मानस : गणिका कथा का तीसरा दिन : बापू, मेरा जन्म कोठे पर क्यों हुआ?

(newspremi.com, सोमवार, २२ जून २०२०)

(मानस गणिका कथा दिन ३, अयोध्या, मंगलवार – २५ दिसंबर २०१८)

सरयू नदी के किनारे बसी अयोध्या की माटी को जीवन में पहली बार माथे से लगाते समय आप इस ऐतिहासिक नगरी के बारे में क्या सोचते हैं? यही कि किसी समय ये राजा दशरथ की राजधानी रही होगी, कभी दशरथजी के महल में `ठुमक चलत रामचंद्र बाजत पैजनिया’- की झनकार सुनाई देती होगी. सीताजी का विवाह प्रभु राम के साथ जब हुआ होगा तब ये अयोध्या नगरी हर्ष से नाच उठी होगी और यही नगरवासी प्रभु के वनवास के समय शोकमग्न होकर व्याकुल हो गए होंगे. १४ वर्ष की अवधि में जिनके बाल श्वेत हो गए होंगे, ऐसे अयोध्यावासियों के गाल, राम का वनवास खत्म होने के बाद खुशी के आंसुओं से भीग गए होंगे.

ऐसी अयोध्या नगरी के एक अति सुंदर पावन स्थल पर हम ठहरें हैं और अयोध्या जंक्शन स्टेशन यहां से कुछ ही कदम की दूरी पर है.

अयोध्या यानी छह दिसंबर भी है. अयोध्या यानी मंदिर वहीं बनाएंगे के नारे का गुंजन भी है. इस अयोध्या का पहनावा शहरी है लेकिन उसकी आत्मा ग्रामीण है, पवित्र है, प्रदूषित नहीं है. किसी भी यात्री को अयोध्या अपने मूल गांव का स्मरण दिलाती है. ऐसा क्यों होता है? प्रत्येक भारतीय के मन में बसनेवाले भगवान राम की यह जन्मभूमि है इसीलिए? या फिर पूज्य मोरारीबापू कहते हैं कि `मुझमें अयोध्या बसती है’ ऐसा हर भारतीय के मन की भावना है इसीलिए और इस नगर में अपने वतन की झांकी नजर आती होगी?

रेलवे ट्रैक के उस पार स्थित श्रीराम मिष्ठान्न भंडार में सुबह का नाश्ता किया. गर्म चने पकौडे और दो कप चाय. कथा मंडप में पहुंच कर देखा तो पंखे नहीं हैं. विचार कीजिए कि अयोध्या में मार्गशीर्ष महीने में कितनी ठंडक होगी कि सबेरे-दोपहर में पंखे की भी जरूरत नहीं पडती.

“मेरी बहन-बेटियॉं, अपने आप को कभी उदास-मायूस मत समझना.”

विशाल कथा मंडप में बापू की व्यासपीठ है. बापू के दाएं हाथ की तरफ बने मंच पर भारत के विभिन्न नगरों से आई गणिकाओं को स्थान दिया गया है. बाईं ओर,, `संगीत की दुनिया’ क एन्क्लोजर के पीछे बने मंच पर साधु संत और धर्माचार्य विराजमान हैं. बापू आज कथा के दौरान इन विवरणों का विशेष उल्लेख करते हुए सिक्सर लगाते हुए कहते हैं कि: लेकिन आप श्रोताओं को अपनी दाईं तरफ साधु संत नजर आ रहे हैं और अपनी बाईं तरफ ये बहन-बेटियॉं नजर आ रही हैं- मेरे लिए तो वे मेरी दाईं ओर हैं!

जिनके लिए `मानस: गणिका’ हो रही है उनका दिन तो अन्यथा शाम ढलने के बाद शुरू होता होगा. लेकिन अयोध्या में मोरारीबापू की रामकथा सुनने के लिए हर कोई इतनी ठंड में भी जल्दी जागकर तैयार होकर समय पर कथामंडप में अपना सम्मानजनक स्थान ले लेता है.

