न्यूज देख देख कर निष्क्रिय हो जाते हैं, फ्रस्ट्रेट हो जाते हैं

गुड मॉर्निंग

सौरभ शाह

आपने कई बार देखा होगा कि टीवी के समाचारों को सुनकर या अखबारों में पढकर उसके बारे में चर्चा करनेवाले खुद को समझदार मानते हैं. वे अपने मनमाने तरीके से समाचारों का अर्थ निकालते हैं, क्योंकि उनसे कोई भी पूछने वाला, जिम्मेदार ठहरानेवाला नहीं होता. समाचार गरीब की जोरू जैसे होते हैं. कोई भी उसके बारे में कुछ भी बकवास कर सकता है और खुद इस विषय में पारंगत है ऐसा दिखावा कर सकता है. सोशल मीडिया आने के बाद ऐसे उस्तादों की संख्या बढ गई है.

रॉल्फ डोबेली कहते हैं कि असल में न्यूज आपकी सोचने विचार की शक्ति छीन लेता है. विचार करने के लिए एकाग्रता की जरूरत होती है. एकाग्रता के लिए सुकून का समय होना चाहिए, जहॉं कोई खलल न डाले. जब टीवी पर समाचार आते हैं तब आपको एकांत एक पल के लिए भी नहीं मिल पाता! आप कैसे विचार कर सकते हैं? फिर तो टीवी वाले जो कहते हैं वह सब आपके मन में घर कर जाएगा. बहुत सारे समाचारों की भीड जब आपके दिमाग में छा जाती है तब आपकी अल्पकालिक स्मरणशक्ति बाधित हो जाती है. दीर्घकालिक स्मरणशक्ति असीमित होती है. लेकिन अल्पकालिक स्मरणशक्ति का डेटा मस्तिष्क एक निश्चित मात्रा में ही संग्रह करता है. एकाग्रता के अभाव में आपकी अल्पकालिक स्मरणशक्ति बाधित हो जाती है जिसके लिए खबरें जिम्मेदार होती हैं ऐसा रॉल्फ डोबेली कहते हैं. ऑनलाइन समाचार पढना तो उससे भी ज्यादा खतरनाक है, क्योंकि नेट पर आपको अनेक संदर्भ और लिंक दिए जाते हैं. इस लिंक पर जाने या नहीं जाने का निर्णय करने के लिए भी आपको अपनी एकाग्रता की बलि देनी पडती है.

न्यूज का नशा हो जाता है. ड्रग्स की तरह या मिठाई खाने की इच्छा होती है या फिर सिगरेट-शराब की लत होती ठीक उसी तरह. इस नशे के कारण दिमाग के सभी सेल्स और न्यूरॉन्स की सरंचना ऐसी हो जाती है कि आपको तितली की तरह एक पल इस टॉपिक पर तो दूसरे पल अन्य टॉपिक पर मंडराते रहने का मन होता है. आप देखिएगा, न्यूज के आदी हो जाने के बाद पुस्तकें या लेख पढने की इच्छा घट जाती है, बिलकुल कम हो जाती है. पुस्तक के दो-पांच पेज पढकर ही आप ऊब जाते हैं. आपकी बाधित हो चुकी एकाग्रता के कारण ऐसा होता है. आपको लगता है कि अब पुस्तक पढने जितना समय ही नहीं मिलता. लेकिन नहीं, ऐसी बात नहीं है. एक न्यूज से दूसरी न्यूज पर छलांग लगाने की आदत ने आपकी एकाग्रता की अवधि को कम कर दिया है.

समाचारों के पीछे हमारा, सामान्य लोगों का समय कितना बर्बाद हो जाता है इस बारे में हम बिलकुल सतर्क नहीं हैं. जिनकी आजीविका, जिनकी रोजीरोटी समाचारों के व्यवसाय से चलती है, उन टीवी न्यूज चैनलवालों या अखबारवालों को तो समाचारों को ओढने और बिछाने के अलावा कोई उपाय नहीं है. लेकिन हम सुबह चाय के साथ पंद्रह मिनट खबरें पढ लेते हैं, उसके बाद दिन के दौरान कमोबेश पंद्रह मिनट ऑनलाइन न्यूज के लिए निकाल लेते हैं, रात को घर आकर टीवी न्यूज चैनल के पीछे आधा घंटा खर्च करते हैं. घंटा भर तो यही हो गया और उन समाचारों के असर से दिमाग को मुक्त होने में जो वक्त लगता है सो अलग. सप्ताह में कम से कम आधा दिन का समय हमारा इसी में खर्च हो जाता है.

रॉल्फ डोबेली कहते हैं कि कोई भी समझदार व्यक्ति अपना धन इस तरह से बर्बाद नहीं करेगा, अपनी तबीयत को इस तरह से खराब नहीं करेगा बल्कि न्यूज के पीछे हम हर सप्ताह जो समय खर्च करते हैं, खराब करते हैं उसके बदले में हमें कुछ नहीं मिलता.

