न्यूज़ व्यूज़ : सौरभ शाह
(newspremi.com, शनिवार, २८ मार्च २०२०)
आज छह बजे जागकर सवा सात बजे यह लेख लिखने अपने स्टडी रूप में आया हूं. सुबह जल्दी उठ जाना मेरे लिए नई बात नहीं है. बाहरगांव की ट्रेन या फ्लाइट पकडने के लिए बिलकुल भोर में ही उठ जाना होता है. इससे पहले जब दोपहर के अखबार के लिए नौकरी किया करता था तब ब्रह्ममुहूर्त में उठ कर सुबह पांच बजे ऑफिस में हाजिर होकर काम पर लग जाते. (मॉर्निंग पेपर में काम करते समय मध्यरात्रि के बाद जिस समय घर लौटते थे लगभग उसी समय दोपहर के अखबार की नौकरी के लिए जाग जाते थे.)
चैत्र नवरात्रि के उपवास पहली बार किए. पहले शारदीय नवरात्रि में बिना अन्न का उपवास किया था, केवल पानी पर, यह तो आप जानते हैं. इस बार एक बार अन्न ग्रहण करता हूं. चौबीस घंटे में केवल एक ही बार भोजन. दोपहर को एक से दो के बीच. शाम होने के बाद एक छोटा फल या सादा दूध. बेशक सुबह डिटॉक्स का सालों पुराना नियम चालू ही है. एक गिलास गुनगुना पानी, एक गिलास गिलोय डालकर करेले-टमाटर ककडी का रस और एक गिलास ताजा आंवले का जूस (जिसमें फ्रेश हरी हल्दी का रस भी डाला जाता है, ऐसा एक साल पहले मेरी आंख के ऑपरेशन के बाद मेरे आदरणीय मित्र डॉ. प्रकाश कोठारी के यहां रुका था उस समय वेणूबहन ने यह हरी हल्दी वाला सिखाया था).
डिटॉक्स के कारण शरीर शुद्ध रहता है और प्रतिकारकता बढती है. कोरोना का फैलाव अधिक होने का एक कारण यह है कि लोगों की रोगप्रतिकारक शक्ति घट गई है. दिन के दौरान प्यास लगे या न लगे पानी पीते रहना चाहिए, ऐसी आदत काफी समय से है- डिहायड्रेशन से बच जाते हैं. जिस जमाने में घर से बाहर जाते थे- मॉल में, थिएटर में या किसी के साथ मीटिंग करने (आहा, क्या जमाना था वो) तब हाथ में पानी की बोतल निश्चित रहती थी. मुंबई में वैसे भी एक जगह से दूसरी जगह जाने का अंतर पैक्टिकली एक गांव से दूसरे गांव जाने जितना ही है. और अब भारत के हर प्रमुख नगर की तरह मेट्रो के निर्माण कार्य के कारण ट्रैफिक के चलते सफर पूरा करने में दुगुना-तिगुना समय लगता है. इसीलिए पानी साथ रखना चाहिए.
जब घर में रहें तब चाय का गरम पानी पीना चाहिए. दूध या अन्य कुछ भी डाले बिना. केवल डार्क सुनहरे रंग का पानी. इस उपवास के दौरान सुबह और शाम को एक एक बार पीता हूं. काठियावाडी कडक मीठी चाय, या अदरक-पुदीनेवाली मसालेवाली गुजराती चाय बचपन से कभी नहीं पी थी. इस फील्ड में आने के बाद ऑफिसेस में काम करते करते पीने लगा. लेकिन चाय का गुलाम कभी नहीं हुआ. जिस जमाने में दारू-सिगरेट लाइफस्टाइल में शामिल हो गई उस समय भी चाय (या कॉफी) का आदी नहीं था. अब तो सिगरेट छोडे चार साल से अधिक का वक्त गुजर चुका है. शराब को त्यागे दो साल पूरे होंगे.
