गुडमॉर्निंग- सौरभ शाह
(मुंबई समाचार, सोमवार,१८ मार्च २०१९)
गुलजार साहब कहते हैं कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में हमारे पास ऐसे गायक हैं जिनका गाना रेकॉर्डिंग में पहले ही टेक में ओके हो जाता है. लताजी, आशाजी, सुरेश वाडकर, सोनू निगम और अनुराधा पौडवाल के नाम गुलजार साहब इस सूची में गिनाते हैं. ये सभी गायक गीत को अपने अक्षरों में कागज पर लिखकर कहां पर पॉज लेना है, कहां जोर देना है, कौन सा शब्द किस तरह से गाना है, ये सब दर्ज कर लेते हैं. फिर वे गीत रेकॉर्ड करना शुरू करते हैं और एक ही टेक में ओके हो जाता है.
यहॉं मुझे गुलजार साहब का गीत याद आता है जो मदन मोहन का स्वरबद्ध किया, लताजी का गाया है. ‘मौसम’फिल्म का ये गीत रेडियो पर सुनाई दे रहा है, इस प्रकार से शर्मीला टैगोर पर फिल्माया गया है. रूके रुके से कदम,रुक के बार बार चले…. आप ध्यान से गीत सुनिएगा.पहली ही पंक्ति में तीन बार रुके/रुके शब्द रिपीट होता है.कदमों की लडखडाहट, किस दिशा में बढना है, यह बात कवि ने अपने खूबसूरत और अनूठे अंदाज में की है. मानो सोने पे सुहागा चढाते हुए लताजी ने एक ही पंक्ति में आने वाले इन तीनों एक समान शब्दों को जिस अंदाज से उच्चरित किया है, उस पर आप ध्यान दीजिएगा. पहली बार ‘रूके आता है तब ‘र’की ध्वनि डेढ ‘र’ जैसी सुनाई पडेगी, ‘र् रुके’ जैसा. मानो चलते चलते लडखडाहट हो रही है, ऐसा महसूस हाता है.बाद वाला ‘रूके’ शब्द (रुके से कदम वाले ‘रुके’ में)आपको कदम ठहर जाने की फीलिंग आएगी. और तीसरी बार जब ‘रुक आता है (रुक के बार बार चले) तब ‘रुक’का ‘क’ शब्द आधा यानी‘क्’ सुनाई देगा जिससे ‘रुक’के बाद वाले ‘के’ के बीच छोटा सा पॉज आता है, मानो अटके हुए कदम कुछ ठिठक कर आगे बढ रहे हों. लताजी की गायकी का ये कमाल है.केवल स्वर द्वारा वे सारा चित्र खडा करती हैं, कवि के हर शब्द को सजाती हैं और संगीतकार की ट्यून को पूरा पूरा न्याया देती हैं.
लताजी ’जिया जले’ गाकर मुंबई लौट आईं लेकिन ए.आर. रहमना के लिए गीत अभी अधूरा था. उसमें दो अंतरों के बीच संगीत(इंटरल्यूड म्यूजिक) जोडना था. रहमान का फोन आया: ‘गुलजार साहब, मैने दो अंतरों के बीच डालने के लिए मेल-फिमेल की आवाज में रेकॉर्डिंग कर ली है. शब्द मलयालम में हैं. आप उसका हिंदी अनुवाद कर देंगे?’
गुलजार ने फोन पर कहा,‘सुनाइए’. रहमान ने रेकॉर्डिंग सुनाई: ‘पुचिरी तंजी को चिक्को (तेरी मासूम मुसकान मुझे प्रसन्न करती है), मुंतिरी मतोली चिंतिक्को (अंगूर जैसे मीठे चुंबन) मंजानि वर्ना चुंतारी वावे (ऐ,मीठी, मीडी छोटी लडकी) तंगिनक्का तकादिमी आदुम तन्का निलवे (स्वर्णमयर चांदनी की तरह नृत्य करती हुई) तन्का कोलुसलै (क्या तुम ही मेरी सोने की पायल हो?) कुरुकम कुपिलै (क्या तुम ही कुहुकती हुई कोयल हो) माराना मैयैललै? उम तंगा निलव होये (क्या तुम ही नृत्य करता मोर हो?)
