`गाइड’ से `मिली’ तक की सचिनदा के साथ किशोर कुमार की यात्रा

गुड मॉर्निंग

सौरभ शाह

`गाता रहे मेरा दिल’ से शुरू हुई किशोर कुमार की दूसरी पारी का एक पडाव `मिली’ के `बडी सूनी सूनी है’ गीत से आया है. गीत का रिहर्सल पूरा हो गया था. तीसरे दिन रेकॉर्डिंग थी. लेकिन उससे पहले ही सचिन देव बर्मन को पैरेलिसिस का दौरा पडा. शेड्यूल के अनुसार गीत की रेकॉर्डिंग तो हो गई लेकिन उनकी गैरहाजिरी में. हृषिकेश मुखर्जी ने अमिताभ बच्चन और जया भादुडी के साथ बनी इस फिल्म के रिलीज होने से कुछ महीने बाद सचिनदा इस दुनिया को छोडकर चले गए. वह तारीख थी ३१ अक्टूबर १९७५. उम्र ६९. `मिली’ चार महीना पहले २० जून को रिलीज हुई थी.

`गाइड’ और `मिली’ के बीच की अवधि में किशोर कुमार ने सचिन देव बर्मन के लिए कई यादगार गीत गाए. `मिली’ के बाद सचिनदा के निधन के पश्चात, तीन फिल्में रिलीज हुईं जिसमें एस.डी बर्मन का संगीत था और उन तीनों में आवाज किशोर कुमार ने दी. एक थी `जिद्दी’, `लव इन टोकियो’, `तुमसे अच्छा कौन है’ और `नया जमाना’ तथा `जुगनू’ जैसी हिट फिल्मों के निर्देशक प्रमोद चक्रवर्ती द्वारा ऋषि कपूर और रीना रॉट व शोमा आनंद नामक नई लडकी को लेकर बनाई गई `बारूद’. दूसरी थी हृषिकेश मुखर्जी निर्देशित संजीव कुमार द्वारा अभिनीत `अर्जुन पंडित’ और तीसरी फिल्म `त्याग’ शर्मीला टैगोर के सेक्रेटरी एन.एस. कबीर ने शर्मीलाजी के खर्च पर प्रोड्यूस की थी जिसमें हिरोइन स्वाभाविक रूप से शर्मीला टैगोर थीं और हीरो थे राजेश खन्ना. क्रिटिक्स द्वारा प्रशंसित ये फिल्म बॉक्स ऑफिस पर डूब गई थी. इन तीनों भुला देने योग्य फिल्मों और उनके ज्यादा कामयाब नहीं हुए संगीत को ध्यान में लें तो `मिली’ को ही सचिन देव बर्मन का स्वान सॉन्ग (कार्यकाल का अंतिम प्रदर्शन) कहा जा सकता है.

`मिली’ से पहले हृषिकेश मुखर्जी की `चुपके चुपके’ के लिए किशोर कुमार ने एस.डी. बर्मन की दुन पर धर्मेंद-अमिताभ की क्लासिक जुगलबंदी वाला गीत मोहम्मद रफी के साथ गाया:

सारेगम…गीत पहले बना था या बनी थी ये सरगम… इसी साल अभिताभ-धर्मेंद्र की जोडी ने सचिनदेव बर्मन के पुत्र राहुल देव बर्मन के लिए ऐसा ही एक आयकॉनिक गीत गाया था, शायद आपको याद होगा.

`चुपके चुपके’ के सारेगम गीत की शूटिंग के समय धरमापाजी- बच्चनजी या तो बहुत बिजी थे, या कहा जाता है कि उनके बीच किसी बात को लेकर ईगो प्रॉब्लम हो गई थी, इसीलिए, जो भी रहा हो, लेकिन वे हृषिदा को मैचिंग डेट्स नहीं दे रहे ते. हृषिदा ने एक – दो फ्रेम को छोडकर दोनों कलाकारों की शूटिंग अलग अलग करके ऐसी सीमलेस एडिटिंग की कि आप यू ट्यूब पर जाकर देखेंगे तो ध्यान में आएगा कि चेक्स वाली जैकेट पहनकर गानेवाले आपके दोनों प्रिय अभिनेता हमेशा सेट पर ही होंगे ऐसा लगता है. मोहम्मद रफी के साथ किशोर कुमार ने कई गीत गाए हैं उनमें से कई गीत खूब लोकप्रिय हैं- उन्हीं में से ये भी एक है.

