मालेगांव, समझौता, हैदराबाद: याद हैं ये सभी बम ब्लास्ट?

गुड मॉर्निंग – सौरभ शाह

(मुंबई समाचार, मंगलवार- २६ मार्च २०१९)

समझौता एक्सप्रेस बम ब्लास्ट केस, हैदराबाद का मक्का मस्जिद बम ब्लास्ट केस और मालेगांव का साइकल बम ब्लास्ट केस. इन तीनों ही मामलों की जड में मुस्लिम आतंकवादी थे. ये तीनों घटनाएँ मुस्लिमों को उकसाने, उन्हें दंगा फैलाने के लिए उत्तेजित करने और देश में हिंदू-मुस्लिम वैमनस्य बढाने के उद्देश्य से प्लान की गई थीं. तीनों में मुस्लिम आरोपियों को गिरफ्तार किया गया था और तीनों में ही मूल आरोपियों को छोडकर स्वामी असीमानंद, साध्वी प्रज्ञादेवी, लेफ्टिनेंहट कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित सहित कई हिंदुओं को आरोपी बनाकर उन्हें टॉर्चर करके उनसे कन्फेशन लेकर मीडिया में लीक किया गया था. ‘हिंदू आतंकवाद’ या ‘भगवा आतंकवाद’ का भ्रम फैलाने में कांग्रेस की मुखिया सोनिया गांधी तथा उनका गुलामदल तकरीबन कामयाब हो चुका था. ये वह जमाना था जब कांग्रेस के शासन में हिंदू जनता को, हिंदू नेताओंको, हिंदू धर्म गुरुओं तथा हिंदू संस्कृति-परंपरा को बदनाम किया जा रहा था. लेफ्टिस्टों के अजेंडे को सेकुलर तथा कांग्रेसी बखूबी अमल में लाकर सफल बना रहे थे. १९९२ के बाबरी विध्वंस के बाद सेकुलर मीडिया ने हिंदू विचारधारा पर किस तरह का कहर बरसाया इसके हम सभी गवाह हैं, इसी जगह पर उसके बारे में विस्तार से लिखा जा चुका है. २००२ के गोधरा हिंदू हत्याकांड को ढंकने के लिए सेकुलर मीडिया ने किस तरह से गुजरात दंगों को प्रचारित किया, किस तरह से गुजरात को, गुजरातियों को तथा दुनिया भर के गुजरातियों के चहेते बन चुके गुजरात के तत्कालीन मुख्य मंत्री को बदनााम करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी थी, इस संबंध में ताजा इतिहास हम भूले नहीं हैं. कांची के शंकराचार्य जगद्गुरु जयेंद्र सरस्वती को वर्ष २००४ में दिवाली के दिन हत्या के आरोप में गिरफ्तार करके इस देश के शासकों ने हिंदुओं की आस्था पर सीधा प्रहार करना आरंभ कर दिया. नौ साल बाद २०१३ में कोर्ट ने फैसला दिया कि शंकराचार्य के विरुद्ध कोई प्रमाण नहीं है, उन्हें निर्दोष घोषित किया गया. लेकिन उनकी गिरफ्तारी होने के दौरान सेकुलर मीडिया ने कांग्रेस के इशारे पर शंकराचार्य को टार्गेट करके हिंदू जनता को खूब अपमानित किया.

शंकराचार्य की गिरफ्तारी को मीडिया ने जिस तरह से एकतरफा प्रचारित किया उसके बाद हिंदू जनता सहम गई थी. कोई हिंदू मानने को तैयार नहीं था कि जगद्गुरू किसी की हत्या का षड्यंत्र भी रच सकते हैं. लेकिन मीडिया ने लगातार, हर दिन उनके सिर पर चढकर बोलती रही कि अबे हिंदुओं, तुम्हारे धर्मगुरु हत्यारे हैं, खूनी हैं, मर्डरर हैं. कांग्रेसी नेता मन ही मन खुश हो रहे थे. ये वही कांग्रेसी थे जो आज मंदिरों में दर्शन करने के लिए दौड भाग कर रहे हैं, पहनना आए या न आए लेकिन धोती पहनकर माथे पर तिलक लगाकर किसी की जनेऊ उधार लेकर हिंदुओं के वोट मांगने निकले हैं. किसी जमाने में सौ चूहे खाकर बिल्ली हज करने जाती थी, लेकिन अब वह बिल्ली प्रयागराज, काशी, तिरुपति और सोमनाथ मंदिरों के चक्कर लगाने लगी है.

