किशोर कुमार गायक बनना चाहते थे या अभिनेता?

गुड मॉर्निंग

सौरभ शाह

किशोर कुमार के करियर को सुखद मोड देनेवाली फिल्म `आराधना’ के गीतों में उनकी आवाज नहीं ली जानी थी, बल्कि मोहम्मद रफी गानेवाले थे, लेकिन भाग्य का खेल देखिए. `गुन गुना रहे हैं भंवरे’ के अलावा बाकी के तीन गीतों में किशोरदा की आवाज ली गई और इतना ही नहीं, ये तीन गीत गाने के बाद किशोर कुमार हिंदी फिल्म संगीत की दुनिया में धीरे धीरे इस कदर छाते गए कि फिल्म में हीरो चाहे कोई भी हो पर उसका गीत किशोर कुमार की आवाज में ही होना चाहिए ऐसा चलन बन गया. इसके विपरीत धीरे धीरे मोहम्मद रफी को मिलनेवाला काम घटता गया.

एक जमाने में `फेमिना’ के संपादक रह चुके पत्रकार सत्या सरन को दिए गए साक्षात्कार में `आराधना’ के निर्माता-निर्देशक शक्ति सामंता ने ये बात कही थी: (`आराधना’ जब बन रही थी) जब गीत रेकॉर्ड करने का समय आया उस समय एक गीत हमें तुरंत चाहिए था ताकि शूटिंग शुरू हो सके. दादा (सचिनदा) जल्दी से गीत रेकॉर्ड करना चाहते थे. दादा रफी से वह गीत गवाना चाहते थे, लेकिन रफी साहब उस समय स्टेज शो के लिए वर्ल्ड टूर पर थे और एक महीने से पहले भारत लौटने वाले नहीं थे. इसीलिए मैने दादा से निवेदन किया कि आप पहले देव आनंद की कई फिल्मों के लिए किशोर से गवा ही चुके हैं और राजेश खन्ना नया कलाकार है, उसके लिए अभी तक किसी भी प्लेबैक सिंगर की आवाज स्थापित नहीं हुई है तो इस गीते के लिए किशोर की आवाज लेकर देखें तो कैसा रहेगा? दादा ने कहा: ओके, बुला लो किशोर को. किशोर ने अन्य दो-तीन गीत भी रेकॉर्ड कर लिए. दादा को लगा कि मेरा सुझाव सही था. हम सभी को लगता था कि राजेश खन्ना के लिए किशोर कुमार की आवाज मोस्ट सुटेबल है.’

क्या किशोर कुमार पहले से ही इंडस्ट्री में प्लेबैक सिंगर बनने आए थे? ऐक्टिंग से ज्यादा उन्हें गाने में रुचि थी? बडे भाई अशोक कुमार ने उन्हें अभिनय में ढकेल दिया? किशोर कुमार ने खुद ही एक से अधिक इंटरव्यूज में ये बात कही है. रेडियो पर की गई बातचीत में भी वे यही कहते रहे हैं कि वे खुद ऐक्टर नहीं सिंगर बनना चाहते थे.

तो फिर अपने कार्यकाल के शुरूआती डेढ-दो दशकों तक वे क्यों रफी, मुकेश या तलत महमूद की तरह केवल प्लेबैक सिंगिंग पर ध्यान देने के बदले ऐक्टिंग करते रहे? मेरा मानना है, ये केवल मेरी कल्पना है, कि किशोर कुमार अपने बडे भाई की तरह सुपरस्टार बनना चाहते थे, लेकिन अशोक कुमार जैसी अभिनय प्रतिभा, वैसा रूप उनके पास नहीं था. कॉमेडियन के रूप में किशोर कुमार लाजवाब थे, उनकी कॉमिक टाइमिंग की बराबरी कोई नहीं कर सकता, लेकिन सीरियस या रोमांटिक ऐक्टिंग में तथा ऐक्शन सिक्वेंस के लिए उनके पास सीमित अभिनय क्षमता थी. अशोक कुमार की तरह वे हरफनमौला नहीं थे. दिलीप-राज-देव की तिकडी से प्रतिस्पर्धा करने जितनी अभिनय क्षमता उनमें नहीं थी. इसके बावजूद उन्होंने अपनी मर्यादा को जाने बिना, हार माने बिना अभिनय के क्षेत्र को नहीं छोडा और इतना ही नहीं वे कई बार कहते थे कि `दिलीप कुमार के बाद मैं इंडस्ट्री का सबसे बडा (लोकप्रिय) अभिनेता था.’ ऐसे वे जरूर मानते होंगे लेकिन सच्चाई ये नहीं थी. राज कपूर और देव आनंद हर तरह से किशोर कुमार की तुलना में ऊँचे दर्जे के और अधिक लोकप्रिय स्टार्स थे.

