यहूदी मेनुहिन बनें या लक्ष्मीकांत -प्यारेलाल

गुड मॉर्निंग

सौरभ शाह

‘मुझे तो यहूदी मेनुहिन बनना था लेकिन पैसों की तंगी के कारण विएना जाकर वायलिन वादन की आगे की तालीम नहीं ले सका.’

मुंबई की बरसाती शाम. बांद्रा के पाली हिल माउंट मेरी रोड के सर्पाकार मोडों पर बना मकान. बरसों से प्यारेलाल यहीं रहते हैं. उनका फ्लैट तीसरी मंजिल पर है. मकान का चौकीदार लिफ्ट में हमें उनके फ्लैट तक पहुँचाने जाता है. अमिताभ बच्चन जब यहां आते हैं तो लिफ्ट में जाने के बजाय तीन मंजिल तक सीढियॉं चढकर जाते हैं. `यह प्यारेलाल का घर नहीं मंदिर है,” ये बच्चनजी के शब्द हैं.

कल्याणजी भाई के निधन के बाद उनकी स्मृतियों को ताजा करने के लिए हम इस मंदिर में प्यारेलालजी से मिले थे. करीब डेढ-पौने दो दशक बाद फिर से एक बार उनके साथ दो घंटे बात की. जी हां, सिर्फ बातें ही कीह, गप्पे लगाए. विधिवत इंटरव्यू या साक्षात्कार जब लेंगे तब लेंगे.

कहना नहीं चाहिए, लेकिन हिंदी फिल्म संगीत जगत में प्रवेश करनेवाले या प्रवेश करने के इच्छुक अनगिनत संगीतकार लक्ष्मीकांत – प्यारेलाल बनना चाहते हैं और प्यारेलालजी खुद विश्व विख्यात वायलिन वादक और ऑर्केस्ट्रा कंडक्टर यहूदी मेनुहिन बनना चाहते थे. ऐसा नहीं है कि प्यारेलालजी खुद को मिली सफलताओं से खुश नहीं हैं. ऑन द कॉन्ट्ररी, वे अपने जीवन से अत्यंत संतुष्ट हैं. ६०० से अधिक (टू बी प्रिसाइज़ ६३५) फिल्में कीं. इतनी फिल्में किसी भी संगीतकार ने नहीं की हैं. लता मंगेशकर, आशा भोसले, मोहम्मद रफी और किशोर कुमार. ऐसे महान गायकों ने सबसे अधिक गीत अगर किसी संगीतकार के लिए गाए हैं तो वे हैं लक्ष्मीकांत प्यारेलाल.

उनके संगीतबद्ध किए गीतों को इतनी लोकप्रियता मिली कि बिनाका गीतमाला में कई बार आधे गाने तो उन्हीं के बजा करते थे. बिलकुल बचपन में विविधभारती पर सुने हुए शब्दों में जो याद रह गए वे शब्द हैं झुमरी तलैया, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल और आनंद बक्षी. बक्षी साहब ने भी सबसे ज्यादा गीत उन्हीं के लिए लिखे और लक्ष्मीकांत प्यारेलाल को जो सात फिल्मफेयर अवॉर्ड मिले उनमें से पहले को छोड दें तो बाकी के सभी अवॉर्ड जीतनेवाले गीत आनंद बक्षी ने लिखे थे.

प्यारेलालजी के कमरे में उनके पियानो के सामने बैठे – बैठे एक तरफ इन ७ फिल्म फेयर ट्रॉफीज को देखता तो दूसरी तरफ साक्षात उन्हें देखता और विचारों में खो जाता कि चाहूंगा मैं तुझे सांझ सवेरे, बिंदिया चमकेगी, मेरे दिल में आज क्या है, माय नेम इज एंथनी गोन्साल्विस से लेकर तू मुझे कुबूल जैसे सैकडों लोकप्रिय गीतों के संगीतकार जोडी में से एक प्यारेलालजी साक्षात मेरे सामने थे, उनके पास बैठने का सौभाग्य हमें मिल रहा है.

