अच्छे श्रोता, अच्छे दर्शक, अच्छे पाठक, अच्छे भावक होने की निशानियां : सौरभ शाह


(गुड मॉर्निंग क्लासिक्स: १९ अप्रैल, २०२०)

सर्व प्रथम निशानी तो यह है कि हम दोष निकालना टालें। प्रवचन अच्छा था, किन्तु माइक में थोडी गरबड थी। नाटक अच्छा था, परंतु वह पात्र व्यर्थ था। उपन्यास अच्छा था, किन्तु पुस्तक का बाइन्डिंग कच्चा था। बांसुरीवादन में हरिप्रसाद चौरसिया का कोई जोड नहीं किन्तु अब उनकीं साँस तूट जाती है। एसी टीप्पणी करने की यदि आप की आदत है तो आप कभी भी अच्छे श्रोता, अच्छे दर्शक, अच्छे पाठक या अच्छे भावक नहीं बन सकतें। आप को सभी बातों में बहोत अच्छा ज्ञान है और ऐसा ज्ञान आडंबर कर के आप अपने आसपास के मानवों को प्रभावित कर सकते हों ऐसा आपको लगता हो तो रखिए ऐसा ज्ञान आप के ही पास, दूसरों के लिए यह किसी काम का नहीं।

आप में बेट पकडने की भी शक्ति नहीं और आप को इन्टरनेशनल क्रिकेट खेल रहे विराट कोहकी के खेल की आलोचना करनी है। आप को गीत गाना आता नहीं किन्तु आप को लता मंगेशकर का ‘सा’ ठीक से लगता नहीं ऐसा कहकर आपकी तथाकथित प्रतिभा स्थापित करनी है। छोटे मानव के यह सारे लक्षण है। अभी भी आप यदि यह कुलक्षण नहीं सुधारेंगे तो आप जीवन का आनंद लेने से बिलकुल चूक जाएंगे और अंतिम समय तक आप एसा व्यर्थ आलाप करते रहेंगे।

दूसरा। अधिक तर्क करना छोड दें। किसी मित्र ने आप से कहा कि यह फिल्म अच्छी है तो आप चूपचाप सून लें। तर्क नाही करे कि उस में भला आप को क्या पसंद आया? अरे भाई, उस को अच्छा लगा तो उस ने अच्छा कहा, आप को नहीं लगा तो आप का मत आप के पास रखिये। परंतु बहोत लोगों को चुडैल की भांति उलटे पांव चलने में ही आनंद आता है। मान लीजिए कि किसी ने उसी फिल्म के लिए कहा होता कि एकदम बकवास है तो वह उन पर तूट पडेगा कि इतनी अच्छी फिल्म आप को बकवास कैसे लग सकती है? तर्क में घसीट के वितर्क-कुतर्क और विकृत तर्क द्वारा जीत कर सामनेवालों को पराजित करने का संतोष लेना बहोत लोगों को पसंद होता है- एक विशेष प्राणी को जिस प्रकार कादव में खेलना अच्छा लगता है, वेसै।

तीसरी बात। अच्छे श्रोता इत्यादि बनने के लिए तुलना करना छोडें। भय के विषय में रजनीश ने जो कहा कै उस के स्थान पर आप सद्गुरु जग्गी वासुदेव को सूनें। अद्भुत कहा है। भले ही आप उन से प्रभावित हो। यह अच्छा है। किन्तु रजनीशजी को नीचा दिखाने की क्या आवश्यकता है? थाणे का तहेसिलदार का मिसळ तो कुछ नहीं है साहब, आप नासिक में बजार पेठ का मिसळ तो चख कर देखिये। तुलना कर के आप दर्शाना चाहते हो कि दूसरे कूपमंडुक है और आप मानसरोवर के हंस। अच्छी हिन्दी फिल्म देख के उस के मद में हो तब कोई आकर यह कहे कि एसी ही एक फ्रेन्च/इरानीयन/केनेडियन फिल्म मैने देखी थीं- डिट्टो यही विषय था। होता होगा, किन्तु इस का अभी क्या अर्थ है? आपने स्वित्झर्लेन्ड में सूर्यास्त का आनंद लिया होगा तो अच्छा है परंतु मुझे मेरी इच्छा से माथेरान में सूर्यास्त का आनंद लेने दो ना, भाई।

चौथी बात. जिस का प्रवचन आप सूनते हो, जिसका नाटक- फिल्म आप देखते हो, अथवा जिस का लिखा हुआ आप पढते हो उस ने अपने क्षेत्र में कितने वर्ष बितायें हैं, कितनी निपुणता प्राप्त की है, कितनी साधना-आराधना की है अपनी विद्या की- तब जाकर वह इस स्थान पर बिराजमान है और आप उन के भावक बनकर उनकी विद्या के परिणाम का आचमन कर पाते हो। तो दो-चार घडी अपने बडे अहं को बाजु पर रखकर उन का आदर करना हमें सिखना चाहिए। उन की कोई बात हमें न पसंद आयी अथवा दिमाग में उतरी नहीं तो नेक्स्ट टाइम आप उन्हें मत सूनिएगा, न देखिये, या न पढिए। आप के बिना भूतकाल में उनकी गाडी चली ही है और भविष्य में भी चलती रहेगी। गुजराती कवि सुरेश दलाल को विलियम वर्ड्झवर्थ की ‘सोलिटरी रीपर’ (खेती में फसल काटनेवाली अकेली लड़की) कविता की यह पंक्ति बहोत भाती: “स्टॉप हियर ऑर जैन्टली पास।‘ प्रत्येक सर्जक उस के भावक के विषय में यही मानता होता है: यदि आप को किसी बात पसंद है तो आप मेरे पास खडे होकर आनंद लीजिए, अन्यथा चूपचाप बाजु में से रास्ता नांपे…

किन्तु यहां तो आप को व्याकुल कर के, आप पर कंकर फेंक के, आप को चिडाकर अपनी वीरता दिखानेवालों की कमी नहीं।

पांचवी और अंतिम बात। प्रशंसा करने में भी आक्रमक न बनें, अति न करें। जिन को सूनना, देखना, पढ़ना पसंद है एसी व्यक्तिओं के भावक के रूप में उन पर आक्रमण कर के, उन पर अधिकार जताने के बदले अथवा उन पर पझेसिव होने के स्थान पर उन से थोडा अंतर रखकर नम्रतापूर्वक उनकी प्रशंसा कर के अलग हो जाइए। एक अच्छा शब्द ही नहीं, आंख में एक पल में उमडा हुआ भाव भी उन तक पहोंच जाएगा एसा विश्वास रखें। उस कलाकार, उस साहित्यकार के हमारें जैसे दूसरें हजारों, लाखों और करोडो चाहक है जो उन के निकट आना चाहते है। यदि वे प्रत्येक को एक-एक मिनिट भी देने जाएंगे, तो हम को उनका जो सर्जन पसंद आता है उस सर्जन का निर्माण करने के लिए, रियाझ करने के लिए उनके पास समय कहां से बचेगा?

अच्छा गायक बनने के लिए यदि वर्षों का तप करना पडता हो, अच्छे लेखक बनने के लिए यदि वर्षों तक तप करना पडता हो तो अच्छे श्रोता या अच्छा पाठक बनने के लिए भी वर्षो की आराधना आवश्यक है।

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