मीडिया के आईने में भारत का समाज जैसा है वैसा ही दिखता है या फिर….


न्यूज़ व्यूज़: सौरभ शाह

(newspremi.com, शनिवार, १५ फरवरी २०२०)

इस सप्ताह कलकत्ता में हुए पुस्तक मेले में एक स्टॉल था- भारत का गौरव बढानेवाली पुस्तकों का. वहां हनुमान चालीसा की पुस्तिकाओं का नि:शुल्क वितरण हो रहा था. पश्चिम बंगाल की असहिष्णु सरकार का नेतृत्व करनेवाली मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी ने राज्य की पुलिस को दौडा कर तुरंत हनुमान चालीसा की प्रतियां जब्त करके उसका वितरण बंद करा दिया.

दो साल पहले दीव, दमण तथा दादरा नगर हवेली के केंद्र शासित प्रदेश की राजधानी सिलवासा में नेशनल बुक ट्रस्ट ने एक पुस्तक मेले का आयोजन किया था. उद्घाटन समारोह के लिए निमंत्रण मिला था. रिबिन काटने की विधि खत्म होने के बाद इस केंद्र शासित प्रदेश के सर्वेसर्वा अर्थात एड्मिनिस्ट्रेटर (जो पक्के हिंदूवादी हैं) और ये लिखनेवाले सहित सभी लोग पुस्तक मेले का निरीक्षण करने निकले. बीच में अचानक ही मिशनरी स्टॉल से दो-तीन लोगों ने आकर हमारे सुरक्षा घेरे के पुलिस कर्मियों को भेदकर सीधे हमारे पास आ गए और हम कुछ पूछें इससे पहले ही नीले कवर वाली सुंदरता से निर्मित बाइबल की एक एक प्रति हमारे हाथ में थमा दी. मैं अभी कुछ सोचूं या कहूं, उससे पहले ही एक ने दनादन कैमरे से हमारे फोटो खींच लिए. हिंदी फिल्मों में ईमानदार पुलिसी अफसर को फंसाने के लिए विलन की गैंग का टपोरी नकद रूपए की गड्डी उसके हाथों में थमा कर फोटोग्राफर से तस्वीरें खिंचवा ले, कुछ इसी तरह का माहौल था.

मुझे किताबें पसंद हैं, ये मेरा पैशन है, मेरा जीवन है, मेरी आजीविका हैं. मेरी लायब्रेरी में श्रीमद्भगवद्गीता और उस पर लिखी गई विभिन्न टीकाओं की एक पूरी रैक है. कुरान, हदीस तथा बाइबल के कई वर्जन भी हैं! ये जो बाइबल मुझे मिली उसकी प्रति पहले से मेरे कलेक्शन में हैं. जो पुस्तकें मेरे पास नहीं होतीं उन्हें मैं अपने खर्च से खरीदना पसंद करता हूं. मुफ्त में मिले, ये मुझे अच्छा नहीं लगता. सिवाय इसके कि कोई बहुत ही करीब का स्वजन मुझे वह भेंट स्वरूप दे. मैं उस भले पादरी को कुछ समझा सकूं, इसका कोई स्कोप ही नहीं था. मेरी बात उन्हें बुरी लगती और मैं बाइबल को स्वीकार करने से सार्वजनिक रूपसे इनकार कर रहा हूं, ऐसी छाप आस पास जुटे लोगों पर पडती. मैने बाइबल हाथ में आते ही उसे माथे लगाकर आभार व्यक्त करते हुए स्वीकार कर लिया और साथ ही साथ जो एड्मिनिस्टर महोदय थे उन्होंने भी स्वीकार कर लिया.

जबरदस्ती से बाइबल हाथ में थमानेवाले को हम हिंदू साथ में सुरक्षा गार्ड्स होने के बावजूद नहीं रोकते. सौजन्यता पूर्वक विशाल हृदय से उसे स्वीकार कर लेते हैं. हाथ में बाइबल थामे हुए हमारी फोटो का उपयोग वे क्या करेंगे, भगवान जाने. हमें चिंता भी नहीं है.

बात आक्रामकता और सहिष्णुता की है. सिलवासा में मिशनरियों की आक्रामकता के सामने हम सहिष्णु बन जाते हैं. लेकिन कलकत्ता में अपनी इच्छा से कोई मांगे तो उसे हनुमान चालीसा की प्रति देनेवाले का पुलिस द्वारा दमन करवा कर असहिष्णुता दिखाई जाती है.

