गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह
(मुंबई समाचार, बुधवार – ५ दिसंबर २०१८)
निजी बातचीत में आपने कई बार देखा होगा कि आपको उकसाने की कोशिश करनेवाला व्यक्ति जब आपके समक्ष कोई तर्क रखता है या फिर आपके खिलाफ कोई आरोप लगाता है और फिर आप उसके तर्क या आरोप का युक्ति संगत जवाब देकर उसे चुप करने के लिए उसकी शंकाओं का निवारण कर रहे होते हैं और आपको लगता है कि अब आपकी बात पूरी होनेवाली है कि तभी सामनेवाला बिलकुल नया शगूफा छोडते हुए बिलकुल अलग मुद्दा उठाकर आपको घेरने की कोशिश करता है. जब आप नए सिरे से उसे तर्कबद्ध कारण देते हुए चर्चा में जीतने के करीब पहुंचते हैं कि वह तीसरा मुद्दा ले आता है, फिर चौथा, और फिर पांचवां.
अंग्रेजी में ऐसे टालमटोल को शिफ्टिंग द गोलपोस्ट कहा जाता है. आपका गोल होने ही जा रहा है कि आपकी विपक्षी टीम गोलपोस्ट या गोलबॉक्स को उसकी मूल जगह से हटाकर अन्यत्र रख देते हैं (ऐसा होता नहीं हैं, हो भी नहीं सकता, लेकिन यह मात्र एक कल्पना है, उपमा है) और आपको गोल नहीं करने देने की ऐसी चालें अपनी निजी जिंदगी में आपने बार बार देखी होंगी.
मीडिया भी यही करता है. याद है, यूपी के चुनाव के समय इस कॉलम में क्या लिखा था? मीडिया उस समय कहा करता था कि २०१४ का चुनाव मोदी भले जीत गए, लेकिन यू.पी. विधानसभा के चुनावों में जीत पाना असंभव है. उस समय हमने लिखा था कि यू.पी. में भाजपा की सरकार बनने के बाद मीडिया कहने लगेगी कि यू.पी. तो ठीक है, असली जंग तो कर्नाटक में होगी.
मध्य प्रदेश, राजस्थान, मिजोरम, तेलंगाना और छत्तीसगढ के विधानसभा चुनावों की घोषणा जब हुई तब मीडिया में बैठे महापंडितों का विश्लेषण ये कह रहा था कि भाजपा पांचों में हार रही है. फिर धीरे – धीरे कहने लगे कि छत्तीसगढ को छोडकर बाकी चार राज्यों में कठिन चढाई है. फिर कहने लगे कि मध्य प्रदेश तो हिंदुत्व का गढ है, लेकिन राजस्थान में वसुंधरा राजे के `करप्ट शासन’ के कारण लोग भाजपा को अलविदा कहने जा रहे हैं. फिर कहने लगे कि मोदी द्वारा राजस्थान में प्रचार शुरू करने के कारण वहां भाजपा का `पलडा भारी’ है (तो क्या पहले से पता नहीं था कि मोदी हमेशा आखिरी दिनों में प्रचार करने जाते हैं). अब मीडिया का लेटेस्ट तर्क ये चल रहा है कि भाजपा की असली कसौटी मध्य प्रदेश और राजस्थान में नहीं, बल्कि तेलंगाना में होनेवाली है (इसका मतलब है कि भाजपा म.प्र. और राजस्थान में जीत रही है). तेलंगाना में मोदी के प्रचार के बाद कल मीडिया लिखेगा कि भाजपा के विरोधी एक नहीं हुए इसीलिए तेलंगाना जैसे राज्य में भी भाजपा के जीतने की संभावनाएँ हैं. २०१९ में भाजपा जीतेगी तो मीडिया क्या लिखेगी यह तो पिछले साल ही हम लिख चुके हैं. एक अतिरिक्त टर्म तो भारत की जनता किसी भी पीएम को देती है, अब देखना है कि मोदी २०१४ में जीतते हैं या नहीं जो अभी तो असंभव लग रहा है!
२०१९ में भाजपा की जीत का कारण (मीडिया की दृष्टि से) आपको अभी से बता देते हैं: भाजपा का विरोध करनेवाले राजनीतिक दल आपस में एकता स्थापित नहीं कर पा रहे हैं, अगर महागठबंधन की कल्पना साकार हुई होती तो राहुल गांधी या मायावती या अखिलेश यादव आज जरूर पी.एम. होते.
लगातार गोलपोस्ट शिफ्ट करते रहना मीडिया की आदत है. चित भी मेरी, पट भी मेरी की तर्ज पर चीटिंग करनेवाले मीडिया को यह अच्छी तरह से आता है और हम, सामान्य पाठक लगातार बेवकूफ बनते रहते हैं.
तेलंगाना में भाजपा की एंट्री रोकने के लिए जिस तरह से विपक्षी मुसलमान मतदाताओं को अपनी तरफ करने के लिए अंधाधुंध वादे कर रहे हैं, वैसे सांप्रदायिक वादे भाजपा ने कभी हिंदु मतदाताओं को नहीं दिए. सिर्फ कल्पना कीजिए कि योगी आदित्यनाथ ने यूपी के चुनाव से पहले हिंदू युवकों को अमुक लाख रूपए का लोन, हिंदू मंदिरों को मुफ्त बिजली, हिंदू विद्यार्थियों को मुफ्त शिक्षा -छात्रावास, हिंदू उद्योगपतियों को अमुक लाख की सरकारी सहायता इत्यादि प्रदान करने के वचन दिए होते तो? सेकुलर मीडिया ने योगी को खडे करके उधेड दिया होता और `सांप्रदायिकता सांप्रदायिकता’ का शोर मचा कर मुसलमानों को उकसाकर यूपी में दंगे करवाए होते. आश्चर्यजनक है कि कांग्रेस जब तेलंगाना में ये सारे वादे मुसलमानों से कर रही है तब सेकुलर मीडया चुप है, कोई सवाल नही कर रहा. ठीक १६ साल पहले ऐसा ही हुआ था. गोधरा हिंदू हत्याकांड के समय ५९ हिंदुओं को जिंदा जला दिया गया तब इस सेकुलर मीडिया ने मुसलमानों के विरोध में एक शब्द भी नहीं कहा, लेकिन उस हत्याकांड की स्वाभाविक प्रतिक्रिया स्वरूप जब गुजरात में दंगे भडक उठे (जिसमें दोनों संप्रदायों को बराबर नुकसान हुआ था) तब सेकुलर मीडिया ने हिंदुओं को, हिंदू संस्कृति को, हिंदू परंपरा को, गुजरात को, गुजरातियों को और बेशक गुजरात के तत्कालीन प्रमुख लोगों को बदनाम करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी थी.
आज का विचार
समझ नहीं आता कि क्यों दूसरों को पसंद है वो,
लिखा जाता है जो सिर्फ एकाध के लिए
– डॉ. मुकुल चोकसी
एक मिनट!
पका: यार बका, पुरानी हिंदी फिल्मों में भूतनियां हाथ में मोमबत्ती लेकर क्यों घूमती थीं?
बका: क्योंकि कांग्रेस के राज में बिजली ही कहां थी?