हिंदू प्राइड को, हिंदुओं के आत्मसम्मान को, भारत की अस्मिता को कुचलने के लिए कांग्रेस को इतने भर से संतोष नहीं हुआ. कपटी नेता अपने वोट बैंक को खुश रखने के लिए ऐसी काल्पनिक थियरी की खूब पतंग उडा रहे थे कि हिंदू भी धर्म के नाम पर आतंक फैलाते हैं. उसी दौरान ८ सितंबर २००६ को मुंबई से २९० किलोमीटर दूर नाशिक के करीब मालेगांव की मस्जिद के पासवाले कब्रिस्तान का करीब शुक्रवार की नमाज के समय दोपहर सवा एक बजे दो साइकिलों पर बंधे बम फूटे. उस दिन शबे बारात का उत्सव था, इसीलिए मुस्लिम श्रद्धालुओं की भारी भीड थी. ४० लोगों की मौत हुई, १२५ घायल हुए थे. महाराष्ट्र एंटी टेररिस्ट स्क्वाड (ए.टी.एस.) की जांच मे सामने आया कि स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) नामक प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन के सदस्यों ने ये बम विस्फोट कराए हैं. महीने भर बाद, ३० अक्टूबर २००६ को इस केस में दो लोगों की गिरफ्तारी हुई- शब्बीर बैटरीवाला और रईस अहमद. ६ नवंबर को घोषित किया गया कि शब्बीर ने ये षड्यंत्र रचा था और वह लश्कर ए तैयबा का ऑपरेटिव है तथा उसका साथी षड्यंत्रकारी रईस ‘सिमी’ से संलग्न है. इसके अलावा अन्य आरोपी भी पकडे गए. केस हल हो गया? नहीं. २०१३ में नेशनल इनवेस्टिगेशन एजेंसी (एन.आई.ए.) जिसकी स्थापना कांग्रेस सरकार ने २००८ में की थी, उसने इस केस में अभिनव भारत ग्रुप के लोकेश शर्मा, धन सिंह, मनोहर सिंह तथा राजेंद्र चौधरी को गिरफ्तार किया और २२ मई २०१३ को उन चारों पर आरोप तय किए गए. दूसरी ओर मकोका कोर्ट ने (महाराष्ट्र कंट्रोल ऑफ ऑर्गनाइज्ड क्राइम की कोर्ट) ए.टी.एस. द्वारा पकडे गए उन आठों मुस्लिमों को इस केस से मुक्त कर दिया.

