मानस गणिका-दिन ४: जीसस कौन थे, उनकी माता वर्जिन मेरी कौन थीं: जीवन देखा जाता है, जन्म नहीं

(newspremi.com, मंगलवार, २३ जून २०२०)

(मानस गणिका कथा दिन ४, अयोध्या, बुधवार, २५ दिसंबर २०१८)

पूज्य मोरारीबापू की प्रत्येक नौ दिवसीय रामकथा के प्रत्येक दिन का आरंभ शंखनाद से और उसके बाद हनुमान चालीसा के पाठ से होता है. तत्पश्चात वेद तथा उपनिषद के मंत्रोच्चारों से सारा कथामंडप महान ऋषि-मुनियों के तपोवन स्थित आश्रम के वातावरण से छलकने लगता है. उसके बाद बापू का वर्षों से साथ दे रहे संगीतकार, गायक और वादक तबला, हार्मोनियम, शहनाई, बेंजो या मंजीरा का एक एक कर संगत करते हुए पवित्र हो चुके वातावरण को स्थिर करने में सहायक बनते हैं. उसके बाद रामचरित मानस की अनेक मनचाही चौपाइयों तथा रामजी की स्तुतियों का गान होता है. तत्पश्चात हर कथा के विशिष्ट विषय के अनुरूप कथा के केंद्रीय विचार को व्यक्त करनेवाली चौपाई-दोहे का गान होता है. `मानस:गणिका’ में नौ के नौ दिन गणिका के प्रति सम्मानजनक भाव व्यक्त करनेवाली चौपाइयों-दोहों के बारे में मौका मिलने पर विस्तार से बात करेंगे. बीते हुए बीसेक घंटों के दौरान किसी भी सांसारिक खलल से क्षुब्ध हो चुके चित्त का डिटॉक्सिफिकेशन करने की यह अद्भुत विधि घंटे भर चलती है और तब तक यहां वहां भटकनेवाला आपका मन हनुमानजी की प्रतिमा में केंद्रस्थ हो जाता है, आप पूर्ण रूपेण राममय बन जाते हैं. कथा में कभी प्रासंगिक हंसी मजाक तो कभी संदर्भ के साथ हिंदी फिल्म की कोई पंक्ति आती है या लोकगीत या समृद्ध गुजराती कविता साहित्य से कुछ प्रस्तुत किया जाता है तब भी इस सारे श्रृंगार के बावजूद आपका ध्यान हनुमानजी की तरह रामजी में ही लीन रहता है.

`मानस:गणिका’ का आज चौथा दिन है. अयोध्या के प्रसिद्ध देव-काली रोड पर बिना किसी बोर्ड की दो फेमस नाश्ते की दुकानें एक दूसरे से लगकर हैं. जलेबी तली जा रही है और उन्हें चाशनी में डुबोया जा रहा है. रबडी की थाल तैयार है. समोसा भी छन रहा है. दही कचौरी के साथ सारा नाश्ता करके मेले जैसा वातावरण उत्पन्न कर रहे कथा स्थल पर नौ बजे पहुंच कर सेटल हो जाते हैं. कथा दस बजे शुरू होने के बाद ४ घंटे तक रामचरित मानस का पान करना है जिससे हम यूं भी भूख प्यास भूल जानेवाले हैं.

बापू कहते हैं कि पैसे को लक्ष्मी में रूपांतरित करने का एकमात्र उपाय यही है कि उसे करूणा के साथ करूणा के पात्र लोगों तक पहुंचाया जाए.

आज क्रिसमस का दिन है. बापू की कथा में राम जन्म का विशेष महत्व है. आज भगवान ईशू का जन्म दिन है. बापू व्यासपीठ पर बैठ जाते हैं तब `संगीत नी दुनिया’ परिवार के प्रमुख नरेशभाई और निलेशभाई वावडिया के इशारे पर मंच पर जाकर बापू को प्रणाम करके क्रिसमस की शुभकामना के रूप में सांतक्लॉज की लाल टोपी उनके चरणों में रख दी और बापू का आशीर्वाद लिया- आज ऐसी ही टोपी पहनकर कथा का श्रवण करने की आज्ञा मांगी. बापू का आशीर्वाद प्राप्त करने के बाद हम मित्रों ने सांताक्लॉज की टोपियां थैले से निकालकर सिर पर धारण करके एक दूसरे की टोपी को ठीक किया. एक टोपी मैने अपने पास बैठी न्यूयॉर्क से आई विदेशी महिला को भेंट में दी जो अमेरिकी उच्चारण की छटा से युक्त शुद्ध हिंदी बोल सकती है, चौपाई भी गा सकती हैं. एक टोपी बापू के इस बार के इस बार के गणिकाओं के लाभार्थ घोषित फंड में एक करोड का दान देनेवाले रमेशभाई सचदेव को दी जो यू.के. से आए हैं. सबने टोपी पहन ली.