दूध – चीनीवाली चाय किसी के यहां जाता हूं तो पी लेता हूं लेकिन घर में बिना चीनी की चाय पीता हूं. ब्लैक टी के स्वाद का ये राज है कि यह हमारी नॉर्मल टी की तरह ही गरमा गरम पिएंगे तो अच्छी नहीं लगेगी. रूप टेम्परेचर से कुछ अधिक गर्म होने तक उसे ठंडा होने देना चाहिए और फिर वाइन की तरह छोटे छोटे घूंट का आनंद लेना चाहिए. ब्लैक टी का स्वाद पसंद आ जाय तो एक संपूर्ण विश्व खुल जाता है. सैकडों प्रकार की ब्लैक टी इस दुनिया में है. मेरे घर में दर्जन से अधिक प्रकार की है. इसमें से अर्ल ग्रे और इंगि्लश ब्रेकफास्ट मेरी फेवरिट है. लेकिन यदि अनुकूलता हो तो लिप्टन यलो लेबल की एक चम्मच चाय, एक लीटर उबले हुए पानी में डालकर, गैस से उतारकर थोड ठंडा होने के बाद ठीक सवा दो मिनट (पानी कौन सा उपयोग में लाते हैं इस पर निर्भर है, कभी कभी ढाई मिनट भी हो जाता है) तक रखकर छान लेना चाहिए. उसके दो-तीन मिनट तक पानी को ऐसा ही रहने देना चाहिए, ठंडा होने देना चाहिए.फिर कप में डालकर करीब ३५ डिग्री टेंपरेचर होने पर घूंट घूंट करके पीना चाहिए. उपवास में भी दिन में दो बार ऐसी चाय तो बनती ही है.
लेकिन सुबह का हैवी ब्रेकफास्ट तो बिलकुल बंद है. ब्रेकफास्ट औ लंच के बीच `क्या खाऊं क्या खाऊं’ वाली भूख मिटाने के लिए कुछ न कुछ खाना भी बंद है. लंच के बाद दो-तीन-चार घंटे में, अभी रात के भोजन को तो काफी समय है, ऐसा सोचकर शाम को पांच बजे के आसपास हल्की भूख मिटाने के लिए कुछ खाता था, वह भी बंद है. रात को भोजन करने के बाद तुरंत नहीं पर काम काज लंबा चले तो फिर से कृत्रिम भूख लगती है और उसे संतुष्ट करने के लिए भी रसोई में जाकर कुछ न कुछ टटोलता था- अब वह भी बंद है.
अब विचार आता है कि दिन के समय हम कितना सारा व्यर्थ में खा लेते हैं.
उपवास का निश्चय जब किया तब मन में ऐसा था कि अशक्ति या सुस्ती महसूस होने पर भी नौ दिन पूरे करने ही हैं. लेकिन दूसरे दिन की सुबह, कल सुबह और आज सुबह- अशक्ति तो बिलकुल नहीं लग रही है, बल्कि स्फूर्ति महसूस हो रही है. शरीर में नई ऊर्जा का संचार होने का एहसास हो रहा है. सुबह जागकर इतनी ताजगी रहने का कारण यही है कि दोपहर को भोजन करने के बाद उसका पाचन आठ घंटे में होता है. शरीर को भोजन पचाने के लिए जो मेहनत करनी पडती है वह अब रात का भोजन बंद होने के कारण नहीं करनी पडती. शरीर की उतनी ऊर्जा बच जाती है.
हमारी एक बहुत ही गलत धारणा है कि खुराक अधिक खाएंगे तो अधिक शक्ति आएगी. ऐसा होता नहीं है. जितनी खुराक अधिक होगी, उसे पचाने के लिए शरीर की शक्ति अधिक खर्च होती है. अधिक खुराक नहीं, हल्की खुराक आपको तरोताजा रखती है, इसका प्रत्यक्ष अनुभव इन दिनों हो रहा है. नवरात्रि के बाद १४ अप्रैल तक तो उपवास जारी ही रखना है. और अभी जो शारीरिक -मानसिक स्फूर्ति लग रही है वह देखने से लगता है कि ये बात लाइफस्टाइल में जुड जाएगी. टच वुड.
अब चलिए जल्दी से तैयार होकर टीवी के सामने बैठ जाएं. नौ बजे रामायण का पहले एपिसोड आनेवाला है. बारह बजे महाभारत का पहला एपिसोड होगा, कितना सारा काम है! इस हिसाब से तो लगता है कि लॉकडाउन पूरा होने के बाद जिंदगी बडी कठिन लगने लगेगी.