हर केस में मुस्लिमों को छोडकर स्वामी असीमानंदजी को आरापी बनाया गया

गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह

(मुंबई समाचार, बुधवार – २७ मार्च २०१९)

मालेगांव बम ब्लास्ट मामलों के बाद समझौता एक्सप्रेस के मामले को याद कर लेते हैं. बांग्लादेश का विभाजन करनेवाले १९७१ के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद भारत का हाथ, अपनी सेना की बहादुरी के कारण हर तरह से ऊपर था. उस समय भारत ने चाहा होता तो पाकिस्तान से उसके द्वारा अधिकृत हमारे कश्मीर के प्रदेश के अलावा और भी बहुत कुछ हासिल कर लिया होता. लेकिन राहुल गांधी की दादी और तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने `शिमला समझौता’ करके भारतीय रक्षा बलों की तीनों शाखाओं की बहादुरी पर पानी फेर दिया. ३ जुलाई १९७२ में शिमला में हुई संधि की असल में कोई जरूरत नहीं थी. पाकिस्तान की नाक दबाने के बजाय हमारे राजनेताओं ने पाकिस्तान की शरणागति स्वीकार ली. १९७१ के युद्ध में भारत ने पाकिस्तान का जीता हुआ प्रदेश लौटाने का निर्णय किया. पाकिस्तान के जिन ९३,००० सैनिकों को युद्धबंदी बनाया गया था उन्हें भी उनको खिलाने पिलाने का खर्च लिए बिना, लौटा दिया गया. खाया पीया कछ नहीं, गिलास तोडा बारह आना. जैसे कि `शिमला समझौते’ की एक धारा के अनुसार भारत – पाकिस्तान के बीच ट्रेन का आवागमन शुरू करने की बात को स्वीकार किया गया था. इस शर्त के अनुसार आजादी के बाद पहली बार १९७६ में अमृतसर और लाहौर के बीच ५२ किलोमीटर को जोडनेवाली समझौता एक्सप्रेस शुरू की गई. पहले यह प्रतिदिन चलती थी. १९९४ के बाद सप्ताह में दो बार चलने लगी. अभी यह ट्रेन सीधे लाहौर नहीं जाती. दिल्ली से चलकर अटारी तक जाती है. अटारी से समझौता एक्सप्रेस शुरू होकर लाहौर तक का सफर तय करती है. अटारी स्टेशन पर सभी यात्रियों को उतर कर दूसरी ट्रेन में बैठना होता है और पाकिस्तान के वाघा बॉर्डर स्टेशन पर सबकी फिर से जांच होती है. जब दोनों देशों के संबंध बिगडते हैं तब बीच बीच में इस ट्रेन की सेवा को रोक दिया जाता है. भारी सुरक्षा के तहत चलनेवाली यह ट्रेन २०१२ में (८ अक्टूबर को) लाहौर से भारत की ओर रवाना हुई तब वाघा बॉर्डर के पास उसमें से १०० किलो हिरोइन और ५०० राउंड गोलियां मिली थीं. बालाकोट की एयर स्ट्राइक के बाद, २८ फरवरी २०१९ से समझौता एक्सप्रेस फिर एक बार पटरी से उतर गई है.

१८ फरवरी २००७ को नई दिल्ली से रवान हुई समझौता एक्सप्रेस ट्रेन के दो डिब्बों में हरियाणा के पानीपत के करीब दीवाना स्टेशन के पास बम विस्फोट हुए. कुल ७० यात्रियों की जान गई जिसमें अधिकांश पाकिस्तानी थे. इस केस में सबसे पहले अजमत अली नामक पाकिस्तानी को पकडा गया जिसे १४ दिन तक पुलिस कस्टडी में रखकर छोड दिया गया. इस मामले के इनवेस्टिगेशन ऑफिसर (आई.ओ.) गुरदीप सिंह पर किसका दबाव था? ये रहस्य अभी तक उद्घाटित नहीं हुआ है. उसके बाद `सिमी’ के चीफ सफदर नागोरी, कमरूद्दीन नागोरी तथा अमिल परवेज की गिरफ्तारी हुई. उन्होंने अब्दुल रजाक का नाम बताया. रजाक ने पाकिस्तानी साथियों की मदद से ये कांड किया था. यह जानकारी मिली. इस बम ब्लास्ट का खर्च लश्कर ए तैयबा के एक प्रभावी ऑपरेटिव आरिफ कसमानी द्वारा किया गया था, यह जानकारी भी मिली. अमेरिकी जांच एजेंसियों तथा युनायटेड नेशन्स की सिक्योरिटी काउंसिल ने भी आरिफ कसमानी को जिम्मेदार ठहराया.

लेकिन २०१० में इस जांच ने यू टर्न ले लिया. मुस्लिम आरोपियों को छोड कर ३० दिसंबर २०१० को नेशनल इनवेस्टिगेशन एजेंसी ने दावा किया कि स्वामी असीमानंद इस बम ब्लास्ट के मास्टर माइंड हैं, इसके सॉलिड एविडेंसेस हमारे पास हैं. ऐसा भी कहा गया कि असीमानंदजी ने अपने `अपराध को स्वीकार’ कर लिया है. साथ ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर.एस.एस.) का हाथ होने की बात भी कही गई. संघ के उस समय के प्रवक्ता राम माधव ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि संघ को बदनाम करने की ये चाल है. मार्च २०११ में असीमानंदजी ने कहा कि मुझे मानसिक और शरीरिक यातनाएँ देकर मुझसे बयान दिलवाया गया है. असीमानंदजी तथा अन्य हिंदू आरोपियों पर केस चला. पिछले सप्ताह कोर्ट ने फैसला दिया. असीमानंदजी और शेष सभी हिंदू आरोपियों को निर्दोष घोषित किया गया. जो षड्यंत्र रचना और उसे अमल में लाने में मुस्लिम आतंकवादियों का हाथ था, उन्हें छोडकर `हिंदू आतंकवाद’ का भ्रम फैलाने का कांग्रेस की एक चाल विफल हो गई.

