गटर इंस्पेक्टर की रिपोर्ट लिखनी है या गंधी बनना है

लाउड माउथ- सौरभ शाह

(बुधवार, २० फरवरी २०१९, अर्धसाप्ताहिक पूर्ति, `संदेश’)

गांधीजी ने किसी जमाने अंग्रेज सरकार की एक रिपोर्ट को `गटर इंस्पेक्टर की रिपोर्ट’ कहा था. उस इतिहास की बात नहीं करनी है. गांधीजी के वे शब्द आज की तारीख में भी प्रासंगिक हैं, ये बात करनी है.

आप पक्का इरादा कर लें तो पत्थर से भी पानी निकालन सकते हैं. आपको अनुभव होगा कि अपने घर में आप उमंग से, खूब मेहनत करके, जी जान लगाकर विवाह का आयोजन आपने किया होगा लेकिन तब भी परिवार या जाति-समाज में कई लोग ऐसे होंगे जिन्हें कोई न कोई तकलीफ हुई होगी. फलानी सुविधा नहीं कर सके, फलां जगह पर कमी रह गई. ऐसा कहनेवाले लोग भले ही कम संख्या में हों लेकिन हर जगह होंगे. काम बडा हो या व्यक्ति बडा हो तो ऐसे लोग गटर इंस्पेक्टर का काम करने के लिए पहुंच ही जाते हैं. हम जानते हैं कि हमारे घर में पूजा स्थान भी है और बाथरूम का कचरा ले जानेवाली गटर व्यवस्था भी है. आनेवाले मेहमान को पूजा स्थल पर जाकर घी के दिए का प्रकाश देखकर धूप की सुगंध लेनी है या फिर अंधेरी मोरी की जाली खोलकर उसकी बदबू सूंघनी है- ये उस पर निर्भर है. वह अपने व्यक्तित्व का परिचय देगा. अपनी मनोवृत्ति का प्रमाण देगा.

भारत में गरीबी है, गंदगी है, भुखमरी है ऐसा प्रचार खूब हुआ. विदेशी मीडिया को भारत में यही सब दिखता था. सडक पर चल रहे हाथी या पिटारे में से सांप निकालने वाले सपेरे को देखकर विदेशी मीडिया वाले अपने कैमरे का लेंस फोकस करने लगते थे. सैन फ्रांसिस्को जैसे अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त अमेरिकी शहर में बिजनेस संबंधी दौरे पर जाकर लौटे एक मित्र ने वहां जगह जगह पर झुग्गी झोपडियां देखीं. डाउन टाउन यानी शहर के प्रमुख क्षेत्र में भी `होमलेस पीपल’ कहलाए जानेवाले लोग तंबू या कच्चे घर की झोपडियों में बसते हैं. इनमें से अधिकांश लोगों पर वहां की सरकार दया नहीं खाती क्योंकि वे लोग कोकेन या ड्रग्स के आदी होकर बर्बाद हुए हैं. न्यूयॉर्क के मैनहट्टन जैसे प्राइम एरिया में सडक पर रखी कचरापेटी में से पिज्जा के टुकडे बीनकर खानेवाले लोगों को काफी लोगों ने देखा है. अमेरिका में कई शहरों में- गांवों में ऐसी हालत है. नाक सिकोडनी पडती है इतनी गंदगी में लोग रहते हैं. वहां की लोकल ट्रेन में गन दिखाकर यात्रियों को लूट लिया जाता है. अमेरिका में ही नहीं, दुनिया के कई विकसित माने जानेवाले देशों में अपराध, भुखमरी, गंदगी, बेरोजगारी, झोपडियां देखने को मिलती हैं, सिर्फ भारत में ही नहीं.

