क्या विघ्नों के बिना, आलोचनाओं के बिना, किसी डर के बिना भी जिंदगी हो सकती है?

लाउड माउथ- सौरभ शाह

(बुधवार, ११ सितंबर २०१९, अर्धसाप्ताहिक पूर्ति, `संदेश’)

हम यदि ये मानकर चलते हैं कि जीवन में सबकुछ सहजता से चलनेवाला है तो ये हमारी भूल है. इस बात को सद्गुरु जग्गी वसुदेव ने अपने शब्दों में कही है: जो लोग ऐसा मानते हैं कि हमारे साथ सबकुछ अच्छा ही होना चाहिए, वे लोग ये जीवन जीने के काबिल ही नहीं हैं. आपके संघर्षें के दौर में, आपकी परीक्षा की घडी में यदि आप प्रसन्न चित्त होकर और आनंदपूर्वक जीना आपको यदि नहीं आता है तो आप आप जीवन में निहित अनेक संभावनाओं का लाभ लेने से चूक जाएंगे.

ये शब्द जीवन की किताब में सुनहरे अक्षरों में लिख कर रखने जैसे हैं. इसमें दो बातें हैं.

एक तो, जीवन में कभी भी चढाव-उतार भरे रास्ते, संकट और निराशाएं नहीं आएंगी, ऐसा मानना ही गलत है. तपता हुआ सूरज भी कभी कभी बादलों से ढंक जाता है. सूर्य देवता इन काले बादलों के कारण जो चाहे वह काम नहीं कर सकते हैं. पृथ्वी पर किरणों का प्रसरण करके जीवन सृजन करना सूरज का काम है. ऐसे उदात्त कार्य में भी यदि प्राकृतिक रुकावट आ सकती है तो हम सब सांसारिक जीव हैं- हाथ लिए गए कार्यों में कभी न कभी तो रुकावटें आनी ही हैं.

हम यदि मान बैठें कि हमारा हर काम आराम से सफल होगा तो ये हमारी गलती है. ऐसा कभी नहीं होता, होनेवाला भी नहीं है. किसी के साथ ऐसा नहीं हुआ. हमें जो लोग सबसे सफल व्यक्ति लगते हैं, उनके साथ भी नहीं. सारी दुनिये में सफलता के आदर्श के रूप में पहचाने जाने वाले महापुरुष या उनके व्यवसाय के साथ भी ऐसा नहीं हुआ है. हर व्यक्ति ने, हर नौकरी-धंधे में संकटों, विफलताओं और निराशाओं का सामना किया ही है. आप इसमें अपवाद नहीं होंगे, इसके लिए तैयार रहिएगा. इसका मतलब ये नहीं है कि आप भगवान के प्रिय नहीं हैं. बेशक हैं. अन्य लोगों की तरह ही आप भी लाडले हैं. लेकिन भगवान आपकी शक्ति, आपकी क्षमता, आपकी नीयत की परख करने और आपकी मर्यादा कितनी है, इसकी कसौटी करने के लिए बारंबार सरप्राइज टेस्ट लेने ही वाले हैं. कभी ऐसा न हो कि भगवान आपको अंबानी जितना दें पर वह आपकी गोद में हीं न समा सके, छलक जाय और बर्बाद हो जाए. ऐसा होने पर भगवान की मेहनत बेकार हो जाएगी. कहीं ऐसा भी न हो कि सफलता पाकर आपका दिमाग सातवें आसमान पर चला जाय और आपका अहंकार आपको रावण जैसे काम करने के लिए प्रेरित करने लगे. ऐसा होने पर भी भगवान की मेहनत बेकार ही जाएगी. इसीलिए भगवान आपकी हैसियत और आपकी नीयत को परखने के लिए आपदाएं भेजते रहते हैं. आपको रातोंरात कुछ नहीं देता. आपको सैकडों छननियों से छानने के बाद ही वह तय करता है कि आपको क्या, कितना, कब देना है.