‍एक कॉमेडियन या एक विलन के लिए यदि फिल्म का करियर लंबा करना हो तो उसे एकाध दशक के बाद कैरेक्टर रोल्स करने ही पडते हैं. किशोरदा हीरो के सिंहासन से उतरने के लिए तैयार ही नहीं थे जिसके परिणामस्वरूप साठ के दशक में उनकी बतौर नायक एक के बाद फिल्में फ्लॉप होने लगीं. `चलती का नाम गाडी’ (१९५८) उन्होंने खुद प्रोड्यूस की थी और वो सुपरहिट हुई. मुमकिन है कि उसके बाद वे खुद को एक संपूर्ण फिल्मकार मानकर खुद ही फिल्म प्रोड्यूस करते, डायरेक्ट करते, उसमें संगीत देते, गाते, गीत भी लिखते और स्टोरी-स्क्रीन प्ले में भी योगदान देते, लेकिन `चलती का नाम गाडी’ जैसी कमर्शियल सफलता उन्हें दोबार कभी अपनी प्रोडक्शन की फिल्म में नहीं मिली, उनमें से कई फिल्मों को क्रिटिकल एक्लेम मिला और कई फिल्मों के गीत-संगीत को सराहा गया, लेकिन अंत मे जब नफे-नुकसान की बारी आती तो धंधे में बडी खोट ही दिखाई देती थी, हीरो के नाते अब गाडी चलने जैसी नहीं थी और प्लेबैक सिंगर के रूप में एक पूरा दशक अंधकार में बीत गया और `आराधना’ के बाद उनकी जिंदगी में दूसरा सूर्योदय हुआ. ये मेरी काफी पुरानी थियरी  है. इससे आपका सहमत होना जरूरी नहीं है. लेकिन ये सिरीज लिखते समय अनायास ही मैने किशोर कुमार के देहांत के बाद अमिताभ बच्चन द्वारा उन्हें दी गई श्रद्धांजलि का वीडियो देखा जिसमें ऐसा लगा कि ये मेरी थियरी के अनुरूप ही है और तब मैने यह बात खुले तौर पर कहने की हिम्मत की. बच्चनजी कहते हैं तो फिर हमें कहने में कोई परेशानी नहीं है.

किशोर कुमार या फिर अन्य कोई भी अपने इंटरव्यू में (या ईवन आत्मकथा में) जो कुछ भी कहता है उसे सौ प्रतिशत सच मान लेने की जरूरत नहीं होती, क्योंकि कुछ मामलों में व्यक्ति अपनी इमेज बनाने (या संभालने) के लिए ऐसा कहता या लिखता है.

किशोर कुमार ने, संभव है कि आजीवन अफसोस रहा होगा कि खुद अशोक कुमार जैसे दिलीप-राज-देव की कतार में शामिल होने जैसे स्टार नहीं बन सके. क्या विडंबना है! वे खुद एक ऐसे गायक थे जो सदी में एकाध ही जन्मते हैं, उन्हें जिंदगी की अन्य किसी भी विफलता का अफसोस भी नहीं होना चाहिए. आनंद बक्षी गायक बनने के लिए इंडस्ट्री में आए थे. वे कितने बडे गीतकार साबित हुए. सलीम खान अभिनेता बनने आए थे. (`तीसरी मंजिल’ में उन्हें क्या ड्रम सेट बजाते देखा है‍?) लेकिन स्टोरी-स्क्रीन प्ले राइटर के रूप में उनकी जावेद अख्तर के साथ बनी जोडी खूब मशहूर हुई. क्या बक्षी साहब या सलीम साहब को गायक या अभिनेता नहीं बन पाने का रंज होगा? पता नहीं. होना चाहिए? अगर उनके एक अदने फैन के नाते देखें तो बिलकुल नहीं.

किशोर कुमार के बारे में जावेद अख्तर ने एक बार `जी’ के शो में कहा था कि किसी भी गीत में आप किशोर कुमार ने अगर किसी भी गायक के साथ गाया हो तो देखिएगा आपका ध्यान किशोर की आवाज पर ही ज्यादा होगा. फिल्म में वही गीत दूसरे सिंगर्स की आवाज में होगा तो भी जो पॉपुलर हुआ होगा वह किशोरवाला वर्जन ही होगा. आशा भोंसले ने `आर.के.बी.’ शो में कहा था कि मुझे कभी हिंदी गीत सुनने का मन होता है तो मैं सिर्फ किशोरदा (और लता दीदी के) के गीत ही सुनती हूं.

ऐसा कहते समय हम न तो अन्य सभी महान गायकों का महत्व कम कर रहे हैं, न ही उनकी उपेक्षा कर रहे हैं. केवल किशोर कुमार के अनूठेपन को स्थापित कर रहे हैं, उनके क्षेत्र में उनकी कला की महानता की प्रशंसा कर रहे हैं.

एस.डी. बर्मन के बाद जो अन्य चार संगीतकार है जिनके लिए किशोर कुमार ने खूब सारे गीत गाए, उनकी बात अभी बाकी है.

आज का विचार

बुद्धि जब हडताल पर उतरती है तब जीभ ओवरटाइम करती है.

– व्हॉट्सएप पर पढा हुआ

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बका: पका, ये तुम्हारे पडोसी को पुलिस क्यों ले जा रही है?

पका: वो मौसम विभाग में काम करता है. वह रोज बारिश की झूठी भविष्यवाणी करके अपनी पत्नी से पकौडियॉं बनवाता था.

(मुंबई समाचार, शनिवार – ११ अगस्त २०१८)

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