एक गोपनीय बात: कल देर शाम को मित्र देव-काली रोड की दुकान से जलेबी बंधवाकर हमारे लिए ला रहे थे कि तभी जरा ध्यान चूकने पर जलेबी का पैकेट मुझ तक पहुंचने के बजाय मेरे बाप-दादाओं के पूर्वज छलांग मारकर ले गए. आज निवास से निकलते समय मुंबई से लाए गांठिया-पापडी के पैकेट्स को साथ लिया था लेकिन उसमें से एक पैकेट ऐसा ही एक बंदर झपट कर ले गया. जलेपी-पापडी उनके पास पहुंच चुकी है. कल हाथ में मिर्ची का पैकेट रखने का विचार है.

करीब एक घंटे तक आंखें मूंदकर ध्यानस्थ हो जाने के बाद बापू का स्वर कान पर पडता है: `बाप!’

ऐसा लगता है कि बापू के हृदय में दो बातें घूम रही हैं. आज तो भगवान ईशू का जन्मदिन है और कल शाम को उस गणिकापुत्र युवक द्वारा पूछा गया प्रश्न: बापू, मैं कोठे पर क्यों जन्मा?

गणिकाओं के लिए मेडिकल फंड में बापू की अपील पर अभी तक कुल सवा तीन करोड से अधिक राशि सिर्फ ४८ घंटे में जमा हो चुकी है. बापू कहते हैं कि पैसे को लक्ष्मी में रूपांतरित करने का एकमात्र उपाय यही है कि उसे करूणा के साथ करूणा के पात्र लोगों तक पहुंचाया जाए.

बापू कहते हैं: `सारे तंतु एक दूसरे से जुडे हैं.’

आज की कथा का केंद्रबिंदु जिन दो विचारों के संदर्भ में निर्मित हो रहा है उस वातावरण को बापू के प्रिय (और पीएम मोदी ने किसी जमाने में कहा था कि उनका भी यह प्रिय है) आनंद बक्षी के लिखे गीत को भजन में ढाल कर गाया जाता है: कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना….

बापू कहते हैं: `आज जिनका जन्मदिन है वे ईशू बहुत मासूम हैं. उनकी मां तो उनसे भी अधिक मासूम हैं. मदर मेरी. ये वर्जिन मेरी कौन थीं? ईशू उनका बेटा. यहां कौन किस तरह से जन्मता है, ये नहीं देखा जाता. कौन किस तरह से जीकर जाता है उसका महत्व है.’

बापू की बात के संदर्भ को छोडे बिना विस्तार करते हैं. मदर मेरी को वर्जिन मेरी भी कहा जाता है. लेकिन वर्जिन में कुंवारी का अर्थ नहीं है बल्कि अपरिणीत का अर्थ निहित है. मेरी अपरिणीत थीं, अनमैरिड-वर्जिन या कुमारी नही. जिसके पिता का नाम ज्ञात नहीं है एेसे ईशू को यह अपरिणीता मेरी जन्म देती है. मेरी को भी समाज त्याग देता है, तिरस्कृत करता है- ऐसे कृत्य के लिए. अंग्रेजी शब्द उपयोग करने लायक नहीं है लेकिन उर्दू में जो लडका किसी का वारिस नहीं है उसे लावारिस कहा जाता है. जिसके पिता का कोई पता नहीं है. ईशू ऐसी संतान थे.

बापू कहते हैं: `सारे तंतु एक दूसरे से जुडे हैं.’ कल रात उस युवक ने व्यथा के साथ जो प्रश्न पूछा था उसको जवाब बापू ईशू के जन्मदिन के संदर्भ में दे रहे हैं:`जन्म-मृत्यु हमारे हाथ में नहीं है. इन दो सिरों के बीच जिया रहा जीवन हमारे हाथों में है.’

