इस पृथ्वी पर आखिरी हिंदू कब तक जिएगा- लेख ६ : सौरभ शाह

(गुड मॉर्निंग क्लासिक्स: बुधवार, २९ अप्रैल २०२०)

“द डेमोग्राफिक सीज़” शीर्षक से लिखी कॉन्राड एल्स्ट की छोटी सी पुस्तक की अनुक्रमणिका में पांच प्रकरण हैं. १. विज़न्स ऑफ डेमोग्राफिक डूम्सडे, २. इमिग्रेशन फ्रॉम बांग्लादेश, ३. द मुस्लिम बर्थ रेट, ४. इस्लाम एंड बर्थ कंट्रोल और ५. हिंदू रिस्पॉन्स टू द डेमोग्राफिक चैलेंज.

कोन्राड एल्स्ट एक विद्वान जर्मन लेखक हैं. महान हिंदूवादी हैं. मुंबई में उनसे निजी भेंट के बारे में और उनकी पुस्तकों के बारे में लिखा जा चुका है.

किसी भी धर्म या जाति की आबादी में होनेवाली बढोतरी या कमी उस प्रदेश की सांस्कृतिक परंपरा का संतुलन बदल सकती है. भारत में मुगलों ने आक्रमण करके यहां की जनता पर सदियों तक राज न किया होता तो हम लोग कुर्ता -पायजामा न पहन रहे होते. धोती और कुर्ता ही हमारा पहनावा होता. ये तो एक छोटा सा उदाहरण है. जलेबी नहीं खा रहे होते. चूरमा के लड्डू और लापसी न खा रहे होते. गंभीरतो से देखें तो इस देश में एक भी मस्जिद न होती. ठीक वैसे ही जैसे अरब देशों में मंदिर नहीं होते, चर्च नहीं होते. (आज के जमाने में कहीं कहीं देखने को मिलेते हैं). हिंदू धर्म या सनातन परंपरा को अपमानित करनेवाले तत्वों का जन्म हीं न हुआ होता इस देश में. हमारी हिंदी प्योर हिंदी होती. सीधे संस्कृत से उतर कर आई. इसमें अवधि- भोजपुरी इत्यादि बोलियों के शब्द भी होते लेकिन उर्दू से आए रूहानियत और खुसूस तथा अफसोस और इजहार जैसे शब्द उसमें शामिल नहीं होते. इसके बजाय संस्कृत से सीधे आए हुए शब्द होते जिसमें से कई शब्द अभी संस्कृत के शब्दकोष में ही पडे हुए हैं, बोलचाल में प्रयोग ही नहीं किए जाते.

एक और बात. संस्कृत में क, ख, ग, घ के बाद `अंग’ अक्षर आता है जिसे `ड’ के ऊपर वाले घुमाव के पास बिंदु लगाकर दर्शाया जाता है. (इस तरह से -ङ). अंतर्राष्ट्रीय ख्याति पाप्त प्रखर गुजराती भाषा शास्त्री डॉ. उर्मीबेन घनश्याम देसाई ने एक बार मुझे प्रेम पूर्वक कहा था कि `गुड मॉर्निंग’ में भले ही अंत में `ग’ लिखने का चलन है लेकिन वह `मॉर्निंग’ का ग नही `ङ’ (अंग’) है. इसीलिए उसे गुड मॉर्निंङ’ लिखना चाहिए! बात पूरी हुई. संस्कृत भाषा हमारी परंपरा का अनिवार्य हिस्सा है जिसे पिछले हजार वर्षों में इस देश से निष्काषित कर रखा है.

