कैसे कैसे समाचार आपके मत्थे मढ़े जाते हैं और कौन से समाचार आपसे छिपाए जाते हैं : सौरभ शाह

(गुड मॉर्निंग एक्सक्लूसिव: चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, विक्रम संवत २०७८, गुढ़ी पाडवा, मंगलवार, १३ अप्रैल २०२१)

जिन बातों का रटन हमारे मन में निरंतर चलता रहता है वही विचार हमारे जीवन में बुन जाते हैं. दिन भर अखबार, टीवी पर, सोशल मीडिया में और लोगों के साथ बातचीत में जिन बातों का पुनरावर्तन हुआ करता है, वही समाचार हमारे मन में दृढ़ता से छप जाया करते हैं.

वह जानकारी सच या झूठ, इस बात की हम तनिक भी चिंता नहीं करते. बार-बार जिस कील के माथे पर हथौड़ी का आघात लगता है, वह अंदर तक बिलकुल दृढ़ता से घुस जाती है. अनुचित जगह पर या गलत तरीके से ठोंकी गई कील को लकडी में से खींचकर निकालने का काम कितना दुष्कर होता है, यह आप जानते हैं. गुढ़ी पाडवा के आज के पावन दिन पर इसी दुष्कर कार्य करने का यह मेरा प्रयास है.

हर दिन बन रहे समाचारों में से दर्जनों उदाहरण देकर साबित किया जा सकता है कि मेन स्ट्रीम मीडिया कितना सिलेक्टिव, पूर्वाग्रह से ग्रस्त और द्वेषपूर्ण है. कुछ समाचारों को खूब बढ़ा चढ़ा कर आपके मन में राष्ट्र के बारे में, सरकार के बारे में और हिंदू समाज के बारे में नकारात्मक छवि बनाने में चौबीसों घंटे सातों दिन व्यस्त रहने वाले ये वामपंथी या ल्यूटियन्स मीडिया के अनगिनत लिब्रांडू गैंगस्टर कुछ विशिष्ट समाचारों को जानबूझकर हाइलाइट करने से टालते हैं. वही समाचार यदि केंद्र सरकार की इमेज खराब करने वाले होते तो उन्हें जरूर प्रचारित किया जाता. भाजपा शासित राज्यों में घटना होती या हिंदू समाज की छवि खराब करनेवाला समाचार होता तो छत पर चढ़कर उसके बारे में हैमरिंग की जाती और हमारे मन में सदा के लिए छाप पड़ जाती कि प्रधानमंत्री नाकाम हैं, ये सरकार निकम्मी है और हिंदुओं में राक्षस और दानव भरे पड़े हैं.

बिस्कुट प्रेमी पत्रकारों की खूबी ये है कि वे मोदी विरोधी राजनेताओं का पक्ष लेने में बहुत ही उस्ताद होते हैं.

भारत, मोदी सरकार या हिंदु जनता के बारे में अच्छी बात करनेवाले समाचारों को ब्लैक आउट करने के या फिर उन्हें हाशिए पर धकेल देने के काम में कुशलता रखनेवाले प्रिंट मीडिया तथा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया एवं डिजिटल मीडिया के बिस्कुट प्रेमी पत्रकारों की खूबी ये है कि वे मोदी विरोधी राजनेताओं का पक्ष लेने में बहुत ही उस्ताद होते हैं. देशद्रोही राजनेता मीडिया के लोभी पत्रकारों को डॉग बिस्किट के दो-चार टुकड़े डाल देते हैं और ये पत्रकार अपनी पूँछ हिलाने लगते हैं.

ताजातरीन चार- चार उदाहरणों की बात हम करने जा रहे हैं.

