शोहरत तुम्हें मिली, सर मेरा घूम गया

संडे मॉर्निंग- सौरभ शाह

(मुंबई समाचार, रविवार – २ दिसंबर २०१८)

`नुक्कड‘ सीरियल से लोकप्रिय हुए टीवी ऐक्टर दिलीप धवन के पिता कृष्ण धवन के बारे में जावेद अख्तर ने एक बार शैलेंद्र से जुडे अपने टीवी शो के एपिसोड में गलती से यह जानकारी दी थी कि चलत मुसाफिरवाले अभिनेता कृष्ण धवन वरुण धवन के दादा और डेविड धवन (तथा अनिल धवन) के पिता हैं. जावेद साहब की यह बात बिलकुल गलत थी. मैंने एक से अधिक ऑथेंटिक स्रोतों से कंफर्म किया है कि कृष्ण धवन के पुत्र दिलीप धवन हैं, न कि डेविड-अनिल धवन.

बहरहाल जो भी हो. `गाइड’ के उस सीन में देव आनंद रोजी को छोडकर अपने मूल की खोज में फिर से अपने घर आता है. वह इंतजार कर रहा है कि मां को पत्र लिखने के बाद कब मामा के घर से मां लौटती है और वह फिर से कब अपनी पुरानी जिंदगी शुरू करता है, गाइड का काम शुरू करता है. तभी अभिनेता कृष्ण धवन उर्फ गिरधारी राजू के दरवाजे पर दस्तक देता है. राजू अपने पुराने दोस्त का स्वागत करता है लेकिन गिरधारी दोस्त के नाते नहीं पुलिस के रूप में उसे गिरफ्तार करने आया है.

एक मजे की बात. गिरधारी जब आता है तब उसके दाएं हाथ में पुलिस की बैटन (छडी) है. बाएं हाथ में वॉरंट का कागज नहीं है लेकिन ध्यान से देखेंगे तो पता चलेगा कि वह जेब में हाथ डाले बिना, मानो कागज पहले से उसके हाथ में है, उस प्रकार से देव आंनद को दिखाता है. जिंदगी में हम अपनी गलतियों के प्रति लापरवाह होते हैं लेकिन फिल्मों में या (अन्यत्र कहीं भी) कौन क्या गलती करता है, इस पर पूरा ध्यान देते हैं? `गाइड’ की श्रृंखला लिखते समय कई बार वह सीन देखा लेकिन निर्देशक विजय आनंद की यह गलती अभी मेरे ध्यान में आई, इसीलिए आपके साथ इसे साझा किया. दूसरों की गलती को भी लोगों को बताने में कितना मजा आता है ना.

गिरधारी राजू को गिरफ्तार करने आया है. वह तत्काल राजू को कस्टडी में लेने वाला है. राजू की प्रार्थना को सम्मान करते हुए दोस्ती खाते में गिरधारी उसे नलिनी उर्फ रोजी से मिलने का मौका देता है. (जिससे निर्देशक को दो अद्भुत गीतों का सिचुएशन मिल जाता है!)

फिल्म का यह एक जबरदस्त मोड है. शो का वक्त हो गया है. थिएटर पर जाकर राजू रोजी को देखता है. रोजी राजू को देखती है लेकिन तभी रोजी से कहा जाता है,“मैडम कर्टन खुल चुका है…

स्क्रिप्ट राइटर की यह विशेषता है. परिस्थिति में इमरजेंसी का भाव डालने के लिए `मैडम कर्टन खुल चुका है’ का डायलॉग डाला गया है ताकि जो भी बात होनी है वह गीत खत्म होने के बाद हो.

वायलिन, तबला, सितार और घुंघरू के इंट्रो म्यूजिक के साथ जोश भरा गीत शुरू होता है:

