कोरोना के पश्चात् साबित हो गया है कि पिछडा कौन है – भारत अथवा पश्चिमी देश?: सौरभ शाह

(संदेश, लाउड माउथ, २९ अप्रैल २०२०)

२०११ की अधिकृत जनसंख्या गिनती के अनुसार नहीं, किन्तु उस आंकडे के आधार पर की गई गिनती के अनुसार, आज के दिनांक में २०२० के अप्रैल में भारत की जनसंख्या १३७ करोड जितनी मान सकते है। दुनिया की जनसंख्या ७८० करोड है। समूची दुनिया में जितने लोग बसते है उस के छठ्ठे हिस्से के, १७ प्रतिशत जितने लोग केवल भारत देश में बसते है।

कोरोना से पूरी दुनिया में दो लाख जितने (२,०६,०००) लोग की मृत्यु हुई है। जनसंख्या के प्रतिशत अनुसार भारत में ३४,००० से अधिक लोगों की मृत्यु होनी चाहिए। इस के विरुद्ध भारत में केवल ८२६ मृत्यु हुई है। केवल दो-एक प्रतिशत जितने। और इस ८२६ लोग में से तीसरे हिस्से की मृत्यु (३२३) अकेले महाराष्ट्र में दर्ज की गई है। उद्धव ठाकरे की ‘मिसळ’ सरकार ने कोरोना विरुद्ध प्रभावशाली कदम उठाने में सब से अधिक उपेक्षा दिखाई है। महाराष्ट्र की तुलना में पौने दो गुनी जनसंख्या है ऐसे उत्तर प्रदेश राज्य में केवल २९ मृत्यु हुई है। पड़ोसी राज्य दिल्ली में से केजरीवालने रातोरात खदेड दिये गये उत्तर प्रदेश के श्रमजीवी के कारण जो बडी क्राइसिस खडी की गई उस को योगी आदित्यनाथ ने कितने असरकारक ढंग से संभाला होगा, कल्पना कीजिए।

विशाल भारत में कोरोना के कारण मात्र ८२६ मृत्यु हुई है, इस के विरुद्ध हम जिस को सर पर बिठाते रहे ऐसे- फर्स्ट वर्ल्ड, सुधरे हुए देश – संस्कारी देश – न जाने क्यों उनको हम जी सर, जी सर कहते रहे वह श्रीमंत, पढेंलिखें, वैल डिसिप्लिन्ड, सायन्टिफिक मिजाज रखनेवाले और आधुनिक मैडिकल फैसिलिटि जहां है ऐसे पश्चिमी देशों में कोरोना के कारण अभी तक दर्ज हुई मृत्यु का आंक आप को चौंका देगा:

अमिरका: ५५,३८३
ईटली: २६,४४४
फ्रान्स: २२,८५६
स्पेन: २२,१९०
ब्रिटन: २०,८५६
बैल्जियम: ७,०९४
जर्मनी: ५,९७६
नैधरलेन्ड: ४,४७५
केनेडा: २,५६०
स्वीडन: २,१९४
स्वित्झर्लेन्ड: १,६१०

(चीन के आंकडे पूछो तो, ४,६४२)

अमरिका से लेकर स्वित्झर्लेन्ड तक इन ११ देश के इन आंकडो पर फिर से एक दृष्टिपात कीजिए, फिर भारत का मृत्यु आंक याद कीजिए, और इस दौरान याद रखिए कि भारत जनसंख्या की दृष्टि से दूसरे क्रम पर आनेवाला देश है। प्रथम क्रम पर चीन, तीसरे क्रम पर अमरिका।