तीसरे दिन की कथा का आरंभ होने से पहले एक घोषणा होती है कि इन उपेक्षितों के मेडिकल उपचार के लिए राशि जुटाने की जो बात कल की गई थी वह राशि करीब दो करोड रूपए हो चुकी है. अभी तो यह तीसरा दिन है.

आरंभ में बापू कहते हैं कि कहां से शुरू करूं, कहां तमाम करूं. मेरे पास इतनी सारी जानकारी आ रही है. मेरी बहन-बेटियॉं, अपने आप को कभी उदास-मायूस मत समझना. आपके साथ दुनिया का कोई भी जीव हो या न हे शिव तो हैं ही.

इस संदर्भ में बापू कश्मीर की सौंदर्य की धनी गणिका महानंदा की बात विस्तार से रखते हैं. बडी रोचक कथा है. महानंदा के घर हर सप्ताह रुद्राभिषेक करने ब्राह्मण जाया करते थे. महानंदा के पास जो कोई भी आता- कोई एक दिन के लिए, कोई दो दिन के लिए, कोई तीन दिन के लिए- जितने भी दिन के लिए आता उतने दिन महानंदा उनके साथ पतिव्रता नारी की रहती थी. उस दौरान वह अन्य किसी पुरुष की मौजूदगी तो क्या, अन्य पुरुष का विचार तक मन में नहीं लाती थी. इतनी निष्ठा थी उसके मन में.

एक बार एक धनिक युवा महानंदा के पास आया. तीन दिन उसके साथ रहना है. कथा को काफी लंबी है लेकिन रोचक भी है. हम संक्षिप्त में बात करते हैं. उस युवा का शरीर किसी कारण से आग में जल जल रहा है. महानंदा यह देख रही है. शरीर अभी पूरा जले इससे पहले महानंदा शीघ्रता से साज-सज्जा करके आती है औ युवा के साथ खुद को भी आग में झोंक देती है. तीन दिन के लिए उसने उसे पति माना था. लेकिन अभी तीन दिन पूर्ण नहीं हुए थे. पतिव्रता नारी का कर्तव्य महानंदा द्वारा निभाते ही आग की ज्वालाओं का शमन हो गया और जिसने युवा का रूप धारण किया था वे शिव स्वयं प्रकट हुए. महानंदा की निष्ठा की परीक्षा लेना चाहते थे. महानंदा इस कडी कसौटी से पार हो चुकी थी. जिसके साथ कोई जीव नहीं होता उसके साथ शिव होते ही हैं.

बापू भजन के निर्मल अंदाज में पवित्रता के साथ इन शब्दों को गाते हैं और कथामंडप में उपस्थित सभी को ये शब्द दोहराने का निमंत्रण देते हैं: इन्हीं लोगों ने ले लीना दुपट्टा मेरा…इन्हीं तथाकथित लोगों ने, बापू जोडते हुए कहते हैं. हमरी न मानो सिपहिया से पूछो. बापू हनुमानजी को सिपाही बनाते हैं, रक्षक बनाते हैं और इसी गीत के राग में हनुमान चालीसा के शब्दों को रखते हुए गाते हैं: साधुसंत के तुम रखवाले…

बापू कल शुरू की गई साहिर की उस कविता की अन्य कई पंक्तियों को उद्धृत करते हैं:

मदद चाहती है या हव्वा की बेटी,

यशोदा की हम्जिन्स, राधा की बेटी,

पयंबर की उम्मत जुलेखा की बेटी,

जिन्हें नाज है हिंद पर वो कहां हैं

जरा इस मुल्क के रहबरों को बुलाओ

ये कूचे, ये गलियां, ये मंजर दिखाओ

जिन्हें नाज है हिंद पर उनको लाओ

जिन्हें नाज है हिंद पर वो कहां हैं,

कहां हैं, कहां हैं, कहां हैं….

