सुप्रीम कोर्ट के इस लैंडमार्क फैसले के पीछे कौन कौन है, क्या क्या है?

गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह

(newspremi.com, मंगलवार १२ नवंबर २०१९)

(अयोध्या निर्णय सिरीज: पहला लेख)

वर्षों नहीं बल्कि दशकों तक कोर्ट में लंबित एक शताब्दि से भी अधिक पुराने विवाद के समाधान के रूप में इतना स्पष्ट-साफ सुथरा-अनएंबिग्युअस फैसला कैसे आया? कौन कौन और क्या क्या कारणीभूत है, इस फैसले के पीछे. इस संबंध में तार्किक परीक्षण करना मेरी नई लिखी जा रही दस किस्तों की श्रृंखला का मूल है. यह परिश्रम करने का कारण क्या है? एक नहीं बल्कि दो कारण हैं. एक तो सुप्रीम कोर्ट के इस अयोध्या के फैसले को सतही तौर पर दिख रहे मसलों की गहराई में उतर कर समझना है कि क्या हुआ है, क्या हो सकता था और भविष्य में इसके परिणामों का क्या असर हो सकता है. दो: यह तो एक मसला हुआ. काफी बडा और अति महत्वपूर्ण है किंतु यह एक ही प्रश्न है. भारत के सामने ऐसी चुनौतियां भी हैं. विभिन्न क्षेत्रों में. और भविष्य में भी आनेवाली हैं. किसी भी राष्ट्र के समक्ष ये स्थितियां आती हैं. मील का पत्थर बने अयोध्या के इस फैसलेह का इस एंगल से अध्ययन करेंगे तो अन्य मसले जब अदालत में चल रहे होंगे या फिर लीगल मैटर बनने के बजाय जब ये मामले कोर्ट में गए बिना ही मीडिया में चर्चित बन रहे होंगे तो इन्हीं मापदंडों के आधार पर उनका भी आकलन हम कर सकेंगे. इसी मापदंड का उचित संदर्भ में उपयोग करके समय आने पर उन मामलों को समझ सकते हैं, समझा सकते हैं.

सुप्रीम कोर्ट के इस अयोध्या के फैसले के लिए यदि एक ही कोई कारण देना हो तो वह मेरे मन में है लेकिन इस वक्त मन की बात मन में ही रखकर (उसे दसवी किस्त में रिवील करके) अभी तो इस बात पर ध्यान केंद्रित करना है कि इस फैसले के पीछे नॉन लीगल या लीगल या सेमी लीगल परिबल कौन से हैं? कानूनी परिबल तथा कारण तो हजार पृष्ठों के फैसले में आ ही चुके हैं जिसका सारांश अखबारों तथा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया आपको दे चुके हैं. इसके बावजूद यदि पूरा फैसला पढने का शौक, धैर्य और इच्छा हो तो इस लेख के साथ उसकी पीडीएफ फाइल भी पोस्ट की जाएगी. लेकिन इस प्रकार के मामले केवल कानूनी दांवपेंच से हल नहीं होते. लीगल दांवपेंचों के बजाय क्वासी लीगल दांवपेंच अधिक पेचीदा होते हैं और नॉन लीगल दांव पेंच तो उससे भी अधिक अटपटे होंगे.

आगे बढने से पहले, इस श्रृंखला के प्रस्तावना स्वरूप एक भाग के रूप में सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले की प्रमुख रूप से तीन दर्शनीयल लक्षण देख लेते हैं.

१. इस फैसले में कोई भी बात अस्पष्ट नहीं रखी गई है- संदिग्ध नहीं रखी गई है. किसी भी बात को घुमा फिराकर नहीं कहा गया है. कोई भी ऐसी बात नहीं रखी गई है कि जिसमें छिद्र हों, लीगल लूपहोल्स हों. कोई भी ऐसी बात नहीं है जिसमें परस्पर विरोधी निहितार्थ निकाले जा सकें. दूध-दही में पांव रखे बिना बेधडक तरीके से एक एक बात को लेकर स्पष्ट अभिप्राय/ निर्णय दिया गया है.

२. इस फैसले से जिन जिन पक्षों को दुख हो सकता है उन तमाम पक्षों की बोलती बंद करने के लिए उन्हें ट्रस्टी पद से लेकर जमीन तक का लॉलीपॉप थमा दिया गया है. ऐसा यदि न किया गया होता तो भी चलता. आहत हुए पक्षों के पास रिव्यू पिटीशन करने के लिए कोई मुद्दा ही नहीं बचता. इसके बावजूद सुप्रीम कोर्ट ने उनकी आहत भावनाओं का ध्यान रखते हुए उनके जख्मों पर मरहम लगा कर, उनकी पीठ पर हाथ सहलाने का काम किया है.

३. कानूनी दृष्टि से (केवल कानूनी दृष्टि से ही) जो बात गलत थी उसे गलत कहकर सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को विवादास्पद बनने से रोका है. वह मुद्दा था छह दिसंबर १९९२ को बाबारी ढांचे का ध्वंस करने का, तथाकथित मस्जिद के ढांचे को तोडने का. जो निस्संदेह रूप से कानून की नजर में (केवल कानून की नजर में) अपराध था. इस तीसरे मुद्दे के बारे में सुप्रीम कोर्ट से असहमति दर्शाने के लिए वैलिड और सॉलिड कारण हैं. आगे बढने से पहले उदाहरण के साथ उसकी बात कर लेते हैं.