मोसे छल किए जाए सैंयां बेईमान

वहीदाजी इस गीत में एक प्रेमिका के रूप में सारी व्यथा उंडेल देती हैं. जिस व्यक्ति को आपने सारी जिंदगी सौंप दी हो, वह अगर इतनी छोटी रकम के लिए आपसे धोखा कर ही कैसे सकता है? मार्को के पास रोजी के गहने थे जो बैंक के लॉकर में थे और उस लॉकर को खोलने के लिए रोजी-मार्को दोनों के हस्ताक्षर की जरूरत थी. वकील द्वारा दस्तावेज राजू के हाथ में आते हैं तब वकील कहता भी है कि मार्को पचीस-तीस हजार के गहने रोजी को दे देना चाहता है. १९६६ में यह फिल्म आई थी. उस समय के सोने की का भाव गूगल सर्च करके देखिए आपको मिल जाएगा. आज इतने रूपयों में एक तोले से भी कम सोना मिलेगा. उस समय – १९६६ में सोने का भाव महज सौ रुपए तोला रहा होगा. इसका अर्थ ये है कि करीब ३०० तोला सोना मार्को खुद से अलग हो चुकी वाइफ को देना चाहता था. आज की कीमत से ये एक करोड रूपए का माल होता. आप समझ सकते हैं कि मार्को खुद को छोडकर पराए मर्द के पास चली गई पत्नी को इतनी सारी संपदा देना चाहे और अगर आप उस परपुरुष की जगह पर हों तो आपके मन में क्या विचार आएगा? मार्को अपनी बिछडी हुई पत्नी को फिर से पाने के लिए अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास कर रहा है. बिलकुल सही. राजू गाइड के दिमाग में भी यही विचार आया. रोजी मुझे छोडकर मार्को के पास चली गई तो?- इस असुरक्षा की भावना के कारण कागज पर रोजी का हस्ताक्षर लेने के बजाय देव साहब रोजी के बनावटी हस्ताक्षर करके वकील को दस्तावेज लौटा देते हैं. राजू के बनावटी हस्ताक्षर पकडे जाते हैं. रोजी कहती भी है कि ये मेरे हस्ताक्षर नहीं हैं, किसी ने गलत हस्ताक्षर किया है. पिक्चर में या आर. के. नारायण के लिखे उपन्यास में कहीं भी ऐसा कारण नहीं दिया गया है कि रोजी ने राजू को बचाने के लिए झूठ क्यों नहीं कहा कि `हां’ ये मेरे ही हस्ताक्षर हैं.’ रोजी ने ऐसा क्यों मान लिया कि जिसने अपनी मां को छोड दिया है, दुनिया की बदनामी अपने सिर पर ली, वह आदमी फ्रॉड है? रोजी ने यदि एक बार झूठ बोलकर राजू को कोर्ट केस के मामले से बचा लिया होता तो भी उसके पास विकल्प रहता कि अगर राजू फ्रॉड है तो उसे छोड दे, अपनी जिंदगी से दूर कर दे- जिस आदमी पर आप अपने जीवन की सारी कमाई को लेकर विश्वास करते हैं, वह पचीस – तीस हजार के गहनों के लिए अगर आपके साथ धोखा करता है तो वह विश्वासघात ही है. उसे साथ आप न तो कोई प्रोफेशनल संबंध रख सकते हैं, न ही कोई पर्सनल रिलेशन.

लेकिन राजू असल में ऐसा नहीं है जैसा रोजी सोच रही है. राजू बेचारे को गांधीजी की फिलॉसफी का ध्यान नहीं होगा कि साध्य के साथ साधन शुद्धि का भी ध्यान जीवन में रखना चाहिए. लक्ष्य पवित्र होना ही काफी नहीं है, उस लक्ष्य तक पहुंचने के लिए आपके प्रयासों में शुद्धता होनी चाहिए. एक गाइड की अक्ल चल चल कर भी कितनी चलेगी. फिर भी गलत हस्ताक्षर करने के पीछे उसका उद्देश्य बस इतना ही था कि रोजी उसे छोडकर मार्को के पास चली जाए ऐसी किसी संभावना के उभरने से पहले ही उसे समाप्त कर दे. राजू की जगह पर आप होते तो? शायद ऐसा ही करते, क्योंकि उपन्यास में तो नहीं लेकिन फिल्म में तो रोजी राजू को जेल में मुलाकात करते समय कहती है कि: राजू, मुझे पता होता कि ऐसा होनेवाला है तो मैंने झूठ बोलकर तुम्हें बचा लिया होता.

लेकिन ये सब रोजीबहन का खेल बिगाडने के बाद की होशियारी थी. जमीन पर ढुल चुके दूध का अफसोस था. बाजी तो अब भी हाथ में थी. अगर रोजी ने कोर्ट में जाकर ये कह दिया होता तो राजू बाइज्जत बरी हो जाता.

लेकिन किंतु-परंतु की संभावना जितनी रीयल लाइफ में होती है उतनी ही फिक्शन में भी होती है. राजू निर्दोष छूट जाता तो उपन्यास और फिल्म वही पर खत्म हो जाती. और असली मजा तो इस कहानी के कलाइमेक्स में है, जो अभी आना बाकी है- क्लाइमेक्स के गीत भी अभी बाकी हैं.

