गुड मॉर्निंग
सौरभ शाह
हमारे जीवन में समाचार की अति के बारे में इस स्तंभ में पहले तीन बार अलग अलग एंगल्स से लिखा जा चुका है. फिर एक बार नए नजरिए से लिखने का निमित्त बने हैं रॉल्फ डोबेली नामक एक युवा स्विस लेखक जिनकी कुछ साल पहले प्रकाशित हुई एक पुस्तक मुझे एक मित्र ने अभी दी: द आर्ट ऑफ थिंकिंग क्लियरली.
समाचार या न्यूज से जितना हो सके उतनी दूर रहना चाहिए ऐसा विचार नसीम निकोलस तालिब के लेखन में आया था ऐसा रॉल्फ डोबेली कहते हैं (वे `गुड मॉर्निंग’ नहीं पढते होंगे. और नसीम निकोलस तालिब को `मुंबई समाचार’ मिलता होगा!). जीभवाली स्माइली.
रॉल्फ डोबेली के ब्लॉग डोबली डॉट कॉम पर उन्होंने पहली बार यह कॉन्सेप्ट रखा था कि न्यूज इज बैड फॉर यू और समाचार पढना छोड देंगे तो अधिक सुखी बनेंगे.
रॉल्फ डोबेली कहते हैं कि समाचार पढने में जोर नहीं पडता है, विचार नहीं करना पडता इसीलिए हम किसी भी बेकार खबर को पढ जाते हैं. पुस्तक पढने में या लेख पढने में दिमाग पर जोर पडता है. पुस्तक या लेख की सामग्री आपको विचारशील करती है, विचार करने के लिए मजबूर कर देती है.
न्यूज के प्रवाह में जब हम बह जाते हैं तब हमारी दुनिया को देखने की दृष्टि बदल जाती है. निरंतर बलात्कार, हत्या, चोरी , लूट की खबरों से दिमाग घिर जाता है इसीलिए हम मानने लगते हैं कि यह दुनिया खराब है, असुरक्षित है. ऐसे समाचारों के पीछे की सच्चाई को जानने का प्रयास हम नहीं करते. कई करोड की बस्ती में ऐसे अपवादजनक मामले होते हैं जिसके आंकडे आपको अखबार-टीवी वाले नहीं देते क्योंकि उन्हें सनसनी पैदा करने में रुचि होती है.
जिस तरह से कोई भी पदार्थ या खाद्य सामग्री बेचनेवाले आपको कहता है कि हमारा प्रोडक्ट आपके लिए बेस्ट है, हमारे प्रोडक्ट के बिना आपकी ज़िंदगी अधूरी है और हमारे प्रोडक्ट का उपयोग अगर आप करते हैं तो आपके जीवन में खुशहाली फैलती जाएगी- ऐसी ही बात खबरें बेचने वालों के साथ भी होती है. असल में वे चौराहे पर डुगडुगी बजानेवाले उस मदारी जैसे हैं, चिल्ला चिल्ला कर अपना माल बेचनेवालों की तरह हैं. मीडिया के मालिक और मीडिया चलाने वाले आपको सीधे या उल्टे तरीके से समझाते रहते हैं कि न्यूज के बिना आपकी जिंदगी अधूरी है. आप यदि खबरों से अवगत नहीं रहेंगे तो आप जिंदगी में पिछड जाएंगे और ये दुनिया आगे बढ जाएगी, आप अंगुठा छाप माने जाएंगे. ऐसी दहशत वे हमारे मनोमस्तिष्क में पैदा करते हैं इसीलिए हमें भी उसी प्रवाह में बह जाना पडता है.
न्यूज कई बार हमें गलत राह पर ले जाती है, इतना ही नहीं बल्कि अधिकांश समाचार हमें असली तस्वीर नहीं दिखाते. अधिकांश मीडिया अपने पूर्वाग्रह के अनुसार समाचारों को तोड-मरोड कर हमारे सामने परोसता है. बिना प्रमाणिक विश्लेषण के समाचारों का कोई महत्व ही नहीं है ऐसा मैं (रॉल्फ डोबेली नहीं बल्कि इस स्तंभ का लेखक- मैं) मानता हूँ. क्योंकि समाचारों के साथ पर्याप्त बैकग्राउंड देकर पूरी प्रामाणिकता रखकर एनैलिसिस करने के बाद इस न्यूज की महत्ता कितनी है, कितनी नहीं है इस बारे में पाठकों या दर्शकों को पता न चले तो उसमें पाठक या दर्शक का अहित होता है. पाठक-दर्शक के पास हर समय उस विशिष्ट खबर से जुडी थ्री सिक्स्टी डिग्री का व्यू न हो, तो ऐसा दृष्टिकोण अनुभवी और प्रमाणिक विश्लेषक से ही मिल सकता है.
रॉल्फ डोबेली से एक नई बात ये जानने को मिली कि कई बार न्यूज के कारण आप डिप्रेशन में चले जाते हैं, नर्वस हो जाते हैं, डर जाते हैं, क्रोधित हो जाते हैं. और वह भी ऐसे न्यूज जिनके साथ आपका कोई लेना देना नहीं है. उस विशिष्ट खबर से आप दूर रहते तो इन सभी शारीरिक या मानसिक लक्षणों के प्रभाव से आप बच जाते.
न्यूज पर भरोसा रखकर हम कई बार ओवर कॉन्फिडेंस में अकार मूर्खता भरे खतरे उठा लेते हैं, जहां अवसर की कोई गुंजाइन नहीं है वहां अवसर मानकर उसे लपकने के लिए छलांग लगा देते हैं ऐसा रॉल्फ डोबली का कहना है और वे कहते हैं: `यदि कोई जर्नलिस्ट लिखता है कि फलां कारणों से मार्केट में तेजी (या मंदी) आई है या फलां कारणों से कोई कंपनी डूब गई है या अमुक कारण से अर्थव्यवस्था पर अच्छा या बुरा असर पडा है- ऐसे पत्रकार को मैं इडियट मानता हूँ. किसी भी बात को इतनी आसानी से समझाया नहीं जा सकता. ऐसी घटनाओं के पीछे एक नहीं अनेक कारण होते हैं और वे कारण काफी जटिल होते हैं जिन्हें सरलता से नहीं समझाया जा सकता.’
यहां मुझे `संजू’ फिल्म की एक बात याद आ रही है. उसमें एक संवाद है कि जिस मामले को समझने में कोर्ट को वर्षों लग जाते हैं उस मामले पर टीवी की `छोटी छोटी खिडकियों’ में बैठे एनालिस्ट तुरंत फैसला दे देते हैं!
कल पूर्ण…
आज का विचार!
इमरान खान ने अभी अमित शाह को फोन किया: २७ लोगों की व्यवस्था कर दीजिए…पीओके आपका!
– व्हॉट्सएप पर पढा हुआ
एक मिनट!
बका व्हॉट्सएप पर अपने बॉस को मैसेज टाइप कर रहा था. और तभी उसके बॉस का मैसेज आ गया: तू कुछ भी टाइप कर… आज तो ऑफिस आना ही पडेगा!’
(मुंबई समाचार, मंगलवार – ३१ जुलाई २०१८)