कॉन्राड एल्स्ट लिखते हैं कि १८९१ में जिस अंग्रेज के नेतृत्व में भारत की जनगणना हुई थी उस सेंसस कमिशन्तर ओ डोनेल ने उसी जमाने में जिस तरह से भारत में मुसलमानों की आबादी बढ रही थी और हिंदुओं की आबादी घट रही थी, उसके आंकडों के आधार पर भविष्यवाणी की थी कि ६२० साल बाद हिंदुस्तान में एक भी हिंदू नहीं होगा. उसके बाद १८८१, १८९१ और १९०१ की जनगणना के आंकडों के बाद कर्नल यू.एन. मुखर्जी को पुरानी भविष्यवाणी में बदलाव करने पडे और कहना पडा कि ६२० नहीं बल्कि ४२० साल बाद ही हिंदू जाति का सर्वनाश हो जाएगा. ये बातें कॉन्राड एल्स्ट ने संदर्भों के साथ लिखी हैं. कुछ भी निराधार नहीं है. यदि १९०१ में ऐसी भविष्यवाणी करके हिंदुओं के सर्वनाश को दो सौ साल और पहले लाया जा सकता है तो करीब सौ साल बाद, २०११ की जनगणना के आंकडे आने के बाद यह तारीख और भी आगे आ सकती है. शायद दो सौ, या तीन सौ साल बात की कोई घडी हो सकती है. हम ४२० साल ही मान लेते हैं तब भी सवाल ये नहीं प्रश्न ये नहीं है कि हिंदू कब इस दुनिया से विलुप्त हो जाएंगे. प्रश्न ये भी नहीं है कि हम कब अपने ही देश के बहुसंख्यक से अल्पसंख्यक हो जाएंगे. प्रश्न तो ये है कि आगामी कुछ दशकों में जब मुस्लिमों की आबादी का प्रतिशत १५ से २० प्रतिशत से बढकर तीस प्रतिशत तक हो जाएगी तब इस देश का क्या हाल होगा. तब कितनी भयावह परिस्थिति पैदा होगी. दस-पंद्रह प्रतिशत की आबादी को खुश करने के लिए कांग्रेसी और अब तो पवार, ममताएं, अखिलेश और बाघ से बिल्ली बन चुके राजनैतिक दल कमर से दो गुना ज्यादा ही झुक जाया करते हैं. जब ये आंकडा दुगुना हो जाएगा तब उन्हें रिझाने के लिए दंडवत करना ही बाकी रहेगा. ८५ प्रतिशत हिंदू होने के बावजूद हमारा सेकुलर मीडिया हमारे साथ, हमारे नेताओं के साथ और हमारी संस्कृति के साथ इतनी बदतमीजी से पेश आता है तो जब ८५ से घटकर हम ८०, ७५ या ७० प्रतिशत हो जाएंगे तो ये मीडिया हमारे लिए क्या जीने लायक वातावरण रखेगा? (कल्पना करनी हो तो कीजिए गोधरा हिंदू हत्याकांड के बाद पूरे २००२ के दौरान इन लोगों ने हिंदू जनता पर कितने आघात किए थे. मोदीजी पर तो मानो पहाडी ही गिराया था).

कर्नल यू.एन. मुखर्जी ने १९०९ में इस विषय के संदर्भ में खूब सारे लेख लिखकर `हिंदूज़, अ डाइंग रेस’ के शीर्षक के अंतर्गत प्रकाशित किया था. अभी सुलगता प्रश्न ये नहीं है कि भविष्य में इस पृथ्वी पर कोई हिंदू नाम का जीव जिंदा रहेगा या नहीं, प्रायोरिटी की बात तो ये है कि कुछ ही दशकों बाद उस तरफ दस-पंद्रह प्रतिशत की वृद्धि और इस तरफ आनुपातिक रूप से उतनी ही कमी होगी तब होनेवाली हिंदुस्तान के सांस्कृतिक संतुलन की ऐसी तैसी का सामना हम कैसे कर सकेंगे. हम यानी कि मैं और आप नहीं, बल्कि हमारी आनेवाली पीढियां. एक लेक्चर में मैने कहा था:`मुझे विश्वास है कि मेरे मरने के बाद, मेरा अंतिम संस्कार मेरी देह अग्नि को समर्पित करके ही होगा. मुझे विश्वास है कि मेरे बेटे का भी अग्निसंस्कार होगा. लेकिन मुझे संदेह है कि मेरे बेटे का बेटा जब जन्म लेगा और उसकी आयु पूर्ण होगी तब उसका अग्निसंस्कार होगा या उसे दफनाया जाएगा.

कॉन्राड एल्स्ट की पुस्तिका में वर्णित कई ज्वलंत बातें अभी शेष हैं. हम कल बात करेंगे कि मुस्लिम घुसपैठियों को रोकने के लिए इस्लामिक देश तो सजग हैं लेकिन भारत?

(यह लेख मार्च २०१७ को लिखी श्रृंखला सिरीज से अपडेट करके लिया गया है.)

छोटी सी बात

लॉकडाउन के दौरान रसोई में काम न करना पडे इसीलिए एक मित्र को सलाह दी कि रोटीमेकर ले लो. पांच-छह दिन बाद उसका फोन आया: वॉशिंग मशीन किस कंपनी का अच्छा आता है.

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