सावरकर की हस्त लिखित प्रति थ्रिलर की तरह घूम-फिर कर पुस्तक के रूप में प्रकाशित हुई

संडे मॉर्निंग- सौरभ शाह

(मुंबई समाचार: रविवार, १७ मार्च २०१९)

१० मई १९०८ को लंदन के इंडिया हाउस में १८५७ की क्रांति की ५१ वर्षगांठ अनूठे तरीके से मनाई गई. इंग्लैंड और शेष यूरोप से सैकडों भारतीय देशभक्तों ने इस उत्सव में भाग लिया. सभी ने माथे पर चंदन लगाकर १८५७ के हुतात्माओं पुण्य स्मरण किया और भौतिक सुखों को ठोकर मारकर भारत की स्वाधीनता के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने का संकल्प लिया. १८५७ की क्रांति का संदेश रोटी को माध्यम बना कर प्रसारित किया गया. क्रांति की ज्वाला प्रज्ज्वलित करने वाले वीर सावरकर लिखित पत्रक ‘ओ मार्टयर्स’ का पठन और वितरण किया गया. इस अनोखे अंदाज वाले उत्सव का समाचार ब्रिटिश समाचार पत्रों में छा गया. हर अखबार ने इस पत्रक को देशद्रोह और राजद्रोह मानकर उसे बगावत की चिंगारी करार दिया.

ब्रिटिश गुप्तचर विभाग ने तुरंत सावरकर की पुस्तक की हस्तलिखित प्रति हासिल करने के लिए आकाश पाताल एक कर दिया. इस मेन्युस्क्रिप्ट को ब्रिटिश सरकार की आंख में धूल झोंककर किस तरह से अनेक देशों में घुमाकर इसका प्रकाशन हुआ और प्रकाश न से पहले उस पर किस तरह प्रतिबंध लगाया गया, इसका अधिकृत इतिहास उस समय मुंबई से प्रकाशित होनेवाले मराठी साप्ताहिक ‘अग्रणी’ के १० जनवरी १९४७ के अंक में जी.एम. जोशी द्वारा लिखे लेख में पढने को मिलता है. इसके अलावा दिल्ली के नेशनल आर्काइव्स ऑफ इंडिया में भी इसे संरक्षित रखा गया है. जी.एम. जोशी लिखते हैं कि सावरकर ने इस हस्तलिपि को प्रकाशित करने के लिए अपने बडे भाई बाबाराव सवरकर को नासिक भेजा. ब्रिटिश गुप्तचर संस्थाएं इस मेनुस्क्रिप्ट को खोज रही थीं. सावरकर ने पेरिस से प्रकाशित होनेवाली क्रंातिकारी सामयिक पत्रिका ‘तलवार’ में एक लेख लिखकर १८५७ का इतिहास लिखने के पीछे का अपना इरादा स्पष्ट किया था. उन्होंने लिखा कि,‘इस पुस्तक द्वारा मैं देशवासियों के मन में मातृभूमि की स्वाधीनता के लिए दूसरा निर्णायक युद्ध करने का संकल्प लेना चाहता हूँ. इस इतिहास के माध्यम से भूतकाल में हुई गलतियों से सीख लेकर स्वतंत्रता संग्राम के लिए संगठन की दिशा तथा ठोस कार्यक्रम सुझाना भी मेरा उद्देश्य है. सारे भारत में स्वतंत्रता की चिनगारी प्रज्ज्वलित करने के लिए इससे अधिक प्रभावशाली और सफल माध्यम और क्या हो सकता है? जो क्रांतियुद्ध निकट के भूतकाल में ही हो चुका है और जिसकी स्मृतियॉंह अब भी ताजा हैं, उसका शुद्ध इतिहास लोगों तक पहुँचाने जैसा सफल माध्यम और क्या हो सकता है? स्वाभाविक रूप से यह संक्षिप्त ग्रंथ साम्राज्यवादियों के लिए भारी भय का कारण बन गया.’

ब्रिटिशर्स को कहां से गंध आ गई कि मूल ग्रंथ मराठी में लिखा गया है और उसे छापने के लिए भारत में भेज दिया गया है. मुंबई प्रांत की पुलिस ने महाराष्ट्र के सभी मुख्य प्रिंटिंग प्रेसों पर एक साथ छापे मारे. सौभाग्य से जिस प्रेस में वह पुस्तक छप रही थी उसके मालिक स्वयं भी अभिनव पार्टी के साथ जुडे थे और उनके पुलिस विभाग में कार्यरत मित्र ने उस रेड के बारे में पहले ही उन्हें जानकारी दे दी थी. उन्होंने पुलिस के आने से पहले ही हस्तलिपि को अपने प्रेस से नदारद कर दिया और लंदन के बजाय सही सलामत पेरिस भेज दिया. वहां के भारतीय क्रांतिकारियों ने सोचा था कि जर्मनी में संस्कृत ग्रंथों के प्रकाशन की परंपरा है इसीलिए वहां पर देवनागरी लिपिवाली मराठी हस्तलिपि को छापना आसान होगा. हस्तलिपि को जर्मनी भेजा गया, लेकिन वहां के कंपोजिटर्स के पास संस्कृत पुस्तक प्रकाशन के लिए देवनागरी अक्षरों का सांचे तो थे, किंतु मराठी भाषा का ठीक से ज्ञान नहीं था इसीलिए सावरकर की हस्तलिखित पुस्तक को समझेगा कौन? अंतत: हस्तलिपि लौट आई.