(१) छत्तीसगढ़ में नक्सलवादियों के साथ हुई मूठभेड में सीआरपीएफ के २२ जवानोंने बलिदान दिया. उसके बाद गृहमंत्री अमित शाह की आलोचना करने में मीडिया ने कोई कसर बाकी नहीं रखी. जिन नक्सलवादियों को कांग्रेसियों ने पिछले एक दो तीन नहीं बल्कि सात-सात दशकों से पाला पोसा है, उनके हिंसक देशद्रोहियों की सफाई हिंदी फिल्मों की तरह रातोंरात नहीं की जा सकती. लेकिन मीडिया आपको उकसाता है:“मोदी ने हाथ में चूड़ियां पहन रखी हैं, अमित शाह जैसा नामर्द गृहमंत्री भारत ने कभी नहीं देखा.” और आप सोचने लगते हैं कि यार, बात तो सच है, बाईस बहादुर हुतात्माओं के रक्त की एक एक बूंद का बदला लिया जाना चाहिए. सच्चाई तो ये होती है कि इन मीडियाई गिद्धों को जवानों के बलिदान के प्रति कोई सहानुभूति नहीं होती. वे आपकी भावनाओं को उकसाते हैं, आपको सरकार के विरुद्ध विचार करने पर मजबूर कर देना चाहते हैं.

इन नक्सलवादियों द्वारा अपहृत सीआरपीएफ की टुकडी के कमांडर को बिना शर्त छोड देने के समाचार को तथा एक लाख के इनामी नक्सली को मारने के समाचार पहले पन्ने पर या प्राइम टाइम में जो गौरवपूर्ण स्थान मिलना चाहिए था, वह शायद ही किसी ने दिया.

(२) वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर को सटकर बनी ज्ञानवापी मस्जिद असल में मंदिर के अवशेषों पर खडी की गई है या नहीं, इसकी जॉंच भारत के पुरातत्त्व विभाग को करनी चाहिए, ऐसे अदालत के आदेश को आठ कॉलम की हेडलाइन बनाया जाना चाहिए था. इस आदेश के स्वागत में फ्रंट पेज पर सपांदकीय लिखे जाने चाहिए थे. टीवी पर प्राइम टाइम में ही नहीं, सारा दिन इस समाचार को पॉजिटिव लाइट में ब्रॉडकास्ट किया जाना चाहिए. लेकिन इसमें से किसने, कितना किया? अधिकांश ने तो इस समाचार को नकरात्मक नैरेटिव के साथ हम तक पहुंचाया.

(३) कश्मीर में पकडे गए रोहिंग्या मुसलमानों को डिटेंशन सेंटर (तकरीबन जेलखाने जैसी जगहों में) से बाहर निकाल कर भारत में मुक्त रूप से संचार करने देना चाहिए, जैसी याचिका प्रशांत भूषण नामक अरविंद केजरीवाल के पुराने साथी और दो कौडी के वकील ने सुप्रीम कोर्ट में दायर की थी. उस अर्जी को माननीय न्यायाधीशों द्वारा अस्वीकार कर दिया गया. भारत सरकार को नियमानुसार इन रोहिंग्या मुसलमानों को उनके वतन म्यांमार में वापस भेज देना चाहिए, ऐसा स्पष्ट आदेश सर्वोच्च न्यायालय ने दिया. यह भारत सरकार की बहुत बड़ी जीत थी. यह ऐसी जीत थी जिसे पहले पृष्ठ पर गौरव के साथ स्थान दिया जाना चाहिए था. सीएए और एनआरसी को लागू करने की कितनी जरूरत है, इसका प्रमाण देनेवाले इस समाचार को लेकर मीडिया को उत्सव मनाना चाहिए था, इसके बजाय कइयों ने मातम मनाया.

महाराष्ट्र में शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस की तीन टांगों वाली लंगडी सरकार के बजाय यदि भाजपा की सरकार होती तो मीडिया ने मुख्यमंत्री को नोंच डाला होता

(४) उपरोक्त तीनों समाचार एक ही दिन आए थे और दिन खत्म होने से पहले चौथा समाचार ये आया कि महाराष्ट्र के गृहमंत्री अनिल देशमुख को त्यागपत्र देने पर मजबूर होना पड़ा है. सुप्रीम कोर्ट ने देशमुख के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों के संबंध में सी.बी.आई. जांच रोकने से इनकार करने का फैसला दिया तो देशमुख को झक मारकर इस्तीफा देना पड़ा. हर महीने मुंबई के बार-रेस्टोरेंट मालिक और दूसरों से सौ करोड की वसूली का आदेश देने का आरोप देशमुख पर लगाया गया है. सेवारत उच्च पदस्थ पुलिस अधिकारी ने इस आरोप का लिखित रूप में अदालत में शपथपत्र के साथ पेश किया है.

