हम्मारा गौट्र डट्टाट्रेय हाय: इटालियन मम्मी उवाच

गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह

(मुंबई समाचार, गुरुवार – २९ नवंबर २०१८)

ओमकारा में अजय देवगन ने तवायफ के बेटे की भूमिका निभाई है. हिरोइन का वकील पिता अजय को दुत्कारते हुए `अद्धा बम्मन’ कहता है. आधा ब्राह्मण, क्योंकि उस गांव में सभी को पता है कि ब्राह्मण प्रेमी से मिलन के कारण अजय की मां गर्भवती हुई थी. इसीलिए वह ब्राह्मण तो है लेकिन आधा ही है, बाकी का आधा रक्त तो तवायफ मां का है.

पंडित जवाहरलाल नेहरू कश्मीर के कौल ब्राह्मण थे, जिनका गोत्र दत्तात्रेय था. उनके पूर्वज कश्मीर छोडकर आने से पहले कश्मीर में नहर के किनारे उनका घर हुआ करता था, इसीलिए कौल उपनाम नेहरू बन गया.

१७१६ में पंडित राज कौल कश्मीर छोडकर दिल्ली आ गए थे. तब उन्हें लोग नेहरू के रूप में पहचानने लगे. जवाहरलाल का जन्म १८८९ में हुआ था, उनके पिता मोतीलाल १८६१ में जन्मे थे. मोतीलाल के पिता गंगाधर नेहरू पुत्र के जन्म से तीन महीने पहले, फरवरी १८६१ में स्वर्गवासी हो गए. गंगाधर का जन्म १८२७ में हुआ. राज कौल और गंगाधर कौल के बीच कम से कम चार पीढियां हुई होंगी जिसकी जानकारी हमारे पास नहीं है. इसकी जरूरत भी नहीं है. गंगाधर नेहरू दिल्ली के अंतिम मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर के राज्य में कोतवाल थे. १८५७ के पहले स्वतंत्रता संग्राम के बाद अंग्रेजों ने इस कोतवाली को निरस्त कर दिया था. इसी दौरान दिल्ली में मशहूर शायर गालिब बसा करते थे जिनका उठना बैठना बहादुरशाह जफर के साथ था. गालिब की गिरफ्तारी एक कोतवाल ने करवाई थी, ऐसा हमने गुलजार साहब के सीरियल में देखा है. अजित वाच्छानी ने वह भूमिका निभाई थी. यह कोतवाल जिस तवायफ से आकंठ प्रेम में डूबा था वह तवायफ (नीना गुप्ता) गालिब को दिलोजान से चाहती थी. सीरियल में जिस कोतवाल का पात्र है वह रीयल लाइफ के कोतवाल गंगाधर नेहरू पर आधारित है या नहीं, ये हम नहीं जानते.

समाचार केवल इतना है कि संतान का गोत्र वही होता है जो उसे पिता से विरासत में मिलता है. जवाहरलाल तक सारा कुछ ठीकठाक था. उनकी बेटी पारसी फिरोज से ब्याही गई जिससे तकनीकी रूप से इंदिरा- फिरोज के पुत्र राजीव और संजय पारसी हुए, वे कौल ब्राह्मण नहीं रहे, राजीव-सोनिया की संतानें प्रियंका और राहुल आधे पारसी – आधे इटालियन माने जाएंगे. इसके बावजूद राहुल गांधी अगर उठापटक करके जिद पर उतर आएं तो उन्हें आप आधा तो नहीं लेकिन पाव (एक चौथाई) दत्तात्रेय कौल ब्राह्मण मान सकते हैं, क्योंकि राजीव गांधी में माता की तरफ से आधा रक्त कौल ब्राह्मण का था, राजीवजी को आप आधा बम्मन कह सकते हैं. राहुल पाव ब्राह्मण की श्रेणी में आते हैं.

सामान्य रूप से कोई यदि जाति पांति की बात करता है तो मार्क्सवादी मीडिया उसकी खूब अलोचना करता है: ये तो जातिवादी है, कास्टिस्ट है. यहां तो जाति नहीं, उपजाति नहीं, बल्कि उससे भी छोटी इकाई गोत्र की बात है. उसकी बात करना तो मार्क्सवादी मीडिया के लिए जाहिल गंवारपन होना चाहिए. लेकिन वे लोग उछल उछल कर राहुल गांधी के गौत्र की बातें हम तक पहुंचा रहे हैं. मुझे तो इतना ही पूछना है कि मोदी चाचा के सत्ता पर आने से पहले इन सेकुलर भतीजों का ब्राह्मणत्व कहां चला गया था? उनके जनेऊ कहां थे? २०१४ से पहले क्यों `हम भी डिच’ वाले ब्राह्मण किसी मंदिर, तीर्थस्थान पर नहीं गए?

