वो सात वर्ष: सचिन देव बर्मन और किशोर कुमार अलग रहे

गुड मॉर्निंग

सौरभ शाह

`तीन देवियां’ में किशोर कुमार के गाए तीन नहीं बल्कि चार गीत थे. चौथा गीत था: उफ कितनी ठंडी है ये रात. पाठकों को उनकी प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद.

‘फंटूश’ के गीतों के बाद सचिन देव बर्मन ने किशोर कुमार से उसके बाद के वर्ष में यानी १९५७ में `दौ दो ग्यारह’ में दो सुपरहिट गीत गवाए: आंखों में क्या जी, रुपहला बादल…आशा भोंसले के साथ युगल गीत और सोलो गीत: हम है राही प्यार के हमसे कुछ ना बोलिए.

ये दोनों गीत और `नौ दो ग्यारह’ के सभी गीत लिखनेवाले मजरूह सुलतानपुरी साहित्य जगत के आदरणीय नामों में एक थे और फिल्मों में गीतकार के रूप में उन्होंने अनेक गहरे अर्थ वाले, दार्शनिक और प्रणय से भरपूर तथा मस्ती भरे सभी प्रकार के गीत शान से लिखे. रुक जाना नहीं तू कहीं हार के, कांटों पे चल के मिलेंगे साए बहार के जैसे अनेक फिलोसॉफिकल गीत लिखनेवाले मजरूह साहब ने इतने पैशन से और बिना किसी संकोच के हिंदी फिल्म संगीत के तीन सौ से ज्यादा `इस प्रकार’ के गीत लिखे जिन्हें सुनकर आपको लगेगा कि क्या मजरूह सुलतानपुरी ने ये गीत लिखे होंगे? लेकिन किसी भी साहित्यकार का, ऊँचे दर्जे के गीतकार का ही ये कमाल है. अगर गुलजार होते हैं तो तुम आ गए हो लिखते हैं और दूसरी तरफ बीडी जलई ले जिगर से पिया भी लिखते हैं और मजरूह सुलतानपुरी होते हैं तो प्रकाश मेहरा की `समाधि’ (१९७२) में आर.डी. बर्मन के लिए `बंगले के पीछे तेरी बेरी के नीच… कांटा लगा’ लिखते हैं, राज एन. सिप्पी की `इनकार’ (१९७७) में राजेश रोशन के लिए `तू मुंगडा मैं गुड की डली मंगता ह तो आ जा रसिया नाही तो मैं ये चली’ लिखते हैं और आमिर खान के पिता ताहिर हुसैन द्वारा निर्मित तथा उनके चाचा नासिर हुसैन द्वारा निर्देशित `कारवां’ (१९७१) में आर.डी. बर्मन के संगीत में कैबरे सॉन्ग्स की दुनिया में राष्ट्रगीत का दर्जा रखनेवाला ये गीत भी लिखते हैं! पिया तू अब तो आ जा….

लिखना चाहिए. शिष्ट और संस्कारी साहित्यकार का ताज सिर से उतार कर मन में जो भी दीवानगी उमडती है उसे बाहर निकाल कर लोगों तक उसे पहुंचा देना चाहिए. इसमें कोई नुकसान नहीं है.

मुंगडा (मंकोडो) वाले गीत में कुछ देर के लिए हेलनजी की कमर से ध्यान हटाकर संगीत पर ध्यान दीजिएगा. राजेश रोशन तेजस्वी संगीतकार है लेकिन उनके संगीत में आर.डी. बर्मन की हूबहू नकल है, यह आरोप कितना सच है इसका प्रमाण आपको गीत के मुखडे में ही मिल जाएगा. १९७७ की इस फिल्म में आर.डी. बर्मन के संगीत वाली `यादों की बारात’ जो १९७३ में रिलीज हुई थी, के आयकोनिक गीत `चुरा लिया है’ की शुरूआत का हिस्सा सुनिएगा. `जूली’ से शुरू हुई राजेश रोशन की यात्रा आर.डी. बर्मन से मिली `प्रेरणा’ के बिना सफल न होती.

१९५७ में `पेइंग गेस्ट’ में किशोर कुमार ने फिर एक बार एस.डी. बर्मन के संगीत में मजरूह सुलतानपुरी के शब्दों को गाया: माना जनाब ने पुकारा नहीं… छोड दो आंचल जमाना क्या कहेगा…. के अलावा हाय हाय हाय ये निगाहें कर दे शराबी जिसे चाहें, मैं तो भूल गया राहें (देव आनंद ने मदहोश बनकर गाया पार्टी सॉन्ग) और ओ निगाहें मस्ताना देख शमा है सुहाना… गीत गाए.. ये गीत देखते समय नूतनजी से आपकी निगाहें हटने का नाम नहीं लेतीं.