मालेगांव बम ब्लास्ट केस के चोर दिन बाद १२ सितंबर २००६ को सोनिया गांधी के कठपुतली प्रधान मंत्री जनाब मनमोहन सिंह ने मीडिया में जो बयान दिया, वह ‘हिंदू आतंकवाद’ का भ्रम फैलानेवाली सीढी का पहला चरण था. जनाब मनमोहन सिंह ने कहा था:‘(इस मालेगांव केस में) हिंदू समूहों का हाथ है या नहीं, इस बारे में इस समय कुछ भी कहना ठीक नहीं होगा.’ ये कहकर उन्होंने संकेत दे दिया कि उनकी सरकार जांच को किस दिशा में ले जाना चाहती है. और २०१३ में सभी मुस्लिम आरोपियों को छोडकर अभिनव ग्रुप के चार सदस्यों को पकड कर जॉंच एजेंसियों ने मनमोहन वाणी को सत्य साबित कर दिखाया. अभिनव भारत संगठन निवृत्त मेजर रमेश उपाध्याय ने शुरू किया है और ले. कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित सहित कई देश प्रेमी तथा रणनीतिक संदर्भ में भारतीय रक्षा दल के कई अधिकारी भी इस संगठन के शुभेच्छु हैं. कर्नल पुरोहित को भी मालेगांव ब्लास्ट के अन्य एक केस में पकड कर बिना कोई चार्ज फ्रेम किए ही नौ साल जेल में रखा गया. २९ सितंबर २००८ को मालेगांव में हीरो होंडा मोटर साइकिल में रखे बम धमाने में भाजपा के विद्यार्थी संगठन ‘अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद’ (एबीवीपी) को लिप्त बताकर कर्नल पुरोहित के अलावा साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को भी गिरफ्तार किया गया. इसके अलावा विश्‍व हिंदू परिषद सहित अन्य हिंदू संगठनों के लिप्त होने की बात जांच में सामने आई थी, कुल नौ लोग जिसमें मारे गए थे, उस मालेगांव-टू केस की जांच का नेतृत्व करनेवाले मुंबई एटीएस के चीफ हेमंत करकरे ने साध्वी प्रज्ञादेवी को अर्धनग्न करके उन पर कैसे कैसे अत्याचार किए थे, इसका उल्लेख खुद साध्वी प्रज्ञादेवी ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा नौ साल बाद जमानत पर छोडे जाने के बाद टीवी के कैमरे के सामने किया है. रूह कांप जाती है. इन्हीं हेमंत करकरे ने इस केस के ढाई महीने बाद २६/११ के दिन अजमल कसाब और उसके साथियों द्वारा की गई गोलीबारी में अपनी जान गंवा दी. आर.वी.एस. मणि की पुस्तक ‘द मिथ ऑफ हिंदू टेरर: इनसाइडर अकाउंट ऑफ मिनिस्ट्री ऑफ होम अफेयर्स’ में २६ नवंबर २००८ को मुंबई की होटल ताज, सीएसटी, कैफे लियोपोल्ड इत्यादि में हुए बम धमाकों-गोलीबारी में दस पाकिस्तानी आतंकवादियों ने करीब पौने तीन सौ नागरिकों को मार दिया था, उस संदर्भ में भी एक रहस्यमय मामला लिखा है. नाम धाम सहित उन्होंने लिखा है. २६/११ की घटना के लिए पाकिस्तानी आतंकवादियों को दिल्ली-मुंबई में उच्च पदों पर विराजमान किन किन कांग्रेसी नेताओं ने साथ दिया था, ये बातें सबसे पहले वही प्रकाश में ले आए. २६/११ के हमले के बाद कांग्रेस ने क्यों पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक नहीं किया, इसका जवाब इस प्रकरण से आपको मिलता है. २६/११ की घटना अब भी हम सभी के मन में ताजा है. मालेगांव केस को हम भूल चुके हैं. समझौता एक्सप्रेस और हैदराबाद की मक्का मस्जिद बम ब्लास्ट मामलों की जानकारी भी हमारी स्मृति से तकरीबन मिट चुकी है. लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए. यहूदी जिस तरह से हिटलर के अत्याचारों को याद रखे हुए हैं, होलोकॉस्ट म्यूजियम बनाया है, ताकि आनेवाली पीढियॉं भी जातीय विध्वंस की उन दुखद स्मृतियों को सहेज कर रखते हुए सतर्क रहें, उसी प्रकार से भारत की हिंदू जनता को भी २७ फरवरी २००२ को हुए गोधरा हिंदू हत्याकांड को भूलना नहीं चाहिए. १३ अप्रैल १९१९ को ३७९ देशप्रेमी जिसमें शहीद हुए थे उस अमृतसर शहर का जलियांवाला बाग आज एक राष्ट्रीय स्मारक बन चुका है. उसी तरह से मालेगांव, समझौता, हैदराबाद केस में कांग्रेस द्वारा किस तरह से पाकिस्तानी आतंकियों तथा भारतीय मुस्लिम आतंकवादियों को रिहा करके राष्ट्रप्रेमी हिंदुओं को उसमें फंसाया गया और कांग्रेस सरकार के दौरान किस तरह से हम सभी के मन में हमारे धर्म के प्रति आस्था को भ्रमित करने का प्रयास किया गया, यह भी हमें कभी नहीं भूलना चाहिए ताकि भविष्य में हम सतर्क रहें. मणि सर की पुस्तक में प्रवेश करने से पहले इतनी पूर्व भूमिका हो तो चित्र स्पष्ट हो जाएगा, क्योंकि मीडिया के सेकुलर लेफ्टिस्ट हमारी आंखों में धूल झोंकने में तकरीबन सफल हो गए थे.

आज का विचार

ध्यान रखिए, आपकी संगत ही आपका निर्माण करेगी. आप जिस तरह के लोगों के साथ उठेंगे बैठेंगे, वैसे ही आप बन जाएंगे. सच्चाई ये है कि आप ऐसे लोगों की ही सोहबत की तलाश में घूमते हैं, जिनकी तरह आप बनना चाहते हैं.

– ओशो रजनीश

एक मिनट!

आई स्पेशलिस्ट मरीज की आँखों को जांचकर: आप कांग्रेसी हैं?

मरीज: हां, आपको कैसे पता चला?

डॉक्टर: आपकी आंखों में जरा भी शर्म नहीं बची है.

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