न्यूज़ व्यूज़ : सौरभ शाह
(newspremi.com, सोमवार, ६ अप्रैल २०२०)
कल रात ९ बजकर ९ मिनट का देशव्यापी कार्यक्रम देखकर गुलजार की `गालिब’ सीरियल का एक सीन याद गया. १८५७ में अंग्रेज जिसे विद्रोह कहते थे उस भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम के बाद दिल्ली में अंग्रेज शासकों ने एक दिन हुकुम जारी किया कि सारे शहर में आज रात सभीव अपने घर के बाहर रोशनी करेंगे. जो लोग अंग्रेजों के साथ थे उन्होंने रोशनी की. जो विरोध में थे और स्वतंत्रता सेनानियों के साथ थे उन्होंने अंधेरा रखा. कल कुछ अलग हुआ. जो देशप्रेमी थे उन सभी ने रोशनी की. बाकी लोगों की परख हो गई.
लॉकडाउन का आज तेरहवां दिन है. अभी और आठ दिन घर में ही रहना है. यदि अवधि आगे न बढी तो मंगलवार, १४ अप्रैल २०२० की रात बारह बजे लॉकडाउन की समय सीमा पूर्ण हो जाएगी. उसके बाद क्या हम आजादी मनाने के लिए सडकों पर उतरकर पटाखे फोडेंगे? १५ अप्रैल को आस पडोस में रहनेवाले मित्रों या करीब रहते सगे संबंधियों से मिलने निकल पडेंगे? या फिर लोनावाला खंडाला या दमण दीव के लिए रवाना हो जाएंगे? थिएटर-मॉल-रेस्टोरेंट में गए तीन सप्ताह बीत चुके हैं तो उस मानसिक भूख को दूर करने के लिए वहां जाकर भीड करेंगे?
इनमें से कुछ भी करेंगे तो इतने दिन जो धैर्य रखा उस पर पानी फिर जाएगा. भारत में २१ दिन का लॉकडाउन है. सिंगापुर में ३० दिन का. हम मन ही मन स्वीकार कर लें कि हमारे यहां भी ३० दिन का लॉकडाउन है. १५ अप्रैल से घर से बाहर निकलने की छूट मिलेगी तब स्वतंत्रता का उपयोग टोलियां बनाकर जुटने, भीड बढाने के लिए नहीं करेंगे. जरूरत जितनी हो उतना ही बाहर जाकर लौट आना चाहिए. उबर-ओला सहित ट्रेन-बस-रिक्शा जैसे पब्लिक ट्रांसपोर्ट के साधनों का उपयोग टालेंगे. घर की गाडी स्कूटर बाइक साइकिल बाहर ले जाने के बाद सैनिटाइज करेंगे, खुद तो सैनिटाइज होंगे ही.
लॉकडाउन के समय पूरा होने पर कोरोना भाग गया है, इस भ्रम में नहीं रहना है. फिर से लॉकडाउन करना पडे, ऐसी परिस्थिति पैदा नहीं होने देनी है. १५ अप्रैल के बाद के दिनों के लिए रेलवे ने टिकट की बुकिंग शुरू कर दी है. रेलवे के कई डिब्बे आयसोलेशन वॉर्ड के लिए आरक्षित रखे गए हैं इसीलिए स्वाभाविक है कि शुरू में कुछ ही रूट्स पर ट्रेनें चलेंगी या फिर कुछ ट्रेने कम डिब्बों के साथ दौडेंगी. जिनके लिए अनिवार्य हो उन्हें रेल सेवा का लाभ मिले इसके लिए हमें रेल यात्रा टालनी चाहिए. विमान यात्राएं पंद्रह अप्रैल के बाद भी बंद रहनेवाली हैं- एयर इंडिया ने ३० अप्रैल तक अपनी सेवाएं बंद रखने की घोषणा की है.
