मानस गणिका-दिन ५ :हर व्यक्ति को अपने कर्म में आनंद आना चाहिए: मोरारीबापू

(newspremi.com, मंगलवार, २४ जून २०२०)

(मानस गणिका कथा दिन ५ , अयोध्या, २६ दिसंबर २०१८)

ठंड इतनी तेज है कि अयोध्या में या सुबह कथा के लिए जब निकलते हैं तब बात करते वक्त मुँह में से `भाप’ निकलती है! ठंडी में भाप होकर बाहर निकलती सॉंस बर्फीले हिल स्टेशनों पर ही अनुभव करने को मिलती है. लेकिन यह कंपकंपाती ठंडी कथा मंडप में पहुँचते ही ऊष्मा में रूपांतरित हो जाती है. और जब पूज्य मोरारीबापू की वाणी आरंभ होती है तब वह गर्मजोशी में परिवर्तित हो जाती है.

कहां कहां से लोग कथा सुनने आते हैं. एक १९ वर्षीय टीनेजर अपने २५ वर्ष के दोस्त के साथ सीधे पंजाब से, अपनी नई नई नौकरी से दस दिन की छुट्टी लेकर अयोध्या आया है. एक विनोदकुमार सपत्नीक काठमांडू से आए हैं. हमारे जैसे मुंबई से और गुजरात से तथा देशभर से रामभक्त यहां आए हैं- बापू की कथा सुनने के लिए. स्थानीय लोगों में तो जबरदस्त उत्साह है. रामकथा को सुनने के लिए वे बडी उत्साह से उमड पडते हैं, कथा के अन्य श्रोताओं की छोटी मोटी सुविधाओं सेवाओं को संभालने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं. छोटी मोटी वस्तुएं बेचनेवाले फेरीवाले, दूकानदार, होटल-खोमचेवाले या रिक्शा-टैक्सीवाले सभी लोग जय सियाराम के साथ अभिवादन करके अपने सामान या सेवा के बदले एक रुपया भी ज्यादा नहीं मांगते, दीजिए तो लेते भी नहीं. कनकभवन नामक प्रसिद्ध जगह पर भोजन की थाली में गाय का देशी घी चुपडी गरमागरम रोटियां आग्रह कर करके परोसी जाती हैं, साथ ही दो अति स्वादिष्ट सब्जी-दाल, भात इत्यादि पेट भर कर खिलाते हैं और पेट भर खा लेने के बाद हमसे कहते हैं: आज आपने अच्छी तरह से खाया नहीं! बिल चुकाते समय पता चलता है कि एक अनलिमिटेड थाली के केवल ६० (साठ) रूपए. मुंबई के एसी रेस्तरॉं में तो इतने में सिर्फ पापड मिलता है. और वह भी सेंका हुआ. फ्राइड मंगाएं तो नब्बे और मसाला पापड खाएं तो सवा सौ. कौन कहता है कि भारत में महंगाई बढ गई है? एक छोटी हमारे लिए पानी की बोतलों से भरा भारी भरकम बॉक्स उठाकर ऊपर की मंजिल पर जब देने आया तब मैने पाकिट में से बीस की नोट निकालकर उसे देना चाहा. वह कहता है:`नीचे आपके जिस मित्र ने भेजा है उन्होंने ऑलरेडी दस रूपए दिए हैं.’ भला ऐसा कोई कहेगा? मैने उसे सीधे बीस की नोट थमा दी. और बीस भी देना चाहिए था. कौन कहता है कि भारत में सादगी नहीं, विवेक नहीं, प्रामाणिकता और सज्जनता नहीं है? हममें नहीं है तो क्या अन्य लोगों में भी नहीं होगी? जरा घर से बाहर निकलकर देखिए तो सही.

गणिका एक ऐसी स्त्री है जो आपके साथ संसर्ग द्वारा जान जाए कि आपकी गणना कौन सी है, (मनुष्य के रूप में) आपकी हैसियत क्या है

उदारता भी भरपूर है. बापू द्वारा गणिकाओं की मेडिकल देखभाल के लिए फंड जुटाने की घोषणा किए जाने पर पहले ११ लाख की राशि लिखाई गई और उसके बाद तीन दिन में ही कुल आंकडा उछल कर आज ४ करोड ३८ लाख को पारी गया है, ऐसी घोषणा की गई. कथा में हाजिरी देनेवालों के लिए तो मंडप में ही डोनेशन बॉक्स है लेकिन बाहर के तथा विदेश के दाताओं के लिए अभी तक कोई व्यवस्था घोषित नहीं की गई थी जो आज माइक से की गई. बापू द्वारा एक बहुत बडा काम हो रहा है जिसमें एशिया का सबसे पुराना अखबार `मुंबई समाचार’ भी अप्रत्यक्ष रूप से सहायक बन रहा है जिसका यहां पर सभी लोगों को आनंद है.