यदि आप मेरी उम्र के होंगे तो हम भी डिच वाली कहानी आपको अवश्य पता होगी. लेकिन उसके बाद की पीढी के पाठकों में एक बडे वर्ग ने `हम भी डिच’ का शब्द प्रयोग सुना भी नहीं होगा. किसी की देखादेखी करने में हम भी झूठ बोलकर जब उनके साथ मिल जाते हैं तब `हम भी डिच’ वाली कहावत का उपयोग होता है. इसके पीछे एक मजेदार कहानी है. गांव में ब्राह्मणों की बस्ती में दावत थी. गांव का ही एक मुसलमान वहां से गुजर रहा था और तभी उसे भी भोजन की महक से खाने का मन हो गया. वह भी कतार में खडा हो गया. हॉल में पंगत में बैठने से पहले यजमान की ओर से हर ब्राह्मण से पूछा जाता था: आप कौन से ब्राह्मण हैं? जवाब मिलता: औदिच्य. तब यजमान उन्हें औदिच्य ब्राह्मणों की पंगत में बिठा देता. अपने से आगे खडे सभी ब्राह्मणों को औदिच्य, औदिच्य बोलते हुए उस मुसलमान ने भी सुना लेकिन वह उच्चारण समझ नहीं सका. उसे सिर्फ `डिच’ ही समझ में आया. उसकी बारी आने पर यजमान ने पूछा: आप कौन? उसने तुरंत जवाब दिया: हम भी `डिच’… ये सुनते ही सारे ब्राह्मणों ने मिलकर उस मुसलमान की खूब खबर ली और उठाकर हॉल से बाहर फेंक दिया.

राहुल गांधी ने राजस्थान चुनाव से पहले अपना गोत्र घोषित कर दिया उसके बाद सोशल मीडिया में तरह तरह की ट्रोलिंग शुरू हो गई. किसी ने कहा कि राहुल का गोत्र क्या है, यह उनकी माताजी के मुंह से सुनने में मजा आएगा. ये पढने के बाद किसी ने सोशल मीडिया में यह वाक्य शेयर किया जो इस लेख का शीर्षक है. अब तो बस इतनी ही देर है कि राजस्थान ही नहीं, भारत भर के मतदाता इन नए कांग्रेसियों को उठाकर झुला दें.

कांग्रेसी मुसलमान शब्द का प्रयोग हमने जानबूझकर किया है. गुजरात में कफनी के ऊपर जनेऊ पहन कर घूमने वाले, यहां पर खुद को शिवभक्त कहलानेवाले और अब अपने गोत्र का दावा करनेवाले पप्पू की कांग्रेस हिंदुओं की आंखों में धूल झोंक रही है, यह तो सभी जानते हैं. सभी जानते हैं कि कांग्रेस हिंदू विरोधी है, इतना ही नहीं मुसलमानों को अपना वोटबैंक मानती है. पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में आंध्र प्रदेश से अलग हुए तेलंगाना राज्य में भी चुनाव हो रहा है. तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद है जहां की चार मीनार के अलावा ओवैसी नामक कट्टरतावादी राजनीतिक खूब जाना पहचाना है. तेलंगाना के चुनाव में कांग्रेस के चुनावी घोषणा पत्र में क्या क्या वादे किए गए हैं?

१. मस्जिदों (और चर्चों) को मुफ्त बिजली.

२. मुस्लिम युवाओं के लिए सरकारी नौकरियां.

३. सिर्फ मुसलमानों के अस्पताल

४. मुसलमान विदयार्थियों के लिए बीस लाख रूपए की सहायता.

५. सिर्फ मुस्लिम विदयार्थियों के लिए होस्टेल सहित स्कूल

६.मुसलमानों को नौकरी नहीं देनेवाले हिंदुओं के खिलाफ कडी कार्रवाई की जाएगी.

कांग्रेस की इस खुली बेशर्मी के बाद भी भाजपा द्वेषी लोग कांग्रेस को धर्मनिरपेक्ष तथा भाजपा को सांप्रदायिक कह रहे हैं. लेकिन कांग्रेस को पता नहीं है कि २०१४ के चुनाव के बाद इस देश में दूध का दूध और पानी का पानी हो रहा है, मतदाताओं में नीरक्षीर विवेक जागृत हो रहा है. यह देश किसी के `डट्टाट्रेय गाउट्र’ से उल्लू नहीं बनने वाला.

आज का विचार

शादी में लकडी वाले ज्यादा नाचें तो समझ लीजिए कि उसके घर का सिरदर्द अब आपके घर आ रहा है.

और अगर लडकेवाले जोरशोर से नाच रहे हों तो मान लेना चाहिए कि उस भाई का किसी तरह से जोडा जमा है.

– वॉट्सएप पर पढा हुआ

एक मिनट!

ट्रेन में बोरीवली से चर्नीरोड जाने के लिए बैठे बका ने पका से कहा:

ये वॉट्सएप सचमुच हमें जीवन में आगे ले जाता है.

पका: कैसे?

बका: देख ना, चर्चगेट आ गया!

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