ये हो गई एक बात.

आप जानते हैं गुजरात में क्रिसमस के समय गरबा गाया जाता है? इस गरबा में अंबा भवानी के गीत नहीं होते. ईशू और मरियम के होते हैं. आदिवासी इलाकों में चर्च का बाहरी निर्माण कार्य स्थानीय मंदिरों जैसा ही होता है, ऐसा ट्रेंड शुरू हो गया है- ताकि लोग भ्रमित हो जाएं. दक्षिण भारत में ऐसे चर्चों में ईशू की आरती भी उतारी जाने लगी है. हिंदुओं को कन्वर्ट करने की ये नई चाल है.

पश्चिम बंगाल में और केरल में हर साल सैकडों हिंदू कार्यकर्ताओं की क्रूरता से हत्या की जा रही है. उसमें किसी भी लिंचिंग के बारे में मीडिया में चर्चा नहीं होती. हिंदू विरोधियों को मीडिया बचाता रहता है. कोई आसाराम बापू या अन्य धर्मगुरू को लगातार पहले पृष्ठ पर चमकाने वाले अखबारों और प्राइम टाइम की ब्रेकिंग न्यूज देनेवाले टीवी चैनल सामान्य भारतीय के दिमाग में ऐसी छाप खडी करते हैं कि हिंदू धर्मगुरु सभी ऐसे ही होते हैं. ईसाई पादरियों द्वारा भारत ही नहीं, दुनिया भर में भोले बच्चों के साथ किए गए दु्र्व्यवहारों, नन्स के साथ उनके दुष्कृत्यों तथा चर्च के आर्थिक घोटालों के बारे में बडे बडे ग्रंथ लिखे जा सकते हैं, इतनी सामग्री है. हमारी मीडिया को मानो उसमें कोई रुचि हीं नहीं है.

दिल्लीके परिणामों के बाद शाहीन बाग तकरीबन खाली हो गया. हार्दिक पटेल नाम का उपद्रव फैलानेवाला शरारती पुलिस के अरेस्ट वॉरंट से बचने के लिए १८ जनवरी से लापता है. विधु विनोद चोपडा की हाल मे रिलीज हुई फिल्म `शिकारा’ कश्मीरी पंडितों का पक्ष नहीं ले रही, मुसलमान अत्याचारियों को जस्टिफाय कर रही है. `आप` के साथ जुडे कई लोगों के खिलाफ इस समय आर्थिक भ्रष्टाचार की एफ.आई.आर. दर्ज की गई हैं, जांच चल रही है. पेट्रोल डीजल के भाव लगातार घट रहे हैं. प्याज की कीमतों में कृत्रिम बढोतरी होने के बाद तुरंत ही नॉर्मल्सी आ गई है और अब टमाटर की कीमतों को कृत्रिम रूप से उछाल कर आसामान तक पहुंचाने की साजिश को सरकार ने नाकाम कर दिया है. हार की डर से ईवीएम के बारे में संदेह व्यक्त करनेवाले `आप’ के नेता अब ईवीएम के बारे में एक शब्द नहीं बोल रहे हैं.

ऐसे कई सारे समाचारों को मीडिया आप तक ठीक तरीके से नहीं पहुंचाता. आपकी-हिंदुओं की छवि मलिन हो, देश की छवि बिगडे, देश के शासकों का नुकसान हो इसलिए मामूली समाचारों को बढा चढाकर, तोड मरोडकर, काट छांट कर मीडिया फ्रंट पेज पर वीभत्स शीर्षक छापेगी. लेकिन जो समाचार जानना चाहिए उसे बिलकुल ब्लैकआउट कर दिया जाता है या छठें पेज पर अंतिम कॉलम में नीचे से दूसरा पैरा बनाकर गाड देंगे.

मीडिया समाज का दर्पण कहलाता था. अहमदाबाद में कांकरिया के पास बालवाटिका में कई तरह के आईने थे, जिसमें आप मोटे, पतले, नाटे, लंबे इत्यादि नजर आते हैं. मीडया अब ऐसे आईने की तरह हो गया है जो आपको समाज का प्रतिबिंब विकृत करके दिखाता है. बाल वाटिका के विजिटर्स को तो पता होता है कि वे कितने मोटे या पतले या लंबे या नाटे हैं, इसीलिए वे दर्पण में सामने देखकर अपना मनोरंजन करते हैं, हंसकर आनंद लेते हैं.