महानंदा तो मोक्ष को प्राप्त हुई. शिवपूजा की कसौटी में सफल होने पर शंकरजी ने उससे वरदान मांगने के लिए कहा. महानंदा ने वरदान मांगा कि मुझे अपनाइए, मुझ जैसे गांव के जितने भी जड-चेतन जीव हैं उन सभी को अपनाइए और कैलाश ले चलिए.

कोई जब हमें मान-सम्मान देता है, सत्कार करता है तब हमें ये नहीं मानना चाहिए कि हम बडे हैं इसीलिए ये सम्मान मिल रहा है. समझना चाहिए कि यह उनका बडप्पन है कि वे आपका सम्मान कर रहे हैं.

महानंदा की कथा के संदर्भ में बापू कहते हैं कि जिन्होंने समाज की संस्कारिता को बचाने के लिए अपने देह को बेचा है उनके बच्चों की शिक्षा के लिए भी समाज को विचार करना चाहिए. ऐसा करना भी पूजा है, प्रायश्चित भी है. हां, प्रायश्चित है. उनके लिए रोजगार की भी कोई व्यवस्था खडी कीजिए.

रामायण की मूल कथा सभी जानते हैं. उस कथा से जुडे तथा अमर विषयों को लेकर बापू कथा कहते हैं. तीसरे दिन के अंद में वे कहते हैं: रामकथा अब शुरु हो रही है. रामकथा गंगा जैसी है. वह अपनी मौज के अनुसार बहती है. वह कोई नहर थोडे ही है कि दो कृत्रिम किनारों के बीच से बहे?

कुभज ऋषि के संदर्भ में बापू ने एक अच्छी बात कही: कोई जब हमें मान-सम्मान देता है, सत्कार करता है तब हमें ये नहीं मानना चाहिए कि हम बडे हैं इसीलिए ये सम्मान मिल रहा है. समझना चाहिए कि यह उनका बडप्पन है कि वे आपका सम्मान कर रहे हैं.

आज शाम को बापू के निवास पर न भूतो, न भविष्यति दृश्यों का साक्षी बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. कथा में आमंत्रित सारी गणिकाओं को बापू ने चाय-नाश्ते के लिए निमंत्रित किया था. प्रत्येक को एक एक कर बुलाते हुए शाल-रामचरितमानस तथा कवर देते समय कभी उनमें से कोई सन्नारी अपनी व्यथा बापू के सामने प्रकट करती है तो कभी बापू उनके साथ प्रश्नोत्तरी करते हैं. बापू के झूले के बिलकुल करीब बैठक मैने जो कुछ भी देखा-सुना वह सब दुर्लभ था. उसकी कोई वीडियो रेकॉर्डिंग नहीं है, कोई तस्वीर नहीं है. सबकुछ मन में अंकित है. लेकिन इस बारे में अभी नहीं लिखना. शायद बापू, इन सारी बातों का उल्लेख कल कथा में करें.

शायद नहींय, बेशक. उसमें से केवल सवाल लीक करता हूँ. एक कॉलेजियन युवा ने बापू से पूछा: बापू, मेरा जन्म कोठे पर क्यों हुआ? आज की कथा के दौरान बापू ने एक संदर्भ में कहा कि, मुझे सांताक्लॉज पसंद है. थैले में उपहार लेकर बच्चों को प्रसन्न करना आखिर किसे अच्छा नहीं लगेगा? बापू को पता होगा कि कथा के इस तीसरे दिन की तारीख २४ दिसंबर है और कल यानी मंगलवार को (जिस दिन यह कॉलम प्रकाशित होगा) २५ दिसंबर है. क्रिसमस है. हमारा विचार है कि कल कथा में क्रिसमस मनाएँ. चलिए देखते हैं!

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