बुद्धिमान दुर्लभ वस्तु की कामना नहीं करते- विदुरजी

गुड मॉर्निंग क्लासिक्स : सौरभ शाह

(newspremi.com, मंगलवार, १४ अप्रैल २०२०)

विदुरनीति के बारे में विस्तार से जानने में आप सभी की रुचि को देखते हुए तय किया है कि इस विषय पर और अधिक लिखना चाहिए. इस विषय में मेरे एक लेख के अलावा स्वामी सच्चिदानंद की पुस्तक `विदुरनीति’ का उल्लेख करते हुए लिखे गए कुल तीन लेख आपने `गुड मॉर्निंग क्लासिक्स’ में पढे. अब इन खासतौर से लिखे लेखों को `गुड मॉर्निंग एक्सक्लुसिव’ में पढिए -सिर्फ `न्यूज़प्रेमी’ पर.

`महाभारत’ के बारे में कई सारी बातें आपको `संदेश’ में कल बुधवार को प्रकाशित होनेवाले परिशिष्ट `अर्धसाप्ताहिक’ में छपनेवाले मेरे लेख में आपको मिलेंगी इसीलिए यहां पर उसे रिपीट न करते हुए सीधे विदुरनीति में प्रवेश करते हैं.

`महाभारत’ के उद्योग पर्व में अध्याय ३३ से अध्याय ४१ तक विदुरनीति फैली हुई है. तकरीबन सौ पृष्ठों में धृतराष्ट्र ने जब विभिन्न विषयों पर छोटे भाई विदुर से सलाह मांगी थी, उसका वर्णन है. इस ग्रंथ का अनुवाद कार्य छह संस्कृत के पंडितों में से एक डॉ. जे.के. भट्ट द्वारा किया गया है.

ये ९२ पेज आप पढेंगे तो हर श्लोक से आपको जीवन जीने के लिए मंत्र प्राप्त होगा. कभी अफसोस होता है कि ये सारी बातें अगर स्कूल में ही पढाई गई होतीं और कॉलेज के समय में रटाई गई होतीं तो संसार में कदम रखते समय हम कितने सुसज्ज होते. विदेशों में मैन्युफैक्चर होनेवाली और गुजराती में बेतहाशा प्रकाशित होनेवाली दो छदाम की मोटिवेशनल किताबें कहां और उच्चतम व्यवहारों की व्यावहारिक समझ देनेवाला हमारी संस्कृति को आगे ले जानेवाला पारंपरिक ज्ञान कहां. कुछ हजार वर्ष पहले का ज्ञान है. कम से कम पांच हजार साल पहले का. हमारे नेहरूवादी साम्यवादी शिक्षाविदों की नीति ने यह ज्ञान हम तक पहुंचाने में जो बाधाएं उत्पन्न की हैं उसकी बात करने लगें तो कडुवाहट आ जाएगी. इसीलिए-विदुरनीति.

तैंतीसवें अध्याय का आरंभ धीमें से होता है. राजा धृतराष्ट्र अपने द्वारपाल से कहते हैं कि,`मैं विदुर से मिलना चाहता हूं. उन्हें शीघ्र यहां बुलाया जाय.’ यहां पर `महाभारतकार’ ने `महाबुद्धिमान राजा धृतराष्ट्र’ जैसे शब्दों का प्रयोग किया है. टीवी सीरियल्स में धृतराष्ट्र को मूर्ख और बुद्धू के रूप में चित्रित किया गया है. टीवी सीरियल्स में तो `महाभारत’ और `रामायण’ की सभी बातों में घालमेल किया गया है.

उसके बाद द्वारपाल विदुर को संदेश देता है. विदुर राजमंदिर में आकर धृतराष्ट्र को संदेश भेजते हैं कि मैं आ गया हूं इत्यादि. कहने का अर्थ ये है कि इस सारी कथा को कहानी की चाशनी में सराबोर किया गया है. इसीलिए इस कथा की भारी से भारी, गंभीर से गंभीर और ऊंची आध्यात्म की बातों को पाठक या श्रोता ध्यान देकर पढता-सुनता है.

धृतराष्ट्र विदुर के सामने अपनी चिंताओं का वर्णन करता है, कहता है चिंता के कारण रात को नींद नहीं आती. धृतराष्ट्र के कहने पर विदुर अपनी बात शुरू करते हैं. अब इन ९२ पृष्ठों का सेवन हम बालक की तरह करेंगे- बालक जिस तरह से क्रीम बिस्किट का क्रीम चाट जाता है और शुष्क हे चुका बिस्किट रहने देता है, उसी प्रकार से.
काम नहीं करने के बहाने तलाशने में हम उस्ताद हैं. छोटी बडी बातों का कारण आगे करके हम काम एक तरफ रख देते हैं. विदुरजी की सलाह है:`सर्दी, गर्मी, भय, अनुराग, समृद्धि या उसका अभाव जिसके कार्य में विघ्न नहीं डालते वह पंडित है.’