फैसले में इन प्रमुख दर्शनीय तीन लक्षणों को देखते हुए एक और मुद्दा जोडने की जरूरत महसूस हो रही है और वह है फैसले से पहले की तैयारियां- सरकार की ओर से तथा गैर सरकारी संस्थानों की ओर से हुई तैयारियां. सामान्य रूप से ऐसे किसी भी महत्वपूर्ण फैसले से पहले दोनों पक्षों के समथकों द्वारा तूतू-मैमै शुरू हो जाया करती है. देख लेंगे, ऐसा होगा तो गंभीर नतीजे भुगतने होंगे, जनता के मन पर असर पडना चाहिए, कानून का सम्मान किया जाना चाहिए- ऐसे बयान दिए जाते हैं. मीडिया मैग्नीफाइंग ग्लास लेकर अपनी रोटियां (यानी टीआरपी) सेंकने में मग्न हो जाता है. लेकिन सरकार ने पूरा ख्याल रखा कि ऐसा न हो. आरएसएस इत्यादि तथा वक्फ बोर्ड के सभी लोगों ने सरकार की बात को दोहराकर अपने अपने समर्थकों/ अनुयायियों को नियंत्रण में रखा. आग लगने पर कुआं खोदने के बजाय पहले ही मकान को फायर प्रूफ बना दिया गया जिससे कोई उसमें पलीता लगाने की कोशिश भी करे (जो कइयों ने की. नाम लेकर कहें तो ओवैसी, दिग्विजय सिंह, एम्नेस्नटीवाले आकार पटेल ने) तो भी वे फुस्स हो जाएं. सरकार ने सिर्फ बयानबाजी ही नहीं की थी, कडी सुरक्षा के लिए पुलिस-अर्ध सैनिक बलों तथा इंटेलिजेंस ए‍जेंसियों के हजारों लोगों को काम पर लगा दिया था. फैसला आए एक सप्ताह बीतने जा रहा है. इतने बडे देश में एक छोटी घटना भी नहीं हुई है. भविष्य में भी नहीं होगी. फैसले के बाद ऐसा माहौल किसी भी देश के लिए अभूतपूर्व घटना है, गौरवास्पद घटना है.

कल से दस किस्तों की सिरीज शुरू करने से पहले इस प्रस्तावना का अंतिम मुद्दा-

बाबरी ढांचे को गिराने की घटना को गैर-कानूनी बताने का मुद्दा.

एक दिन एक सज्जन ट्रेन में यात्रा कर रहे थे कि तभी उनकी जेब कट गई. उस भाई साहब ने तुरंत जेबकतरे को पकड लिया और प्लेटफॉर्म पर घसीट कर उसे खूब पीटा. पुलिस आ गई. जेबकतरे को पकड कर हवालात में डाल दिया. कोर्ट में हाजिर करने की बात जब आई तब जेबकतरे ने मैजिस्ट्रेट से कहा कि जिस आदमी की जेब काटने का आरोप मुझ पर है, मुझे उस पर केस करना है- उसने कानून हाथ में लेकर मेरे साथ मारपीट की है! (मैजिस्ट्रेट ने पुलिस को एकांत में बुलाकर कहा होगा कि इस आदमी को कस्टडी में लेकर और दो दिन रखकर इसकी थोडी और खातिरदारी करो ताकि इसकी अक्ल ठिकाने आ जाय).

आप बरसों से जिस घर में रहते हों, उस घर पर कोई अन्य व्यक्ति बलपूर्वक ताला लगा दे और मामला कोर्ट में जाय तथा बरसों बाद कोर्ट फैसला सुनाते समय आपका घर आपको लौटा दे लेकिन फैसला सुनाते समय आपको ताना मारे कि जब ये केस चल रहा था तब आपने अपने घर पर उस व्यक्ति द्वारा लगाया गया ताला तोडने की कोशिश की थी और आपका यह कृत्य गैरकानूनी था तो आप क्या कहेंगे? मन ही मन इतना ही कहेंगे कि आपके फैसले के बाद इतना तो तय हो गया कि उस घर पर मेरा मालिकाना हक था, ठीक है न? अब अपने घर का ताला मैं तोड दूं तो इसमें मैने क्या अपराध कर दिया? और टेक्निकली यदि ये अपराध माना जाता है तो भी आपके फैसले के बाद वह संपूर्ण मुद्दा ही नल एंड वॉइड हो जाता है.

जिन लोगों के ऊपर बाबरी ढांचा तोडने का (तकनीकी अपराध करने का) आरोप है वे लालकृष्ण आडवाणी और उमा भारती सहित सभी लोगों को अदालत द्वारा इसी लॉजिक का उपयोग करके बाइज्जत बरी कर देना चाहिए. राम मंदिर बनाने का मार्ग आसान करने के लिए अदालत को नहीं बल्कि हम सभी को इन सभी की स्वर्ण तुला करके मंदिर के निर्माण में सहयोग देना चाहिए. तिरुपति बालाजी मंदिर ट्रस्ट अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए १०० करोड रूपए का दान दे रहा है.

शेष कल.

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