बाद के वर्ष में हिंदी फिल्म जगत की टॉप थ्री कॉमेडी फिल्मों में जिसका स्थान अडिग ऐसी `चलती का नाम गाडी’ आई (बाकी दो में से एक तो `पडोसन’ और `तीसरी आपके पसंद की कोई भी). एस.डी. का संगीत, मजरूह के जीत: बाबू समझो इशारे हॉर्न पुकारे, एक लडकी भीगी भागी सी सोती रातों में जागी सी, हाल कैसा है जनाब का, मैं सितारें का तराना, याने याने येने प्यार हो गया और इन हाथों से सबकी गाडी चल रही है जिसे फिल्म में नहीं लिया गया था(आपको पता है `शोले’ के लिए आनंद बक्षी ने एक जीत गाया था जिसे फिल्म में नहीं लिया गया था?). बहरहाल जो लोग अनइनिशिएटेड हैं उन्हें लगेगे कि `चलती का नाम गाडी’ का वो लोकप्रिय गीत तो छूट ही गया. नहीं भाई नहीं. मैं सितारों का तराना जरा गौर से सुनिएगा, उसी में पांच रूपैया बारा आना आएगा! आशाजी की आवाज में मधुबाला गीत शुरू करती है: मैं सितारों का तराना मैं बहारों को फसाना, ले के इक अंगडाई मुझ पे डाल नजर बन जा दीवाना…. और किशोर कुमार रॉबिनहुड या रोमियो जैसी कॉस्ट्यूम में आते हैं: रूप का तुम हो खजाना तुम हो मेरी जां ये माना, लेकिन पहले दे दो मेरा पांच रूपैया बारा आना, पांच रूपैया बारा आना मारेगा भैया ना ना ना ना…

`चलती का नाम गाडढी’ (१९५८)  और `गाइड’ (१९६६) के बीच सचिन देव बर्मन ने कुल करीब डेढ र्दजन फिल्मों में संगीत दिया पर उसमें से कितने गाने किशोर कुमार से गवाए? या ऐसा भी पूछा जा सकता है कि किशोर कुमार ने उनमें से कितनी फिल्मों के लिए सचिन देव बर्मन के लिए गाया? `अपना हाथ जगन्नाथ’ (१९६०, जिसमें किशोर खुद हीरो थे), `बेवकूफ’ (१९६० जिसमें खुद किशोर हीरो थे’ , `नॉटी बॉय’ (१९६२, फिर एक बार इसमें भी किशोर खुद नायक थे) तो इन तीनों फिल्मों में किशोर कुमार से तो गवाना ही होगा, जो स्वाभाविक बात है. फिर बाकी पंद्रह फिल्मों का क्या? हां, कई फिल्में ऐसी थीं जिनके गीतों में किशोर कुमार की आवाज नहीं चलती, उदाहरण के लिए मान लीजिए: `कागज के फूल’ (१९५९), `सुजाता’ (१९५९), `बंदिनी’ (१९६३) और `मेरी सूरत तेरी आंखें (१९६२). तो भी दस से अधिक फिल्में बाकी हैं. और उसमें भी आठ फिल्मों में तो देव आनंद और कई का प्रोडक्शन भी नवकेतन का था, इसके बाद भी इन फिल्मों में किशोर कुमार की आवाज नहीं थी, आपको आश्चर्य होगा: `काला पानी’ (१९५८, नवकेतन प्रोडक्शन), `सोलवां साल’ (१९५८), `बंबई का बाबू’ (१९६०), `एक के बाद एक’ (१९६०), `काला बाजार’ (१९६०, नवकेतन प्रोडक्शन), `मंजिल’ (१९६०), `बात एक रात की’ (१९६२) और `तेरे घर के सामने'(१९६३).

उन सात वर्षों के दौरान किशोरदा सचिन देव बर्मन से दूर रहे या फिर बर्मनदा ने किशोर से दूरी बनाई या फिर देवा आनंद और किशोर कुमार के बीच कुछ हुआथा!

राम जाने. पक्की जानकारी पता नहीं किसके पास होगी, सुनी सुनाई बातें जरूर हो सकती है जिसमें कितना सच और कितनी कल्पना यह फैसला करना कठिन है. मेरी अपनी एक थियरी है. जिसे मैं आपके साथ साझा करूंगा.

कल.

आज का विचार

मोदीजी को सुनकर खुशी मिलती है और राहुल को सुनकर हंसी मिलती है.. और इसी तरह से हमारा देश हंसी खुशी से चलता रहे. फिर आपस में लडाई-झगडा क्यों करना!

– व्हॉट्सएप पर पढा हुआ.

एक मिनट!

कंप्यूटर की परीक्षा में सवाल पूछा गया,

`प्रोग्राम यानी क्या’

बका ने जवाब लिखा:

`प्रोग्राम यानी एक बॉटल इंग्लिश, सोडा और सींग भजिया लेकर मित्र मंडली ढाबे पर जुटती है और सभी `रेडी’ हो जाते हैं, इसे प्रोग्राम कहते हैं!’

पेपर जॉंचनेवाला भी `रेडी’ था इसीलिए बका पास हो गया, आज गूगल में काम करता है.

(मुंबई समाचार, शुक्रवार – १० अगस्त २०१८)

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