`चुपके चुपके’ से पहले १९७४ में `सगीना’ आई थी. तपन सिन्हा की इस फिल्म में एस.डी. बर्मन ने दिलीप कुमार के लिए किशोर कुमार से गवायाष साला, मैं तो साहब बन गया.. ये मजरूह सुलतानपुरी के बोल थे. इस फिल्म में सुधेंदु रॉय को बेस्ट आर्ट डायरेक्टर का अवॉर्ड मिला था. हिंदी फिल्म जगत के जानेमाने आर्ट डायरेक्टर थे वे. `मधुमति’ (१९५९) और `मेरे महबूब’ (१९६४) के लिए भी उन्हें यही अवॉर्ड मिला था. `सुजाता’ और `काबुलीवाला’ से लेकर `बंदिनी’, `ब्रह्मचारी’, `सफर’, `आपकी कसम’ और `डॉन’ सहित दर्जनों फिल्मों में सेट की डिजाइनिंग सुधेंदु रॉय की थी. उन्होंने `उपहार’ और `सौदागर’ (बच्चनजी-नूतन वाली) फिल्मों का भी डायरेक्शन किया था. आज फिल्मों में आर्ट डायरेक्टर नहीं होते, प्रोडक्शन डिजाइनर्स होते हैं. उसी तरह से सिनेमेटोग्राफर के बदले डी.ओ.पी. (डायरेक्टर ऑफ फोटोग्राफी) होते हैं. नाम भले अलग हों पर काम तो वही का वही है. सुधेंदु रॉय की सबसे छोटी बेटी शर्मिष्ठा रॉय का नाम आपने सुना होगा. `दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’, `दिल तो पागल है’, `कुछ कुछ होता है’, `कभी खुशी कभी गभ’, `वीर जारा’ जैसी मेगा फिल्मों की भव्यता को प्रोडक्शन डिजाइनर शर्मिष्ठा रॉय की कला ने साकार किया है. हाथ कंगन को आरसी क्या.

`सगीना’ के रिलीज होने के साल में ही सचिन देव बर्मन ने राजेश खन्ना- हेमा मालिनी की फिल्म `प्रेम नगर’ में संगीत दिया. किशोरदा ने उसमें अन्य गीतों के अलावा ये दो गीत गाए थे: ये लाल रंग कब मुझे छोडेगा और जा, जा, जा मुझे ना अब याद आ….

उसी साल आई बासु चैटर्जी की `उस पार’ में सचिन देव बर्मन ने मन्ना डे और मोहम्मद रफी से गवाया लेकिन उसमें किशोर कुमार का कोई गीत नहीं था.

