दीवाना ले के आया है गीत की शूटिंग की दो बातें

गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह

(मुंबई समाचार, बुधवार – ९ जनवरी २०१९)

राजेश खन्ना के करियर में आर.डी. बर्मन के संगीतबद्ध किए गीतों का बडा योगदान था. `आखिरी खत’ (१९६६) और `राज़’ (१९५७) से शुरु हुआ राजेश खन्ना का करियर `बहारों के सपने’ (१९६७), `औरत’ (१९५७) और `श्रीमानजी’ (१९५८) के बाद १९६९ में आई छठीं फिल्म से रॉकेट की तरह सीधे आसमान छूने लगा. १९६९ और १९७४ तक के पांच वर्षों के दौरान राजेश खन्ना ने अकेले ही हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को बडी हिट फिल्में दीं. हर फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर खूब कमाई की: आराधना, दो रास्ते, द ट्रेन, सच्चा झूठा, सफर, आन मिलो सजना, कटी पतंग, आनंद, अंदाज, मर्यादा, हाथी मेरे साथी, महबूब की मेहंदी, दुश्मन, अमर प्रेम, अपना देश, बावर्ची, जोरू का गुलाम, मेरे जीवन साथी, अनुराग, राजा जानी, दाग, नमकहराम, अजनबी, रोटी, प्रेमनगर और आपकी कसम. जरा गिनिए कितनी हुईं. पच्चीस से ज्यादा. इनमें से कुछ फिल्में फ्लॉप मानी गई हों तो इसीलिए नहीं कि उसमें डिस्ट्रिब्यूटर या प्रोड्यूसर को पैसे गंवाने पडे हों बल्कि ब्लैक में टिकट बेचनेवालों की गिनती उल्टी पड गई होगी और उन्होंने तथा उनके साथ हिस्सेदारी करनेवाले कई थिएटर मालिक/ मैनेजरों को नुकसान हुआ होगा इसीलिए राजेश खन्ना की इन पचीस में से कई फिल्मों को फ्लॉप गिना गया. इस दौर में उनकी रिलीज हुई कुल फिल्मों की संख्या तो इससे भी अधिक है.

बात उस जमाने की है जब राजेश खन्ना की फिल्मों के लिए कल्याणजी-आनंदजी (सच्चा झूठा, सफर, मर्यादा और जोरू का गुलाम के अलावा राज और बंधन) तथा लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल (दो रास्ते, आन मिलो सजना, हाथी मेरे साथी, दुश्मन, दाग, रोटी) के अलावा राहुल देव बर्मन का संगीत अत्यंत सार्थक रहा. काका खुद अपनी फिल्मों के गाने बनते समय उसमें गहराई से रुचि लेते थे- शम्मी कपूर की तरह. आराधना में सचिन देव बर्मन का संगीत था और उसमें आर.डी. का कितना योगदान था, इस चर्चा में पडकर राजेश खन्ना की आर.डी. के संगीत में `बहारों के सपने’ (चुनरी संभाल गोरी) के बाद पहली मेजर हिट फिल्म: द ट्रेन (१९७०): गुलाबी आंखें जो तेरी देखीं, ओ मेरी जां मैने कहा, किस लिए मैने प्यार किया, नी सोनिए, मैने दिल अभी दिया नहीं, छैयां रे सैयां ये छह के छह गीत हिट रहे. रमेश बहल प्रोड्यूसर आर रवि नागाइच निर्देशक थे. रमेश बहल के साथ उसके बाद आर.डी. ने `जवानी दीवानी’ और `कसमे वादे’ सहित अन्य कई फिल्में कीं. निर्देशक रवि नागाइच के साथ भी `मेरे जीवनसाथी’ और `काला सोन’ की.

