतीजी, मोहन भागवत और प्रवीण तोगडिया तक सैकडो नेता, हजारों कार्यकर्ता तथा उनके लाखों समर्थकों का वंदन करना चाहिए.
साधु संतों और प्राचीन-अर्वाचीन ऋषि मुनि नहीं होते तो साम्यवादी और सेकुलरों के कंधे पर चढकर कांग्रेसी इस देश के टुकडे करके कब का बेच चुके होते. वेद व्यास और तुलसी से लेकर आधुनिक समय में स्वामी रामदेव, श्री श्री रविशंकर, सद्गुरू जग्गी वसुदेव, मोरारी बापू सहित अनेक पंथों-संप्रदायों- भारतीय धर्मों के अनगिनत आदरणीय महापुरुषों के कारण इस देश में वैदिक, सनातन, हिंदू संस्कृति टिकी रही है, समृद्ध हुई है.
आज के इस पावन दिन पर यहां वर्णित तथा उनके अलावा जो भी याद आ रहे हों उन सभी हिंदुत्व के प्रहरियों ने देश की मिट्टी के साथ अपना रक्त-पसीना एकरूप करके तन मन धन से जिस वटवृक्ष का जतन किया है, उसकी शीतल छाया में बैठकर पिकनिक मनानी है. और उत्सव मनाते हुए ऐसा विचार करना है कि इस वटवृक्ष के जतन के लिए मैं क्या कर सकता हूं? भविष्य में कोई कांग्रेसी कुल्हाडी लेकर आ जाय तो इस वृक्ष की रक्षा कैसे करनी है?
इस देश के लिए अब मरना नहीं है, जीना है. मरना होगा तो वे लोग मरेंगे जो इस देश की संस्कृति को विकृत करके देश के साथ गद्दारी करना चाहते हैं.
अयोध्या की राम जन्मभूमि पर निर्मित हो रहे राम मंदिर का इतिहास देश की हजारों साल की संस्कृति का इतिहास है. स्वतंत्रता की लडाई का इतिहास तो कुछ ही दशकों का है, कुछ ही सदियों का इतिहास है. आज जो रचा जा रहा है वह इतिहास के मूल में सहस्त्राब्दियों तक लेकर जाता है. इसीलिए पंद्रह अगस्त और छब्बीस जनवरी जितना ही महत्व छह दिसंबर और पांच अगस्त का है. शायद उससे भी अधिक.
इसीलिए राम जन्मभूमि पर आज का अवसर आने से पहले यह देश किस तरह की विकट परिस्थितियों से गुजर चुका है, इसकी जानकारी प्राप्त करेंगे तो ही आगे चलकर अपनी नई पीढी से कह सकेंगे कि इस देश को राम मंदिर कोई सस्ते में नहीं मिला, खूब संघर्ष करना पडा है, खूब तकलीफों का सामना करना पडा है.
आज का विचार
अन्य लोग आपके बारे में क्या मानते हैं, वह जाने दो. आप अपने बारे में क्या मानते हैं, वह महत्वपूर्ण है.
-अज्ञात