`दोस्ती’ (१९६५), `मिलन’ (१९६८), `जीने की राह’ (१९७०), `अमर अकबर एंथनी’ (१९७८), `सत्यम शिवम सुंदरम’ (१९७९), `सरगम’ (१९८०) और `कर्ज’ (१९८१) के लिए मिली कुल ७ फिल्मफेयर ट्रॉफीज में से एक उठाकर देखी. एकदम भारीभरकम. दो में दो ट्रॉफियों को उठाकर रोज कसरत करनी हो तो छह महीने में भुजाएँ एक जमाने के संजय दत्त जैसी बन जाएं.

लक्ष्मीकांतजी को याद करते हुए प्यारेलालजी ने खूब बातें कीं. प्रोड्यूसर से पैसे मिले हों तो लक्ष्मीकांतजी पांच गडि्डयां तेरी और पांच गड्डियां मेरी, ऐसा कहकर नहीं बांटते थे. हर गड्डी की पिन को आधे से मरोड कर फिफ्टी – फिफ्टी करते थे और इस तरह मेहनत करके बराबर हिस्से बांटते थे. उन्हें ऐसा करने में मजा आता था. लक्ष्मीकांतजी का बंगला `पारसमणि’ अब बच्चनजी के `प्रतीक्षा’ बंगले वाले रास्ते पर ही बिलकुल अगले छोर पर है. (अब वहां का बंगला तोडकर उसी नाम की ऊँची बिल्डिंग बन गई है: पारसमणि अपार्टमेंट्स). प्यारेलालजी कहते हैं कि लक्ष्मीकांतजी ने कभी अपने घर के बाहर अपने नाम का बोर्ड नहीं लगवाया. फिर हंसते हुए प्यारेलालजी कहते हैं: `मेरी शादी जब हुई तब भी लोग कहते थे कि लक्ष्मीकांत – प्यारेलाल की शादी है!’

लक्ष्मी-प्यारे की जोडी को जितने फिल्मफेयर अवॉर्ड मिले उससे कई गुना अधिक नॉमिनेशन मिले. कभी कभी कुछ वर्षों में पांच में से दो-तीन फिल्में उन्हीं की होती थीं. जिन फिल्मों को अवॉर्ड नहीं मिला उन्हें लाखों-करोडों प्रशंसकों ने अपने दिल में जगह देकर अवॉर्ड दे दिया: `दो रास्ते’ (१९७१), `शोर` (१९७३), `बॉबी’ (१९७४, `दाग’ (१९७४), `एक दूजे के लिए’ (१९८२), `हीरो’ (१९८४), `तेजाब’ (१९८९), `रामलखन’ (१९९०) और अन्य कई फिल्मों के गीत आज भी प्रशंसकों को याद हैं.

पैसों का प्रबंध करके अगर प्यारेलालजी विएना पहुंच गए होते तो आज यहूदी मेनुहिन की कतार में रखने लायक एक भारतीय नाम अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जरूर उभरा होता. लेकिन हिंदी फिल्म संगीत में कुछ कमी रह  गई होती. कुछ नहीं, बहुत कुछ.

आज का विचार

मैने रहस्यों का बाजार लगाया था,
ले गए एक दो ग्राहक सभी,
जो सफर शुरू ही नहीं कर सका
उसे लगी है भूख, प्यास, थकान सभी
किसी के पास मिला ही नहीं
मैने तो मांगा था थोडा सा सभी

– हर्ष ब्रह्मभट्ट

एक मिनट!

मार्टिन लूथर किंग: उड न सको तो दौडो, दौड न सको तो चलो, चल न सको तो…..

बका: एक मिनट, लूथर साहब….लेकिन ये तो बताइए कि जाना कहां है?

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