कथा के आरंभ में बापू ने कहा कि शब्दकोष में गणिका के अनेक अर्थ हैं जिसके एक अर्थ के मूल में `गणना’ है. एक ऐसी स्त्री जो आपके साथ संसर्ग द्वारा जान जाए कि आपकी गणना कौन सी है, (मनुष्य के रूप में) आपकी हैसियत क्या है, आपकी औकात क्या है.

दूसरी एक जानकारी बापू ने दी: दक्षिण भारत के विजयनगर साम्राज्य के सम्राट धर्मदेव ने एक गणिका को पत्नी का स्थान दिया था. उनके पुत्र – पुत्रियों को गणिकाएं संगीत सिखातीं, संस्कार देती थीं. दरबार में शास्त्रार्थ के दौरान भूल होने पर उस भूल को सुधारने की प्रज्ञा उनमें हुआ करती थी. विजयनगर राज्य में गणिकानगर बसाया गया था और सारे राज्य में गणिकाओं को बहुत बडा दर्जा दिया गया था. उन्हें चलने के लिए विशेष मार्ग बनाए जाते थे जिन पर ऐरोगैरों का आना-जाना वर्जित था. बापू कहते हैं: वेदों तक इनका उल्लेख है.

असत्य की सुरक्षा हमें ही करनी पडती है जबकि सत्य हमारी रक्षा करता है: मोरारीबापू

एक प्राचीन कथा है, बापू बात आगे बढाते हैं: एक युवक ऋषि के आश्रम में शिक्षा लेने गया. ऋषि ने उसे शिष्य बनाने से पहले उसका गोत्र पूछा. युवक ने कहा मैं नहीं जानता. ऋषि ने कहा, जाओ अपने घर जाकर पता लगाकर आओ. युवक घर गया. माता से पूछा. माता ने कहा कि: मुझे भी नहीं पता कि तेरा गोत्र क्या है क्योंकि मैने तो कई महापुरुषों की सेवा की है. मेरी सेवा पानेवाले पुरुषों में से तुम्हारा पिता कौन होगा यह मैं नहीं जानती. युवक ने यह बात आकर ऋषि से कही. ऋषि युवक की माता की निर्भीकता पर प्रसन्न हो गए. ऋषि ने कहा कि तुम्हारी माता का नाम क्या है? युवक ने कहा: जाबाल. ऋषि ने कहा कि आज से तुम्हारा गोत्र तुम्हारी माता के नाम से पहचाना जाएगा. युवक का नाम था सत्यकाम. जो आगे चलकर सत्यकाम जाबाल के रूप में विख्यात हुआ.

यह कथा सुनाने के पीछे बापू का उद्देश्य सत्य बोलने की महिमा का गुणगान करने का है, यह अब आपको पता चल रहा है. बापू कहते हैं कि असत्य की सुरक्षा हमें ही करनी पडती है जबकि सत्य हमारी रक्षा करता है. असत्य के लिए न जाने कितनी जद्दोजहद करनी पडती है- ये तर्क देना, ये सावधानी रखनी, ये प्रमाण लाना, इसका आधार लेना, असत्य की रक्षा करने की जिम्मेदारी हमारी बन जाती है जब कि सत्य हमारी रक्षा करने की जिम्मेदारी निभाता है.

बापू कहते हैं कि एक युवक ने प्रश्न किया कि आपने वाल्मीकि रामायण का प्रमाण देकर गणिका का महात्म्य बताया, क्या तुलसी रामायण में गणिका की महिमा का गान हुआ है? बापू कहते हैं: क्यों नहीं, जगह जगह पर हुआ है, आप अध्ययन तो कीजिए, मानस में डुबकी लगाइए, अपने आप उत्तर मिल जाएगा. रामचरितमानस के उत्तरकांड में जब राम का राज्याभिषेक हो रहा है तब गोस्वामीजी लिखते हैं: नभ दुंदुभि बाजी विपुल गंधव किन्नर गावहिं/ नाचहिं अप्सरावृंद परमानंद सुस्मुनि पावहिं.