महाराष्ट्र में शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस की तीन टांगों वाली लंगडी सरकार के बजाय यदि भाजपा की सरकार होती तो मीडिया ने मुख्यमंत्री को नोंच डाला होता, सडकों पर प्रदर्शन किए जाते और मीडिया ने जिस प्रकार नकली किसानों के विरोध प्रदर्शन को प्रचारित किया, उसी तरह से इन प्रदर्शनों को भी सुर्खियों में लाया होता कि चीफ मिनिस्टर को सत्ता छोड देनी चाहिए. लेकिन यहां मुख्यमंत्री शिवसेना प्रमुख हैं. भ्रष्ट सरकार द्वारा भ्रष्ट किए गए पत्रकार भीगी बिल्ली की तरह चुप रहे.

अब अन्य चार उदाहरण देखते हैं:

(१) बंगाल चुनाव प्रचार के दौरान ममता बैनर्जी ने जनता को उकसाते हुए इस आशय का बयान दिया था कि आपको सी.आर.पी.एफ. के जवानों का घेराव करना चाहिए, उनके साथ लड़ना चाहिए, उनकी बंदूकें छीन लेनी चाहिए. इसके बाद ममता बैनर्जी के आदेश का पालन करनेवाले टी.एम.सी. के कार्यकर्ताओं ने वही किया- केंद्रीय पुलिस बल के जवानों की बंदूकें छीन कर पोलिंग बूथ पर कब्जा करने की कोशिश की. जवानों ने इस बेकाबू हिंसक भीड़ को तितरबितर करने के लिए गोली चलाई. इस गोलीबारी में चार दंगाई मारे गए. हिंसक उपद्रव करनेवाले ये चारों मुसलमान थे. मीडिया को यह सच्चाई हमारे सामने लानी चाहिए थी. इसके बजाय मीडिया के मोदी विरोधी, हिंदू विरोधी और राष्ट्र विरोधी तत्त्वों ने ममता बैनर्जी के स्टेटमेंट को ही चलाया: “अमित शाह की केंद्रीय पुलिस ने नरसंहार (जिनोसाइड) किया.”

(२) बिहार के किशनगंज टाउन के हिंदू पुलिस इंस्पेक्टर अश्विनी कुमार को एक केस के संदर्भ में बिहार-बंगाल की सरहद के इलाके में जाना पड़ा. यह उनके कर्तव्य का हिस्सा था. इस इंस्पेक्टर को पीट-पीट कर मार डालने का ऐलान मस्जिद में से माइक पर किया गया (ये अफवाह नहीं, डी.एस.पी. स्तर के अफसर का बयान है). बिहार के हिंदू पुलिस इंस्पेक्टर को पीट कर, लिंच करके मुसलमानों द्वारा हत्या की गई. जवान पुत्र का यह अशुभ समाचार मिलने पर वृद्ध विधवा मां उर्मिलादेवी को हृदयाघात लगा, दौरा पड़ने के कारण माताजी की भी मृत्यु हो गई. पुत्र-माता का अंतिम संस्कार एक साथ किया गया. ऐसी हृदय विदारक घटना यदि मुसलमान इंस्पेक्टर के साथ हुई होती और ऐसी नीच हरकत हिंदुओं ने की होती तो? तो मीडिया के उकसाने पर आज आधा भारत जल रहा होता. लेकिन चूंकि आरोपी मुस्लिम हैं, पीडित हिंदू पुलिस है इसीलिए मीडिया मिलनेवाली हड्डियों को चूसते हुए मौन बैठा है. काटने का तो छोडो, भौंकने का कर्तव्य भी नहीं निभाया.