ये सब कहने का तात्पर्य ये नहीं है कि वहां ये सब है इसीलिए अपने यहां की नकारात्मक बातें वाजिब हैं. ऐसा कहा भी नहीं जा सकता. हमें ये सब दूर करने का प्रयास करना चाहिए. उन प्रयासों में सौ प्रतिशत सफलता हासिल करने का लक्ष्य होना चाहिए. केवल सरकार ही नहीं, हमें खुद भी इसमें सक्रिय योगदान देना चाहिए. पिछले, पांच साल से इस दिशा में हमने काफी बडा काम किया है फिर भी अभी बहुत कुछ करना बाकी है. इट्स ऐन ऑन गोइंग प्रोसेस. आज आपने एक व्यक्ति को नौकरी दिलाई तो वह काफी नहीं है. कल अन्य दो लोगों को नौकरी की जरूरत होगी. आज ये जगह साफ-सुथरी हो गई, इतना ही नहीं. बल्कि कल भी इस जगह पर कोई कचरा नहीं डालेगा ऐसी व्यवस्था करनी होगी और इसके बावजूद कोई कचरा डालता है तो उसे साफ करना होगा.

हर देश में, हर व्यक्ति में पूजास्थल होता है और बाथरूम का गटर भी होता है. अभी तक अन्य लोगों ने हमारी गटर को देखकर ही अपनी रिपोर्ट तैयार की है. व्यक्तिगत रूप से हम चाहे कितनी ही अच्छी तरह से काम करते हों, अच्छा जीवन जीते हों तो भी कर्स लोग अपनी आदत के अनुरूप हममें से कमियां ढूंढकर हमारे बारे में बुरा बोलनेवाले ही हैं, हमें बदनाम करने ही वाले हैं. क्योंकि उन लोगों का काम गटर इंस्पेक्टर की रिपोर्ट तैयार करना है.

अपने आस-पास के ऐसे लोगों को आप पहचानते हैं. अपने आस-पास के ऐसे लोगों को तो मैने कब का उठाकर अपने दायरे से बाहर फेंक दिया है. बाहर रहकर उन्हें जो करना हो सो करें, इससे उनकी सच्चाई सामने आती है, उन्हीं का बर्ताव प्रकट होता है.

ऐसे लोगों के बारे में अनुभव मिलने के बाद हमें सीखने को मिलता है कि हमें कैसा होना है. हम ठान लें तो छिद्रान्वेषी बन सकते हैं. चाहें तो हर बात में दूसरों के नकारात्मक पहलू दिखा सकते हैं. घर के लोग, आस-पास रहनेवाले लोग, खानदान के लोग, आफिस या जाति के परिचित, स्थानीय राजनेता, देश का करोबार चलाने वाले राजनेता- हर व्यक्ति में निहित नकारात्मक लक्षणों को हम चुन चुन कर उन पर मैग्नीफाइंग ग्लास रखकर देख सकते हैं और दूसरों को भी दिखा सकते हैं. इसी नजरिए से हम जीने लगेंगे तो सारी दुनिया आपको क्रोध पैदा करनेवाली लगेगी, कम्युनिस्ट कवि बनकर आपको सारी दुनिया को जला देने का मन करेगा. अपने निजी असंतोष और निजी द्वेष का उपयोग आप सारी दुनिया को अपशब्द बोलने के लिए करने लगेंगे. यह तो आपकी मर्जी है यदि आपको ऐसी झंझट, विवाद, झगडे; और क्लेश के वातावरण में रहकर जीवन बिताना है तो.

इसके विपरीत आपके पास विकल्प है किसी के पूजा स्थल पर जाकर घी के दीप की रोशनी और धून की सुगंध प्राप्त करने का, गुणग्राही बनकर जहां जो अच्छा है, उसे अपनाने का, गटर इंस्पेक्टर की रिपोर्ट लिखने के बजाय इत्र बेचनेवाला बनकर अपने तथा आस-पास के सभी लोगों के जीवन को महकाने का.

साइलेंस प्लीज

कोई व्यक्ति, कोई स्थान, कोई परिस्थिति अच्छी नहीं लगती है तो उसे छोड दीजिए. और नहीं छोड सकते हैं तो शिकायत करना बंद करके उसके सुलह करके, शांति से जीवन जीना शुरू कर दीजिए.

– अज्ञात

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