देवगणिकाएं नर्तन कर रही हैं. किन्नर गंधर्व गान कर रहे हैं. विपुल मात्रा में दुंदुभि का निनाद हो रहा है. इस नृत्य को देखकर दो समाज परमानंद का अनुभव कर रहे हैं. इनमें से एक समाज है सुर समाज, दूसरा है मुनि समाज. परमानंद सुर मुनि पावहिं- ऐसा लिखा है. आनंद, परमानंद और ब्रहमानंद- तीन प्रकार हैं. एक अर्थ में, आनंद को जोडा जा सकता है, यह मेरा निजी मत है, नया शब्द बनाया जा सकता है- कर्मानंद. हमें अपने कर्म से आनंद प्राप्त करना चाहिए. एक लेखक को अपनी लेखनी से आनंद मिलना चाहिए. कविता के सर्जक को काव्य रचना से आनंद मिलना चाहिए. गायक को गाने में आनंद मिलना चाहिए. आदमी को अपने कर्म का आनंद आना चाहिए क्योंकि हम कर्म के बिना एक क्षण भी जी नहीं सकते ऐसा गीताकार का शाश्वत वचन है. एक किसान को खेती करने का आनंद आना चाहिए. एक बहन-बेटी को रसोई का आनंद आना चाहिए- अगर रसोई करती है तो! इस फास्टफूड के संसार में – यदि करती है तो!

कर्मानंद. मानस में क्रांतिकारी सूत्र जगह जगह पर हैं. हम कथा गाते हैं तो हमें कथा गाने का आनंद आना चाहिए. जिसे तुलसी स्वांत: सुखाय कहते हैं. जिस व्यक्ति को अपने भीतर से आनंद नहीं मिलता है उसका मन कभी स्थिर नहीं होता. विविध उपकरणों से आनंद पाने की कोशिश करते रहेंग तो उपकरण नहीं रहने पर आनंद खंडित हो जाएगा. यदि मुझे खीर खाने में आनंद मिलता है और कोई मुझे खीर न दे तो मेरा आनंद खंडित हो जाएगा. जिसे अपने भीतर से आनंद मिलने लगता है उसका मन स्थिर हो जाता है ऐसा गोस्वामीजी कहते हैं: निज सुख बिनु मन हाई कि थीरा. परस कि होई बिहीन समीरा. कितना वैज्ञानिक सूत्र है. (थीरा अर्थात स्थिर, परस यानी स्पर्श). जैसे हवा यदि न हो तो कोई किसी को स्पर्श नहीं कर सकता. उसी प्रकार मनुष्य को यदि अपने भीतर से आनंद नहीं मिलता है तो उसका मन स्थिर नहीं हो सका. आनंद और सुख की व्याख्याएं अलग अलग हैं लेकिन यहां गोस्वामी स्वांत: सुख की बात करते हैं अत: इन दोनों को जोड देते हैं. कर्मानंद.

“बापू, आप जहां गए थे वही (कमाठीपुरा में) जाकर कथा क्यों नहीं करते?”

नाट्यशशस्त्र के रचयिता भरतमुनि द्वारा प्रतिपादित गणिका के पर्यायवाची शब्दों का वर्णन करके बापू कहते हैं कि बौद्ध धर्मशास्त्र में, जैन धर्मशास्त्र में, इसाई परंपरा में- हर जगह गणिकाओं का सम्मानपूर्वक उल्लेख हुआ है. यहां पर बापू साईंराम दवे रचित एक हृदय स्पर्शी कविता का पठन करते हैं:

किसी ने मेरी रूह के छाले नहीं देखे

मैं वो कमरा हूं जिसने उजाले नहीं देखे

बडे बडे नाम हैं, ओहदे हैं जिनके शहर में

मेरे कमरे ने तो इज्जतवाले नहीं देखे

अपनी अपनी प्यास लेकर रोज आते हैं लोग

किसी के हाथों में निवाले नहीं देखे

कैद हूं मैं ज़रूरत-ए‍-जिस्म की आंधी में

पुजोरी देखे हैं, शिवालय नहीं देखे

हाथ मेरा थामकर कमरे से निकाले

मैने ऐसे दिलवाले नहीं देखे

शराब कम पडी तो मुझे पी गए थे लोग

यहां कभी किसी ने खाली प्याले नहीं देखे

आप लोकसभा में चुनकर जाएं तो शासन पक्ष में बैठेंगे या विपक्ष में?