अभी तक इस ११ देश हमें ठसाते रहे और हम मानते रहे कि दुनियाभर का ज्ञान इन लोगों में है और हमारा भारत देश मूर्ख, गंवार, निरक्षर, गरीब और गंदा है। हमारे यहां आरोग्य सुविधा कंगाल है। हिन्दी सिनेमावाले देश का उपहास करनेवाले डायलॉग लिखते कि यहां पित्झा की डिलिवरी थर्टी मिनिट्स में हो जाती है किन्तु एम्ब्युलन्स दो घंटे के पश्चात आती है। एसे संवाद पर उछल-उछल कर ताली बजानेवालें वॉट्सएप में ऐसे बेवकूफीपूर्ण मेसेज फॉरवर्ड करते थे।

कोरोना की महामारीने समूचे विश्व को दिखा दिया है कि भारत का स्थान क्या है। संकट समय में किस तरह आयोजन किया जाता है वह सिखने के लिए आप के पास आना नहीं है। समाज के प्रत्येक स्तर के लोगों का किसी भेदभाव बिना ध्यान रखने का संस्कार सहस्त्र वर्षों से हमारे रक्त में बह रहे है। शौच क्रिया के पश्चात टिश्यू पेपर द्वारा आधाअधूरा साफ करनेवाली प्रजा हम को पानी का प्रयोग करते देख हमारा उपहास उडाती थी। वो वहां तक कि फाइव स्टार हॉटलें, जहां अस्सी प्रतिशत ग्राहक भारतीय होते है, वहां केवल टिश्यू पेपर टॉइलेट में रखने लगी थी। पागल ज्ञानी का उपहास करे इस प्रकार यह प्रजा हम को हाइजिन और स्वच्छता का पाठ पढातीं। हॉलिवूड की फिल्मों के द्वारा दुनिया को प्रभावित करना चाहते शहर लॉस एन्जलस की गलियों में सार्वजनिक रूप से शौच करते अमरिकी लोगों का विडियो यू ट्यूब पर आप देख लेना। सिलिकॉन वैली के नाम से पूरी दुनिया की आई. टी. इन्डस्ट्री पर छा गये सन फ्रान्सिस्को के मुख्य स्थानों में (डाउन टाउन) झौंपडपट्टी में रहेते हजारों अमरिकी लोगों का घिन आये ऐसा विडियो पूरी दुनिया ने यू ट्यूब पर देख लिया।

भारत के गौरव की कोई भी बात शुरू हो तो भारत के ही कुछ लोग अपना नाक चडायेंगे। उन के मन में ठस चूका है कि अपने देश की, अपने लोगों की, अपने धर्म की और अपनी संस्कृति की बुराई करेंगे तो प्रॉग्रेसिव में गिनती होगी, सुधरे हुए और प्रगतिशील गिने जाएंगे। हट्ट।

कोरोना की आपत्ति ने भारत की ओर से शेष विश्व को बहोत बड़ा सबक सिखलाया है। इम्यूनिटी अथवा रोगप्रतिकारक शक्ति बढाने के लिए फास्ट फूड भोजन नहीं चलनेवाला। भोजन में हल्दी, नीम की पत्ती, राई, जीरा, अजवांइन, आदि डझन जितनी सामग्रीओं का बारीबारी से नियमित उपयोग करना पडेगा। विटामीन की गोलियां – दवा- टैब्लेट- इन्जैक्शन अथवा प्रॉटीन सप्लीमैन्ट्स जैसे कृत्रिम उपाय आप के शरीर को खोखला कर देंगे।

दूसरी बात भारत ने दुनिया को यह सिखलाई कि डिझास्टर मेनेजमेन्ट हमारे लिए बांये हाथ का खेल है क्योंकि समाज के छोटे से छोटे व्यक्ति की हम को चिंता है। समाज के सब से श्रीमंत माने जानेवाले परिवार जब देश में संकट आता है तो सरकार सभी स्थान पर मदद पहोंचाएगी ऐसा मानकर कुर्सी में आराम से बैठे नहीं रहते। अपना भंडार खुल्ला कर देते हैं।