आर.डी. द्वारा `द ट्रेन’ के लिए कंपोज किया गया एक सुपरहिट गीत `गुलाबी आंखें जो तेरी देखीं’ को आप फिर से ध्यान से देखिएगा. हिट सॉन्ग है लेकिन उसमें सबकुछ मिसमैच है. एक तो, यह गीत मोहम्मद रफी के बदले किशोर कुमार की आवाज में अधिक सुटेबल है. दूसरा, राजेश खन्ना जिस तरह से दौड भाग और उछल कूद करते हैं, यह उनकी स्टाइल नहीं है, जीतेंद्र के लिए ये अधिक सुटेबल है. (१९५७ में रवि नागाइच द्वारा निर्देशित `फर्ज’ फिल्म में मस्त बहारों का मैं आशिक में जीतूजी ऐसा करते हुए अच्छे लगते थे. तभी से उन्हें जंपिंग जैक कहा जाने लगा). तीसरा, नंदा का व्यक्तित्व सौम्य है. लेकिन इस गीत में उन्हें जो तडकभडक अदाएँ दी गई हैं वह हेलनजी को अधिक सूट करती हैं. चौथी और आखिरी बात, आनंद बक्षी के लिखे गीत का अंदाज, शैली तथा शब्दों का चय न मजरूह सुलतानपुरी को अधिक सूट होने जैसा है नाजनीन, दर्द-ए-जिगर, बिस्मिल जैसे शब्द मजरूह साहब के शब्दकोश में हुआ करते हैं. इन चारों को मुद्दों को ध्यान में रखकर गीत देखिएगा. साढे तीन मिनट का ही है. मजा आएगा.

`द ट्रेन’ के बाद आर.डी. ने राजेश खन्ना के लिए एक के बाद एक कई सारी फिल्मों के लिए जबरदस्त संगीत रचनाएं कीं: `कटी पतंग’ (१९७१), `अमर प्रेम’ (१९७२), `अपना देश’ (१९७२), `मेरे जीवनसाथी’ (१९७२), `राजा रानी'(१९७३), `नमकहराम’ (१९७३), `अजनबी’ (१९७४), `आपकी कसम’ (१९७४) इत्यादि.

राजेश खन्ना के लिए जिन पौने एक दर्जन फिल्मों में सुपर डुपर हिट म्यूजिक की रचना आर.डी. बर्मन ने की उसमें `मेरे जीवनसाथी’ का स्थान रहेगा ही. `शिल्पकार’ के बैनर तले प्रोड्यूसर बंधु हरीश शाह- विनोद शाह ने `मेरे जीवनसाथी’ बनाई थी.

पुणे के `रोमांसिंग विथ आर.डी. बर्मन’ कार्यक्रम में सबसे पहले गेस्ट हैं विनोद शाह. `मेरे जीवनसाथी’ की शूटिंग चल रही थी तब की एक बात याद कर रहे हैं. राजेश खन्ना और तनुजा प्यार में हैं. राजेश खन्ना की आंखों की रोशनी चली जाती है. सुजित कुमार उनका जिगरी दोस्त है. कहानी में कई मोड आते हैं और एक ऐसी सिचुएशन खडी होती है जब सुजित कुमार- तनुजा की एंगेजमेंट में आए राजेश खन्ना को पता नहीं कि दोस्त किसे जीवनसाथी बनाने जा रहा है. वह तो मासूमियत से काला चश्मा पहनकर गीत गाते हैं: दीवाना ले के आया है, दिल का तराना; देखो कहीं यारो ठुकरा ना देना, मेरा नजराना….

इसके बाद एक अंतरा आता है: आज का दिन है कितना सुहाना झूम रहा है प्यार मेरा, पूरी हो दिल की सारी मुरादें खुश रहे यार मेरा; चांद सा जीवनसाथी मुबारक जीवन में आना…

इतना गाने के बाद राजेश खन्ना को अपनी छूटी हुई प्रेमिका तनुजा याद आती है. नया अंतरा शुरू करने से पहले राजेश खन्ना को छिपे तौर पर रोना है प्रेमिका की याद में. उन्हें यदि पता चल गया होता कि वह उनके दोस्त के साथ ही शादी करनेवाली है तो शायद डायरेक्टर ने फूटफूट कर रोने के लिए कहा होता. लेकिन यहां पर एक ही आंख से आंसू गिराना है, दोनों आंखों से नहीं, ऐसा निर्देश डायरेक्टर ने दिया है. राजेश खन्ना से कहा गया है कि आप एक ही आंख में ग्लीसरीन लगाकर आंसू गिराना, शॉट ले लेंगे. लेकिन साहब, अपने काका ऐसे ही सुपरस्टार नहीं बन गए थे. बाप थे सबके. फिल्मों में आने से पहले स्टेज शो कर चुके थे. उन्होंने कहा कि ग्लीसरीन की कोई जरूरत नहीं है. आप जब कहेंगे तब एक ही आंख से आंसू निकलेगा, आप कैमरे में कैद कर लेना. `अपने भी हैं कुछ ख्वाब अधूरे कौन अब गिने कितने’ वाला अंतरा शुरू होने के पांच छह सेकंड पहले आप गीत में देखिएगा, राजेश खन्ना की सिर्फ दाईं आंख से आंसू की एक बूंद गिरती है. देख लीजिएगा. प्रोड्यूसर विनोद शाह ने यह बात कहकर जब बडी स्क्रीन पर गीत दिखाया तब आंसू टपकते समय सारा हॉल राजेश खन्ना के लिए तालियों से गूंज उठा.