बापू ने २५ दिसंबर को जन्मे अटल बिहारी वाजपेयी तथा पंडित मदनमोहन मालवीयजी को भी भावपूर्वक स्मरण किया

बापू जो भी कहना है उसे बहुत ही कम शब्दों में कह दिया करते हैं. उनकी वाणी श्लोक जैसी है एक भी अतिरिक्त शब्द नहीं मिलेगा. हम बहुत बातूनी- बक-बक करनेवाले इंसान हैं. कोई बात एक वाक्य में कही जा सकती हो तो भी उसके लिए पूरा लेख लिख डालते हैं. श्लोकवाणी को लोकवाणी में ढालते हैं. ईशू का जन्म भी कल लगभग दो सौ से अधिक गणिकाओं के साथ हुए सत्संग के समय मौजूद रहे गणिका पुत्र की तरह ही हुआ था. पर ईशू ने कम उम्र में (३२ वर्ष का जीवन) जो काम किया उसके कारण सारी दुनिया आज उनका जन्मदिन मना रही है ऐसा कहकर बापू उस युवक को संबोधित किए बिना इशारा किया कि कोठे पर मेरा जन्म क्यों हुआ, इस प्रश्न में उलझने के बजाय जीवन इस तरह से जिया जाय कि लोगों को हमारा जन्मदिन याद रह जाए, जीवन में ऐसे महान काम करने में ओतप्रोत हो जाएं.

फिर बापू कहते हैं: `यहां पर कौन दूध का धुला है?’ सूरदास का उल्लेख करके वे कहते हैं:`मो सम कौन कुटिल, खल, कामी.’ और फिर बापू का सिक्सर: `तथाकथित कई धर्मध्वजाएँ “लहराती॑” नहीं हैं, “फडफडाती” हैं!”

बापू कहते हैं: गणिकाओं में निहित समदर्शिता तो देखिए. वे कुल, जाति, उम्र, काला-गोरा कुछ नहीं देखतीं. और हम? तुलना करने जाएं तो बहुत पछताएंगे. गणिका तो निमित्त है- हमारे लिए अंदर झांकने का मौका है. यह कथा `काम’ के लिए नहीं `राम’ के लिए है. ईशू कम उम्र में बहुत बडे काम कर गए. सभी सनातनी लोगों से निवेदन है कि ईशू का जन्मदिन हम बहुत भाव से मनाएं. मैं तो उनके जन्मस्थल येरूशलम में जाकर रामकथा गाकर आया हूं. ईशू के जन्मदिन की तुलना में दुगुने उत्साह से राम जन्म का उत्सव मनाएं, जन्माष्टमी, महाशिवरात्रि, नवरात्रि और हनुमान जयंती मनाएं. सामनेवाले हमारी तरह उदार भले न हों इसके बावजूद ईशू का जन्मदिन हम उत्साह से मनाएँ.

`सब मम प्रिय, सब मम उपजाए/ सबते अधिक मनुज मोहें भाए’

बापू ने २५ दिसंबर को जन्मे अटल बिहारी वाजपेयी तथा पंडित मदनमोहन मालवीयजी को भी भावपूर्वक स्मरण किया और उस युवक तथा उसके परिवारजनों को संबोधित करते हुए कहा: आपके लिए वाल्मीकि रामायण से एक प्रमाण लेकर आया हूं. बापू संस्कृत के श्लोक को उद्धृत करते हुए सीधे उसका अनुवाद बताते हैं: `इस अनुवाद में मैने कहीं भी अपनी बुद्धि का तडका नहीं लगाया है.’

वाल्मीकि रामायण के उस श्लोक को पूरी तरह से समझाने के लिए बापू पहले रामचरित मानस में तुलसी की लिखी चौपाइयां बताकर कहते हैं:`जब पृथ्वी पर परमात्मा को अवतरित करना था उस समय सारी सृष्टि भ्रष्टाचार से व्याप्त हो चुकी थी, कोई भी धर्म को सुनने के लिए तैयार नहीं था तब ऐसे वातावरण में भगवान राम के प्राकट्य की तैयारी करने के लिए सभी देवता ब्रह्माजी की अगुवाई में क्या करते हैं? पृथ्वी पर आसुरी प्रवृत्तियों का नाश करने के लिए, इस समस्या का समाधान करने के लिए क्या उपाय सुझाया जाता है?’

तुलसी के शब्द हैं: `जय जय सुरनायक जन सुखदायक प्रणतपाल भगवंता’

वाल्मीकि रामायण के श्लोक का पहला शब्द अप्सरा है. बापू कहते हैं कि यह अप्सरा यानी देवताओं की गणिका- देवगणिका. एक कथा तो ऐसी है कि इस सृष्टि का जन्म देवगणिका और एक युवक के संसर्ग से जन्मी संतानों द्वारा हुआ है.

“हे अप्सराओ, मैं अवतार लूं तब आप मेरे कार्य में सहयोग करें ऐसे मेरे तुल्य (हरितुल्य) पुत्रों को प्रकट करो.’