`मोसे छल किए जा’ गीत आप ध्यान से सुनेंगे तो उसमें कई जगहों पर शब्दों के बदले `नि, नि, नि रे रे, ग ग, म म, प, ध, नी सा’ जैसी सरगम को शामिल किया गया है. कवि आसानी से वहां राजू के कृत्य की अलोचना में शब्द डालकर गीत लिख सकते थे. `मन का है बैरी काला’ जैसे शब्द तो रखे ही हैं. `प्रीत मोरी पल पल रोए’ जैसी वेदना भी तीव्रता से व्यक्त हुई है. फिर भी कई जगहों पर शब्दों, विशेषणों को छोडकर सरगम का सहारा लिया गया है. क्यों? मुझे लगता है कि कवि ये कहना चाहता है कि रोजी की यह व्यथा इतनी गहरी है कि उसे व्यक्त करने के लिए अब कोई शब्द ही नहीं रहे. शैलेंद्र के दिल में ऐसा कुछ होगा या नहीं यह तो उनकी आत्मा ही जानती है लेकिन शब्दों के स्थान पर `नि, नि, सा, सा’ आता है तो हम भी कल्पना कर सकते हैं कि रोजी राजू को क्या क्या सुनाना चाहती होगी लेकिन ऐसा बोलने में संस्कार उसके आडे आ रहे होंगे. जब कि विटवीन द लाइन्स आप उसमें आप यू सन ऑफ अ बिच और उससे भी अधिक कडवे जाहिल शब्द सुन सकते हैं.

रोजी की यह `गालीगलौज’ पूर्ण होने के बाद तुरंत देव आनंद शुरू करते हैं:

क्या से क्या हो गया बेवफा तेरे प्यार में

चाहा क्या, क्या मिला….

इस स्थिति में ऐसे भी सारी सिंपथी देव साहब के साथ है इसीलिए रोजी को जब वह `बेवफा’ कहती है तब हमें भी मोहम्मद रफी के साथ गाते गाते इस शब्द के साथ दि से गाते हैं: बेवफा…आ…आ…आ तेरे प्यार में.

और फिर आश्वासन लेते हैं कि:

चलो, सुहाना भरम तो टूटा

जाना के हुस्न क्या है…

इस पंक्ति के समय देव आनंद को बैकग्राउंड में रखकर सामने वहीदाजी दिख रही हैं यह ध्यान दीजिएगा, उनके स्मूद स्टेप्स वह किस तरह से सरक रही हैं वह देखना. मानो समुद्र में आया ज्वार धीरे धीरे पीछे लौट रहा है.

दिल ने क्या ना सहा, बेवफा तेरे प्यार में

`बेवफा’ शब्स अब बार-बार आनेवाला है, सारी जिंदगी उस शब्द को रटा जाना है, क्योंकि `तेरे मेरे दिल के बीच अब तो सदियों के फासले हैं… यकीन होगा किसे कि हम तुम एक राह संग चले हैं…’

अब इससे ज्यादा क्या होना है? इस मूड में देव आनंद का यह गीत पूरा होने के बाद बैक स्टेज में वह रोजी से मिलता है: रोजी पूछती है कि तुमने ऐसा क्यों किया, राजू? पैसे की ही जरूरत थी तो मझसे कहा होता. मैं अपने गहने, घर सब बेच देती.

राजू कहता है: समझता था, कोई ना समझे, रोजी जरूर समझ जाएगी. समझ ही देखो कितनी नासमझ निमली.

रोजी कहती है: सच तो ये है राजू, न मैं तुम्हें समझी, न तुम मुझे समझे….

राजू पर फ्रॉड का आरोप साबित होता है और उसे इंडियन पीनल कोड की धारा ४१७ के तहत जाली दस्तखत करने के जुर्म में दो साल की सजा हो जाती है.

जेल में मिलने आई रोजी अफसोस जताती है कि तुम्हें बचाने के लिए मैं एक झूठ तक नहीं बोल सकी!

देव आनंद के मुंह से अब जबरदस्त संवाद कहलाया गया है: दोष मेरा ही था, रोजी! शोहरत तुम्हें मिली सर मेरा घूम गया. होश आया तो देखा जेल में हैं…

रोजी को लगता है कि दो वर्ष देखते देखते बीत जाएंगे, फिर नए सिरे से जीवन शुरू करेंगे. लेकिन भाग्य को कुछ और ही मंजूर था रोजी के लिए, राजू के लिए. हम सभी के जीवन में. अगले रविवार को समाप्त.

आज का विचार

अंदर ही अंदर धधकती एक घटना से शुरुआत करूं तो तुम्हें क्या परेशानी है?

ठंडी पड चुकी चिनगारी को फिर से सुलगा कर झंझावात करूं तो उसमें तुम्हें क्या परेशानी है?

– संजू वाला

संडे ह्यूमर

पका: तुमने डायटिंग शुरू किया था. क्या हुआ, वजन घटा.

बका: मैं तो वजन घटाना चाहता हूं लेकिन यह वजन है कि घटना ही नहीं चाहता…क्यों इसी को लोग एकतरफा प्यार कहते हैं!

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