इन मलयालम शब्दों का जादू गुलजार को स्पर्श कर गया. उन्होंने कहा,‘यह भाषा नहीं समझनेवाले श्रोताओं को भी ये शब्द छू जाएंगे.आप उसका हिंदी में अनुवाद करने के बजाय ओरिजिनल मलयालम में ही उपयोग करें तो गीत काफी अनोखा बन जाएगा.’ गुलजार के इस सुझाव को रहमान ने मान लिया. कई बार गीत में ओवरऑल इम्पैक्ट का महत्व अधिक होता है, शब्दों का अर्थ समझ में आता है तो अच्छा ही है, समझ में नहीं आता है तो भी उन शब्दों की ध्वनि से निर्मित होनेवाला वातावरण गीत को स्मरणीय बना देता है.
गुलजार याद करते हैं कि‘दिल से’ के एग अन्य गीत ‘ऐ अजनबी’ में उदित नारायण ने रेकॉर्डिंग पूरी कर ली उसके बाद रहमान ने फोन करके कहा कि इस बार दो अंतरों के बीच कोरस नहीं बल्कि सिंगल फीमेल वॉइस में कुछ शब्द चाहिए, लेकिन उन शब्दों में ‘पा’ ध्वनि होनी चाहिए. गुलजार ने सजेस्ट किया, ‘पाखी पाखी परदेसी’.रहमान ने पूछा कि इन शब्दों का कोई अर्थ भी निकलता है या फिर केवल ध्वनि के लिए आप सुझा रहे हैं. गुलजार ने समझाया:‘संस्कृत में पाखी का अर्थ पक्षी होता है,बंगाली में भी पक्षी को पाखी कहते हैं.’ उसके पीछे परदेसी शब्द रखकर कवि ने परदेसी शब्द रखकर कवि ने संकेत किया है कि ये पक्षी ऋतु बदलने पर स्थलांतर करनेवाला पक्षी है, माइग्रेटरी बर्ड है. यानी एक दिन ऐसा आएगा जब वह उडकर फिर अपने वतन लौट जाएगा.रहमान ने महालक्ष्मी अय्यर की आवाज मे इन शब्दों को रेकॉर्ड किया और आप ‘दिल से’ का अलबम सुनेंगे तो‘जिया जले’ तथा ‘ऐ अजनबी’ गीतों में इस जादूगरी को सुन सकते हैं.
गुलजार खुद गीतकार हैं लेकिन वे दृढतापूर्वक ये मानते हैं कि फिल्म में गीत की लोकप्रियता में सबसे बडा योगदान उसकी ट्यून का होता है. नॉर्मल श्रोता भी गुनगुना सके, ऐसी ही धुन लोकप्रिय होती है और उसके बाद उसके शब्दों पर ध्यान जाता है. शब्द समझ में आने पर वह धुन आपके मन में पक्की बैठ जाती है. और एक बार शब्द होठों पर चढ जाते हैं तो आपको उन शब्दों का अर्थ जानने की जिज्ञासा पैदा होती है. इस प्रकार एक एक सीढी चटकर आप आगे बढते जाते हैं.
‘दिल से’ का आइकॉनिक सॉन्ग ‘चल छैयां, छैयां, छैयां’के बारे में गुलजार कहते हैं कि प्रेम की छांव में आगे बढने की बात इस गीत में है.
दुनियादारी की पीडा से बचना हो तो प्यार की शीतल छाया के नीचे चलते चलते आगे बढना होता है, ऐसा संदेश गुलजार साहब ने जब दिया तभी हमें ध्यान में आया. वर्ना अभी तक तो हम मलाइका अरोरा की लचकती कमर पर ही इतना ध्यान दे रहे थे कि गीत के शब्द क्या कहना चाहते हैं उसकी परवाह तक नहीं की!
आज का विचार
मित्रों, कितना अच्छा लगता है कि अभी तक कहीं से होली कैसे खेलें, या पानी बचाने का कोई भी मैसेज नहीं आया है. अच्छे दिन आ गए.
-व्हॉट्सएप पर पढा हुआ
एक मिनट!
बका: गुलाल क्या भाव से दे रहे हो?
दुकानदार: साहब, बडे ब्रांड वाला गुलाल ५० रुपए किलो बेच रहे हैं, राहुल ब्रांड ५० रुपए किलो और मायावती-अखिलेश ब्रांड पांच रुपए किलो.
बका: इसके अलावा और कोई ब्रांड है?
दुकानदार: है ना साहब,बहुत ही ऊंची चीज है.केजरीवाली ब्रांड ५,००० रुपए किलो!
बका: इतना महंगा! इसमें कुछ खास है क्या?
दुकानदार: जी साहब, एक बार किसी के चेहरे पर लगा दें तो ही दस-दस मिनट में रंग बदलता रहेगा!