संभव है कि लॉकडाउन की अवधि न बढे पर लॉकडाउन खुलने की प्रक्रिया को चरणबद्ध तरीके से बांटा जाय. दूकानें खुल सकती हैं पर रेस्टोरेंट, मॉल, थिएटर्स अभी और कुछ सप्ताह बंद रहें. ऐसा कोई सरकारी नियम आए या न आए पर अभी कुछ सप्ताह तक बाहर का खाना पीना बंद रखना चाहिए, बाहर से घर में मंगाकर खाना भी बंद रखना चाहिए. मुझे भी सांताक्रूज की राम श्याम की सेवपुरी खाने का मन होता है लेकिन लॉकडाउन खुलने के बाद एकाध महीने तक इंतजार करना चाहिए. दादर में `प्रकाश’ का दही मिसल भी पुकार रहा है और माटुंगा के `रामाश्रय’ का विरह तो असह्य हो गया है, फिर भी और चार सप्ताह तक लंबी जुदाई को सह लेंगे. मॉल और थिएटरों में जाना तो भूल जाइए. घर में बैठकर नेटफ्लिक्स , प्राइम सहित आधा – पौना दर्जन ओ.टी.टी पर काफी अच्छी मूवीज, सिरीज और अन्य प्रोग्राम्स आते हैं. इसके अलावा सी.डी., डीवीडी, ब्ल्यू रे डिस्क का भी बहुत बडा कलेक्शन है. मनोरंजन के लिए घर से बाहर कदम रखने की जरूरत नहीं है. टीवी और किताबें तो हैं ही. फोन भी है.
यह लॉकडाउन कोरोना की प्राकृतिक आपदा में एक आशीर्वाद के समान है. एक मित्र ने फोन पर बहुत अच्छी बात कही. कहा कि,`मैं प्रतिदिन जब ध्यान में बैठता हूं तब मुझे पता होता है कि मेरे मित्र, सगे संबंधी, सारी दुनिया ध्यान नहीं कर रही है. लेकिन लॉकडाउन के समय मुझे लग रहा है कि दुनिया में हर कोई मेरे साथ सामूहिक विपश्यना कर रहा है. इस कारण से ध्यान में एकाग्रता बढ जाती है.
नवरात्रि के नौ दिन जो उपवास किए हैं, उसे अभी तक खोला नहीं है. लॉकडाउन के अंतिम दिन तक चलेगा. नौ दिन के बदले इक्कीस दिन का उपवास. और लॉकडाउन लंबे हुआ तो उपवास भी आगे बढेगा. लॉकडाउन के अंतिम निराजल उपवास करने का विचार है. अभी जो उपवास चल रहा है उसे `उपवास’ कहने में संकोच होता है. क्योंकि दोपहर का भोजन तो पर्याप्त मिलता ही है. रात में एक फल या सादे दूध का छोटा गिलास. सुबह उठकर डिटॉक्स. शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढाने के लिए ये नुसखा कई वर्षों से जारी रखा है. एक गिलास गुनगुना पानी. उसके बाद एक ककडी-एक टमाटर- एक करेले जूसर में डालकर निकाला हुआ रस जिसमें एक छोटा चम्मच गिलोय डालनी चाहिए. इसके अलावा एक चम्मच ताजा आंवले के रस में एक चम्मच हरी हल्दी का रस डालकर उसमें पानी डालकर पीना चाहिए. कोरोना का बाप भी करीब नहीं आएगा, बशर्ते वर्षों से इस तरह इम्युनिटी बढाई हो तो. आज से शुरु करें तो भविष्य की बीमारियों के खिलाफ सुरक्षा चक्र तैयार होता जाएगा. इसके अलावा सुबह-शाम बिना दूध, बिना शक्कर वाली काली चाय का पानी लें.
इतना शरीर मे अगर शरीर में जा रहा हो तो उसे `उपवास’ कहने में शर्म आती है लेकिन जो नहीं जा रहा है, अगर उसे गिनें तो लगता है कि इन दिनों में खाने के मामले में लाइफस्टाइल पूरी की पूरी बदल गई है:
१. सुबह भारी ब्रेकफास्ट- कैंसल
२. ब्रेकफास्ट और लंच के बीच कुछ चटरपटर- कैंसल
३. लंच और डिनर के बीच शाम को पांचेक बजे की भूख के लिए जो कुछ खाया जाता है वह- कैंसल
४. रात का खाना – कैंसल
५. रात को खाने के बाद यदि काम जारी रहा या फिल्म इत्यादि देख रहे हों तो दो तीन घंटे पर जो भूख लगती है उसे दूर करने के लिए रसोई के चक्कर लगाना कैंसल.