और अब वह ट्रॉली शॉट वाली बात. इसी गीत में एक से अधिक ट्रॉली के शॉट हैं. डायरेक्टर रवि नागाइच राजेश खन्ना को सूचना दे रहे हैं कि आपको यहां से इतने कदम चलकर इस तरफ देखना है इत्यादि. कैमरामैन ने पोजीशन के अनुसार चॉक से चिन्ह लगा लिया कि ट्रॉली यहां से शुरू होकर यहां पर रुकेगी. ये सारी सूचनाएं एक युवक सुन रहा था जो रवि नागाइच की फिल्म कर रहा था और अपनी शूटिंग के शेड्यूल के सिलसिले में निर्देशक से मिलने के लिए `मेरे जीवनसाथी’ के सेट पर आया था. उस जमाने में बडे स्टार एक ही साथ इतनी फिल्में साइन कर लेते थे कि प्रोड्यूसर को पर्याप्त डेट्स तक नहीं दे सकते थे, फिल्में अधूरी रहतीं, पैसा फंस जाता. इसीलिए प्रोड्यूसरों के मंडल ने तय किया कि कोई भी स्टार साल में छह से अधिक फिल्में नहीं करेगा. १९५९ में वी. शांताराम की `नवरंग’ के बाद १९६४ में उन्हीं के `गीत गाया पत्थरों ने’ में काम करने के बाद जीतेंद्र ने `गुनाहों का देवता’ (१९६७) में काम किया और उसी वर्ष `फर्ज’ आई जो सुपरडुपर हिट हुई. जीतेंद्र स्टार बन गए. `मेरे हुजूर’, `धरती कहे पुकार के’, `दो भाई’, `जीने की राह’, `जिगरी दोस्त’ और `हमजोली’ के बाद जीतूभाई के पास सांस तक लेने का समय नहीं था. प्रोड्यूसर्स गिल्ड के प्रस्ताव के बाद उन्हें `फर्ज’ के डायरेक्टर रवि नागाइच के लिए साइन की गई `प्यार की कहानी’ नाम की फिल्म छोड देनी पडी. जीतेंद्र द्वारा छोडी गई वह फिल्म अभिताभ बच्चन को मिली. माला सिन्हा, तनुजा और अनिल धवन वाली यह फिल्म बच्चनजी के शुरूआती करियर में आई दर्जनों फ्लॉप फिल्मों में एक थी जिसका नाम था `प्यार की कहानी’. यह फिल्म १९७१ में रिलीज हुईल `मेरे जीवनसाथी’ के एक साल बाद, कारण फिर वही. थोडी सी शूटिंग होने के बाद प्रोड्यूसर्स गिल्ड के नियमानुसार अगले साल के लिए टालनी पडी.

गुरू नाम से पुकारे जानेवाले रवि नागाइच से मिलने के लिए राजेश खन्ना के सेट पर आए बच्चनजी ने कहा:`गुरू, ट्रॉली मैं चलाता हूँ.’ और जिस कैमरे के सामने देखकर राजेश खन्ना दीवाना ले के आया है गा रहे हैं उस कैमरे की ट्रॉली को अमिताभ बच्चन धक्का लगा कर आगे ले जा रहे हैं.

अब से जब जब भी आप ये गीत देखेंगे तब राजेश खन्ना को देखते देखते कैमरे की ट्रॉली चलानेवाले बच्चनजी की याद आए बिना नहीं रहेगी.

आज का विचार

शादी से पहले दुनिया घूम लेनी चाहिए. शादी के बाद दुनिया घूम जाती है: स्वामी विवाहितानंद.

– वॉट्सएप पर पढा हुआ.

एक मिनट!

बका: अरे पका, तुमने राहुल को राफेल के बारे में चर्चा करते हुए सुना क्या?

पका: हां, उसे सुनकर तो फ्रांसवाले सोच में पड गए हैं कि उन्हें भारत से पैसे लेने हैं या देने हैं!

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