आधार, अडल्ट्री और राम जन्मभूमि

संडे मॉर्निंग – सौरभ शाह

(मुंबई समाचार, रविवार – ३० सितंबर २०१८)

सुप्रीम कोर्ट की बेंचों ने पिछले सप्ताह में एक के बाद एक लैंडमार्क जजमेंट दिए हैं. भारत के ४५वें मुख्य न्यायाधीश ३ अक्टूबर को ६५ साल के होने पर अपना कार्यकाल पूर्ण करेंगे. चीफ जस्टिस जिस जिस बेंच के सदस्य होते हैं उस बेंच द्वारा जिन मामलों की सुनवाई होने के बावजूद उनका फैसला जीफ जस्टिस के कार्यकाल में नहीं आता है तो उस हर केस की सुनवाई नई बेंच को दोबारा करनी पडती है. इन्ही कारणों से महत्वपूर्ण विषयों पर निर्णय कई रातों तक जागकर लिखे और घोषित किए गए.

आधार के क्रियान्वयन को रोकने के लिए कांग्रेस ने लाख कोशिशें की. पी. चिदंबरम और कपिल सिब्बल जैसे सीनियर कांग्रेसी नेता-कम-सीनियर सुप्रीम कोर्ट के लॉयर्स सहित वकीलों का एक बडा समूह सुप्रीम कोर्ट में आधार को जड-मूल से खत्म करने और उसे असंवैधानिक बताकर खारिज करवाने के लिए आतुर था. इसके दो कारण थे. मोदी सरकार द्वारा सरकारी सब्सिडियों का लाभ लेने के लिए आधार कार्ड को अनिवार्य बनाया जा रहा था. अगर ऐसा होता है तो कांग्रेस के राज में जो करोडो  फर्जी- बेनामी लाभार्थी-गरीब-किसानों के नाम केवल कागजों पर थे, वे रातों रात रद्द हो जाएंगे. ऐसे करोडों बनावटी नाम खडे करके सरकारी सब्सिडी-सहायता के अरबों रूपए दशकों से अपनी जेब में भरनेवाले बिचौलिए तुरंत प्रभाव से उजागर हो जाएंगे, कांग्रेस की वोट बैंक पर घातक प्रहार होगा. आधार के विरोध का दूसरा कारण यह था कि कांग्रेसियों ने तथा उनके राजनीति समर्थकों यानी साम्यवादियों और लालू यादव जैसे अनेक भ्रष्ट नेताओं को अपने तमाम बैंक खातों तथा बैंक द्वारा खरीदी गई संपत्तियों के व्यवहारों का सरकार के सामने उजागर करना होगा. नोटबंदी के बाद देश में नकद व्यवहार घट गया और जी.एस.टी. के बाद व्यापार में दो नंबर के बिल बनाना असंभव हो गया. मोदी सरकार बैंक में नए खाते खोलने के लिए या वर्तमान खातों का संचालन करने के लिए आधार को अनिवार्य करना चाहती थी जिसका कांग्रेस ने सख्त विरोध किया.

सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस के हाथों में लॉलीपॉप पकडा कर कहा कि बैंक खातों के लिए आधार कंपल्सरी नहीं है. कांग्रेसी गिर गए फिर भी नाक ऊपर के तर्ज पर भांगडा करने लगे. सच्चाई क्या है? बैंक खाता खोलने/चलाने के लिए पैन कार्ड तो अनिवार्य है ही. जो लोग आयकर भरने के ब्रैकेट में नहीं आते हैं उनकी या गरीबी रेखा से नीचे आनेवाले लोगों की बात ही अलग है. वे तो पैन कार्ड के बिना भी बैंक खाता खुलवा सकते हैं. उन्हें अपने हस्ताक्षर के साथ बैंक को सूचित करना होता है कि उनकी आय इनकम टैक्स भरने जितनी नहीं है. ऐसे गरीबों को परेशानी न हो इसीलिए सरकार ने उनके लिए छूट रखी है, लेकिन शेष सभी लोगों के लिए बैंकिंग करने हेतु पैन कार्ड अनिवार्य है और पैन कार्ड अनिवार्य होने पर इनकम टैक्स रिटर्न भी भरना अनिवार्य है. पैन कार्ड बनवाने के लिए आधार नंबर देना अनिवार्य है और इनकम टैक्स रिटर्न भरने के लिए भी आधार अनिवार्य है. ऐसी स्थिति में बैंक अकाउंट को आधार से लिंक करें या न करें, इससे क्या फर्क पडता है? सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए आधार अनिवार्य बनाने के लिए भी सुप्रीम कोर्ट कोई आपत्ति नहीं है.

मोबाइल का सिम कार्ड लेने के लिए या अन्य कई मामलों के लिए सरकार आधार को अनिवार्य बनाना चाहती थी जिसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने इंकार कर दिया, ये ठीक है. राज्यसभा में जिस समय बहुमत होगा उस समय सरकार आधार के कानून में संशोधन तो कर ही सकती है. मूलत: जो दो मुद्दे थे- दोनों आर्थिक थे- या बैंक में एक से अधिक फर्जी नाम से खाता रखनेवालों को आयकर चोरी करने से रोकने और सरकारी योजनाओं का लाभ घुसपैठियों या कांग्रेस की वोटबैंक बने अन्य बेनामी लोग न ले लें इसके लिए आधार का उपयोग करना चाहिए- इस उद्देश्य से सुप्रीम कोर्ट ने मंजूरी दे दी है.