बापू कहते हैं कि बाहर तो बहुत ही गरमागरम चर्चाएं हो रही हैं (इस रामकथा `मानस:गणिका’ के बारे में) लेकिन अयोध्या में तो कितनी शांति है! साधु-संतों का आशीर्वाद है, बहन बेटियां भी आई हैं. कोई मुझसे पूछता है कि बापू, आप जहां गए थे वही (कमाठीपुरा में) जाकर कथा क्यों नहीं करते. मैं कहता हूं कि वहां जगह नहीं है, आप लोगों ने ही नहीं रहने दी!

बापू की इस चाबुक के निशान तथाकथितों की पीठ पर युगों तक रहेंगे.

बापू कहते हैं: किसी ने मुझसे पूछा कि आप लोकसभा में चुनकर जाएं तो शासन पक्ष में बैठेंगे या विपक्ष में? बापू बुलंद आवाज में कहते हैं: मैं किसी भी पक्ष में बैठने के बजाय अपनी व्यासपीठ लगाकर रामकथा सुनाऊंगा लेकिन जो लोग राम नाम से डरते हैं उनके साथ कैसे बैठा जा सकता है. सुरसाम्राज्ञी लताजी राज्यसभा में नॉमिनेट होने के बाद हाउस में हाजिरी नहीं देती थीं तब किसी ने उनसे पूछा तो उन्होंने कहा: बेसुरों के साथ कैसे बैठा जा सकता है? बापू कहते हैं: देश में रामराज्य आया या नहीं, ये तो पता नहीं लेकिन रामकथा राज्य जरूर आ गया है. यहां अवध में तो गली गली में रामकथा होती है. (बापू की बात सच है. हमारे निवास के स्थान पर ही कल शाम से आज भोर तक रामचरित मानस का अखंड पाठ हो रहा था जिसकी चौपाइयों और तबले-हार्मोनियम के सुर हमें नींद में भी ऐसा आनंद दिला रहे थे मानो हम कथामंडप में ही हों.)

इस दुनिया में मेरा कोई मित्र नहीं है: मोरारीबापू

बापू आज आनंद-विनोद के मूड में हैं. सभी को बिलकुल हल्का कर दिया. बापू कहते हैं: किसी ने मुझसे प्रश्न पूछा: बापू, आप अपने हाथों से चाय बनाते हैं? बापू ने जवाब दिया: बिलकुल बनाता हूँ. कैलाश-मानसरोवर की कथा के समय भी वहां चाय बनाई थी. चाय बना कर तो मनुष्य कहां से कहां पहुंच जाता है!

बापू ने अपने जीवन में आए शत्रुओं के बारे में लिखने के लिए कहा गया तो इस संदर्भ में बापू कहते हैं: इस दुनिया में मेरा कोई मित्र नहीं है. इसका लाभ ये है कि मेरा कोई शत्रु भी नहीं है! गीता में कहा गया है कि मनुष्य खुद ही अपना मित्र है, खुद ही अपना शत्रु है.

रामकथा में आज राम जन्म हुआ है. अयोध्या की कथा में बापू राम जन्म की चौपाइयां और दोहे जिस उमंग से गाते हैं उसे प्रत्यक्ष देखने-सुनने का लाभ मिल रहा है. कथा ने आज दोपहर दो बजे के बाद विराम लिया. श्रोताओं को मानो बोनस मिल गया. लेकिन हमें हमेशा आश्चर्य होता है: बापू चार-पांच घंटे तक पानी की एक बूंद भी पिए बिना कैसे इतनी बुलंद आवाज में कथा गा सकते हैं. पालथी लगा कर घंटों तक एक ही आसन में कैसे बैठा जा सकता है. हमें तो केवल सुनना है फिर भी हम घंटे-आधे घंटे में पालथी खोलते हैं, पैर लंबे करते हैं, पीठ तानते हैं. दो-एक घूंट पानी पी लेते हैं. बापू से खूब सारा सीखना है. शुरूआत तो यहां से करें.

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