अब क्रांतिकारियों ने तय किया कि इस ग्रंथ का जल्द से जल्द अंग्रेजी अनुवाद प्रकाशित होना चाहिए. मराठी पुस्तक के अध्याय अंग्रेजी अनुवाद के लिए अलग अलग लोगों को दिए गए. सुप्रसिद्ध क्रांतिकारी वी.वी.एस. अय्यर के मार्गदर्शन में इंग्लैंड में आई.सी.एस. और लॉ की परीक्षा की तैयारी में व्यस्त कई तेजस्वर देशभक्त मराठी विद्यार्थियों ने काफी शीघ्रता से संपूर्ण मराठी पुस्तक का अंग्रेजी अनुवाद तैयार कर दिया. अब सवाल पैदा हुआ कि इस अंग्रेजी पुस्तक का मुद्रण कहां किया जाए. ब्रिटिश गुप्तचर विभाग की पैनी निगाहों को देखते हुए इंग्लैंड में छापने का जोखिम उठाने योग्य नहीं था. पेरिस उन दिनों भारतीय क्रांतिकारियों का गढ़ हुआ करता था, लेकिन जर्मनी के विरुद्ध फ्रांस तथा ब्रिटेन का महागठबंधन हो चुका था अत: फ्रांस सरकार का गुप्तचर विभाग भी ब्रिटिश सरकार के दबाव में भारतीय क्रांतिकारियों के पीछे पडा था. जी.एम. जोशी लिखते हैं कि क्रांतिकारियों ने किसी तरह हॉलैंड के एक प्रिंटिंग प्रेस को यह पुस्तक छापने के लिए तैयार किया और ब्रिटिश जासूसों को अंधेरे में रखने के लिए ऐसा प्रचार किया गया कि पुस्तक की छपाई पेरिस में हो रही है. जी.एम. जोशी के अनुसार हॉलैंड में इस पुस्तक के छपकर तैयार होने के बाद उसकी सारी प्रतियॉं फ्रांस के सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा दी गईं जहां से उनका वितरण शुरु किया गया.

दिल्ली के नेशनल आर्काइव्ज की फाइलों से मिलनेवाली जानकारी के अनुसार न्यू स्कॉटलैंड यार्ड ने ६ नवंबर १९०८ को पुस्तक की हस्तलिखित प्रति की प्रिंटिंग संबंधी रिपोर्ट ब्रिटिश सरकार को सौंपी जो भारत सरकार को भेजी गई. १४ दिसंबर १९०८ को ब्रिटिश वाइसरॉय लॉर्ड मिंटो ने आदेश दिया कि इस पुस्तक को भारत में दाखिल नहीं होने देना है. गुप्तचर विभाग के डायरेक्टर ने १८ दिसंबर को लिखा कि ये पुस्तक बहुत ही आपत्तिजनक होगी इसमें कोई संदेह नहीं है और हमें सागरी कस्टम्स ऐक्ट की धारा १९ के तहत प्रतिबंध लगाना चाहिए, लेकिन प्रतिबंध का आदेश जारी होने से पहले ही इस पुस्तक का नाम, मुद्रणालय का पता तथा लेखक के नाम का विवरण सतर्कता के लिए हमारे पास होना जरूरी है. और ये जानकारी सिर्फ तभी मिल सकती है जब इस पुस्तक की कम से कम एक प्रति या एक प्रूफ कॉपी हमारे पास हो. २५ दिसंबर को एच.ए. स्टुअर्ट नामक अधिकारी ने टिप्पणी लिखी कि हम पोस्ट ऑफिस ऐक्ट के तहत नोटिस जारी करके इस पुस्तक को कब्जे में ले सकते हैं. गुप्तचर विभाग के निदेशक सर एडवर्ड हेनरी ने इंग्लैंड टेलिग्राम भेजकर कहा कि खोज निकालिए कि पुस्तक का शीर्षक क्या है, लेकिन इंग्लैंड का गुप्तचर विभाग इसकी जानकारी हासिल करने में नाकाम रहा. अंतत: ११ जनवरी १९९०९ को भारतीय पोस्ट ऑफिस कानून की धारा २६ के तहत उस पुस्तक पर प्रतिबंध लगाने का आदेश जारी किया गया, जिसका नाम पता नहीं है, जो पुस्तक छपी कहां है इसकी जानकारी नहीं है, जिसके लेखक का नाम ‘मिस्टर इंडिया’ के अनिल कपूर की तरह ‘अदृश्य’ है, उस पुस्तक पर प्रतिबंध लगाए जाने की ये दुनिया की पहली और आखिरी घटना रही होगी.

शेष अगले सप्ताह.

आज की बात

मिलना क्या जो ना दिखाई दे/ बेचारा सिर्फ सुनाई दे/ करते हैं हम प्यार मिस्टर इंडिया से….

– जावेद अख्तर (‘मिस्टर इंडिया’ के गीत का एक अंतरा)

संडे ह्यूमर

बका: पका, आज कल तगादा करते हैं लेकिन कोई बाकी पैसे चुका क्यों नहीं रहा है. मार्च एंडिंग सिर पर है, हिसाब करने के लिए कहो सभी से.

पका: बका: अभी एक को पैसे मांगने के लिए फोन किया तो वो कहता है: आचार संहिता जब तक खत्म नहीं होगी तब तक पैसों का लेन-देन बंद रहेगा!

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