आधार के प्रणेता और `इनफोसिस’ के संस्थापकों में एक नंदन नीलकणी ने आधार के बारे में संपूर्ण सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में पूरी होने के बाद और पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने से पहले बैंगलोर में अपने कार्यालय में मुझे दीर्घ इंटरव्यू दिया जिसमें उन्होंने आशा व्यक्त की थी कि सुप्रीम कोर्ट जो भी फैसला देगा वह देशहित में होगा. और हुआ भी वैसा ही. यह इंटरव्यू आप यूट्यूब पर देख सकते हैं. आधार के बारे में जब इसी कॉलम में श्रृंखला लिखी थी तब इस विषय पर काफी विस्तार से चर्चा की गई थी. गूगल सर्च करने पर उस सिरीज के लेख भी आप पढ सकते हैं, अत: इस संबंध में अधिक विस्तार से लिखने की आवश्यकता मुझे नहीं लगती.

भारतीय दंड संहिता की धारा ४९७ के तहत व्यभिचार अपराध था. यानी किसी विवाहित स्त्री के साथ रिश्ता रखते हुए कोई पुरुष पकडा जाता और उस औरत का पति या गलत संबंध रखनेवाले पुरूष की पत्नी (यदि वह विवाहित हो) पुलिस में शिकायत करे तो अदालत में साबित होने के बाद पुरुष को सजा हो सकती थी. इस कानून में व्यभिचार करनेवाली औरत के लिए सजा का कोई प्रावधान नहीं था. इस कानून के बारे में `मुंबई समाचार’ के `पुरुष’ परिशिष्ट में ढाई साल पहले लिखे गए मेरे स्तंभ `मैन-टू-मैन’ में खूब चिंतन किया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने डेढ सौ से अधिक पुराने कानूनों को रद्द किया है जो कि अच्छी बात है. ये कानून रद्द करने से समाज में गलत संबंधों या विवाहेतर संबंधों की मात्रा बढ जाएगी, ऐसा मानना गलत होगा. समलैंगिक संबंधों को सुप्रीम कोर्ट ने फौजदारी अपराध मानने से इंकार कर दिया तो क्या इससे पुरुष-पुरुष और स्त्री-स्त्री के बीच सेक्स संबंध बढ गए? नहीं. विवाहेतर संबंधों को डि-क्रिमिनलाइज करने के बाद भी उसकी नैतिकता या अनैतिकता के बारे में हर व्यक्ति की अपनी मान्यता, अपने विचार, अपना वातावरण और अपनी सुविधानुसार निर्णय लेना है जिसके बीच अब न पुलिस है, न अदालत है. सुप्रीम कोर्ट मान रही है कि हर व्यक्ति को अपनी नैतिकता का निर्णय अपनी अनुकूलता के अनुसार करना होता है. भविष्य में दहेज, बलात्कार और ऐसे अन्य कई मामले हैं- जिनमें कानून का दुरूपयोग होता है- इस बारे में सुप्रीम कोर्ट को पुनर्विचार करना ही होगा. आज नहीं तो कल- दो-पांच दशक बाद- जैसे जैसे व्यक्ति की नीतिमत्ता में बदलाव आते जाएंगे और जैसे जैसे इन बदलावों को सामाजिक स्वीकृति देनी पडेगी वैसे वैसे अदालतों को भी कानून की किताबों में बदलाव करने पडते हैं. १०० साल बाद हममें से कोई भी जब जीवित नहीं होगा, तब इस देश में सेक्स या पर्सनल लाइफ से जुडे कानूनों में कैसे कैसे बदलाव आएंगे इसकी कल्पना करना एक रोचक और फैसिनेटिंग विषय है.

और राम जन्मभूमि. मोदी  के शासनकाल में यह मामला हल हो जाएगा, जरूर होगा, राम जन्मभूमि पर ही भव्य राम मंदिर बनेगा, अन्यत्र कहीं नहीं बनेगा, और वह भी संबंधित समुदायों की सहमति से-सौहार्दपूर्ण तरीके से बनेगा. जब तक यह नहीं होगा तब तक सुप्रीम कोर्ट इस मामले से जुडे छोटे-बडे मामलों की परिधि में आनेवाले फैसले देगा, पर मूल मुद्दे को टालता रहेगा, क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय बैठे हुए लोग समझदार पुरुष ये जानते हैं कि यह मामला इतना सेंसिटिव है कि इसके बारे में सतर्कता बरते बिना कोई स्पष्ट फैसला दिया जाएगा तो दो में से कोई एक पक्ष भयंकर रूप से नाराजगी प्रकट किए बिना नहीं रहेगा. और दूसरे, हमारी तरह सुप्रीम कोर्ट को भी पता है कि मोदी इस मामले को सौहार्दपूर्ण तरीके से सॉल्व करने में कैपेबल हैं.

आज की बात

पता नहीं, लोग अपनी जिद को दफनाने के बजाय संबंधों को क्यों दफना देते हैं?

-वॉट्सएप पर पढा हुआ

संडे ह्यूमर

पिता: बका, रोज शाम को तुम धंधे के समय में दुकान छोडकर कहां चले जाते हो.

बका: पिताजी, गर्लफ्रेंड से मिलने.

पिता: बेटा, अभी धंधे पर ध्यान दो. गर्लफ्रेंड तो ६५वें साल में भी मिल जाएगी.

 

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