उसके अगले साल राजिंदर सिंह बेदी (`दस्तक’ और `एक चादर मैली सी’ फेम राइटर – डायरेक्टर) की धर्मेंद्र, वहीदा रहमान, जया भादुडी वाली फिल्म `फागुन’ आई थी. एस.डी. बर्मन ने उसमें दो गीत किशोर कुमार से गवाए. उसी साल देव आनंद की फिल्म `छुपा रुस्तम’ आई थी. (प्रोड्यूसर – डायरेक्टर विजय आनंद) यानी नेचुरली किशोर कुमार से सचिन दा ने गवाया ही होगा. इस फिल्मी साउंड ट्रैक में एक मजेदार गीत है. एस.डी. बर्मन ने एक जमाने में अपनी आवाज में एक गीत गाया था: धीरे से जाना बगियन में रे भंवा धीरे से जाना बगियन में. लता मंगेशकर ने दादा भगवान की `अलबेला’ फिल्म के लिए अलग ट्यून पर लेकिन उन्हीं शब्दों की याद दिलानेवाला गीत गाया था: `धीरे से आ जा री अंखियन में निंदिया आ जा रे आ जा….चुपके से नैनन की बगियन में…. १९५१ की उस फिल्म में सी. रामचंद्र का संगीत था. १९७३ की `छुपा रुस्तम’ में सचिन दा के संगीत में उन्हीं के गाए गीत की कवि नीरज लिखित पैरोडी को किशोर कुमार ने गाया, जिसे पर्दे पर देव आनंद ने हेमा मालिनी को सुनाया; धीरे से जाना खटियन में ओ खटमल धीरे से जाना खटियन में, सोई है राजकुमारी देख रही मीठे सपने, जा जा छुप जा तकियन में ओ खटमल…..

१९७३ में अन्य दो फिल्मों को एस.डी. बर्मन ने संगीत दिया. प्रमोद चक्रवर्ती की `जुगनी’ जिसमें धर्मेंद्र ने हेलिकॉप्टर उडाते हुए दूसरे हेलिकॉप्टर में बैठी हेमा मालिनी के हेड फोन में किशोर कुमार की आवाज में यह गीत सुनाया: प्यार के इस खेल में, दो दिलों के मेल में, तेरा पीछा ना मैं छोडूंगा सोनिए, भेज दे चाहे जेल में…

इसी फिल्म में एक युगल गीत थार: गिर गया झुमका गिरने दो, खो गई मुंदरी खोने दो, उड गई चुनरी उडने दो, काहे का डर है, बाली उमर है, छोडो बहाना, ना ना….

आनंद बक्षी की अभिट छाप वाले इस मस्ती भरे गीत के साथ १९७३ में ही रिलीज हुई एस.डी. बर्मन के संगीत निर्देशन में हृषिदा की फिल्म `अभिमान’ याद आती है. यहॉं बक्षी साहब के बदले मजरूह सुलतानपुरी झुमका लेकर आते हैं: तेरा झुमा रे, चैन लेने ना देगा सजन तुमका, रे आयहाय मेरा झुमका रे… वैसे इस युगल गीत में लताजी के साथ रफी साहब की आवाज है. `अभिमान’ में किशोर कुमार का सोलो `मीत ना मिला रे मन का’ और लता जी के साथ गाया `तेरे मेरे मिलन की ये रैना’ सहित सारे गीत यादगार थे. सचिनदा को इस फिल्म के लिए बेस्ट म्यूजिक और जयाजी को बेस्ट एक्ट्रेस का `फिल्मफेयर’ अवॉर्ड मिला.

`गाइड’ (१९६६) और `अभिमान’ (१९७३) के बीच एस.डी. बर्मन की संगीतवाली १३ हिंदी फिल्में आईं. इनमें से कौन कौन सी फिल्मों में किशोर कुमार के गाए गीत आपको याद है? काल मिलेंगे तब तक इन तेरह फिल्मों में से सचिनदा-किशोरदा के दस गीतों की सूची बनाकर तैयार रखिए.

आज का विचार

दोस्ती बढानी हो तो कुछ खराब आदतें भी होनी चाहिए. सीधे आदमी को कोई महफिल में नहीं बुलाता!

– व्हॉट्सएप पर पढा हुआ

एक मिनट!

शाह साहब सायकेट्रिस्ट के पास गए.

`क्या प्रॉब्लम है?’ डॉक्टर ने पूछा.

`मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है. मैं तो बादशाह अकबर हूँ. बादशाह को क्या समस्या होगी? प्रॉब्लम मेरी जोधाबाई को है.’

`क्या प्रॉब्लम है उन्हें?’

`वो मानती हैं कि वो खुद मिसेस शाह हैं’

(मुंबई समाचार, मंगलवार – ७ अगस्त २०१८)

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