(३) कोरोना ग्रस्त महाराष्ट्र की बात करते हैं. पिछले साल मई महीने में मुंबई के महालक्ष्मी रेसकोर्स पर कोरोना के मरीजों के लिए करोडो रुपए खर्च करके विशाल कामचलाऊ अस्पताल खडा किया गया था. दिसंबर में उसे समेट लिया गया. क्यों भला? ज्यादा मरीज नहीं हैं इसीलिए! कल शिवसेना के मेयर ने घोषणा की कि कांजुरमार्ग के आस पास ऐसा ही एक नया अस्थायी अस्पताल बना रहे हैं और मई-जून तक वह कार्यरत हो जाएगा. जो पहले से था उसे तोडकर नया क्यों बनाना? करोडो रुपए के कॉन्ट्रैक्ट का करोबार होता है. सब कुछ भाडे पर लाना होता है. गोरेगांव के एक्जिबिशन ग्राउंड पर बने ऐसे ही एक अस्थायी अस्पताल में हुए भ्रष्टाचार के प्रमाण महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस द्वारा तथा भाजपा के पूर्व सांसद किरीट सोमैया द्वारा सार्वजनिक किए जा चुके हैं. एक चादर का छह महीने का किराया रु.१,७००! दो सौ रुपए में खरीदी जा सकती है. इसी तरह से पलंग से लेकर डॉक्टरी उपचार के साधनों तक सभी छोटी बडी वस्तुएं किराए पर लेने में जो भ्रष्टाचार हुआ है उसका आंकडा अरबों में पहुंच चुका है लेकिन मीडिया महाराष्ट्र की महावसूली सरकार के खिलाफ चूं तक नहीं करता. भाजपा की सरकार होती तो?

(४) मा.मु. उद्धवपुत्र आदित्य ठाकरे ने हाल ही में मुंबई के म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन में चुनकर आए ४३ कॉर्पोरेटरों को प्रति कॉर्पोरेटर ८५ करोड रुपए उनके बंगलों को रिनोवेट करने के लिए आबंटित किए हैं. साढ़े तीन अरब रुपए से अधिक की इस राशि के बारे में पढ़कर आपकी आंखें फटी की फटी रह जाएंगी. कॉर्पोरेटर को तो सरकारी निवास भी नहीं देना होता है. अपने घर में रहकर उसे नगरसेवक के रूप में नगर की सेवा करनी होती है. ८५ करोड रुपए में तो मुंबई में अच्छे से अच्छे इलाके में पूरा बंगला या बंगले जैसा डुप्ले फ्लैट खरीदा जा सकता है. यहां तो निवास के नवीनीकरण के लिए बंदरबांट हो रही है और मीडिया के पेट का पानी तक नहीं हिल रहा है. सोचिए कि मीडिया खुद कितना करप्ट होगा जो ऐसा विशालकाय भ्रष्टाचार पर विचार तो क्या चूं तक नहीं करता.

हमारी तकलीफ ये है कि बार बार जो समाचार हमारे मत्थे मढ़ दिए जाते हैं, उसके अलावा समाज में, शहर में, राज्य में या देश में कुछ हो ही नहीं रहा है, ऐसा मानकर हम मोदी के बारे में, केंद्र सरकार के बारे में, हिंदुओं के बारे में अपना मत बना लेते हैं.

जिनकी आलोचना होनी चाहिए उनकी चमचागिरी होती है. जिनके कपडे उतार कर निर्वस्त्र किया जाना चाहिए, ऐसे राजनेताओं के कुकर्मों को कालीन के नीचे दबा दिया जाता है. और जिनकी सराहना करनी चाहिए, जिन्हें आदर सम्मान दिया जाना चाहिए ऐसे लोक हृदय में विराजमान नेताओं को अपमानित किया जाता है. ऐसा है हमारा मीडिया. और हम भोले हैं. मीडिया जिस गंदे गडहे में से पानी पिलाता है उसे शरबत मानकर हम उसकी सराहना करते हैं. बहुत भोले हैं हम.

गुढ़ी पाडवा के पावन दिन से शुरू हो रहा नया वर्ष आप सभी के लिए शुभदायी हो और नवरात्रि के नौ दिनों के दौरान होनेवाली आराधना सभी के जीवन में सुख, समृद्धि और शांति के साथ ही समझदारी का भंडार लेकर आए‍, ऐसी शुभकामना.

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