जो लोग आर्थिक रूप से बहोत अच्छी स्थिति में नहीं है ऐसे लोगों में भी देशप्रेम और सेवाभावना कूट कूट कर भरी हुई है। वह अपने प्राण को संकट में डालकर घर के बहार निकल कर दिनरात देखे बिना वंचितो को बनीबनाई रसोई, राशन, जीवन आवश्यक चीजवस्तुएं, दवाई और चिकित्सा सहाय पहोंचाते है। ऐसे लाखों लोग है जिनको प्रसिद्धि नहीं मिलती, उन की तस्वीर समाचारपत्रों में नहीं छपती, उनका काम चूपचाप चलता रहता है, निरंतर चलता रहता है, कोरोना ही नहीं, किसी भी प्राकृतिक – अप्राकृतिक आपत्ति के काल में चलता रहता है।

भारत एक समृद्ध देश है। ऐसा न होता तो इतनी बडी महामारी से निपटने के लिए भारत को कटोरा लेकर दूसरे देशों के पास भीख मांगने निकलना पडा होता। उस के स्थान पर भारत आज अमरिका समेत अनेक देशों को दवाई और अन्य चिकित्सालक्षी मालसामान दे रहा है, जाओ, ले जाओ।

भारत की इस सहस्र्त से अधिक वर्ष प्राचीन समृद्धि हमारी संस्कृति में रच बस गये त्याग और संयम का परिणाम है। हम व्यर्थ व्यय में नहीं मानतें। रिसायकलिंग में मानते हैं। और इस प्रकार की गई बचत को समय आने पर उदार हाथों से वंचितो में बांटते है। स्वार्थ और संकुचित मन तो अंधानुसरण से आयें। हमारी उदारता ओम् सहनाववतु, सहनौभुनक्तु का रटण करने में ही समाप्त नहीं हो जाती, सहस्त्र से अधिक वर्षों से हम इस का पालन कर रहे है- सब साथ मिलकर भोजन करें, कोई भूखा न रहे, अबोल पशु भी नहीं। गाय आदि पशुओं के लिए भोजन में से एक हिस्सा अलग निकाल लेने की परंपरा आज भी लाखों परिवारों में है। चींटी भी भूखी न रहे इस लिए चींटी के बिल के मुख पर आटा रख के आते हैं।

गांधीजी के मार्ग पर चलने का अर्थ यह नहीं है कि शासन विरुद्ध विद्रोह करना, कदम कदम पर सरकार का विरोध करना। गांधीजी ने विदेशी हुकूमत के विरुद्ध आंदोलन चलाया। अब स्वतंत्रता मिल चूकी है। भारत में हमारी चुनी हुई सरकार है। प्रशासन के सामने, शासन और प्रशासन विरुद्ध पुलिस-कॉर्ट-राजनेताओ और उद्योगपतिओं के विरुद्ध, हमारी संस्कृति के विरुद्ध सतत अपशब्द बोलते रहेने का वातावरण रशिया-चीन से आयात किये गये साम्यवाद ने भारतीय मानस में बनाया। दुनियाभर में कलंकित हो चूके वामपंथीओने भारत की स्वतंत्रता के पश्चात् के वर्षों में दुनिया एवम् भारत का भी बहोत बड़ा नुकसान किया। प्रचार-प्रसार-शिक्षा के माध्यमों पर हावी हो कर हम को अपने देश के विरुद्ध बोलते कर दियें।

कोरोना आने के पश्चात सत्य हमारे सामने है: हम बहोत अच्छें लोग हैं।

सायलन्स प्लीझ!

डॉक्टर पर किया गया हमला अब गैरजमानती गुना माना जाएगा। टीवी पर समाचार सुनते ही मेरे फैमिली डॉक्टर ने उनकी पत्नी के सामने जैसे कि वह युद्ध जीत गये हो ऐसी प्रभावभरी दृष्टि से देखा था।
-वॉट्सएप पर पढा हुआ।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here