अधिकतर अखबारों के पाठकों तथा टीवी न्यूज़ चैनलों के दर्शकों को समाज में सचमुच क्या हो रहा है, इसकी जानकारी नहीं होती. वे तो उन्हें दिखाए जानेवाले विकृत प्रतिबिंबों को ही सच मान लेते हैं. इसीलिए उन्हें इस देश में आस्था होने के बाद भी, देश के शासकों में- उनके इरादों पर विश्वास होने के बावजूद, वे वोट देने नहीं निकलते. इसका लाभ दूसरे लोग उठाते हैं- एक गट्ठा मतदान करवा कर. हमें मीडिया जो विकृत प्रतिबिंब दिखाता है उसके कारण हम उद्विग्न हो जाते हैं, जिन पर विश्वास रखा है, उन्हें देश चलाना नहीं आता, ऐसी हताशा जन्म लेती है. वामपंथियों का यही तो परखा हुआ तरीका है. आसाम और कश्मीर में जान जोखिम में डालकर उपद्रवियों को नियंत्रण में रखने की कोशिश करनेवाले भारत के बहादुर सैनिको को बदनाम करना. उनके खिलाफ मानवाधिकार का उल्लंघन करने के ढेरों केस करके उनका मनोबल तोडना (पंजाब में १९८० -९० के दशक में खलिस्तानी आंदोलन के समय भी मानवाधिकार वालों ने पंजाब पुलिस के साथ यही किया था). सेना के अलावा सुप्रीम कोर्ट, इलेक्शन कमीशन, पुलिस तथा ब्यूरोक्रेसी से लेकर महानगरपालिका तक सारा तंत्र ही निकम्मा है और भारत की सांवैधानिक व्यवस्था टूट चुकी है, ऐसी छाप दशको से वामपंथियोंने दलाल मीडिया द्वारा दिन रात खडी की है. भारत जैसा विशाल और बहुमुखी संस्कृति वाला देश कितने शानदार तरीके से शांतिपूर्वक जीवन बसर करते हुए समृद्ध हो रहा है, इसकी बात कोई नहीं करता. भारत के सामने बिलकुल बौने लगनेवाले, चड्डी पहननी भी नहीं आती है ऐसा दुनिया के कई देश लगातार अशांति, उपद्रव, आर्थिक बदहाली में जी रहे हैं, इसे देखा जाय तो हमें सचमुच अपने देश पर गर्व होगा. तथाकथित समृद्ध देशों के ऊपरी आवरण के नीचे बजबजाते सामाजिक अन्याय तथा आर्थिक संकटों के बारे में जानेंगे तो पता चलेगा कि हम भारतीय कितने भाग्यशाली हैं.

मीडिया का काम ये सारी बातें रोजाना हम तक पहुंचाने काहै. लेकिन जो मेन स्ट्रीम विशाल मीडिया है, उनका अपना निहित स्वार्थ है, उनकी समझ अलग है, इरादे अलग हैं, लक्ष्य अलग हैं.

भरोसेमंद मीडिया, किसी की शह में नहीं दबनेवाला या विज्ञापनदाताओं की उंगलियों के इशारे पर नहीं नाचनेवाला मीडिया दुर्लभ है. उत्तर रामचरित्र में भवभूति ने लिखा है: ते हि नो दिवसा गता:!

वे दिन बीत चुके हैं.

आज का विचार

जब किसी बात का अंत आ जाता है तब उसे जानना-स्वीकार करना अनिवार्य हो जाता है कि अब ये पूरा हुआ. दरवाजा बंद हो गया, वृत्त संपूर्ण हुआ, किताब का अंतिम पृष्ठ पढ लिया गया. जो अभिव्यक्ति करें उसे भी जिंदगी में वह अब नहीं रही, उसे मानकर ही आगे बढें.

– पावलो कोएल्हो

छोटी सी बात

डॉक्टर: आपको कहां दर्द हो रहा है?

मरीज: फीस कम कीजिए तो बताऊं

डॉक्टर; नहीं किया तो?

मरीज: खुद ही खोज लो!

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