सफल माने जानेवाले लोगों की विफलताओं का अनुमान हमें नहीं है. उनके द्वारा सही गई घोर यातनाओं, चिंताओं, आलोचनाओं की विस्तृत बातें हम तक पहुंचती ही नहीं हैं. संघर्ष की जो कुछ भी थोडी बहुत बातें हम तक पहुंचती हैं, वे सभी रोमांटिसाइज होती है, सॉफ्ट फोकस लेंस से उनकी तस्वीरें ली जाती हैं. म्युनिसिपैलिटी की लाइट के खंभे के नीचे बैठकर पढाई की, दो जोडी ही कपडे थे- एक पहना हो तो दूसरा सूख रहा होगा, नंगे पांव धूप में स्कूल जाना पडता होगा., मुंबई आकर रेलवे प्लेटफॉर्म पर सोकर रातें गुजारी होंगी इत्यादि. ये सारी बातें जरूर सच होंगी लेकिन इसके अलावा भी घोर संघर्ष की अनेक बातें उनकी हम तक नहीं पहुंचती हैं या उनके द्वारा नहीं बताई गई हों. संघर्ष के उस दौर में कइयों ने उनके पैर तले से जमीन खिसकाई होगी, कइयों ने धोखा दिया होगा, कइयों के साथ उन्होंने खुद भी धोखा किया होगा. सफल पुरुष की विफलताओं की गाथा कहनेवाली कोई किताब प्रकाशित हो तो ही ये सारी बातें पता चल सकती हैं. लेकिन कोई व्यक्ति सफल होने के बाद भी बिलकुल निश्चल होकर अपने खराब दौर की अपनी मानसिकता के बारे में बात हीं नहीं करता, कर भी नहीं सकता क्योंकि यदि वह पूरी सच्चाई से ऐसा करने की कोशिश करेगा तो उसकी छवि धूमिल होगी, उसकी सफलता के पीछे ढंक चुके उनके व्यक्तित्व के दाग खुलकर सामने आ जाएंगे.

दाग तो हर व्यक्ति के स्वभाव में, विचारों में, व्यवहारों में होंगे ही, ऐसा तो होना ही है. सफल होने के बाद उन्हें छिपाया जा सकता है, संघर्ष के दौरान उसे ढंकने की कोशिशें नाकाम हो जाती हैं.

खराब समय में हमें जो कुछ भी बुरे अनुभव आते हैं, उसकी तुलना में कई गुना कठिन दौर से सफल लोग गुजर चुके होते हैं, ऐसा दृढता से मानना चाहिए.

इन सफल लोगों ने अपना कठिन समय किस तरह से व्यतीत किया होगा? शिकायतें करके, दूसरों को दोष देकर, झिकझिक करके, काम को अधूरा छोडकर, नशे का सहारा लेकर या फिर भाग्य को दोष देकर?

नहीं. उन्होंने इसमें कुछ भी नहीं किया होगा.

अब यहीं पर सद्गुरू की दूसरी बात आती है. संघर्ष काल के दौरान आनंद से रहना चाहिए, हंसते रहना चाहिए, प्रसन्न चित्त रहना चाहिए. टेंशन की बातें घर में या आस-पास के व्यक्तियों को बताकर वातावरण को बोझिल नहीं बनाना चाहिए. अपने काल्पनिक भय को दिलो दिमाग पर छाने नहीं देना चाहिए. खुश रहें. एकाग्रता से काम करने पर अपने आप मन प्रसन्न हो जाता है. ध्यान की अवस्था यही तो है. हिमालय जाकर गुफा में बैठकर साधना करना ही केवल ध्यान नहीं है. यह तो ध्यान है ही. आप अपने हिस्से का हर काम तल्लीन होकर, आस पास की चिंता को भूलकर, अपनी क्षमतानुरूप, सोच के अनुरूप श्रेष्ठतम तरीके से करना भी ध्यान है.
संघर्ष का दौर तो आएगा ही और इस काम के दौरान प्रसन्न रहना है. सद्गुरु की यह बाद ठीक से समझ आ जाय तो आपको न ये सब पढने की जरूरत होगी, न ही हमें ये सब लिखने की जरूरत होगी.

सायलेंस प्लीज

भय जन्म लेता है क्योंकि आप असली जिंदगी जीने के बजाय कल्पनाएं करके जीने लगते हैं.

– सद् गुरु जग्गी वसुदेव

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