रॉल्फ डोबेली के अनुसार न्यूज हमें पैसिव बना देती है, निष्क्रिय कर देती है. बारिश में सडकों पर गड्ढे बन गए हैं, तालाब भर गए हैं. यह समाचार पढकर या देखकर आपने क्या कर लिया? बस अपने सोफे पर बैठे रहे. कश्मीर में आतंकवाद बढ गया. आपने इस बारे में क्या किया? करने की इच्छा भी हो तो क्या कर सकते हैं आप? उसने उसे छेड दिया. आप क्या कर सकते हैं? दुनिया में भुखमरी और भ्रष्टाचार बढ गया है- आप क्या कर लेंगे? बस बैठे रहनेवाले हैं. जब इस तरह बैठे रहना पडता है तब फ्रस्ट्रेशन बढ जाता है और वह असंतोष किसी अन्य तरीके से दूसरों पर कैसे उंडेलते हैं, कडवाहट पैदा करते हैं, तो कभी डिप्रेशन में चले जाते हैं.

आखिरी बात. रोल्फ डोबेली कहते हैं कि न्यूज की अति से क्रिएटिविटी खत्म हो जाती है. इस कारण से नई नई कल्पनाएं आना बंद हो जाती हैं. जो सचमुच क्रिएटिव इंसान होता है वह खबरों का आदी नहीं होता. कोई भी लेखक, संगीतकार, मैथेमेटिशियन, वैज्ञानिक, चित्रकार, नाटककार, डिजाइनर, आर्किटेक्ट इ. लोग न्यूज के चक्कर में पडे नहीं रहते. अगर वे ऐसा करते हैं तो उनकी रचनाशीलता धीरे धीरे खत्म होती जाती है.

पत्रकारिता और पत्रकार समाज के लिए अनिवार्य तो हैं लेकिन न्यूज का उफान अनावश्यक है. धैर्यपूर्वक की गई पत्रकारिता, शांत चित्त से लिखे गए एनालिटिकल आट्रिकल्स, जेनुइन इनवेस्टिगेशन जर्नलिज्म जो सचमुच समाज की- जनता की समस्याओं का समाधान करने में सहायता करती है- उन सब की हमें जरूरत है. यह सब समाचारों का ज्ञान होने से नहीं आनेवाला. शांति से लिखे गए लेखों या पुस्तकों के रूप में आना चाहिए जिसमें कुछ ठोस काम नजर आता है. रॉल्फ डोबेली इस बारे में गंभीरता से विचार करते हुए लगते हैं कि हमें न्यूज का आदी नहीं होना चाहिए. न्यूजप्रेमी होना चाहिए. पत्रकारिता को लोकतंत्र का पांचवां स्तंभ माना गया है जो सही है. लेकिन जैसे जैसे संवाद की सुविधाएँ बढती गई, वैसे वैसे दुनिया के अन्य क्षेत्रों की तरह ही मीडिया में दूषण बढता गया. अन्य कई क्षेत्रों में पैदा होनेवाले दूषण शायद समाज के लिए कम हानिकारक होंगे लेकिन मीडिया में होनेवाली अति और अतिशयोक्ति से समाज को खूब गहरा और कभी कभी हमेशा के लिए नुकसान होता है. हम जब चारों तरफ से समाचारों से घिरे होते हैं तब दिमाग पर कैसा नशा छा जाता है इसका व्यक्तिगत अनुभव है. ऐसे नशे की लत से बाहर निकलना कठिन होता है. इसके लिए कोई भी रिहैबिलिटेशन सेंटर नहीं है. कोई भी आपकी ये लत नहीं छुडवा सकता. आपको खुद ही अथक प्रयास करके इससे बाहर आना होगा. एक बार बाहर आने के बाद आप बिलकुल हल्के फुल्के हो जाते हैं. उसके बाद आप सिलेक्टिव होकर अधिक महत्व की खबरें छांटकर पढना सीख जाते हैं- ऐसे समाचार जो आपके लिए काम के होते हैं, समाज के लिए और लोगों के लिए उपयोगी होते हैं. उसके बाद आपका ध्यान समाचारों के कचरे की तरफ जाना थम जाता है. आपकी क्रिएटिविटी तो बाद में आती है. आपकी एकाग्रता बाद में आती है. आपकी अल्पकालिक समरणशक्ति बाद में आती है. आपको समझ में आता है कि जिस प्रकार जीवन के अन्य मामलों में नीरक्षीर विवेक का होना जरूरी है उससे भी अधिक विवेक की जरूरत होती है न्यूज ग्रहण करने के माले में. अब से न्यूज के बुफे समारोह में दस देशों-प्रदेशों के व्यंजन वाले काउंटर भले दिखें. आपको पता है कि किस काउंटर पर जाना है, जाकर वहां कितनी देर ठहरना है.

आज का विचार

२०१९ में मोदी को रोकने के लिए विपक्षी इस तरह से खडे हैं जैसे शादी के समय जीजा को रोकने के लिए सालियां दरवाजा रोककर खडी हो जाती हैं. हर साली यह जानती है कि जीजाजी तो आने ही वाले हैं और दुलहन बनकर बैठी बहन को ब्याह कर ले ही जाएंगे.

– व्हॉट्सएप पर पढा हुआ

एक मिनट!

बका: जिंदगी का सफर और स्त्रियों में क्या बात समान है?

पका: पता नहीं!

बका: कोई समझा नहीं, कोई जाना नहीं!

(मुंबई समाचार, बुधवार – १ अगस्त २०१८)

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