सामान्य दिनों में टोटली जितनी कैलरी शरीर में जाती है उससे करीब तैंतीस चालीस प्रतिशत जितनी कैलरी अभी शरीर को मिल रही होगी. लेकिन स्फूर्ति गजब की लग रही है. मानसिक आराम भी बढा है. कभी आवेश में आकर ऐसा संकल्प लेने का मन करता है कि लॉकडाउन के बाद सारी जिंदगी ऐसे ही उपवास करें. लेकिन अभी उस स्टेज पर नहीं पहुंचा हूं, ऐसा एहसास होता है तो ठहर जाता हूं.
संकल्प कभी जल्दबाजी में नहीं लेना चाहिए. कोई भी संकल्प लेने से पहले धैर्य से चार पडावों के बारे में विचार करना चाहिए:
१. संकल्प: जीवन में कुछ करना है, ऐसे सपने देखना एक बाद है, उस सपने को साकार करने के लिए प्लानिंग करना दूसरी बात है और उस प्लानिंग को अमल में लाने का संकल्प करना तीसरी बात है. संकल्प लेने के बाद आपकी जिम्मेदारी बढ जाती है. अभी तक आपके मनोजगत में जो कुछ था वह अब व्यावहारिक रूप में आनेवाला है जिसके लिए आपको अपना समय, शक्ति तथा अपने संसाधनों-रिसोर्सेस का उपयोग करना होगा.
२. नियम: संकल्प लेने के बाद आपको उसके क्रियान्वयन के लिए एक रुटीन सेट करना होता है. संकल्प को अमल में लाने के लिए कई सारे नियमों का पालन करना पडता है. ये करणीय और अकरणीय बातें आपको ही तय करनी होती हैं और फिर उसका पालन करना होता है. कोई देख नहीं रहा हो तो उन नियमों को तोडना नहीं होता है.
३. आदत: जब नियमों का नियमित पालन किया जात है तब एक समय आता है जब वह आदत में परिवर्तित हो जाता है. कई बार अच्छी आदतें हमें बचपन में माता-पिता द्वारा सिखाई जाती हैं जो अभी काम आती हैं. बडे होने पर हमने कुछ अच्छी आदतें अपना ली होती हैं जो समय बीतने पर हमारे लिए पूँजी बन जाती है.
४. जीवनशैली: कई आदतें जब जीवन का हिस्सा बन जाती हैं तब वे हमारी जीवनशैली का एक अनिवार्य अंग बन जाती हैं. उसके बाद आपके संकल्प, नियम, आदत कभी नहीं छूटते. आपका मूड, आपकी सेहत, आपकी परिस्थिति इत्यादि में उतार चढाव आने पर भी वे नहीं छूटतीं.
संकल्प को जीवनशैली तक ले जाने केलिए नियम तथा आदत की कठोर तपस्या से गुरजना पडता है. ऐसी मानसिक तैयारी और शारीरिक क्षमता के बिना लिए गए संकल्प बहुत जल्दी टूट जाते हैं. जब हम टूटफूट कर भंगार का ढेर बन चुके संकल्पों को देखते हैं तब हमारा मनोबल विचलित हो जाता है. इसीलिए, संकल्प नहीं लेना चाहिए, ऐसी बात नहीं है- लेकिन संकल्प करने से पहले उसे जीवनशैली बनाने के लिए कौन कौन सी तैयारी करनी पडेगी, इसका विचार कर लेना चाहिए.
अभी के `उपवास’ को लॉकडाउन के बाद भी जारी रखना है या नहीं, ऐसा मंथन करने के बाद ये बात सूझी थी जिसे आपके साथ मैने साझा किया है.