आज तबीयत ठीक नहीं है, ऐसी खराब हो गया है इसीलिए काम करने का मूड नहीं है जैसे बहाने हमने कई बार सुने हैं और दूसरों को सुनाए हैं. मन में किसी तरह का डर बैठ जाता है तब भी काम करने से हम पीछे हट जाते हैं. किसी मामले में मोह के कारण या किसी के प्रति आसक्ति के कारण हम काम करना छोड देते हैं. घर में खूब धन होता है तब और घर खर्च के लिए फुटकर जोड जोडकर रखना पडता है तब भी हमारा ध्यान काम में नहीं रहता. विदुरजी केवल फिलॉसफर ही नहीं महान मानसशास्त्री भी रहे होंगे. हमारे तमाम ऋषिमुनियों ने जिन्होने वेदों-उपनिषदों का सृजन किया, जिन्होंने `रामायण’ और `महाभारत’ की रचना की, वे सभी मानव मन की अगाध गहराई की थाह लगाने में निपुण थे. दो एक हजार साल पहले पुराणों की जब रचना हुई थी आर यह उच्च स्तर पूरी तरह से लुढ़क कर मनोरंजन के धरातल पर आ गया. वैसे जो ये क्रम युगों सेचलता आया है. आज भी एक तरफ गहन सत्साहित्य लिखने वाले हैं तो दूसरी तरफ उथला, शब्द जाल में लोगों को फंसाकर प्रशंसा पानेवाला साहित्य भी है. भविष्य में भी ऐसा ही होता रहेगा. पाठकों को और श्रोताओं को अपने नीरक्षीर विवेक का उपयोग करना होगा. पानी और दूध को एक-दूसरे से अलग करना होगा.

विदुरजी कहते हैं: ` बुद्धिमान (पंडित) का एक दूसरा लक्षण भी है कि वे दुर्लभ वस्तुओं की कामना नहीं करते और खो चुकी वस्तुओं का शोक कभी नहीं करते. तथा आपत्तियों में उद्विग्न नहीं होते.’

अनुभव होने के बाद आपको समझ में आता है कि कोई आपकी आलोचना कर रहा हो तो उसे सामने से जवाब देकर अपनी शक्ति का अपव्यय नहीं करना चाहिए. फेसबुक या ट्विटर -व्हॉट्सऐप पर आपके विरुद्‌ध अनापशनाप बोलनेवाले को इग्नोर करना चाहिए, उनके मुंह नहीं लगना चाहिए. आपकी शक्ति उनकी औकात बताने के लिए नहीं है, बल्कि अपनी हैसियत बढाने के लिए उपयोग में लाने के लिए होती है. अन्यथा हमारी शक्ति क्रमश: घटती जाएगी और साथ ही हैसियत-पात्रता भी घटती जाएगी.

विदुरजी की दूसरी बात भी ध्यान से सुनिए: `जो लोग अपने सम्मान की तुलना में बहुत ज्यादा खुश नहीं होते तथा अपमान होने पर दुखी नहीं होते, गंगा की धारा के समान गंभीर रहते हैं, उन्हें पंडित कहा जाता है.’

प्रशंसा से भी दूर रहना चाहिए. प्रशंसा करने के पीछे किसकी क्या नीयत है इसकी आपको जानकारी नहीं है. वैसे भी प्रशंसा सच्ची हो तो भी प्रशंसा से किसी का पेट नहीं भरता. कई बार तो आपकी आलोचना करने वाले लोग सबसे पहले प्रशंस के दो वाक्य बोलकर आपके साथ बात करने के लिए प्रेरित करते हैं और आपको एंगेज करके आपके सामने अंट-शंट बोलना शुरू कर देते हैं जिससे लोगों के सामने वे डींग हांक सकें कि मैने फलाने को मुंह पर खरी खरी सुना दी, मैं कितना बहादुर हूं.

प्रशंसा के प्रवाह में नहाने का आनंद नहीं लूटना चाहिए. प्रशंसा की रिमझिम बरसात में दो-चार बूंदों- दो चार शीतल फुहारों का आनंद लेकर दूर चले जाने की कला अगर किसी से सीखनी हो तो मोरारीबापू से मिलना चाहिए. उनका भले ही कोई कितना ही करीबी और विश्वासपात्र व्यक्ति हो या फिर कोई महानुभाव या फिर कोई अनजान व्यक्ति हो- चाहे कोई भी हो- उनके साथ बात करते समय उनकी प्रशंसा करने लगता है या फिर उनके प्रति पूज्यभाव दर्शाना शुरू कर देता है या उनके कार्य की सराहना करने लगता है तो बापू उसे रोक कर अपमानित नहीं करते बल्कि पूछते हैं:`घर में सब लोग कैसे हैं? सब मजे में है ना?’ सामनेवाले व्यक्ति को तुरंत ही बात अधूरी छोडकर कहना पडता है: सब मजे में हैं. मां-पिताजी ने आपको जय सियाराम कहा है.

शेष बाद में…

छोटी सी बाद

पुलिस डंडा मारे तो उसकी पावती ले लेनी चाहिए
वर्ना
अगले चौराहे पर फिर से दे दनादन.
– व्हॉट्सऐप पर पढा हुआ

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