१८ मई २००७ को हैदराबाद के प्रसिद्ध चार मीनार के पास स्थित मक्का मस्जिद के वजूखाने के पास पाइप बम फटता है. १६ मुस्लिमों की मौत हो जाती है. ३२ मुस्लिम युवाओं को ये षड्यंत्र रचने के लिए पकडा जाता है. फिर एक बार, यहां भी स्वामी असीमानंदजी कांग्रेस की सरकार के लिए एक प्यादे के रूप में काम आते हैं. असीमानंदजी का `कंफेशन’ आता है. उन `निर्दोष बेचारे’ मुस्लिम युवाओं को छोड दिया जाता है. कर्नल पुरोहित को भी इसमें लिप्त किया जाता है. एनआईए की कोर्ट में असीमानंदजी तथा कर्नल पुरोहित सहित किसी भी हिंदू के खिलाफ आरोप साबित नहीं होते. सभ को निर्दोष छोडा जाता है. १४ फरवरी २०१८ को असीमानंदजी को निर्दोष मुक्त करने का फैसला जब आया तब हैदराबाद की एनआईए कोर्ट में मैं मौजूद था और असीमानंदजी जब कोर्ट से बाहर निकले तब उन्हें मैने वंदन किया था, इस बात को मैने इसी कॉलम में विस्तार से लिखा है.

मालेगांव, समझौता और हैदराबाद के अलावा ११ अक्टूबर २००७ को रमजान के महीने में, अजमेर शरीफ की मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में टिफिन बम से हुए धमाके में दो लोगों की मौत हुई थी, इस केस में भी स्वामी असीमानंदजी तथा अन्य हिंदुओं को तथा अभिनव भारत ग्रुप को आरोपी बनाया गया था. पाकिस्तानी जासूसी संस्था इंटर सर्विसेस इंटेलिजेंस (आई.एस.आई) से संबद्ध दो मुस्लिम आतंकवादी इस बम धमाके के लिए जिम्मेदार थे, इसके बावजूद बिना किसी प्रमाण के असीमानंदजी को उसमें फंसाया गया. इस केस में भरत रतेश्वर नामक एक हिंदूवादी को भी पकडा गया. उनके परिवार को और खुद उन्हें कैसी कैसी यातनाओं को सहना पडा, इसका उल्लेख मैने भरतभाई के वलसाड के निवास स्थान पर रात में निवास करके उनके मुंह से सुना था. हैदराबाद की मक्का मस्जिद के मामले में भी उन्हें फंसाया गया था.

`हिंदू आतंकवाद’ का भ्रम फैलाने की योजना के पीछे कांग्रेस सरकार एक तीर से दो शिकार करना चाहती थी. मुस्लिमों के वोट बैंक को संभालना आर हिंदुओं को सजा दिलाना. आतंकवाद के कारण दुनिया भर में मुस्लिम जनता की बदनामी हो रही थी. इन मुसलमानों को दुलारने के लिए, वे वोटबैंक के रूप में टिके रहें, इसीलिए कांग्रेस ने हिंदुओं को भी आतंकवाद के षड्यंत्रों में फंसाना शुरू किया. महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, और हरियाणा इन तीनों राज्यों में उस समय कांग्रेस की सरकारें थीं, केंद्र में तो थी ही. कांची के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती से लेकर गुजरात के गृहमंत्री अमित शाह को जेल में डालनेवाली कांग्रेस की सरकार के पास सीबीआई का बडा हथियार था. आगे चलकर इसमें एनआईए भी शामिल हो गई. स्वामी असीमानंद वर्षों से वेटिकन की आंखों में खटक रहे थे. जयेंद्र सरस्वती ने जिस तरह से दलितोद्धार का काम बडे पैमाने पर करके दलितों को इसाई बनने से रोका, उसी प्रकार स्वामी असीमानंद , जो मूलत: कलकत्ता के रामकृष्ण मिशन कुल के संन्यासी है, गुजरात के डांग जिले में इसाई मिशनरियों द्वारा मतांतरित किए गए वनवासियों को इसाइयत को छोडकर फिर से हिंदू बनाने का मिशन जारी रखा था.

२५ से ३० हजार धर्मांतरित हिंदुओं को वे इसाइयत से लौटाकर वापस लाए थे. असीमानंदजी के खिलाफ प्लांटेड कहानियां आपने सेकुलर टीवी चैनल्स पर देखी होंगी. वामपंथियों ने असीमानंदजी को खूब बदनाम किया. लेकिन सांच को आंच नहीं. मोरारीबापू ने डांग के आहवा में जाकर शबरी कुंभ करके जागृति फैलाई थी. असीमानंदजी के कार्य को उसके कारण गति मिली. इन सभी बातों के प्रमाण आपको आर.वीर.एस. मणि की किसाब `द मिथ ऑफ हिंदू टेरर’ में आपको एक एक करके मिलते जाएंगे. इन प्रमाणों तक पहुंचने से पहले इतनी सारी (दुखद) स्मृतियों को ताजा करना जरूरी था.

आज का विचार

मोदी के नाम का खौफ इतना बडा है कि गुलाम अपने बच्चों को ५५ के बाद सीधे ५७ की गिनती सिखाने लगे हैं.

एक मिनट!

बका: आपके बच्चे की सगाई क्यों टूटी?

पडोसी: कांग्रेस का भूत उस पर ऐसा चढा कि उसने एफबी में हार्दिक पटेल की तरह ही `मैं भी बेरोजगार’ लिख डाला….

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here