यह वाल्मीकि के श्लोक का अनुवाद है. अप्सराएं अर्थात देवगणिकाओं के अलावा अन्य वर्गों का भी उसमें उल्लेख है लेकिन पहला उल्लेख अप्सराओं का है. इन सभी को ब्रह्मा ने कहा कि आप सभी अपने अपने तेज से संतान प्राप्त करें…जो असुरों का नाश करे. जिसका अर्थ ये हुआ कि रामकार्य में जो फौज थी वह सब (गणिकाओं के मंच की तरफ हाथ दिखाकर) इनकी संतानें थीं. तो बेटा (उस युवक को संबोधित करके), कहां जन्म लिया है उसकी चिंता जाने दो, तुम्हारे पूर्वजन्म का हिसाब ऐसा है कि, रामतुल्य होकर राम की सेना में शामिल होकर आसुरी वृत्ति का नाश करके विश्व में रामराज्य की स्थापना करने में तुम्हारा भी योगदान था. ये वचन आदिकवि वाल्मीकि के हैं. जीसस कौन है? मदर मेरी कौन है?

तुलसी ने भगवान के प्रति प्रेम को जिन शब्दों में व्यक्त किया है उसका उल्लेख करते हुए बापू कहते हैं:`सब मम प्रिय, सब मम उपजाए/ सबते अधिक मनुज मोहें भाए’

बापू कहते हैं:`हर कथा में मेरा और आपका नया जन्म होता है.’

अर्थ सरल है: यह सारा संसार मेरी माया से उत्पन्न हुआ है. उसमें अनेक प्रकार के चराचर जीव हैं. वे सभी मुझे प्रिय हैं क्योंकि वे सभी मेरे सर्जन हैं (किंतु) मनुष्य मुझे सबसे अधिक प्रिय है.

शायद उस युवक के पिता के संदर्भ में या शायद हरिनाम के संदर्भ में बापू को `आबरू’ (१९६८) में मुकेशजी की गाई पंक्तियां याद आती हैं:

जिन्हें हम भूलना चाहें वो

अक्सर याद आते हैं/बुरा हो

इस मोहब्बत का, वो

क्यों कर याद आते हैं…

`हरिरूपेण पुत्र प्रकट करने के लिए वाल्मीकि रामायण में इन बहन-बेटियों का उल्लेख बडे आदर से किया गया है. इन्हीं पुत्रों ने आसुरी शक्तियों का नाश कर दुनिया में रामराज्य स्थापित करने में मदद की है. उस युवक से मैं फिर कहूंगा कि हम किसी के `कृत्य’ को याद रखें, जन्म और मृत्यु के बीच जो क्षण जीने को मिला है उसे याद रखें. कहा जाता है कि साधुओं का कुल और नदियों का मूल नहीं पूछा जाता लेकिन मैं कहता हूं कि किसी के भी मूल को जानने की जरूरत नहीं है. क्योंकि अच्छे लोगों का भी अपना भूतकाल होता है और खराब माने जानेवाले लोगों का भी नया भविष्य होता है.’

बापू कहते हैं:`हर कथा में मेरा और आपका नया जन्म होता है.’बापू की इस बात में सौ प्रतिशत सत्य है. हर कथा सुनते समय बापू में कुछ नया जुडा हुआ प्रतीत होता है. और जानकर, समझकर जिएं तो हमारे अंदर भी कुछ नया जुडा होने का अनुभव होता है. जब नया सत्य शामिल होता है तब हमारे भीतर जो कुछ भी निसत्व होता है वह नष्ट होता जाता है. पुनर्जन्म शायद इसी को कहा जाता है.

बापू का कहना है: पापी गंगा में स्नान करे तो गंगा अपवित्र नहीं होती, पापी पावन हो जाता है.

वैशाली की नगरवधू आम्रपाली, उज्जैन की वसंतसेना और आगरा की रामजनीबाई का विस्तार से उल्लेख करके बापू कहते हैं कि किसी जमाने में ये तीनों नगरियां (गणिकाओं) के केंद्र हुआ करती थीं. बापू कहते हैं कि: परमात्मा की रचना को ठुकराएंगे तो क्या मिलेगा? (कुछ नहीं मिलेगा, इसीलिए स्वीकार कर लो). कोई ऐसी रात नहीं होती है जिसकी सुबह न हो. इस दुनिया में कोई देह बेचकर कमाता है, कोई दिल बेचकर तो कोई दिमाग बेचकर कमाता है. (बापू ने विवेक रखकर नहीं कहा लेकिन कई लोग तो अपनी आत्मा बेचकर अकूत कमाई करते हैं).

बापू का कहना है: पापी गंगा में स्नान करे तो गंगा अपवित्र नहीं होती, पापी पावन हो जाता है.

चौथे दिन की कथा सुनकर लग रहा है कि हर दिन कथा की ऊंचाई इतनी बढती जा रही है कि नवें दिन तो वह कैलाश को पार कर जाएगी.

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